तोप (कविता)
कंपनी बाग के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल,
विरासत में मिले कंपनी बाग की तरह
साल में चमकाई जाती है दो बार।
सुबह-शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने ज़माने में।
व्याख्या :
प्रस्तुत काव्यांश में कंपनी बाग में सजाकर रखी गई एक तोप का वर्णन है, जिसने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक भारतीयों वीरों को शहीद किया था।
कानपुर के कंपनी बाग के मुख्य द्वार पर 1857 की एक तोप निशानी के तौर पर रखी गई है। जिस तरह कंपनी बाग हमें विरासत में मिला है उसी तरह से यह तोप भी विरासत में ही मिली है। पुरखों द्वारा मिली इस धरोहर को साल में दो बार चमकाया जाता है। कंपनी बाग में सुबह-शाम घूमने को आने वाले पर्यटकों को अपना परिचय देते हुए मानों तोप कह रही हो कि कभी में बड़ी शक्तिशाली थी। मैंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जबरदस्त कार्य किया था। मैंने अच्छे-अच्छे शूरवीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। यह तोप भारतीय क्रांतिकारियों की क्रांति को दबाने के काम आई थी। इस प्रकार की तोपों के बल पर अंग्रेजों ने भारत की आज़ादी के पहले आंदोलन को कुचला था।
शिल्प सौंदर्य :
1857 के स्वत्रंत्रता संग्राम में काम आनेवाली तोप का वर्णन किया गया है।
खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
उर्दू शब्दों का प्रयोग किया गया है।
तोप का मानवीकरण किया गया है। वह स्वयं अपना परिचय देती है।
चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।
कविता छंद मुक्त शैली में लिखी गई है।
भाषा सहज, सरल व प्रभावशाली है।
अच्छे-अच्छे में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो
2. तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
खास कर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद ।
व्याख्या : प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहते है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तोप ने बड़ी क्रूरता से स्वतंत्रता सैनानियों का अंत किया था। आज वही शक्तिशाली तोप कंपनी बाग के मुहाने पर एक प्रदर्शन की वस्तु बनकर रह गई है। उसकी निरर्थकता की ओर संकेत किया गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी के युग में यह तोप कितनी महत्त्वपूर्ण थी इसने कितने ही सूरमाओं को इसने मौत की नींद सुला दिया था परंतु आज वह तोप छोटे-छोटे बच्चों की घुड़सवारी का साधन बनकर रह गई है या चिड़ियों के गपशप करने की जगह बन गई है। कवि कहते है कि आज तोप का भय नहीं रहा क्योंकि अब वह पूरी तरह निस्तेज हो चुकी है। जो कभी बड़े-बड़े वीर योद्धाओं के पसीने छुड़ा देती थी अब मात्र सजावट की वस्तु बनकर रह गई है। कवि ने इन प्रतीकों के माध्यम से सत्ता के बदलते स्वरूप पर व्यंग्य किया है कि समय के आगे किसी की नहीं चलती चाहे कोई कितना ही बडा शक्तिशाली क्रूर शासक ही क्यों न हो।एक-न-एक दिन उसका अंत सुनिश्चित है और कमज़ोर-से-कमज़ोर व्यक्ति भी उसका उपहास उड़ाता है।
शिल्प-सौंदर्य-
1. कवि ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों का स्मरण किया है तथा हथियारों पर दृढ़ संकल्प की विजय दिलाई है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. तोप का मानवीकरण किया गया है। वह स्वयं अपना परिचय देती है।
4. उर्दू शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है।
5. भाषा सरल, सहज व भावानुकूल है।
6. मुक्तछंद व सहज अभिव्यक्ति है।
7. भाषा में प्रवाहमयता व लयात्मकता विद्यमान है।
8 . चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
9. बच्चों की घुड़सवारी, चिड़ियों की गपशप और गौरैयों के भीतर घुसने के बिंब सजीव बन पड़े हैं।