ईसा से 305 वर्ष पूर्व भारत में सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का शासन था। चंद्रगुप्त भारत के महान शासकों में से एक थे। एक बार यूनान के सम्राट सेल्यूकस के साथ चंद्रगुप्त का युद्ध हुआ। युद्ध में सेल्यूकस बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपना गंधार प्रदेश दंडस्वरूप चंद्रगुप्त को देना पड़ा।
सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से करके उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। सेल्यूकस युद्ध में हुई अपनी पराजय के कारणों पर निरंतर विचार करता रहा, किंतु वह यह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी विश्व-विजयी सेना को पराजय कैसे मिली?
एक दिन वह अपने चतुर कूटनीतिज्ञ मेगस्थनीज़ के साथ बैठा अपनी पराजय के कारणों पर विचार कर रहा था। उसने मेगस्थनीज़ से पूछा, "चंद्रगुप्त की विजय किसके कुशल नेतृत्व के कारण हुई है?"
सम्राट की बात का उत्तर देते हुए मेगस्थनीज़ ने कहा, "सम्राट चंद्रगुप्त की जो विजय हुई है, उसका कारण उनका कुशल नेतृत्व नहीं है। उनकी इस विजय के प्रेरणा स्त्रोत हैं-चंद्रगुप्त के गुरु, मार्गदर्शक और महान कूटनीतिज्ञ 'चाणक्य'।"
"चाणक्य ! यह नाम तो मैं बहुत पहले से सुन रहा हूँ। मैं उस महान कूटनीतिज्ञ के दर्शन करना चाहता हूँ। मैं उस महान व्यक्ति को निकट से देखना चाहता हूँ।" सेल्यूकस ने कहा।
मेगस्थनीज़ बोला, "सम्राट, इसमें क्या बाधा है! इस समय आप भारत सम्राट चंद्रगुप्त के सम्माननीय अतिथि हैं। हम आज ही चाणक्य के दर्शनों के लिए चलते हैं।"
सेल्यूकस मेगस्थनीज़ के साथ घोड़े पर बैठकर चाणक्य के दर्शनों के लिए चल पड़ा। सेल्यूकस सोच रहा था कि महान चाणक्य का भवन तो बड़ा भव्य होगा। उसकी रक्षा के लिए अनेक सैनिक तैनात होंगे। मन-ही-मन ऐसी कल्पना करता हुआ वह गंगा पार कर गया, लेकिन उसे कहीं भी भव्य महलों के दर्शन नहीं हुए। तभी उसने एक व्यक्ति से चाणक्य के घर का पता पूछा। उस व्यक्ति ने सामने एक साधारण से मकान की ओर संकेत कर दिया। सेल्यूकस को लगा कि वह व्यक्ति उससे मज़ाक कर रहा है।
सेल्यूकस ने पुनः पूछा, "मुझे प्रधानमंत्री चाणक्य का पता चाहिए, किसी अन्य चाणक्य का नहीं।" वह व्यक्ति बोला, "यह प्रधानमंत्री चाणक्य का ही निवास स्थान है।"
यह सुनते ही सेल्यूकस आश्चर्यचकित रह गया। इतना महान व्यक्ति जो देश का प्रधानमंत्री है, इतने साधारण घर में रहता है! सेल्यूकस उस मकान के द्वार पर पहुँचे तो एक ब्रह्मचारी ने उनका स्वागत किया और अंदर एक अँधेरी कोठरी में अपने गुरु के पास ले गया।
चाणक्य उस समय 'अर्थशास्त्र' लिखने में व्यस्त थे। उनके आगे एक दीपक जल रहा था और वे मृगचर्म पर बैठकर, भोजपत्र पर मयूर पंख से लिख रहे थे। ब्रह्मचारी ने जैसे ही आगंतुकों का परिचय कराया, वैसे ही चाणक्य ने अपने सामने जल रहे दीपक को बुझा दिया और दूसरा दीपक जला दिया।
सेल्यूकस यह देखकर हैरान रह गया। उसने चाणक्य से एक दीपक बुझाकर दूसरा दीपक जलाने का रहस्य पूछा। चाणक्य बोले, “पहले मैं राजकीय कार्य कर रहा था, इसलिए राजकीय सहायता से प्राप्त दीपक जला रहा था। अब मैं आपसे बातें करूँगा, इसलिए मैंने राजकीय दीपक बुझा दिया और अपना दीपक जला लिया।"
चाणक्य की बात सुनकर सेल्यूकस ने उनके चरण छू लिए। उन्हें चंद्रगुप्त की सफलता का रहस्य पता चल गया। मन-ही-मन चाणक्य को प्रणाम करते हुए सेल्यूकस मेगस्थनीज़ के साथ वापस लौट आए।
श्रेष्ठ पुरुषों का चरित्र सदैव अनुकरणीय होता है तथा वे सादा जीवन, उच्च विचार में विश्वास रखते हैं।
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