HINDI BLOG : Worksheet Based On Samas And Sndhi /समास व संधि पर आधारित गद्यांश

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Sunday, 7 November 2021

Worksheet Based On Samas And Sndhi /समास व संधि पर आधारित गद्यांश


1.कहानी को दुबारा पढ़कर जहाँ-जहाँ संभव हो, वहाँ-वहाँ शब्दों में समास कीजिए-  
 
सूरज-सारिका नामक एक भाई और बहन रहते थे। बचपन में ही दोनों के माता और पिता स्वर्ग को प्राप्त हो गए। रहने के लिए उनके पास छोटा-सा घर था तथा गुजर और बसर के लिए दो-तीन जानवर। दोनों भाई और बहन की दिनचर्या बड़ी सीधी और सादी थी। सूरज हर दिन सुबह जानवरों को चराने के लिए निकल जाता और सारिका जल्दी ही घर के काम निपटाती। सारिका खाना आदि बनाती और दो पहरों के समय भाई के पास जंगल पहुँच जाती। वहाँ पाँच वट वृक्षों के समूह में बैठकर दोनों भाई और बहन पेट भरकर भोजन करते। भाई को अपने हाथों से खिला और पिलाकर सारिका चार राहों के समूह पर बने नीला है कंठ जिसका उस के मंदिर में जाती। सारिका जीवनभर ऐसे ही नहीं रहना चाहती थी इसलिए वह दिन और रात मेहनत करती। वह घड़ी-घड़ी अपने भाई का ध्यान रखती। इन दिनों गाँव में पानी की बहुत कमी थी। लोग पानी को इस प्रकार खर्च करते जैसे गंगा के जल को एक- एक घर की यही स्थिति थी। 
एक दिन सूरज अपने दोस्तों के साथ पान-पत्ता खेल रहा था। खेलते-खेलते पेड़ की डाली टूटी और सूरज खाई में जा गिरा। उसके दोस्तों ने शक्ति के अनुसार चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को एकत्र किया। सबने मिलकर सूरज को खाई से निकाला। होश में आने के बाद सूरज घड़ी-घड़ी अपनी बहन को बुलाने लगा। लोगों ने शीघ्र ही उसकी बहन को बुलाया। सूरज ने अपनी बहन से पानी माँगा। सारिका एक-एक घर जाकर पानी माँगने लगी मगर उसे कहीं पानी न मिला। उसने रोते-रोते नीला है कंठ जिसका से प्रार्थना की। रोती हुई सारिका के आँसू उसके भाई के मुँह में गिरे। बहन के आँसुओं को पीने के बाद सूरज के पखेरू के समान प्राण उड़ गए। भाई को मृत्यु को प्राप्त देख सारिका ने भी दम तोड़ दिया। कहते हैं मरने के बाद सूरज ने चातक पक्षी का रूप ले लिया और सारिका बादल बन गई। तब से गाँव में जब भी सूखा पड़ता है तो लोग चातक पक्षी की प्रार्थना करते हैं कि वह रोए जिससे पानी बरसे बादल बनी सारिका भला चातक भाई की बात कैसे टालेगी। 
2.त्यागी जी ने त्रिनगर के चार राहों के समूह पर तीन मंजिल वाला मकान बना लिया है। उन्होंने अपने राष्ट्रीय प्रेम को दिखाते हुए अपने घर की छत पर तीन रंग हैं जिसके झंडा लगाया है। उनका एक पुत्र भी है। उसका नाम उन्होंने घन के समान श्याम रखा है। उनके माता और पिता देश और विदेश की यात्रा पर गए हैं। उनका पुत्र दिन-दिन पाठ के लिए शाला जाता है। आज आधा पका भोजन खाने से उनके पुत्र के पेट में दर्द हो गया था। त्यागी जी उसे औषधि के लिए आलय में लेकर गए ताकि उसे दवाई दिला सकें। उसके बाद वे उसे घर के पास ही पीला है अंबर जिसका उसके मंदिर में ले गए। उस मंदिर में नीला है कंठ जिसका और उनके पुत्र  लंबा है उदर जिसका की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। 

3. नीचे दी गई कहानी में जिन-जिन शब्दों में संधि हो सकती है, उनमें संधि करके कहानी लिखिए। साथ ही बताइए कि संधि से क्या -क्या लाभ हुए ? 
सौम्य नामक महा आत्मा के विद्या आलय में रवि इंद्र, हरि ईश और रजनी ईश नामक तीन विद्या अर्थी रहते थे । तीनों अधिक अंश विद्या अध्ययन में तत् लीन रहते थे । तीनों अपने अपने विषय में पारंगत थे। एक बार गुरु जी परम ईश्वर की आज्ञा से सप्त ऋषि से मिलने गए। सदा एव की भाँति उन्होंने तीनों शिष्यों को विद्या आलय से अच्छ करने का काम सौपा। महा आत्मा जी के जाने के बाद तीनों स्व छंद होकर लड़ने लगे। कोई भी सफाई जैसा लघु काम नहीं करना चाहता था। वे स्वयं को बहुत श्रेष्ठ और धर्म आत्मा समझते थे। वे किसी और विद्या अर्थी के आने की प्रति ईक्षा करने लगे। 
गुरुजी आए तो उन्हें विद्या आलय भो अन गंदा देख आश्चर्य हुआ। उन्होंने तीनों को बुलाया और पृष्ठा, "क्या आप लोगों ने विद्या आलय सु अच्छ नहीं किया ?" तीनों चुप रहे। गुरुजी ने रवि इंद्र से यथा अर्थ बताने को कहा। रवि इंद्र ने उत्तर दिया , "गुरुजी मैं मनः योग से विद्या अध्ययन कर रहा था।" गुरुजी ने हरि ईश से पूछा उसने उत्तर दिया, "जी, मैं एक सत् जन पुरुष का सु आगत कर रहा था। तब गुरुजी ने रजनी ईश से पूछा। उसने लघु उत्तर दिया, "मैं शै अन कर रहा था ।" गुरुजी को इस मिथ्या आचार से बहुत निर् आशा हुई । उन्होंने कहा, "मुझे आप जैसे पंडितों को सफाई जैसा लघु काम नहीं सौंपना चाहिए था।" यह कहकर स्वयं सफाई करने लगे। यह देख तीनों ने सिर झुका लिया और गुरुजी से क्षमा याचना करने लगे। गुरुजी ने समझाया- जिस व्यक्ति का मन उत्  ज्वल नहीं इसमें निः वय ही ज्ञान अभाव है। जो शिक्षा हम अहंकारी बनाए, वह व्यर्थ है ।

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