HINDI BLOG : CLASS 9 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : रामन

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Thursday, 17 October 2024

CLASS 9 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : रामन


(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

1. कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?
उत्तर - कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोध कार्यों को समर्पित कर दें। परंतु उन दिनों कैरियर के रूप में शोधकार्य को जीवन भर के लिए अपनाने की कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी।

2. वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?
उत्तर - वाद्य यंत्रों पर की गई खोजों और वैज्ञानिक सिद्धांतों के 
(ख) आधार पर रामन् ने पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्य-यंत्रों की तुलना में घटिया हैं। उन्होंने वाद्ययंत्रों के कंपन के पीछे छिपे गणित पर अच्छा-खासा काम किया और कई शोध-पत्र भी प्रकाशित किए।

3. रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था और क्यों ? 
                                            अथवा

सरकारी नौकरी छोड़ना रामन् के लिए एक कठिन निर्णय क्यों था? 'वैज्ञानिक चेतना के वाहक' पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर -उस ज़माने के प्रसद्धि शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में रिक्त प्रोफेसर पद को स्वीकार कर लें। रामन् के समक्ष नौकरी संबंधी यह निर्णय अत्यंत कठिन था कि वे सुख-सुविधापूर्ण सरकारी नौकरी में बने रहें या उसे छोड़कर इस पद को स्वीकार कर लें। अंततः रामन् ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पद को स्वीकार किया और माँ सरस्वती की साधना हेतु सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को त्याग दिया।

4. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उत्तर -'रामन् प्रभाव' की खोज ने रामन् को विश्व के शीर्षस्थ वैज्ञानिकों की श्रेणी में प्रतिस्थापित कर दिया। समय-समय पर उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता, 1929 में 'सर' की उपाधि तथा 1930 में विश्व के सर्वोच्च 'नोबेल पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें रोम के मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी के ह्यूज पदक, फिलोडेल्फिया इंस्टीट्यूट के फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस के लेनिन पुरस्कार इत्यादि से सम्मानित किया गया।

5. रामन को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर- रामन को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जाग्रत किया क्योंकि उन्हें ये सम्मान और पुरस्कार उस दौर में मिले, किब भारत अंग्रेज़ों के अधीन था। दासता की बेड़ियों में जकडी भारतीय जनता के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का निरंतर हास हो रहा था। ऐसी परिस्थिति में रामन् की इन उपलब्धियों ने भारत को एक नई गरिमा प्रदान की और इसे विश्व में शीर्ष स्थान पर प्रतिस्थापित कर दिया।

 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए- 

1. रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
उत्तर - कलकत्ता में सरकारी नौकरी करते हुए भी रामन् ने अपनी वैज्ञानिक जिज्ञासा और स्वाभाविक रुचि को अक्षुण्ण बनाए रखा। दफ्तर से छुट्टी मिलते ही वे बहू बाजार स्थित 'इंडियन एसोसिऐशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों की सहायता से शोधकार्य करते थे। इस संस्था की प्रयोगशाला में संसाधनों का नितांत अभाव था। यह एक आधुनिक हठयोग ही था, जिसमें साधक रामन् दिनभर दफ़्तर की कड़ी मेहनत के पश्चात् सीमित संसाधनों की सहायता से प्रयोगशाला में शोधकार्य करते थे। रामन् अपनी इच्छाशक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने का प्रयास करते रहे और उन्होंने विज्ञान को नवीन ऊँचाइयाँ प्रदान की।

2. रामन् की खोज 'रामन् प्रभाव' क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश किरणों के प्रभाव का अध्ययन किया और यह पाया कि, जब एक वर्षीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से होकर गुज़रती है तो गुज़रने के पश्चात् उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। कारण यह है कि एकवर्षीय प्रकाश किरण के फोटॉन जब तरल अथवा ठोस रखे से गुज़रते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इसके परिणामस्वरूप उसकी ऊर्जा का कुछ अंश या तो खो जाता है या उसमें बढ़ोत्तरी हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। एक वर्षीय प्रकाश की किरणों में सर्वाधिक ऊर्जा बैंगनी तथा सबसे कम ऊर्जा लाल वर्ण के प्रकाश में होती है। रामन् की इसी खोज को 'रामन् प्रभाव' के नाम से जाना जाता है।

3. 'रामन् प्रभाव' की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके ?
उत्तर - रामन् की खोज 'रामन् प्रभाव' की सहायता से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करना सरल हो गया। पहले इसके लिए 'इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी' की मदद ली जाती थी, जिसमें त्रुटियों की संभावना अधिक रहती थी परंतु रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी की मदद से यह कार्य अत्यंत सहज हो गया। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी प्रदान करती है। इससे प्रयोगशाला में पदार्थों का संश्लेषण तथा अनेक पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।

4. देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए ।
                             अथवा
रामन् का वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रयोगों और शोधपत्र लेखन तक ही सिमटा हुआ नहीं था। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी। इस कथन के आलोक में चंद्रशेखर वेंकट रामन् के योगदान पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर - रामन् को अपने संघर्ष के प्रारंभिक दिनों में काम-चलाऊ उपकरणों की मदद से एक साधारण-सी प्रयोगशाला में कार्य करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की। यह संस्था ' उत्तर - रामन् को अपने संघर्ष के प्रारंभिक दिनों में काम-चलाऊ उपकरणों की मदद से एक साधारण-सी प्रयोगशाला में कार्य करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की। यह संस्था 'रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट' के नाम से जानी जाती है। रामन् के अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि तथा चिंतन के विकास में उन्होंने सैकड़ों शोध छात्रों का मार्गदर्शन किया, जिन्होंने आगे चलकर बहुत अच्छा काम किया। इस प्रकार ज्योति से ज्योति प्रज्वलित होती रही और कई छात्र उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने 'करेंट साइंस' नामक एक पत्रिका का संपादन भी किया। इसके अतिरिक्त भौतिकी में अनुसंधान के विकास हेतु 'इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स' नामक शोध-पत्रिका भी निकाली। वे लोगों में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति पूर्णतः समर्पित थे।

5. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
                                                  अथवा
रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर - सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् ने अपने व्यक्तित्व के प्रकाश की किरणों से संपूर्ण देश को आलोकित किया। वे वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने हमें सदैव यही संदेश दिया कि हम अपने इर्द-गिर्द घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तथा उसी के अनुसार उसकी जाँच-पड़ताल करें। उन्होंने विभिन्न वाद्य यंत्रों, समुद्र की अथाह जलराशि तथा प्रकाश की किरणों में से वैज्ञानिक सिद्धांतों को ढूँढ़ निकाला। उनका व्यक्तित्व हमें यह प्रेरणा देता है कि हम भी अपने आसपास बिखरी चीजों और विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं और रहस्यों पर से पर्दा उठाएँ और विज्ञान को समुन्नत बनाने का प्रयास करें।


 निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

1. उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।
उत्तर- यह कथन सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के विशिष्ट व्यक्तित्व और वैज्ञानिक चेतना के प्रति उनके समर्पण का सूचक है। कलकत्ता के वित्त विभाग में अफसर के रूप में तैनात रामन् दफ्तर से छुट्टी मिलने के बाद बहू बाज़ार स्थित प्रयोगशाला में जाकर शोधकार्य रूपी कठिन साधना करते थे। विज्ञान के प्रति उनके इस समर्पण ने उन्हें सुख-सुविधापूर्ण सरकारी नौकरी को छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पद को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। इससे स्पष्ट होता है कि रामन् के लिए माँ सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।

2. हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर - यह कथन हमें रामन् के जीवन से प्रेरणा लेते हुए प्रकृति के विभिन्न क्रियाकलापों और घटनाओं को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने और सोचने की शिक्षा देता है। हमारे आसपास प्रकृति में अनगिनत चीजें बिखरी पड़ी हैं। ब्रह्मांड के कई रहस्य ऐसे हैं, जिनपर पर्दा पड़ा हुआ है। आवश्यकता है दृढ़ इच्छाशक्ति और अटूट लगन के साथ विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं और वस्तुओं की वैज्ञानिक दृष्टि से छानबीन करने तथा उसपर गहराई से मनन करने की। जाने कितने ही रहस्य वैज्ञानिक करकमलों द्वारा परदे से बाहर आने की प्रतीक्षा में है। परंतु इसके लिए हमें रामन् की तरह अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होना होगा।

3. यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था। 
उत्तर - यह कथन विज्ञान के प्रति रामन् के स्वाभाविक रुझान और समर्पण को व्यक्त करता है। 'हठयोग' प्राचीन योग साधना का वह अंग है, जिसमें साधक अत्यंत कठिन मुद्राओं और आसनों के द्वारा सिद्धि प्राप्त करता है। सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् कलकत्ता के वित्त विभाग में अफ़सर के रूप में तैनात थे। दिन भर दफ़्तर की कड़ी मेहनत के बाद छुट्टी मिलते ही वे बहू बाज़ार स्थित 'इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' की मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचते और कामचलाऊ उपकरणों की सहायता से शोधकार्य रूपी कठिन साधना करते। सीमित संसाधनों वाली उस अभावग्रस्त प्रयोगशाला में दिन भर के थके रामन् विज्ञान को समृद्ध करने का प्रयास करते। उनकी यह कठिन साधना आधुनिक हठयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

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