स्मृति लेखक-श्रीराम शर्मा
लेखक - परिचय:
'स्मृति' पाठ के लेखक हैं-श्रीराम शर्मा ।
इस कहानी में उन्होंने अपनी बाल्यावस्था की एक घटना का सजीव चित्र खींचा है ।
इसकी रोमांचक शैली एवं घटनाक्रम की स्वाभाविकता को देखते हुए लेखक का लेखन-कौशल स्पष्ट हो जाता है उनका जन्म 1896 में हुआ था।
अपने जीवन के कार्यकाल के आरंभिक दिनों में वे अध्यापन कार्य में संलग्न रहे तथा स्वतंत्र रूप से राष्ट्र और साहित्य की सेवा करते रहे 'विशाल भारत' पत्रिका के संपादक के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति प्राप्त की।
वे हिंदी में रोमांचकारी शिकार-साहित्य के अग्रणी लेखक माने जाते हैं ।
उनका देहावसान सन् 1987 में हुआ था।
प्रमुख रचनाएँ - शिकार , बोलती प्रतिमा , जंगल के जीव , सेवाग्राम की डायरी, सन् बयालीस के संस्मरण इत्यादि ।
पाठ - परिचय:
'स्मृति' कहानी लेखक के बचपन की यादों का वह ऐसा रोमांचकारी विवरण है, जिसे पढ़कर पलभर के लिए बच्चों की शरारतों और उनसे उत्पन्न गंभीर परिस्थितियों को देखकर हृदय काँप उठता है तथा मन अज्ञात आशंका से सिहर उठता है ।
इस कहानी का घटनाक्रम स्वाभाविक और लेखन-शैली अत्यंत रोमांचक है ।
प्रत्येक पंक्ति के साथ परिस्थिति की गंभीरता, बालमन की विवशता और प्रतिपल सामने आए खतरे का वर्णन |
पाठक के कोतूहल को आदि से अंत तक बनाए रखता है।
बच्चों की शरारते, उनकी जिज्ञासाएँ , अटूट आत्मविश्वास और खेल कभी-कभी उन ऐसे कठिन एवं जोखिम से भरे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती हैं, जहाँ से सकुशल बाहर निकलना, दैवी-कृपा और अदम्य उत्साह शक्ति पर ही निर्भर है।
कच्चे कुएँ के धरातल पर विषैले सर्प के साथ भिड़कर, गिरी हुई चिठ्ठियों को उठाना, एक लाटी के सहारे साप से मुकाबला करना, पूर्व निर्धारित योजना को बदलकर नई योजना बनाना, लेखक के बालमन के अदम्य साहस एवं ज़िम्मेदारी की भावना का परिचायक है।
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में लेखक श्रीराम शर्मा ने बाल्यावस्था की एक घटना का सजीव चित्रण किया है ।
इस कहानी का घटनाक्रम इतनी रोमांचक शैली में लिखा गया है कि प्रत्येक क्षण, परिस्थिति की गंभीरता और सामने आए खतरों का वर्णन पाठक के कौतूहल को आदि से लेकर अंत तक बनाए रखता है।
बच्चों की सहज जिज्ञासा एवं क्रीड़ा जैसे कभी-कभी उन्हें कठिन जोखिमपूर्ण निर्णायक मोड़ पर पर ला खड़ा करती है, इसका बहुत ही सजीव वर्णन प्रस्तुत पाठ में किया गया है ।
सन् 1908 की बात है । दिसंबर का अंत व जनवरी का प्रारंभ था । कड़ाके की ठंड पड़ रही थी ।
बूँदाबाँदी के कारण भी सर्दी बढ़ गई थी । लेखक उस समय झरबेरी से बेर तोड़कर खा रहा था कि भाई का बुलावा आ गया ।
वह डरते-डरते घर में घुसा। भाई साहब ने मक्खनपुर के डाकखाने में पत्र डाल आने का आदेश दिया ।
माँ ने कुछ चने भुनवान को दे दिए । दोनों भाई अपना-अपना डंडा लेकर घर से चल पड़े। चिट्टियों को टोपी में रख लिया ।
वह अपने डंडे से कई साँपों को मार चुका था, इसलिए उसे डंडे का बहुत सहारा था ।
दोनों उछलते-कूदते चार फलाँग की दूरी पार करते हुए कुएँ तक पहुँच गए जिसमें एक काला साँप रहता था ।
लेखक अपने स्कूल के साथियों के साथ कुएँ में पड़े हुए साँप पर डेला जरूर मारा करता था ।
ढेला लगते ही साँप फुकार उठता था ।
इस खेल में उसे तथा उसके साथियों को बहुत आनंद आता था जैसे ही कुआँ सामने आया लेखक के मन में साँप को फुफकार का मजा लेने की बात आ गई ।
उसने ढेला उठाया और टोपी को उतारते हुए कुएँ में ढेला फेंक दिया ।
टोपी के नीचे रखी हुई तीनों चिट्टियाँ कुएँ में जा गिरी । चिट्टियाँ बहुत उरूरी थीं ।
लेखक को भाई की पिटाई का डर था। दोनों भाई रोने लगे।
तब उन्हें माँ को गोद याद आ रही थी। दिन छिपने को था और घर में पिटाई का डर था।
लेखक ने कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ लाने की सोची। छोटा भाई रो रहा था। उनके पास कुल मिलाकर पाँच धोतियाँ थीं। उन सभी धोतियों को आपस में बाँधा गया ।
धोती के एक सिर पर डंडा बाँधकर उसे कुएँ में डाल दिया।
दूसरा सिरा एक गाँठ लगाकर छोटे भाई को दे दिया और उसे मजबूती से पकड़ने के लिए कहा ।
लेखक ने छोटे भाई को विश्वास दिलाया कि वह कुएँ के नीचे पहुँचते ही साँप को मार देगा।
लेखक धोती पकड़कर नीचे उतरा । अभी वह धरातल से चार-पाँच फुट ऊपर था कि उसे फन फैलाए लहराता हुआ साँप दिखाई दिया।
लेखक बीचों बीच उतर रहा था। इंडा नीचे लटक रहा था। कुएँ का धरातल अधिक चौड़ा न था। इसलिए उसे मारने के लिए नीचे उतरना ज़रूरी था।
उसे अपना पाँव साँप से कुछ ही फुट की दूरी पर रखना पड़ा। एकाएक उसने अपने पाँव कुएँ की बगल पर टिका दिया । इससे मिट्टी नीचे गिरी ।
साँप फुफकारा । लेखक के पाँव दीवार से हट गए।
थोड़ी ही देर में उसने अपने पाँव साँप के सामने धरातल पर टिका दिए।
अब दोनों आमने-सामने थे। वे एक-दूसरे को देख रहे थे। इतनी खुली जगह नहीं थी कि डंडे को घुमाया जा सके। बस एक ही तरीका था कि साँप को कुचल डाला जाए परंतु यह खतरनाक था।
लेखक ने देखा कि चिट्ठियाँ नीचे पड़ी थी। उसने डंडे से चिट्ठी को सरकाना शुरू कर दिया।
अब साँप ने फन को पीछे किया किंतु जैसे ही चिट्ठी के पास डंडा पहुँचा साँप ने डंडे पर ज़ोर से डंक मारा ।
डर के मारे लेखक के हाथों से छूट डंडा गया। वह खुद भी उछल पड़ा। उसने देखा कि डंडे साँप के डंक के तीन-चार निशान थे ।
इस संघर्ष की आवाज़ सुनकर ऊपर खड़े भाई की चीख निकल गई । उसने सोचा कि लेखक का काम तमाम हो गया ।
जब लेखक ने लिफ़ाफ़ा उठाने का प्रयास किया तो साँप ने वार किया । साँप का पिछला भाग लेखक के हाथों से छू गया ।
लेखक की तरफ जब डंडा खिंच आया तो साँप का आसन भी बदल गया । यह देखकर लेखक ने तुरंत लिफ़ाफ़े और पोस्टकार्ड वहाँ से उठा लिए ।
लेखक ने तुरंत लिफ़ाफ़े और पोस्टकार्ड उठाए और जल्दी से उन्हें अपनी धोती के कोने से बाँध दिया। उसके बाद लेखक ने अपने छोटे भाई को उसे ऊपर खींचने को कहा ।
अब लेखक को वापस ऊपर चढ़ना था और यह ऊँचाई लगभग 36 फुट थी । उस समय लेखक की उम्र 11 वर्ष थी।
इस चढ़ाई में उसकी छाती फूल गई और धौंकनी चलने लगी । ऊपर पहुँचकर वह काफी देर तक बेहाल पड़ा रहा।
लेखक ने यह घटना माँ को 1915 ई . में मैट्रिक पास करने के बाद सुनाई।
माँ ने उसको अपनी गोद में छिपा लिया । लेखक को वे दिन बहुत अच्छे लगते थे।
पाठ के शब्दार्थ
पृष्ठ -8
चिल्ला जाड़ा - कड़ी सर्दी । भयंकरता - कठिनता । कसूर - दोष ।
आशका - डर । पेशी - बुलावा । प्रकोप - अत्यधिक क्रोध ।
कपकपी लगना - ठंड लगना । मज्जा - हड्डी के भीतर भरा हुआ मुलायम पदार्थ । भुंजाने - भुनवाने । नारायण वाहन होना - मौत का कारण ।
पृष्ठ -9
झुरे - तोड़ना । मूक - चुप । मौन । प्रसन्नवदन - खुश चेहरा ।
नटखट - शरारती । वानर टोली - बंदरों का झुंड । उझकना - उचकना ।
सूझना - मन में बात आना । प्रतिध्वनि - गूंज । फुसकार - फुफकार ।
किलोल - क्रीड़ा । मृगसमूह - हिरणों का झुंड कहकहा लगाना - ठहाका लगाना । प्रवृत्ति - झुकाव ।
पृष्ठ -11
मृगशावक - हिरण का बच्चा । बिजली - सी गिरना - अति भय का अनुभव होना ।
हत - घायल । पाट - पत्थर । आँखें डबडबाना - आँखों में आँसू भर जाना ।
उफान - ऊपर उठना । उद्वेग - बेचैनी , घबराहट । तबीयत करना - मन चाहना । धुनाई होना - पिटाई होना । दिन का बुढ़ापा बढ़ना - दिन समाप्त होने को आना । दुधारी तलवार - दो धारवाली तलवार ।
पृष्ठ -12
दृढ़ संकल्प - पक्का इरादा । दुविधा - संदेह । बेड़ियाँ कटना - नष्ट होना । निर्णय - फ़ैसला । बुद्धिमत्ता - समझदारी । विषघर - ज़हरीला सांप ।
पासा फेंकना - खेल शुरू करना । आलिंगन - गले लगाना । मुठभेड़ - टक्कर । कड़ी - कठिन । आश्वासन - भरोसा ।
पृष्ठ -13
बाएँ हाथ का खेल - आसान काम । धरातल - नीचे की धरती ।
अक्ल चकराना - भय से हैरान होना । घातक - चोट पहुँचानेवाला ।
प्रतिद्वंद्वी - विपक्षी । परिधि - वृत की रेखा । व्यास - केंद्र को स्पर्श करती हुई परिधि के दो बिंदुओं को मिलानेवाली रेखा । पीठ दिखाना - डरकर भागना । एकाग्नचित्तता - ध्यान स्थिर रखना । सूझ - तरीका ।
पृष्ठ -14
समकोण -90 डिग्री का कोण । सटाना - साथ लगाना ।
आँखें चार होना - आमना - सामना होना । चक्षुःश्रवा - आँखों से सुननेवाला ।
मोहनी - माया । आकाश - कुसुम - व्यर्थ की बात । भावी - आगे होनेवाला ।
मिथ्या - झूठी । असंभवता - संभव न हो अचूक - खाली न जानेवाला । वार - आक्रमण । सकना । तोप के मुहरे पर खड़े होना - मौत के सामने खड़े होना ।
पैंतरा - मुद्रा । मोरचा पड़ना - युद्ध के लिए तैयार होना ।
पृष्ठ -15
सूरत - स्थिति । बाध्य - मजबूर । अवलंबन - सहारा । पीव - तरल पदार्थ , ज़हर कायल - माननेवाला । उपहास - मजाका भ्रातृ - स्नेह - भाईचारे की भावना । ताना - बाना - ढाँचा । बेजा - बेकार ।
पृष्ठ - 16-17
गुंजल्क - गुत्थी , गाँठ । छोर - किनारा । धरना देना - सामने बैठना । बाँहें भरना - बाँहें थककर चूर होना ।
धौंकनी चलना - धड़कन तेज़ होना । झार - झूर : झाड़ - झूडकर । ताकीद - बार-बार चेतावनी देना ।
सजल नेत्र - गौले नेत्र । डैना - पंख ।
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt let me know.