अपठित गद्यांश
1.जनसंख्या की वृद्धि भारत के लिए आज एक विकट समस्या बन गई है। यह समाज की सुख-संपन्नता के लिए एक भयंकर चुनौती है। महानगरों में कीड़े-मकोड़ों की भाँति अस्वास्थ्यकर घोंसलों में आदमी भरा पड़ा है। न धूप, न हवा, न पानी, न दवा। पीले-दुर्बल, निराश चेहरे। यह संकट अनायास नहीं आया है। संतान को ईश्वरीय विधान और वरदान मानने वाला भारतीय समाज ही इस रक्तबीजी संस्कृति के लिए ज़िम्मेदार है। चाहे खिलाने की रोटी और पहनाने को वस्त्र न हों, शिक्षा को शुल्क और रहने को छप्पर न हो, लेकिन अधमूर्ख, अधनंगे बच्चों की कतार खड़ी करना हर भारतीय अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। यही कारणहै कि प्रतिवर्ष एक आस्ट्रेलिया यहाँ की जनसंख्या में जुड़ता चला जा रहा है, यदि इस जनवृद्धि पर नियंत्रण न हो सका तो हमारे सारे प्रयोजन और आयोजन व्यर्थ हो जाएँगे। धरती पर पैर रखने की जगह नहीं बचेगी। जब किसी समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ती है, तो उसे उनके भरण-पोषण के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है, परंतु वस्तुओं का उत्पादन तो गणितीय क्रम से होता है और जनसंख्या रेखागणित की दर से बढ़ती है। फलस्वरूप जनसंख्या और उत्पादन-दर में चोर-सिपाही का खेल शुरू हो जाता है। आगे-आगे जनसंख्या दौड़ती है और पीछे-पीछे उत्पादन वृद्धि। वास्तविकता यह है कि उत्पादन-वृद्धि के सारे लाभ को जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर देती है। जिसके परिणामस्वरूप वस्तुएँ अलभ्य हो जाती हैं। महँगाई निरंतर बढ़ती रहती है। जीवन-स्तर गिरता जाता है। गरीबी, अशिक्षा, बेकारी बढ़ती चली जाती है। देश वहीं-का-वहीं पड़ा रहता है। उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्पों को चुनकर लिखिए -
क. भारत के लिए आज क्या विकट समस्या बन गई है ?
(i) महानगर में बढ़ती जनसंख्या
(ii) जनसंख्या की वृद्धि
(iii) जनसंख्या का सीमित होना
(iv) लड़कियों की घटती संख्या
उत्तर-(ii) जनसंख्या की वृद्धि
ख. बढ़ती जनसंख्या के लिए ज़िम्मेदार कौन है ?
(i) संतान को बुढ़ापे का सहारा मानने वाले
(ii) सीमित परिवार वाले
(iii) संतान को ईश्वरीय विधान और वरदान मानने वाले
(iv) संतान को लाड़ प्यार देने वाले
उत्तर-(iii) संतान को ईश्वरीय विधान और वरदान मानने वाले
ग. यदि इस जनवृद्धि पर नियंत्रण न हो सका तो क्या होगा ?
(i) सारे प्रयोजन और आयोजन सफल हो जाएँगे।
(ii) सारे प्रयोजन और आयोजन व्यर्थ हो जाएँगे।
(iii) सारे आयोजन फिर से करने होंगे।
(iv) सारे प्रयोजन सही हो जाएँगे।
उत्तर-(ii) सारे प्रयोजन और आयोजन व्यर्थ हो जाएँगे।
घ. समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ने पर किस चीज़ की आवश्यकता पड़ती है ?
(i) सभी में आपसी प्रेम और भाईचारे की
(ii) सभी के लिए आरामदायक वस्तुओं की
(iii) सभी के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की
(iv) सभी के लिए प्राणवायु की
उत्तर-(iii) सभी के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की
ङ. उत्पादन-वृद्धि के लाभ को कौन व्यर्थ कर देता है ?
(i) बढ़ती जनसंख्या
(ii) गरीबी
(iii) बढ़ती महँगाई
(iv) अशिक्षा
उत्तर-(i) बढ़ती जनसंख्या
2.पशु को बाँधकर रखना पड़ता है, क्योंकि वह निरंकुश है। चाहे जहाँ-तहाँ चला जाता है, इधर-उधर मुँह मार देता है। क्या मनुष्य को भी इसी प्रकार दूसरों का बंधन स्वीकार करना चाहिए ? क्या इससे उसमें मनुष्यत्व रह पाएगा। पशु के गले की रस्सी को एक हाथ में पकड़ कर और दूसरे हाथ में एक लकड़ी लेकर जहाँ चाहो हाँककर ले जाओ। जिन लोगों को इसी प्रकार हाँक जाने का स्वभाव पड़ गया है, जिन्हें कोई भी जिधर चाहे ले जा सकता है, काम में लगा सकता है, उन्हें भी पशु ही कहा जाएगा। पशु को चाहे कितना मारो, चाहे कितना उसका अपमान करो, बाद में खाने को दे दो, वह पूँछ और कान हिलाने लगेगा। ऐसे नर पशु भी बहुत से मिलेंगे जो कुचले जाने और अपमानित होने पर भी जरा-सी वस्तु मिलने पर चट संतुष्ट और प्रसन्न हो जाते हैं। कुत्ते को कितना ही ताड़ना देने के बाद उसके सामने एक टुकड़ा डाल दो, वह झट से मार-पीट को भूलकर उसे खाने लगेगा। यदि हम भी ऐसे ही हैं तो हम कौन हैं, इसे स्पष्ट कहने की आवश्यकता नहीं। पशुओं में भी कई पशु मार-पीट और अपमान को नहीं सहते। वे कई दिन तक निराहार रहते हैं, कई पशुओं ने तो प्राण त्याग दिए, ऐसा सुना जाता है। पर इस प्रकार के पशु मनुष्य-कोटि के हैं, उनमें मनुष्यत्व का समावेश है, यदि ऐसा कहा जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी।
क. कई पशुओं ने प्राण त्याग दिए, क्योंकि-
(i) उन्हें विद्रोह करने की अपेक्षा प्राण त्यागना उचित लगा।
(ii) उन्हें तिरस्कृत हो जीवन जीना उचित नहीं लगा।
(iii) वह यह शिक्षा देना चाहते थे कि प्यार, मार-पीट से अधिक कारगर है।
(iv) वह यह दिखाना चाहते थे कि लोगों को उनकी आवश्यकता अधिक है न कि उन्हें लोगों की।
उत्तर-(ii) उन्हें तिरस्कृत हो जीवन जीना उचित नहीं लगा।
ख. बंधन स्वीकार करने से मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ेंगे?
(i) मनुष्य सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से कम स्वतंत्र हो जाएगा।
(ii) मनुष्यत्व में व्यक्तिगत इच्छा व निर्णय का तत्व समाप्त हो जाएगा।
(iii) मनुष्य बँधे हुए पशु समान हो जाएगा।
(iv) मनुष्य की निरकुशता में परिवर्तन हो जाएगा।
उत्तर-(ii) मनुष्यत्व में व्यक्तिगत इच्छा व निर्णय का तत्व समाप्त हो जाएगा।
ग. मनुष्यत्व को परिभाषित करने हेतु कौन-सा मूल्य अधिक महत्त्वपूर्ण है ?
(i) स्वतंत्रता
(ii) न्याय
(iii) शांति
(iv) प्रेम
उत्तर-(i) स्वतंत्रता
घ. गद्यांश के अनुसार कौन-सी उद्घोषणा की जा सकती है ?
(i) सभी पशुओं में मनुष्यत्व है।
(ii) सभी मनुष्यों में पशुत्व है।
(iii) मानव के लिए बंधन आवश्यक नहीं है।
(iv) मान-अपमान की भावना केवल मानव ही समझता है।
उत्तर-(iii) मानव के लिए बंधन आवश्यक नहीं है।
ङ. गद्यांश में नर और पशु की तुलना किन बातों को लेकर की गई है ?
(i) पिटने की क्षमता
(ii) पूँछ कान आदि को हिलाना।
(iii) बंधन स्वीकार करना।
(iv) लकड़ी द्वारा हाँके जाना।
उत्तर-(iii) बंधन स्वीकार करना।
3. वर्तमान युग कंप्यूटर युग है। यदि भारतवर्ष पर नजर दौड़ाकर देखें तो हम पाएँगे कि जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रवेश हो गया है। बैंक, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, डाक खाने, बड़े-बड़े उद्योग-कारखाने व्यवसाय हिसाब-किताब, रुपये गिनने तक की मशीनें कंप्यूटरीकृत हो गई है। अब भी यह कंप्यूटर का प्रारंभिक प्रयोग है। आने वाला समय इसके विस्तृत फैलाव का संकेत दे रहा है। प्रश्न उठता है कि क्या कंप्यूटर आज की जरूरत है ? इसका उत्तर है- कंप्यूटर जीवन की मूलभूत अनिवार्य वस्तु तो नहीं है। किंतु इसके बिना आज की दुनिया अधूरी जान पड़ती है। सांसारिक गतिविधियों, परिवहन और संचार उपकरणों आदि का ऐसा विस्तार हो गया है कि उन्हें सुचारू रूप से चलाना अत्यंत कठिन होता जा रहा है।पहले मनुष्य जीवन भर में अगर सौ लोगों के संपर्क में आता था तो आज वह दो हजार लोगों के संपर्क में आता है। पहले दिन में पाँच-दस लोगों से मिलता था तो आज पचास-सौ लोगों से मिलता है। पहले वह दिन में काम करता था तो आज रात भी व्यस्त रहती हैं। आज व्यक्ति के संपर्क बढ़ रहे हैं, व्यापार बढ़ रहे हैं, गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, आकांक्षाएँ बढ़ रही हैं, साधन बढ़ रहे हैं। इस अनियंत्रित गति को सुव्यवस्था देने की समस्या आज की प्रमुख समस्या है। कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। इस आवश्यकता ने अपने अनुसार निदान ढूँढ लिया है। कंप्यूटर एक ऐसी स्वचालित प्रणाली है जो कैसी भी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदल सकती है। हड़बड़ी में होने वाली मानवीय भूलों के लिए कंप्यूटर रामबाण औषधि है। क्रिकेट के मैदान में अंपायर की निर्णायक भूमिका हो या लाखों-करोड़ों की लंबी-लंबी गणनाएँ कंप्यूटर पलक झपकते ही आपकी समस्या हल कर सकता है। पहले इन कामों को करने वाले कर्मचारी हड़बड़ाकर काम करते थे, एक भूल से घबराकर और अधिक गड़बड़ी करते थे। परिणामस्वरूप काम कम, तनाव अधिक होता था। अब कंप्यूटर की सहायता से काफी सुविधा हो गई है।
क. वर्तमान युग कंप्यूटर का युग क्यों हैं ?
(i) कंप्यूटर के बिना जीवन की कल्पना असंभव सी हो गयी है।
(ii) कंप्यूटर ने पूरे विश्व के लोगों को जोड़ दिया है।
(iii) कंप्यूटर जीवन की अनिवार्य मूलभूत वस्तु बन गया है।
(iv) कंप्यूटर मानव सभ्यता के सभी अंगों का अभिन्न अवयव बन चुका है।
उत्तर-(i) कंप्यूटर के बिना जीवन की कल्पना असंभव सी हो गयी है।
ख. गद्यांश के अनुसार कंप्यूटर के महत्त्व के विषय में कौन-सा विकल्प सही है-
(i) कंप्यूटर काम के तनाव को समाप्त करने का उपाय है।
(ii) कंप्यूटर कई मानवीय भूलों को निर्णायक रूप से सुधार देता है।
(iii) कंप्यूटर के आने से सारी हड़बड़ाहट दूर हो गई है।
(iv) मानव की सारी समस्याओं का हल कंप्यूटर से संभव है।
उत्तर-(ii) कंप्यूटर कई मानवीय भूलों को निर्णायक रूप से सुधार देता है।
ग. गद्यांश के अनुसार किस आवश्यकता ने कंप्यूटर में अपना निदान ढूँढ लिया है ?
(i) अनियंत्रित कर्मचारियों को अनुशासित करने की।
(ii) अनियंत्रित गति को सुव्यवस्था देने की।
(iii) अधिक से अधिक लोगों से जुड़ जन-जागरण लाने की।
(iv) अधिक से अधिक कार्य कभी भी व कहीं भी करने की।
उत्तर-(ii) अनियंत्रित गति को सुव्यवस्था देने की।
घ. कंप्यूटर के प्रयोग से पहले अधिक तनाव क्यों होता था ?
(i) लंबी-लंबी गणनाएँ करनी पड़ती थी।
(ii) गलतियों के डर से कर्मचारी घबराए रहते थे।
(iii) क्रिकेट मैचों में गलत निर्णय का ख़तरा रहता था।
(iv) मानवीय भूलों के कारण बड़ी दुर्घटनायें होती थीं।
उत्तर-(ii) गलतियों के डर से कर्मचारी घबराए रहते थे।
ङ. कंप्यूटर के बिना आज की दुनिया अधूरी है क्योंकि-
(i) सारी व्यवस्था उपकरण और मशीनें कंप्यूटरीकृत हैं।
(ii) कंप्यूटर ही मानव एकीकरण का आधार है।
(iii) कंप्यूटर ने सारी प्रक्रियायें आसान बना दी हैं।
(iv) कंप्यूटर द्वारा मानव सभ्यता अधिक समर्थ हो गई है।
उत्तर-(i) सारी व्यवस्था उपकरण और मशीनें कंप्यूटरीकृत हैं।
4. पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ पर सवार, कुछ सोते, कुछ जागते चले आ रहे थे। अचानक कई गाड़ीवानों ने घबराए हुए आकर उन्हें जगाया और बोले- महाराज ! दारोगा ने गाड़ियाँ रोक दी हैं और घाट पर खड़े आपको बुला रहे हैं। पंडित आलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना हो क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था । न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं वैसे ही नचाती हैं लेटे-ही-लेटे गर्व से बोले- चलो हम आते हैं। यह कहकर पंडित जी ने बड़ी निश्चितता से पान के बीड़े लगाकर खाए। फिर लिहाफ ओढ़े हुए दारोगा के पस आकर बोले- बाबू जी आशीर्वाद! कहिए, हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ कि गाड़ियाँ रोक दी गईं। हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए।वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म! पंडित अलोपीदीन ने हँसकर कहा, हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार का हमारे सरकार तो आप हो है। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आप से बाहर हो सकते हैं ? आपने व्यर्थ कर कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ाएँ ! मैं तो आपको सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर ऐश्वर्य की माहिती वंशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी को उमंग थी कड़ककर बोले, हम उन नमकहरामों में नहीं है जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं आप इस समय हिरासत में हैं । कायदे के अनुसार आपका चालान होगा । बस मुझे अधिक बातों की फुर्सत नहीं है। जमादार बदलूसिंह! तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हूँ।
क.अलोपीदीन को गाड़ीवानों ने क्या कहकर उठाया ?
(i) दारोगा गाड़ियाँ रोककर आलोपीदीन को बुला रहे हैं।
(ii) दारोगा गाड़ियाँ रोक रहे हैं।
(iii) दारोगा किसी को आगे नहीं जाने देंगे।
(iv) घाट पर गाड़ियों रोक दी गई हैं।
उत्तर-(i) दारोगा गाड़ियाँ रोककर आलोपीदीन को बुला रहे हैं।
ख. लक्ष्मी के लिए अलोपीदीन के क्या विचार थे ?
(i) सिर्फ संसार में लक्ष्मी का वास है।
(ii) सिर्फ स्वर्ग में लक्ष्मी का वास है।
(iii) न्याय और नीति लक्ष्मी पर नहीं टिके हैं।
(iv) संसार ही नहीं स्वर्ग में भी लक्ष्मी का वास है।
उत्तर-(iv) संसार ही नहीं स्वर्ग में भी लक्ष्मी का वास है।
ग. पंडित अलोपीदीन ने दारोगा से क्या कहा ?
(i) हमें आपकी कृपा दृष्टि चाहिए।
(ii) हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए।
(iii) हम ब्राह्मणों पर आपकी दया बनी रहे।
(iv) हम लोगों पर आप कृपा-दृष्टि बना रखी है।
उत्तर-(ii) हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए।
घ. यहाँ 'भेंट' शब्द का क्या अभिप्राय है ?
(i) एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी गई भेंट
(ii) दी जाने वाली रिश्वत
(iii) दिया जानेवाला उपहार
(iv) दी जाने वाली अपार संपत्ति
उत्तर-(ii) दी जाने वाली रिश्वत
ङ. परिच्छेद को उचित शीर्षक दीजिए ।
(i) पांडत अलोपोदीन और लक्ष्मी
(ii) बेईमान दरोगा
(iii) ईमानदार दरोगा
(iv) ईमानदारी की जीत
उत्तर-(iv) ईमानदारी की जीत
5.व्यक्ति चित्त सब समय आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता। जितने बड़े पैमाने पर मनुष्य की उन्नति के विधान बनाए गए, उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत होते गए, लक्ष्य की बात भूल गए, आदशों को मलाक का विषय बनाया गया और संयम को दकियानूसी मान लिया गया। परिणाम जो होना था, वह हो रहा है । यह कुछ थोड़े-से लोगों के बढ़ते हुए लोभ का नतीजा है, परंतु इससे भारतवर्ष के पुराने आदर्श और भी अधिक स्पष्ट रूप से महान और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं। भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है । यही कारण है कि जो धर्मभीरु है, वे भी त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-बाहर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दब अवश्य गए हैं, लेकिन नष्ट नहीं हुए हैं। आज भी वह मनुष्य से प्रेम करता है। महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ और चोरी को गलत समझता है, दूसरों को पीड़ा पहुँचाने को पाप समझता है।
क. मनुष्य ने आदर्शों को मजाक का विषय किस कारण बना लिया?
(i) कानून
(ii) उन्नति
(iii) लोभ
(iv) धर्मभीरुता
उत्तर-(iii) लोभ
ख. धर्म एवं कानून के संदर्भ में भारत के विषय में कौन-सा कथन सबसे अधिक सही हैं -
(i) महिलाओं का सम्मान धर्म तो है, पर कानून नहीं है।
(ii) धर्म और कानून दोनों को धोखा दिया जा सकता है।
(iii) भले लोगों के लिए कानून नहीं चाहिए और बुरे इसकी परवाह नहीं करते हैं।
(iv) भारत का निचला वर्ग कदाचित अभी भी कानून को धर्म के रूप में देखता है।
उत्तर-(iii) भले लोगों के लिए कानून नहीं चाहिए और बुरे इसकी परवाह नहीं करते हैं।
ग. भारतवर्ष में सेवा, ईमानदारी, सच्चाई के मूल्य सही विकल्प पहचानकर वाक्य पूरा करें-
(i) मनुष्य की समाज पर निर्भरता में कमी होने के कारण इनमें हास हुआ है।
(ii) जीवन में उन्नति के बड़े पैमाने के कारण कहीं छिप से गए हैं।
(iii) न्यायालयों में कानून की सत्याभासी धाराओं में उलझ कर रह गए हैं।
(iv) आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं।
उत्तर-(iv) आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं।
घ. भारतवर्ष का बड़ा वर्ग बाहर भीतर कदाचित क्याअनुभव कर रहा है ?
(i) धर्म, कानून से बड़ी चीज़ है।
() कानून, धर्म से बड़ी चीज़ है।
(iii) संयम अशक्त और अकर्मण्य लोगों के लिए है।
(iv) आदर्श और उसूलों से यथार्थ जीवन असंभव है।
उत्तर-(i) धर्म, कानून से बड़ी चीज़ है।
ङ. निम्नलिखित में से सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक का चयन कीजिए-
(i) उन्नति के सन्दर्भ में जीवन मूल्यों की प्रासंगिकता
(i) मानव चित्त के आकर्षण निवारण में आदशों की भूमिका
(iii) समाज कल्याण हेतु धर्म और कानून का सहअस्तित्व
(iv) धार्मिक व सार्वभौमिक मूल्यों का एकीकरण
उत्तर-(i) उन्नति के सन्दर्भ में जीवन मूल्यों की प्रासंगिकता
6.यह काफी पुरानी घटना है। तब तमिलनाडु राज्य का नाम मद्रास था। मद्रास प्रांत के एक स्टेशन के निकट एक प्वाईंटमैन अपना प्वाईंट ( वह उपकरण जिससे गाड़ियों का ट्रैक बदला जाता है ) पकड़े खड़ा था। दोनों ओर से दो गाड़ियों अपनी पूरी गति से दौड़ी चली आ रही थी। उस दिन मौसम खराब था और वह आँधी - तूफान का संकेत दे रहा था। ऐसे भयावह मौसम में रोशनी के भी भरपूर साधन नहीं थे। प्वाईंटमैन अपने काम के लिए मुस्तैदी से तैयार था। तभी उसे अपने पैरों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। उसने देखा तो दंग रह गया। एक साँप उसके पैरों से लिपट रहा था। प्वाईंट उसके हाथ में था। डर के कारण उसकी घिग्घी बँध गई । किंतु तभी उसने सोचा कि यदि वह प्वाईंट हाथ से छोड़ देगा तो ऐसे में दोनों गाड़ियाँ परस्पर भिड़ जाएँगी और असंख्य लोगों की मृत्यु हो जाएगी। साँप के काटने से तो अकेले सिर्फ उसकी जान जाएगी लेकिन, असंख्य लोगों की जान बच जाएगी। कम- से-कम मरते-मरते वह असंख्य लोगों की जान बचाने का पुण्य तो अर्जित कर ही लेगा। यह सोचकर वह बिना हिले-डुले प्वाईंट को पकड़े खड़ा रहा। कुछ ही देर में दोनों रेलगाड़ियों की घड़घड़ाहट तेज़ हुई और रेलगाड़ियाँ आराम से प्वाईंटमैन के द्वारा पकड़े गए प्वाईट की सहायता से अलग-अलग ट्रैक पर निकल गईं। उधर साँप रेलगाड़ियों की घड़घड़ाहट सुनकर प्वाईंटमैन का पैर छोड़कर चला गया। रेलगाड़ियों के जाने के बाद जब प्वाईंटमैन का ध्यान अपने पैरों की ओर गया तो वह यह देखकर दंग रह गया कि वहाँ कुछ न था। यह देखकर उसके मन से स्वत: ही निकला, 'सच ही है, जो इंसान सच्चे मन से लोगों की मदद करते हैं उनकी सहायता ईश्वर स्वयं करते हैं। बाद में जब इस घटना का पता अधिकारियों को चला तो उन्होंने न सिर्फ प्वाईंटमैन को शाबाशी दी अपितु उसे पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया।
क.प्वाईंटमैन का क्या काम होता है ?
(i) मशीनों को ठीक करना।
(ii) उपकरण द्वारा गाड़ियों की मरम्मत करना।
(iii) गाड़ियों का ट्रैक बदलना।
(iv) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-(iii) गाड़ियों का ट्रैक बदलना।
ख. प्वाईंटमैन क्या देखकर दंग रह गया ?
(i) अपने पैरों में साँप को लिपटते देखकर।
(ii) गाड़ी के सामने व्यक्ति को आता देखकर।
(iii) भयानक शेर को सामने आता देखकर।
(iv) भयानक आकृति को आता देखकर।
उत्तर-(i) अपने पैरों में साँप को लिपटते देखकर।
ग. साँप कैसे भाग गया ?
(i) गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनकर।
(ii) आदमी के पैरों की आहट सुनकर।
(iii) रेलगाड़ियों की घड़घड़ाहट सुनकर।
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-(iii) रेलगाड़ियों की घड़घड़ाहट सुनकर।
घ. प्वाईंटमैन ने साँप के भागने पर क्या सोचा ?
(i) जो इंसान परोपकार नहीं करते ईश्वर उनकी सहायता करते हैं।
(ii) जो इंसान आस्तिक होते हैं ईश्वर उनकी मदद करते हैं।
(iii) जो इंसान दुराचारी होते हैं ईश्वर उनकी मदद करते हैं ।
(iv) जो इंसान सच्चे मन से लोगों की मदद करते हैं, ईश्वर उनकी सहायता स्वयं करते हैं।
उत्तर-(iv) जो इंसान सच्चे मन से लोगों की मदद करते हैं, ईश्वर उनकी सहायता स्वयं करते हैं।
ङ. प्वाईंटमैन को शाबाशी क्यों दी गई ?
(i) उसने सभी लोगों को गाड़ी में बिठाया था।
(ii) उसने स्टेशन पर गरीब लोगों की मदद की थी।
(iii) उसने स्टेशन पर भिखारियों को खाना खिलाया था।
(iv) उसने अपनी जान पर खेलकर असंख्य लोगों की जान बचाई थी।
उत्तर-(iv) उसने अपनी जान पर खेलकर असंख्य लोगों की जान बचाई थी।
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