HINDI BLOG : समर्पण कविता व्याख्या

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Thursday, 10 April 2025

समर्पण कविता व्याख्या

पाठ में संकलित 'समर्पण' कविता कवि रामावतार त्यागी द्वारा रची गई है। इसमें कवि ने मातृभमि के प्रति भक्ति व प्रेम का भाव प्रकट कर अपना सब कुछ न्योछावर करने का संकल्प प्रकट किया है। यह कविता देश-प्रेम पर आधारित है। 

सप्रसंग व्याख्या

(1) मन समर्पित -------------------------और भी हूँ।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'सुनहरी धूप' के पाठ-1 'प्रियतम' नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता  'श्रीरामावतार त्यागी जी'  हैं। इस कविता में  मातृभूमि के लिए देशप्रेम, समर्पण व त्याग का भाव व्यक्त किया गया है।

व्याख्या-कवि कहते हैं कि मेरे देश की धरती के लिए मेरा मन समर्पित है और मेरा शरीर भी इसके लिए समर्पित है। कवि देश की धरती अर्थात् मातृभूमि के लिए कुछ और भी बहुत कुछ देना चाहते हैं। वे धरती माँ से कहते हैं कि हे मातृभूमि! तुझे मैं सब कुछ भेंट करना चाहता हूँ।

(2) माँ तुम्हारा ऋण-----------------------------------और भी दें।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'सुनहरी धूप' के पाठ-1 'प्रियतम' नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचियता  'श्रीरामावतार त्यागी जी'  हैं। इन पंक्तियों में कवि ने स्वदेश के प्रति अपने प्रेम को प्रकट किया है। अपना सर्वस्व देश के लिए भेंट करने का निवेदन कर रहे हैं।

व्याख्या-कवि के हृदय में स्वदेश प्रेम का महासागर हिलोरे ले रहा है।  वह अपने तन, मन, प्राण और रक्त की एक-एक बूँद देश को समर्पित करना चाहते हैं। कवि कहते हैं कि हमारी धरती माँ का हम पर बहुत बड़ा उपकार है। इस धरती ने हमें बहुत कुछ दिया है और हम अपना सब  कुछ देकर भी इस माँ का ऋण नहीं चुका सकते हैं। कवि धरती माँ से यह प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि माँ!  तुम्हारा बहुत ऋण है, परंतु  मैं एकदम गरीब हूँ अर्थात् तुम्हारा ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ। किंतु मैं फिर भी इतना निवेदन कर रहा हूँ कि जब भी मैं थाल में अपना सिर सजा कर लाऊँ, तो तब तुम मेरी वह भेंट दया करके स्वीकार कर लेना। अर्थात् मैं देश के लिए अपना बलिदान करूँ तो उसे मना मत करना। कवि कहते हैं कि मेरा मन भी और प्राण भी तुम्हें समर्पित हैं, मेरे रक्त का एक-एक कण भी तुम्हें समर्पित है। हे देश की धरती, मैं इससे भी अधिक और कुछ भी तुम्हें भेंट करना चाहता हूँ।

भाव - कवि अपने देश की रक्षा करते हुए बलिदान देना चाहते हैं। 

(3) माँज दो तलवार और भी दूँ।
व्याख्या - इन पंक्तियों में कवि ने देश की रक्षा के लिए युद्ध भूमि में जाने की इच्छा प्रकट की है। कवि कहते हैं कि वे अपने दाएँ हाथ में तेज़ धार वाली तलवार लेकर और कमर पर ढाल बाँधकर मातृभूमि की रक्षा करना चाहते हैं। कवि को यह विश्वास है कि धरती माँ का  पूरा आशीर्वाद उनके सर पर है। वे अपने सभी सपने, अपनी जिज्ञासा और आयु का एक-एक पल धरती माँ को भेंट करना चाहते हैं। 

भाव - कवि मातृभूमि के लिए अपना जीवन न्योछावर करना चाहते हैं। 

तोड़ता हूँ -------------------------------------------------और भी दूँ। 
व्याख्या - इन पंक्तियों में कवि अपने परिवार, गाँव और रिश्तेदारों से क्षमा माँग रहे हैं। वे सबसे नाता तोड़कर देश के लिए शहीद होने जा रहे हैं।  वे अपने दाएँ हाथ में तलवार और बाएँ  हाथ में देश का झंडा लेकर देश की रक्षा के लिए बलिदान देने जा रहे हैं। वे अपने बगीचे के सभी फूल और घर की एक-एक ईंट व घर से जुड़ी हर वस्तु धरती माँ को भेंट करना चाहते हैं। 

भाव - कवि अपने जीवन से जुड़ी हर वस्तु चढ़ाने के बाद भी संतुष्ट नहीं हैं। वे धरती माँ के लिए कुछ और भी देना चाहते हैं। 




प्रश्न-उत्तर 


प्रश्न - 'समर्पण' कविता के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं ?

उत्तर - इस कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि अपनी मातृभूमि के प्रति हर व्यक्ति के मन में समर्पण, त्याग और श्रद्धा की भावना होनी चाहिए।


प्रश्न - कवि अपने समर्पण से संतुष्ट क्यों नहीं हैं ?

उत्तर - कवि अपने समर्पण से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि देश की धरती का ऋण बहुत बड़ा है और उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि देश के लिए तन, मन और जीवन के अतिरिक्त कुछ और भी समर्पित करना चाहिए।


प्रश्न - कवि थाल में सजाकर देश की धरती को क्या भेंट करना चाहते हैं ?

उत्तर - कवि अपने शीश को थाल में सजाकर अपने देश की धरती को भेंट करना चाहते हैं। कवि स्वयं पर मातृभूमि का  ऋण मानते हैं अतः वे अपना सर्वस्व देश हेतु समर्पित करना चाहते हैं।



प्रश्न - कवि अपने गाँव और अपने घर से मोह का बंधन क्यों तोड़ना चाहते हैं ?

उत्तर - कवि अपने गाँव और अपने घर से मोह का बंधन तोड़ना चाहते हैं, क्योंकि वे देश के सच्चे सपूत हैं और वे अपने देश की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई भी मोहपाश उन्हें बंधन में जकड़ सके अतः वे मुक्त होकर देश को सर्वस्व अर्पित करना चाहते हैं।


प्रश्न - 'नीड़ का तृण-तृण समर्पित' कहकर कवि ने किस ओर संकेत किया है ?

उत्तर -  'नीड़ का तृण-तृण समर्पित' कहकर कवि ने अपने देश के रक्षा के लिए अपने घोंसले अर्थात घर के तिनके-तिनके को भी समर्पित करने की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए घर, परिवार, समाज और स्वयं को हँसते-हँसते समर्पित कर देना चाहिए।


प्रश्न - कवि के समर्पण की भावना को अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर - कवि ने अपने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देना चाहते हैं, क्योंकि उनके अंदर देशभक्ति की सच्ची भावना है अर्थात वे अपने देश के सच्चे सपूत हैं तथा अपने को शरीर अर्पित कर देना चाहते हैं। वे अपने आप को धरती माँ का कर्ज़दार समझते हैं जिसका कर्ज़  वे अपना बलिदान देकर भी नहीं चूका सकते हैं। उनके समर्पण की भावना अनमोल है क्योंकि वे अपने तन, मन, धन और जीवन को मातृभूमि पर सहर्ष न्योछावर करने को तत्पर हैं।




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