कविता का भावार्थ
1. विचार लो कि मर्त्य हो....................................................... जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ– मैथिलीशरण गुप्त जी की यह कविता मनुष्यता पर आधारित है। कवि ने अत्यंत स्पष्ट शब्दों में मृत्यु की सच्चाई बताई है। मनुष्य को समझाया है कि जब मृत्यु निश्चित ही है तो फिर इसका भय क्यों? जीवन रहते उसे सार्थक बनाइए और ऐसे कार्य कीजिए कि मरने के बाद भी दुनिया आपको स्मरण करे जब तक जियो गर्व के साथ और मरो भी तो गर्व के साथ कि हम इस संसार में अपनी कुछ अच्छाइयाँ छोड़कर जा रहे हैं। मरने के बाद भी दुनिया तुम्हें स्मरण करेगी। तुम्हारी यह मृत्यु ही सुमृत्यु होगी। स्वयं के लिए जीना तो पशु-तुल्य जीना है जो केवल अपना पेट भरना ही जानते हैं। वास्तव में परहित के लिए जीना ही मनुष्यता की सही परिभाषा है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य –
1. 'सुमृत्यु' को समझाते हुए दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा दी गई है।
2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. उद्बोधनात्मक शैली व तुकांत रचना की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
4. जो जिया, पशु-प्रवृत्ति, आप आप शब्दों में अनुप्रास अलंकार व पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा दिखाई देती है।
2. उसी उदार की कथा सरस्वती ........................................................ जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - इन पंक्तियों में कवि ने उदार मनुष्य के जीवन के महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा है जो दूसरों के लिए जीता है; उसका जीवन एक कहानी बन जाता है। सरस्वती भी उसका गुणगान करती है। धरती ऐसे उदार मनुष्य को जन्म देकर उसके प्रति अपना आभार प्रकट करती है जो इस संसार में एकता और आत्मीयता का भाव रखता है। ऐसे लोगों का यश पूरे संसार में फैल जाता है। वास्तव में वह सभी प्राणियों में श्रेष्ठ और पूजनीय माना जाता है। वह अपना सारा जीवन कल्याण के कार्यों में लगा देता है। सच्चा मानव संसार के लिए ही जीता है और संसार के लिए ही मरता है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य -
1. कवि की भाषा सरस, सरल और प्रभाव पूर्ण है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है जो कि संस्कृत भाषा से प्रभावित है।
3. अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार है।
4. 'सजीव कीर्ति गूँजती' में मानवीकरण अलंकार है।
5. सदा-सजीव और समस्त-सृष्टि में 'स' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।
6. वीर रस की प्रधानता है।
3. क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ------------------------------------ जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज का कल्याण करने वाले कुछ उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए यह समझाने का प्रयास किया है कि उसी मानव का जीवन ही सफल होता है जो दूसरों के लिए जीता है। राजा रंतिदेव ने अपने सामने पड़ा भोजन का थाल भिक्षु को दे दिया था जबकि वे स्वयं भूखे रहे। महर्षि दधीचि ने असुरों के वध के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था। दानवीर कर्ण ने अपने कवच व कुंडल उतार दिए थे। गांधार नरेश शिवि ने अपने शरीर का मांस कबूतर की प्राण रक्षा के लिए दे दिया था। यह शरीर तो नश्वर है आत्मा अमर है, फिर हम इस नश्वर शरीर के लिए मृत्यु से क्यो डरते हैं? सच्चा मनुष्य वही है, जो दूसरों के कल्याण के लिए जीता है और परहित के लिए मरता भी है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य –
1. अनेक उदाहरणों द्वारा परोपकार का महत्व बताया गया है।
2.. खड़ी बोली का प्रयोग है जिसमें संस्कृत का प्रभाव दिखता है।
3...वीर रस की अभिव्यक्ति है और प्रश्न शैली का प्रयोग है।
4..भाषा अलंकृत है। अनुप्रास अलंकार की झलक है।
5. तुकांत शब्दों का प्रयोग हुआ है।
4. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही--------------------------------------------- जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - कवि ने सहानुभूति को हमारी सबसे बड़ी पूँजी इसलिए कहा है क्योंकि इससे आप किसी के भी मन को जीत सकते हैं। सहानुभूति आपको उदार तथा महान बनाती है। दूसरों के प्रति दया तथा सहानुभूति का व्यवहार करके संपूर्ण धरती को वश में किया जा सकता है। अच्छे व्यवहार की ओर सभी खिंचे चले आते हैं। महात्मा बुद्ध ने तत्कालीन गलत धारणाओं का विरोध किया था किंतु अंत में लोगों को उनकी बात माननी ही पड़ी थी। सच्चा मनुष्य वास्तव में वही है। जो परोपकारी है। जिसका जीना और मरना दूसरों के लिए है। वही सफल है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य –
1. कवि उदारता का संदेश देते हुए सहानुभूति का महत्व बता रहे हैं।
2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली और प्रश्न शैली प्रयुक्त हुई है।
3. भाषा अलंकृत है और अनुप्रास अलंकार की छटा कवि ने बिखेरी है।
4. तुकांत शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
5. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में --------------------------------------------जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - इन पंक्तियों में कवि ने अहंकारी न बनने के लिए कहा है और यह समझाने का प्रयास किया है कि धनवान होने पर अहंकार में अंधे मत बनो। यह धन तो आता-जाता रहता है। उसे पाकर घमंड करना मूर्खता है। ईश्वर परमपिता हैं। संसार के पालक और संरक्षक हैं। इसलिए कोई स्वयं को अनाथ न समझे। कई बार मनुष्य परिजनों और धन का साथ पाकर स्वयं को सनाथ समझने लगता है और घमंडी हो जाता है, लेकिन ऐसा मानव सच्चा मानव नहीं है। सच्चा मनुष्य तो वही है जो जग-कल्याण करता है। आवश्यकता पड़ने पर अपना शरीर तक बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटता। वह प्राणी भाग्यहीन है जो असंतुष्ट-अशांत और अतृप्त रहता है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य -
1. मनुष्य को अहंकार न करने का संदेश देते हुए कवि ने संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
2. लयात्मक भाषा है।
3. तुकांत शब्दों का सुंदर प्रयोग मिलता है।
4. यथासंभव अलंकारों की छटा बिखरी है।
5. उद्बोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
6. भाषा में प्रवाह है। सामासिक शब्दों का प्रयोग है।
6. अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े ------------------------------------------------- जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - इन पंक्तियों में कवि मनुष्य को परोपकार करने तथा मानवीयता का पालन करने के लिए कहते हैं। कवि के अनुसार ऐसा जीवन जीयो जो दूसरों के काम आ सके। एक-दूसरे की मदद करो। ऐसे लोग देव-तुल्य होते हैं। ऐसे लोगों की हमारे देश में कमी नहीं है। इतिहास पर नजर डालें तो असंख्य ऐसे उदाहरण मिलेंगे।
कवि के अनुसार जीवन उसी का सफल है जो परोपकार करता है। एक-दूसरे के सहयोग से महान कार्य करो और अमर हो जाओ। व्यर्थ है वह जीवन जो किसी के काम न आ सके।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य -
1. कवि ने देव-तुल्य जीवन बिताने के लिए और परोपकारी बनने का संदेश दिया है।
2. उद्बोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
3. भाषा खड़ी बोली है और संस्कृत से प्रभावित है।
4. 'अनंत अंतरिक्ष' समक्ष स्वबाहु में अनुप्रास अलंकार है।
5. तुकांत शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
6. भाषा में प्रवाह है।
7. 'मनुष्य मात्र बंधु है' यही बड़ा विवेक है ------------------------------------------ जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - इन पंक्तियों में मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि समस्त मानव-जाति एक-दूसरे की सहायक बने। सबको अपना भाई-बंधु माने। संसार में ऐसे लोग ही विवेकी माने जाते हैं। संसार की विविधता केवल मनुष्य के कर्मों द्वारा मिले फल हैं। यह केवल बाहरी भेद हैं। मूल रूप से सभी प्राणी एक हैं। सब एक ही परमपिता की संतान हैं। उनका रचयिता एक है। सब में एक ही चेतना, एक ही प्राण और एक ही ईश्वर समाया है। फिर भी विडंबना देखो कि एक-दूसरे की विपदा और दुख को हरने का प्रयास नहीं किया जाता। यही इस संसार का सबसे बड़ा अनर्थ है। मनुष्य मात्र का यह कर्तव्य है कि परस्पर भाईचारे की भावना स्थापित करे। यही सच्ची मनुष्यता है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य -
1. कवि के द्वारा परस्पर सहयोग की भावना विकसित करने का संदेश दिया गया है।
2. खड़ी बोली में संस्कृत का प्रभाव है।
3. भाषा में लयात्मककता है।
4. यथासंभव अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
5. वीर रस की अभिव्यक्ति है।
तुकांत शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
8. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए------------------------------------------- जो मनुष्य के लिए मरे।।
भावार्थ - इन पंक्तियों में जीवन की अनेक रुकावटों को मार्ग से हटाते हुए आगे बढ़ने का संदेश दिया गया है। हमें विपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए और लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। हम सबका अंतिम लक्ष्य समाज में एकता और भाईचारा लाना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें प्रयासरत रहना है। आपसी मतभेद को समाप्त करके आपस में मिल-जुलकर रहना है। अपनी सफलता के साथ-साथ दूसरों को भी सफल बनाने की कोशिश करें यही सच्चा समर्थ भाव है। सच्चा मानव वही है जो दूसरों के लिए जीता है और दूसरों के लिए मरता है।
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य –
1. कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से परस्पर मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया है। समस्त संसार को एक परिवार
मानना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. लयात्मक भाषा है।
4. तुकांत शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
5. समास का प्रयोग यथास्थान किया गया है।
6. विपत्ति-विघ्न में अनुप्रास अलंकार है।