HINDI BLOG : NCERT SOLUTIONS CLASS 10 HINDI BDEY BHAI SAHAB-----प्रेमचंद ....बड़े भाई साहब ...सरलार्थ

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Wednesday, 14 April 2021

NCERT SOLUTIONS CLASS 10 HINDI BDEY BHAI SAHAB-----प्रेमचंद ....बड़े भाई साहब ...सरलार्थ

पाठ -1  बड़े भाई साहब ...

पाठ का सरलार्थ  ............

प्रेमचंद : कवि परिचय                              
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के करीब एक गाँव में हुआ था। प्रेमचंद का नाम धनपत राय था।धनपत राय उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे और हिंदी में वे प्रेमचंद के नाम से लेखन कार्य करते थे । 

धनपत राय नाम  से ही वे  निजी व्यवहार और पत्राचार करते थे। 'सोजेवतन' उनका पहला कहानी संग्रह था जो उर्दू में प्रकाशित हुआ लेकिन  अंग्रेज सरकार ने उसे जब्त कर  लिया था । 

प्रेमचंद ने जीविका चलाने के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी और भी मैनेजरी की। इसके अलावा उन्होंने प्रमुख पत्रिकाओं 'हंस', 'माधुरी' का संपादन भी किया। 

प्रेमचंद ने अपने जीवन का कुछ समय मुंबई की फिल्म नगरी में भी बिताया। उनकी कई कहानियों पर यादगार फिल्में भी बनी परंतु फ़िल्म नगरी उन्हें रास नहीं आई।

 प्रेमचंद को उनके जीवनकाल में ही  'कथा सम्राट' उपन्यास सम्राट कहा जाने लगा था। उन्होंने आम आदमी के दुःख-दर्द और उनकी समस्याओं को अपने उपन्यासों में उतरा। 

उन्होंने हिंदी कथा लेखन की परिपाटी पूरी तरह बदल डाली थी। उन्होंने उन लोगों को अपनी रचनाओं में प्रमुख  स्थान दिया जिन्हें जीवन और संसार में केवल शोषण और अत्याचार ही मिले थे। 

 प्रेमचंद का निधन  8 अक्टूबर 1936 को हुआ था।प्रेमचंद की सभी कहानियाँ  'मानसरोवर' शीर्षक से आठ खंडों में संकलित  हैं। 

पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ में दो  प्रमुख  पात्र है - लेखक और उनके बड़े भाई साहब।  बड़े भाई साहब हैं, कहने के लिए तो बड़े हैं, पर उम्र में छोटे ही हैं,  घर में उनसे भी छोटा और  एक भाई था । 

बड़े भाई साहब उम्र में केवल कुछ वर्ष ही बड़े है लेकिन बड़े होने के कारण उनसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें और अपेक्षाएँ की जाती हैं। 

बड़े भाई होने के नाते वह खुद भी यही  कोशिश करते हैं कि वह जो भी  कुछ करें वह उनके छोटे भाई के लिए एक उदाहरण बने । 

बड़े भाई साहब पर छोटे भाई की ज़िम्मेदारी है और छोटे भाई से बड़ा होने के नाते इसी ज़िम्मेदारी में उनका बचपन पूरी तरह तिरांजलित हो जाता है। वे हर समय छोटे भाई के सामने अपना उदाहरण रखते हैं और अपने-आप को आदर्श साबित करने का प्रयास करते है।  

बड़े भाई साहब :

लेखक के बड़े भाई साहब चौदह वर्ष हैं और वे स्वयं नौ वर्ष के थे। लेखक के बड़े भाई साहब बहुत अध्ययनशील थे। वे सारा-सारा दिन किताबें खोलकर बैठे रहते थे।

बड़े भाई साहब स्वयं पढ़ाई में कैसे भी थे परंतु लेखक को डॉँट-डपटना और उस पर निगरानी रखना, नज़र रखना  अपना परम-धर्म समझते थे। 

लेखक का मन पढ़ाई में बहुत कम लगता था और मौका मिलते ही वह हॉस्टल से निकलकर मैदान में आ जाते और वहाँ खूब खेलते थे। बड़े भाई साहब भी धर्मोपदेश (उपदेश) देने की कला बहुत ही कुशल और निपुण थे। 

जब भी लेखक खेलकर बाहर से आते तो वे पढ़ाई में आने वाली कठिनाइयों को उसे बताते। उसे स्नेह और रोष भरी हिदायत (उपदेश) देते कि  -"अंग्रेजी को  इतना आसान न समझो। इसे पढ़ना कोई हँसी-खेल का काम नहीं है। मैं दिन-रात आँखें इसमें फोड़ता हूँ, तब जाकर यह वह मुझे विद्या आती है। संसार में कितने ही बड़े-बड़े विद्वान् हों वे भी शुद्ध अंग्रेज़ी नहीं लिख पाते।"

लेखक का टाइम-टेबिल :

लेखक बड़े भाई साहब की लताड़ सुनकर रोता रहता। टाइम टेबिल कर बार-बार इरादा करता  कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ूँगा  किंतु उस पर पूरी तरह अमल नहीं कर पाता था। 

पढ़ाई शुरू करने से पहले ही प्रकृति का मनमोहक वातावरण उसे अपनी ओर खींच लेता। भाई साहब की फटकार और घुड़कियाँ का भी उस पर कोई असर नहीं होता। लेखक लताड़ खाकर भी खेलकूद का अनादर (तिरस्कार) नहीं कर पाता था।

भाई साहब का फेल होना:

हर वर्ष की तरह फिर से सालाना परीक्षा हुईं। भाई साहब फिर से सालाना परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए यानी वे इस बार भी फेल हो गए। अनुत्तीर्ण होने के कारण अब केवल उन दोनों के बीच दो जमात का ही फ़र्क रह गया था । अब लेखक बोलने का मौका तो मिला था और उनके दिल में आता था कि वे भाई साहब को बहुत कुछ कहें पर वे कह नहीं पाते थे। उनके सामने चुप ही रह जाते । 

पर एक दिन भाई साहब लेखक पर क्रोध में बरस पड़े कि -"इस वर्ष तो पास हो गए हो और  कक्षा में अव्वल आने के कारण तुम्हें अपने ऊपर बहुत अभिमान हो गया है। तुम बहुत घमंड करने लगे होंगे। परंतु याद रखो कि घमंड तो बड़े-से-बड़ों का नहीं रहा, तो सोचो उनके सामने तुम्हारी क्या हस्ती है, तुम तो अभी बहुत छोटे हो ?" उन्होंने लेखक को समझाने के लिए कई मिसालें भी दी  और साथ ही अपने छोटे भाई को अहंकार न करने की सलाह भी दी।

पाठ्यक्रम की मुश्किलें :

भाई साहब बोले-" मेरे भाई फेल होने पर न जाओ। मेरी कक्षा में पहुँचोगे  तो दाँतों  पसीना आ जाएगा।" साथ ही उन्होंने आगे की कठिन पढ़ाई से डराया भी। इतिहास और गणित को कठिन बताते हुए उन्होंने उन विषयों में आने वाली कठिनाइयों के बारे में भी बताया । उन्होंने भाई को समझाया कि परीक्षा में पास होने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। 

भाई साहब ने बड़ी कक्षाओं की बहुत ही भयंकर रुपरेखा अपने छोटे भाई के सामने प्रस्तुत की, जिसे सुनकर छोटा भाई घबरा जाना स्वाभाविक था परंतु भाई साहब की कहि बातों का असर उस पर बिलकुल भी न पड़ा। अब भी लेखक की रुचि पुस्तकों की ओर नहीं  बन पाई थी। बीएस यही फर्क पड़ा था लेखक में कि अब वे भाई साहब से बचकर चोरी चुपके खेलने जाया करते थे। 


भाई साहब का फिर से फेल होना: 

फिर वार्षिक परीक्षा हुई। बड़े भाई साहब  बार भी फेल हो गए और संयोग से लेखक तो पास हो गया। लेखक को खुद पर  बड़ा अचरज हुआ  कि वह कक्षा में अव्वल आ गया । हर बार की तरह इस बार भी भाई साहब ने परीक्षा के लिए बहुत मेहनत की थी। लेकिन फिर भी उनकी आशा के विपरीत परिणाम आया। वे इस साल भी पास नहीं हो पाए।  भाई साहब के पास न होने पर लेखक का दिल भी अब उनके लिए नरम होना  लगा। एक तरह से अब लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आने लगी थी। 

लेखक और अब अपने बड़े भाई से केवल एक कक्षा छोटे थे । भाई के फेल होने और दोनों के बीच कक्षा में कम अंतर होने की वजह से अब भाई साहब का स्वभाव  काफी हद तक नरम हो गया था । वह समझने लगे थे कि अब  मुझे डाँटने  का अधिकार उन्हें नहीं रहा। अब लेखक के मन में यह बात बैठ गई कि वह पढ़े  न पढ़े,  पास तो हो ही जाएगा। 

लेखक का पतंग लूटना व भाई साहब का समझाना :

एक  दिन लेखक संध्या के समय हॉस्टल से दूर कनकौआ (पतंग) लूटने के लिए जा रहा था। सहसा  लेखक की मुठभेड़ भाई साहब से हो गई। उन्होंने लेखक को काफी डाँटा- फटकारा। 

बड़े भाई साहब ने लेखक को कहा कि एक समय था जब आठवीं कक्षा पास करके लोग नायब तहसीलदार बन जाते थे, अन्य कई बड़े और अच्छे पदों के अधिकारी बन जाते थे। एक तरफ तुम हो जो इन आवारा लड़कों के साथ आठवीं कक्षा में होकर भी पतंग लूटने दौड़ा जा रहे हो।  

अगले साल हो सकता है, तुम मेरे बराबर आ जाओ,हो सकता है। शायद मुझसे भी आगे भी निकल जाओ, लेकिन मैं तुमसे  बड़ा हूँ और हमेशा बड़ा ही रहूँगा।  समझ दुनिया देखने से आती है न की किताबें पढ़ने नहीं आती। 

घर के कामकाज और खर्च का हिसाब सिर्फ घर के बड़े ही सही तरीके से रखते हैं।  बड़े भाई साहब द्वारा दिए इस तर्क के सामने लेखक ने अपना मस्तक झुका दिया। 

तब लेखक को अपने छोटे होने का अहसास हुआ और  उनके मन में बड़े भाई के प्रति और अधिक सम्मान व श्रद्धा का भाव उत्पन्न होने लगा।  भाई साहब ने लेखक को समझाने के बाद उसे अपने गले लगा लिया। उसी समय एक कनकौआ उन दोनों के ऊपर से निकला। 

भाई साहब लंबे थे इसलिए उन्होंने ऊपर उछलकर उस कनकौए की डोरी को पकड़ा और अपने  हॉस्टल की ओर बड़ी तेज़ी से दौड़े। भाई साहब को दौड़ता देख लेखक भी उनके पीछे दौड़ने लगे। 


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