' बड़े भाई साहब ' नामक यह पाठ जीवन के कई आयामों को एक साथ छूता है ।
· लेखक की आयु 9 वर्ष है और उनसे पाँच साल बड़े उनके भाई साहब 14 वर्ष के हैं । इसलिए ही उन्हें बड़े भाई साहब कहा जाता है ।बड़े भाई साहब का स्वभाव अध्ययनशील था। वे हमेशा किताबों में खोए रहते तथा पढ़ते रहते ।
· खाली समय में भी बड़े भाई साहब कॉपियों के हाशियों पर चित्र बनाया करते थे । बड़े होने के नाते लेखक के साथ सख्ती करना (डाँटना) व नसीहत देना बड़े भाई साहब अपना कर्तव्य व धर्म समझते थे । लेखक का अधिकतर समय खेल-कूद व पतंगबाजी में व्यतीत होता था ।
· लेखक द्वारा यह हर संभव प्रयास किया जाता था कि समय-सारिणी ( टाइम-टेबिल ) बनाकर हर काम समय पर करें । वह हर कार्य के लिए अलग-अलग समय भी निश्चित करते थे। परंतु उसका पालन नहीं हो पाता था । टाइम-टेबिल से परे हटकर अधिक समय खेल-कूद में हो व्यतीत हो जाता था ।
· भाई साहब का यह स्वभाव बन गया था कि छोटे भाई को धर्मापदेश देना और यह दिखाना कि वह तो बहुत पढ़ते हैं, मगर लेखक नहीं पढ़ता ।
· वह हमेशा छोटे भाई को शिक्षा (उपदेश) दिया करते थे- " कि अंग्रेजी बहुत कठिन विषय है। इसे पढ़ना कोई मज़ाक नहीं है । सारा दिन और रात ध्यान से पढ़ने पर भी यह विद्या नहीं आती है। कई बड़े विद्वान अंग्रेजी सीखने के बाद भी इसे शुद्ध रूप से नहीं लिख पाते हैं।" इस प्रकार लेखक को भाई साहब शिक्षा(उपदेश) देते हुए समझाया कि अंग्रेजी भाषा को पढ़ना बहुत ही कठिन काम है ।
· सालाना परीक्षा हुई तो लेखक तो पास हो गए , मगर भाई साहब फेल हो गए । भाई साहब कहते- "मेरे फेल होने पर न जाओ । मेरी कक्षा में पहुँचोगे तो दाँतों पसीना आ जाएगा ।" उन्होंने अगली कक्षाओं को कठिन पढ़ाई का भी जिक्र किया ।
· भाई साहब ने अगली कक्षा की पढ़ाई को लेकर लेखक को चेताया और डराया, जिसे सुनकर लेखक का तो डरना स्वाभाविक ही था। लेकिन इस घबराहट का यह अर्थ बिलकुल नहीं था कि लेखक की पढ़ाई में रुचि हो गई हो और उन्होंने खेलना छोड़ दिया हो । बल्कि अब वे चारों-छिपे खेलने जाते थे ।
· लेखक को पतंगबाजी का बहुत शौक था । अकसर वह कटी हुई पतंग को लूटने का प्रयास करता । एक बार एक पतंग कट कर आ रही थी और लेखक उसे लूटने के लिए दौड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था ।
· बड़े भाई साहब ने जब इस दृश्य को देखा तो अपने अंदर के बचपने को रोक नहीं पाए और दौड़ उस पतंग को लूटने के लिए । लंबाई अधिक होने के कारण उन्हें इसमें सफलता मिल गई। इस प्रकार उनके भीतर का बचपन निकलकर बाहर आया ।
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