HINDI BLOG : Bade Bhai Sahab .....Munshi Prem Chand/बड़े भाई साहब........ लेखक- मुंशी प्रेमचंद

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Tuesday, 20 July 2021

Bade Bhai Sahab .....Munshi Prem Chand/बड़े भाई साहब........ लेखक- मुंशी प्रेमचंद

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बड़े भाई साहब
 
 'बड़े भाई साहब' कहानी के लेखक  प्रेमचंद जी हैं ।
 जिनका नाम हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध कहानीकार व लेखक के रूप में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है । 
उन्होंने आजीवन अपनी लेखनी के द्वारा हिंदी साहित्य को अलंकृत करके हिंदी प्रेमियों को गौरान्वित किया है ।
' बड़े भाई साहब ' नामक यह पाठ जीवन के कई आयामों को एक साथ छूता है ।
 पाठ के कई स्थलों से स्वतः ही उद्देश्य का स्पष्टीकरण होता है , जैसे - पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं क्योंकि दोनों से ही विद्यार्थियों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है । 
 किताबी ज्ञान से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण जीवन से प्राप्त किए गए अनुभव होते हैं । 
अतः रटत प्रणाली का हमें खंडन करना चाहिए क्योंकि परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार नहीं है । 
हम अगर उम्र में बड़े हैं तो हमें छोटों के समक्ष अपनी आदर्श स्थिति को बनाए रखने के लिए अक्सर अपनी इच्छाओं को भी तिरोहित करना पड़ता है , जैसे - पाठ के बड़े भाई साहब ने अपने छोटे भाई के लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य किया तथा अपनी सभी बाल-सुलभ चेष्टाओं को मन में ही दवा दिया । 
पाठ में एक बड़े भाई हैं और उनसे छोटा एक भाई है। बड़े भाई हैं तो छोटे ही अपने छोटे भाई से उम्र में कुछ साल ही बड़े पर उनपर छोटे भाई की बहुत ज़िम्मेदारी थी।  

 पात्र परिचय ( लेखक तथा बड़े भाई साहब )

बड़े भाई साहब :

• स्वभाव से 'अध्ययनशील' होने पर भी पढ़ाई के प्रति गंभीरता का अभाव ।
 • छोटे भाई के प्रति कर्तव्य बोध । इस उत्तरदायित्व का गंभीरतापूर्वक निर्वहन करना तथा तरह-तरह के उदाहरणों द्वारा अपनी बात को सिद्ध करना । 
• छोटे भाई की निगरानी के जन्म सिद्ध अधिकार का भरपूर उपयोग, छोटे भाई को पुस्तकीय ज्ञान के स्थान पर व्यावहारिक ज्ञान के महत्त्व को समझाना। 
छोटे भाई के समक्ष अपनी आदर्श स्थिति बनाए रखने हेतु सतत प्रयत्नशील तथा एक मिसाल कायम करने अथवा उदाहरण प्रस्तुत करने की चेष्टा । 
• एक आदर्श के रूप में स्वयं को प्रतिस्थापित करने की खातिर अपनी बाल सुलभ प्रवृत्तियों का दमन करना ।

  छोटा भाई ( लेखक ) :

• खेलकूद, पतंगबाजी इत्यादि का शौक। 
• पढ़ाई पर ध्यान कम देना ।
 • मैदान की सुखद हरियाली और ठंडी हवा के झोंकों के आकर्षण के कारण ' टाइम टेबल ' की उपेक्षा करना । 
 • बड़े भाई साहब के प्रति सम्मान का भाव तथा मन में उनसे डर की भावना ।
 • 'बड़े भाई साहब' की नजर बचाकर खेलकूद तथा पतंगबाजी का शौक पूरा करना ।

पाठ का सार 

·        लेखक की आयु 9 वर्ष है और उनसे पाँच साल बड़े उनके भाई साहब 14 वर्ष के हैं इसलिए ही उन्हें बड़े भाई साहब कहा जाता है बड़े भाई साहब का स्वभाव अध्ययनशील था।  वे हमेशा किताबों में खोए रहते तथा पढ़ते रहते  

·    खाली समय में भी बड़े भाई साहब कॉपियों के हाशियों पर चित्र बनाया करते थे  बड़े होने के नाते लेखक के साथ सख्ती करना (डाँटना) व नसीहत देना बड़े भाई साहब अपना कर्तव्य व धर्म समझते थे  लेखक का अधिकतर समय खेल-कूद पतंगबाजी में व्यतीत होता था  

·     लेखक द्वारा यह हर संभव प्रयास किया जाता था कि समय-सारिणी ( टाइम-टेबिल ) बनाकर हर काम समय पर करें । वह हर कार्य के लिए अलग-अलग समय भी निश्चित करते थे। परंतु उसका पालन नहीं हो पाता था  टाइम-टेबिल से परे हटकर अधिक समय खेल-कूद में हो व्यतीत हो जाता था  

·    भाई साहब का यह स्वभाव बन गया था कि छोटे भाई को धर्मापदेश देना और यह दिखाना कि वह तो बहुत पढ़ते हैं, मगर लेखक नहीं पढ़ता  

·    वह हमेशा छोटे भाई को शिक्षा (उपदेश) दिया करते थे- " कि अंग्रेजी बहुत कठिन विषय है। इसे पढ़ना कोई मज़ाक नहीं है । सारा दिन और रात ध्यान से पढ़ने पर भी यह विद्या नहीं आती है। कई बड़े विद्वान अंग्रेजी सीखने के बाद भी इसे शुद्ध रूप से नहीं लिख पाते हैं।" इस प्रकार लेखक को भाई साहब शिक्षा(उपदेश) देते हुए समझाया कि अंग्रेजी भाषा को पढ़ना बहुत ही कठिन काम है ।  

·   सालाना परीक्षा हुई तो लेखक तो पास हो गए , मगर भाई साहब फेल हो गए  भाई साहब कहते- "मेरे फेल होने पर जाओ मेरी कक्षा में पहुँचोगे तो दाँतों पसीना जाएगा " उन्होंने अगली कक्षाओं को कठिन पढ़ाई का भी जिक्र किया  

·    भाई साहब ने अगली कक्षा की पढ़ाई को लेकर लेखक को चेताया और डराया, जिसे सुनकर लेखक का तो  डरना स्वाभाविक ही था। लेकिन इस घबराहट का यह अर्थ बिलकुल नहीं था कि लेखक की पढ़ाई में रुचि हो गई हो और उन्होंने खेलना छोड़ दिया हो बल्कि अब वे चारों-छिपे खेलने जाते थे

·    लेखक को पतंगबाजी का बहुत शौक था  अकसर वह कटी हुई पतंग को लूटने का प्रयास करता एक बार एक पतंग कट कर रही थी और लेखक उसे लूटने के लिए दौड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था  

·    बड़े भाई साहब ने जब इस दृश्य को देखा तो अपने अंदर के बचपने को रोक नहीं पाए और दौड़ उस पतंग को लूटने के लिए  लंबाई अधिक होने के कारण उन्हें इसमें सफलता मिल गई। इस प्रकार उनके भीतर का बचपन निकलकर बाहर आया

 

 


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