डायरी का एक पन्ना
-सीताराम सेकसरिया
पाठ का भावार्थ
प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की कामना करने वाले स्वतंत्रताप्रिय लोगों में से एक थे वे गुलामी के दिनों में दिन-प्रतिदिन जो भी देखते सुनते और महसूस करते थे, अपनी निजी डायरी में दर्ज कर लेते थे यह क्रम कई वर्षों तक चला। इस पाउ में उनका डायरी का 26 जनवरी 1931 तक का लेखाजोखा है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकाता) वासियों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश-खरोश से मनाया, अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए, इस पाठ में वर्णित है। यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों की याद तो दिलाता ही है, साथ ही यह भी उजागर करता कि एक संगठित समाज दृढ़संकल्प हो तो ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके।
राष्ट्रीय ध्वज का फहराना
पिछले साल इसी दिन सारे भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस बार यह दिवस फिर से मनाया जा रहा था। सबको बता दिया गया था कि प्रत्येक कार्य हमें स्वयं ही करना है। इसके प्रचार हेतु लगभग 2000 रुपये खर्च हुआ। बड़े बाजार के सभी मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया था। कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे मानो आजादी मिल गई हो। झंडे और साज-सज्जा को देखकर सब लोग उत्साहित थे। पुलिस गश्त लगा रही थी। ट्रैफिक पुलिस को भी इसी काम में लगाया गया था। घुड़सवार पुलिस भी थी।
पुलिस का घेराव
बड़े-बड़े पार्कों व सार्वजनिक स्थलों को पुलिस सुबह ही घेर लिया था। उन्हें अधिकारियों का आदेश था कि लोग एकत्रित न होने थाएँ मोनुमेंट के नीचे शाम को सभा होती थी। उसे तो सुबह छह बजे ही पुलिस ने घेर लिया था। फिर भी कई जगह सुबह झंडा फहराया गया। श्रद्धानंद पार्क में विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाज़ार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से पुलिस की ऐसी मार-पीट हुई कि लोगों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की लड़कियों ने जुलूस निकाला तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। मारवाड़ी विद्यालय में भी अंडोत्सव मनाया गया।
जुलूस रोकने का प्रयास
सुभाष बाबू के पूरे जुलूस का भार पूर्णोदास पर था। 2-3 बजे के करीब पूर्णोदास व उनके साथियों को पकड़ लिया गया। स्त्रियों की टोलियाँ भी निर्धारित समय पर पहुंचने की कोशिश कर रही थीं। तीन बजे तक हजारों की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। लोग भी टोलियाँ बनाकर मैदानों में घूम रहे थे। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला कि अमुक धारा के तहत सभा नहीं हो सकती इसमें भाग तेनेवाले को दोषी समझा जाएगा। उधर कॉसिल ने खुली चुनौती दी कि चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।
सुभाष बाबू के नेतृत्व में संघर्ष
सुभाष बाबू 4 बजकर 10 मिनट पर जुलूस लेकर आए। भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस रोक न सकी। पुलिस ने लाठी चार्ज शुरू किया। बहुत आदमी घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ बरसाई। चे बड़े जोर से वंदेमातरम बोल रहे थे। वे आगे बढ़ने के लिए कह रहे थे। उन्हें पकड़ लिया गया और गाड़ी में बिठाकर लाल बाजार लोकजप में बंद कर दिया गया।
स्त्रियों द्वारा सहयोग दिया जाना
कुछ ही देर बाद स्त्रियों ने भी जुलूस निकाला। पुलिस बीच-बीच में उन पर लाठियाँ बरसाने लगती। अनेक लोग घायल हो गए। धर्मतल्ले के मोड़ पर जुलूस टूट गया। 50-60 स्त्रियाँ वहीं बैठ गईं। पुलिस ने उन्हें पकड़कर लाल बाज़ार भेज दिया। कुल मिलाकर 105 स्त्रियाँ पकड़ी गईं जिन्हें रात को नौ बजे छोड़ा गया।
घायलों का कांग्रेस कार्यालय जाना
आठ बजे कांग्रेस कार्यालय से फोन आया कि वहाँ अनेक घायल पहुँचे हुए हैं। लेखक जानकी देवी के साथ वहाँ पहुँचा। डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देखरेख के साथ-साथ उनके फ़ोटो उतरवा रहे थे।
महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन
यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण व अपूर्व प्रदर्शन था। कोलकाता के नाम पर यह कलंक था कि यहाँ स्वतंत्रता आंदोलन का काम नहीं हो पा रहा। आज यह कलंक धुल गया। लोगों को आशा बँधी कि यहाँ भी काम हो सकता है।
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