(i) अंग्रेजी पढ़ना लिखना या बोलना आए या न आए, लेकिन उस पर अत्यधिक बल दिया जाता है।
(ii) अपने देश के इतिहास के अतिरिक्त दूसरे देशों के इतिहास को जानकारी व्यर्थ में करवाना।
(iii) रटत शिक्षा प्रणाली पर बल दिया जाता है। बच्चा समझे या न समझे, लेकिन उसे विषय को रहना ही पड़ता है। इस प्रकार विषय के प्रति रुचि समाप्त हो जाती है। (iv) अलजबरा व ज्योमेट्री ऐसे विषय है कि निरंतर अभ्यास करने पर भी गलत हो जाते हैं।
(v) छोटे-छोटे विषयों पर लंबे-चौड़े निबंध लिखवाना जो बच्चों की रुचि के विपरीत होती है। अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि ऐसी शिक्षा प्रणाली का कोई लाभ नहीं जो बच्चों के लिए लाभदायक न होकर बोझ की तरह हो।
बड़े भाई द्वारा छोटे भाई पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए अपनाई गई युक्तियाँ-
(i) वह हमेशा छोटे भाई के खेलकूद और उसकी स्वच्छंदता पर नियंत्रण रखता है।
(ii) वह भाई द्वारा न पढ़ने और खेलने में मन लगाने पर लंबे-लंबे भाषण देता है। उसे भयभीत करने का हर संभव प्रयास भी करता है; जैसे कठिन पढ़ाई, अपने फेल होने की बात, खेलकूद से दूर रहना आदि।
(iii) लेखक द्वारा मनमानी करने पर उसे घमंड न करने की सीख देता है। ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा, जैसे- रावण, शैतान, शाहेरुम जैसे बड़े-बड़े अभिमानियों की फजीहत के उदाहरण देता है।
(iv) वह आचरण की महिमा को महत्त्वपूर्ण बताकर लेखक को अपमानित करता है।
(v) वह इतिहास, अलजबरा, निबंध लेखन की शिक्षा को व्यर्थ बताता है।
(vi) वह किताबी शिक्षा की बजाय जीवन के अनुभव को अधिक काम की चीज बताता है।
बड़े भाई साहब का चारित्रिक (चरित्र-चित्रण) विशेषताएँ : (i) अध्ययनशील व गंभीर प्रवृत्ति- बड़े भाई साहब स्वभाव से ही अध्ययनशील थे। वे हरदम किताबें खोले बैठे रहते थे। उनमें रटने की प्रवृत्ति थी। वे गंभीर प्रवृत्ति के हैं। वे अपने छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं। उनका गंभीर स्वभाव हो उन्हें विशष्टता प्रदान करता है।
(ii) घोर परिश्रमी - भाई साहब भले ही पढ़ाई को ठीक प्रकार से नहीं समझ पाते थे लेकिन उन्होंने परिश्रम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये एक ही कक्षा में तीन-तीन बार फेल होकर भी लगन से पढ़ते रहे। वे दिन-रात पढ़ते थे। उनकी तपस्या बड़े-बड़े तपस्वियों को भी मात करती है।
(iii) वाक्पटु-बड़े भाई साहब वाक् कला में निपुण हैं। वे अपने छोटे भाई से ऐसे-ऐसे उदाहरण देकर बातें करते हैं कि वह उनके सामने नतमस्तक हो जाता है। उन्हें शब्दों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना आता है। यही कारण है कि वे अपने छोटे भाई पर अपना पूरा दबदबा बनाए रखते हैं। (iv) संयमी व कर्तव्यपरायण - बड़े भाई साहब अत्यंत संयमी व कर्तव्यपरायण थे। उनका मन भी खेलने व पतंग उड़ाने का करता था; परंतु सोचते थे कि यदि व यह सब करेंगे तो अपने छोटे भाई को क्या सँभालेंगे। वे अपने कर्तव्य को भी बखूबी निभाते थे। जब उन्होंने देखा कि छोटे भाई को अपने अव्वल आने पर अभिमान हो गया है तो समय रहते उसे ऐसे आड़े हाथों लिया कि छोटे भाई का सिर श्रद्धा से झुक गया।
(v) उपदेश देने की कला में निपुण - बड़े भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। छोटे भाई को समझाने के लिए ऐसे-ऐसे सूक्ति- बाण चलाते थे कि उसका दिल पढ़ाई से उचाट हो जाता।
अपने माता-पिता का उदाहरण :
अपने माता-पिता का उदाहरण द्वारा छोटे भाई को समझाना कि जीवन में अनुभव पुस्तकीय ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण है। जीवन की समझ अनुभवों से आती है। हमारे बड़ों को हमसे अधिक जीवन की समय है। हम जिन परिस्थितियों में घबरा जाते हैं, बड़े-बुजुर्ग उन्हीं परिस्थितियों में समस्या का हल निकाल लेते हैं। उनके माता-पिता ने भले ही उनके जितनी किताबें न पड़ी हों, हाँ, लेकिन अपने अनुभव के आधार पर उन्हें दुनियादारी की असंख्य बातें पता है।
बड़े भाई साहब की अंग्रेजी के बारे में नसीहत :
अंग्रेजी पढ़ना कोई हँसी-खेल नहीं है। उसे पढ़ने के लिए रात-दिन आँखें फोड़नी पड़ती है और खून जाताना पड़ता है। ऐरागैराखेरा अग्रेजी नहीं पढ़ सकता। बड़े-बड़े विद्वान भी शुद्ध नहीं लिख पाते बोलना तो दूर अंग्रेजी पढ़ने-समझने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। वे अपना उदाहरण भी देते थे कि उन्हें कितनी कठिनाई होती है अंग्रेज़ी पढ़ने में।
बड़े भाई साहब पाठ से प्रेरणा :
हमें अपनी स्थिति, शक्ति को समझना चाहिए उसी के अनुसार करना चाहिए। जो कार्य हम स्वयं नहीं करते, उसकी दूसरों से उम्मीद करना व्यर्थ है यदि हम खुद योग्य नहीं है, सफल नहीं है, तो हम किसी को उपदेश देने का अधिकार खो बैठते हैं। हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि परीक्षा के तनाव में सारा समय किताबों को पढ़ते रहने की अपेक्षा पढ़ाई सहज रूप से करें। पढ़ाई की रटने की बजाय उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी समझ को विकसित करें क्योंकि खेल-कूद पढ़ाई में बाधक नहीं बल्कि सहायक होता है।
बड़े भाई साहब द्वारा छोटे भाई की सफलता को बेकार सिद्ध करने के लिए दिए गए तर्क :
बड़े भाई साहब छोटे भाई की सफलता को बेकार सिद्ध करने के लिए पहला तर्क यह देते हैं कि केवल किताबी ज्ञान व्यर्थ होता है। असली चीज़ है- बुद्धि का विकास। उनका दूसरा तर्क यह है कि सच्ची सफलता परिश्रम करने से ही प्राप्त होती है। लेखक की सफलता आकस्मिक है। एक बार संयोग से वह प्रथम आ गया है, किंतु हर बार ऐसा नहीं होगा। अन्य तर्क यह है कि जीवन में किताबों का नहीं अनुभव का महत्त्व होता है। उस मामले में यह अभी बहुत छोटा है।
बड़े भाई साहब के अध्ययनशील स्वभाव पर व्यंग्य :
इस टिप्पणी में गहरा व्यंग्य है। बड़े भाई साहब स्वभाव से बहुत अध्ययनशील जान पड़ते हैं। जब भी देखो वे हमेशा पढ़ने में लगे रहते हैं। यहाँ तक कि वे पढ़-पढ़कर अपना चेहरा कांतिहीन कर लेते हैं किंतु उनका अध्ययन एक नाटक था। वे समझते तो, कुछ नहीं थे। जब वे रटते-रटते बोर हो जाते थे, तब किताबों और कॉपियों के हाशियों पर आड़ी-तिरछी लकीरें खींचने लगते थे ।
बड़े भाई साहब का पतंग पकड़कर भागना:
बड़े भाई साहब का पतंग पकड़कर भागना यह सिद्ध करता है कि उनके अंदर भी एक बच्चा छिपा हुआ है। उनमें भी खेलकूद और मौज-मस्ती करने की उमंग पैदा होती है। लेकिन उन्होंने उसे दबा रखा है। यदि वे पुस्तकों के बोझ को छाती से हटा लें, तो वे भी उल्लास और उत्साह से भरी जिंदगी जी सकते हैं।
'अहंकार मनुष्य का विनाश करता है।’ - बड़े भाई के उदाहरण :
अहंकार मनुष्य का विनाश कर देता है। अहंकार के कारण 'रावण' का भी नाश हो गया था। रावण भूमंडल का स्वामी था। वह एक चक्रवर्ती राजा था। संसार के सभी राजा उसके अधीन थे। वह अंग्रेज़ों से भी अधिक बलशाली व महान था, परंतु अहंकारी होने के कारण उसका विनाश हो गया। यहाँ तक कि 'आग' और 'पानी' के देवता भी रावण के दास थे, परंतु घमंड ने रावण का नामों-निशान तक मिटा दिया। रावण को मरते समय कोई उसे एक चुल्लू पानी देने वाला भी नहीं बचा। अभिमानी आदमी दीन-दुनिया दोनों से हाथ धो लेता है। बड़े भाई साहब ने शैतान का उदाहण भी दिया कि इसी 'अहंकार' के कारण ईश्वर ने शैतान को नरक में ढकेल दिया था। शाहेरूम ने भी एक बार अहंकार किया था इसलिए वह भी भीख माँग- माँगकर मर गया। बड़े भाई साहब ने लेखक के परीक्षा में पास होने की तुलना अंधों के हाथ बटेर लगने से करते हुए कहा कि गुल्ली डंडे में भी कभी-कभी अंधा चोट निशाने पर लगा देता है, पर इससे कोई सफल खिलाड़ी नहीं बन जाता।
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ :
कोबड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव रूपी ज्ञान से आती है, जो कि जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार पुस्तकीय ज्ञान से हर कक्षा पास करके अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है, लेकिन वे इस पुस्तकीय ज्ञान को अनुभव में उतारे बिना अधूरा मानते हैं। दुनिया को देखने, परखने तथा बुजुर्गों के जीवन से हमें अनुभव रूपी ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है क्योंकि यह ज्ञान अनुभव पर आधारित होता है। हमारे बड़े-बुजुर्ग बेशक शिक्षित नहीं होते थे, परंतु वे अपने अनुभव से हर विपरीत परिस्थिति में भी समस्या का समाधान निकाल लेते थे। इसलिए उनके अनुसार अनुभव पढ़ाई से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, जिससे जीवन को परखा और सँवारा जाता है तथा जीवन को समझने की समझ आती है।
शैतान और शाहेरूम का अहंकार का उदाहरण :
शैतान को यह अभिमान हुआ था कि ईश्वर का उससे बढ़कर सच्चा भक्त कोई है ही नहीं, तो उसे स्वर्ग से नरक में ढकेल दिया गया। इसी प्रकार शाहेरूम को भी अहंकार हो गया था। बाद में वह भी भीख माँग- माँगकर मर गया अर्थात दोनों का ही अहंकार करने से नामो-निशान मिट गया।
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होना :
बड़े भाई साहब अक्सर अपने छोटे भाई को पढ़ाई में दिलचस्पी लेने के लिए कभी प्यार से, तो कभी डाँटकर समझाने का प्रयास करते रहते थे, लेकिन छोटा भाई खेल-कूद कर भी हर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर लेता। इससे उसमें अभिमान-सा आ गया था। इस अभिमान को भाई साहब ने जिस युक्ति से दूर किया, उससे छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई।
कहानी के अनुसार बड़े भाई साहब को प्राप्त विशेषाधिकार :
'बड़े भाई साहब' कहानी में बड़े भाई लेखक से पाँच साल बड़े थे। इस नाते उन्हें अपने छोटे भाई को डाँटने-डपटने का पूरा अधिकार था। इतने पर भी यदि छोटा भाई (लेखक) बेराह चलने की कोशिश करेगा, तो वे थप्पड़ का प्रयोग करने से भी पीछे नहीं हटेंगे। उनके अनुसार बड़ा होने के कारण उनका यह विशेषाधिकार स्वयं विधाता भी उनसे नहीं छीन सकता।
छोटा भाई अपने भाई से डरना:
छोटा भाई अपने बड़े भाई की भाँति हर समय पढ़ने-लिखने में रुचि नहीं रखता था । वह प्रतिभाशाली तो था परंतु खेलकूद, सैर-सपाटे, दोस्तों के साथ गप्पें मारने जैसे कामों में उसे अधिक आनंद आता था। समय को व्यर्थ नष्ट करने पर बड़े भाई साहब उसे कड़ी डाँट लगाते थे तथा बात-बात पर उपदेश देते थे। हर समय बड़े भाई की फटकार और घुड़कियाँ सुनकर वह सहम-सा जाता था। अतः पढ़ाई के अतिरिक्त जब भी वह कोई अन्य कार्य करता तब वह डरता रहता कि कहीं भाईसाहब उसे डाँट न दें।
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