पद - रैदास
सार
प्रस्तुत प्रथम पद में संत कवि रैदास ने विभिन्न उदाहरणों द्वारा अपने आराध्य से स्वयं के अटूट संबंध को व्यक्त किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उन्हें राम नाम की रट लग गई है, जो छूट नहीं सकती । परमात्मा और स्वयं के बीच इस अटूट संबंध को कवि ने चंदन-पानी, बादल-मोर, चाँद-चकोर, दीपक बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा तथा स्वामी दास के माध्यम से अभिव्यक्त किया है । कवि ने परमात्मा के साथ अपना दास्य भाव प्रकट करते हुए अपनी भक्ति की गहराई और प्रभु के प्रति अपनी भावनाओं को सहज और प्रभावशाली रूप से व्यक्त किया है ।
द्वितीय पद में कवि ने परमात्मा की अपार कृपा का वर्णन किया है। ईश्वर की उदारता, दया, कृपा और उनकी समान दृष्टि का चित्रण करते हुए संत रैदास ने स्पष्ट किया है कि इस प्रकार की कृपा तुम्हारे सिवा और कौन कर सकता है। जिसे संसार अछूत मानता है, तुम उसी पर कृपा कर उसे उच्च बना देते हो। कवि रैदास ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सघना तथा सैन के उदाहरणों द्वारा प्रभु के समदर्शी स्वभाव का अनूठा चित्रण करते हुए स्पष्ट किया है कि प्रभु की उदारता और उनकी दया-दृष्टि ने इन्हें महान बना दिया है अर्थात ईश्वर की कृपा से सब कुछ संभव है।
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