HINDI BLOG : जितनी चादर, उतना पैर - कहानी

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Thursday, 12 October 2023

जितनी चादर, उतना पैर - कहानी

जितनी चादर, उतना पैर कहानी 

अत्यंत गरीब परिवार का एक बेरोजगार युवक नौकरी की तलाश में किसी दूसरे शहर जाने के लिए रेलगाड़ी में सफर कर रहा था। घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटियाँ हो रखी थीं। आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी और वह टिफिन में से रोटियाँ निकालकर खाने लगा। उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था। वह रोटी का एक टुकड़ा लता और उसे टिफिन के अंदर कुछ ऐसे डालता, मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटियाँ थीं उसकी इस हरकत को आस- पास के दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे। वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता। सभी यह सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्या कर रहा है? आखिरकार, एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने युवक से पूछ ही लिया कि भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं,  फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो, मानो उसमें सब्जी हो?

तब उस युवक ने जवाब दिया, "भैया, इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मैं अपने मन में यह सोचकर खा रहा हूँ कि इसमें बहुत सारा अचार है।"

फिर उस व्यक्ति ने पूछा, "खाली ढक्कन में अचार सोचकर सूखी रोटी को खा रहे हो, तो क्या तुम्हें अचार का स्वाद आ रहा है?"

"हाँ बिलकुल आ रहा है, मैं रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है।" युवक ने जवाब दिया।

उसके इस बात को आस-पास के यात्रियों ने भी सुना और उन्हीं में एक व्यक्ति बोला- “जब सोचना ही था, तो तुम अचार की जगह पर मटर पनीर सोचते, शाही पनीर सोचते... तुम्हें इनका स्वाद मिल जाता तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने अचार सोचा, तो अचार का स्वाद आया। यदि और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता सोचना ही था तो भला छोटा क्यों सोचा, तुम्हें तो बड़ा सोचना चाहिए था।"

बेरोजगार युवक ने उस यात्री से कहा- "भाईसाहब! मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूँ। मेरे घर पर बहुत बार ऐसा होता है कि रोटी के साथ सब्जी नहीं बनती है। तब में अचार से ही रोटी खाकर संतुष्ट हो जाता हूँ। यदि मैं आज अचार की बात न सोचकर किसी ऐसी सब्जी की सोचता, जिसे मैंने कभी चखकर ही नहीं देखा, तो उसका स्वाद कैसे आता ? मैं उसी स्वाद की कल्पना कर सकता हूँ, जिसे मैंने चखा हो। यदि मैं यह सब सोचता तो घर पर मुझे सचमुच में भी अचार खाकर खुशी नहीं मिलती। मेरा तो एक सिद्धांत है जितनी चादर, उतना पैर" यह सुनकर सभी यात्री चुप हो गए।

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