लो यह उपहार
महाराज मनु बोले - हे प्रभु! आपके दर्शन हुए, इससे बढ़कर भला क्या?
बस आपका आशीर्वाद सदा बना रहे, यही मेरे लिए काफ़ी है।"
विधाता ने ऊपर की ओर हाथ उठाया ।
हाथ ऊपर उठाते ही उनके हाथ में एक चमचमाती तलवार आ गई ।
तलवार आगे बढ़ाते हुए विधाता बोले-"राजन, यह तलवार लो ।
इस तलवार से अपने आसपास के राजाओं को तुम जीत सकते हो । उन्हें जीत कर तुम उनके राज्य को अपने राज्य में मिला सकते हो और भलाई के कार्य करके वहाँ की प्रजा को भी सुखी करो ।"
मनु महाराज विधाता से बोले - "भगवन, अगर मैं किसी पड़ोसी राज्य करता हूँ तो उन पर चढ़ाई करने से दोनों ओर के सैनिक मारे जाएँगे। खून-खराबा होगा। फिर राज्य को जीतकर मैं क्या करूँगा ?
मैं अपने राज्य से ही संतुष्ट हूँ। शांति रहे, इसी में सुख है।"
यह बात सुनकर विधाता ने उनसे कहा- "अच्छा, फिर यह पारस पत्थर ले लो ।
इस पत्थर से तुम जितना चाहो, सोना बना सकते हो । इस पत्थर से तुम और धनवान हो जाओगे ।"
मनु महाराज क्षण भर सोचते रहे।
फिर हाथ जोड़कर विधाता से बोले -"प्रभु, मुझे इस लालच में मत डालिए, इससे बचाइए।
प्रभु राज्य का कोष मेरे लिए बहुत है उसमें कोई कमी नहीं है। मुझे जितनी ज़रूरत होती है उतना धन में वहाँ से लेता हूँ।
परंतु विधाता चाहते थे कि वे महाराज मनु को कुछ-न-कुछ अवश्य दें ।
उन्होंने मनु को और बहुत सी वस्तुओं के बारे में कहा, परंतु मनु ने उनसे कुछ भी नहीं लिया।
मनु के द्वारा कुछ भी न लेने पर विधाता ने एक पौधा अपनी हथेली पर रखा और मनु से बोले -"लो, यह पौधा तुम ले लो ।
यह पौधा धीरे-धीरे बड़ा होगा। बड़ा होने पर इसमें अन्न के दाने लगेंगे। उन दानों को दोबारा बोने से इस पौधे की तरह अनेक पौधे उग आएँगे।
उन अनाज दानों से मानव अपनी भूख को शांत करेगा। यह अनाज उसे शक्ति भी देगा।"
विधाता की यह बात सुनकर महाराज मनु का चेहरा खिल गया। उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उस पौधा रूपी उपहार को ले लिया।
मनु ने विधाता को प्रणाम किया। मनु विधाता से कुछ कहना चाहते थे, परंतु विधाता अंतर्धान हो गए ।
साहूकार अंत में सबसे कहते कि अन्न की कथा बहुत लंबी और बहुत ही पुरानी है। अन्न ही मनुष्य को सोचने-समझने और काम करने की शक्ति देता है।
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पुत्र-प्रेम
राम, श्याम और घनश्याम तीनों पक्के मित्र थे। ये तीनों पहाड़ी के नीचे बने कॉलोनी में रहते थे। तीनों मित्रो को संगीत का बहुत शौक था। एक दिन उन्होंने पहाड़ी पर जाकर गीत गाने की योजना बनाई और दोपहर के समय घर में जब सब सो गए, तब ये तीनों बाँसुरी और बोंगो लेकर पहाड़ी की ओर चल पड़े और एक पेड़ के नीचे निश्चित होकर बैठ गए।
राम ने बाँसुरी पर धुन बजानी शुरू कर दी, श्याम ने उसकी धुन के साथ बोंगो पर ताल दी और घनश्याम ने उनकी धुन पर गीत गाना शुरू कर दिया। उनकी गीत-संगीत की इस महफ़िल की आवाज़ दूर घाटी में भी गूँजने लगी। उनका एक गीत खत्म होता तो दूसरा गीत शुरू हो जाता। यह क्रम लगातार चल ही रहा था कि उन तीनों ने देखा कि कुछ लोग उनकी ओर ही गुस्से से भरकर चले आ रहे हैं। वे लोग उन तीनों के पास आकर रुक गए और उनमें से एक व्यक्ति चिल्लाया, "तुम तीनों यहाँ बेपरवाह होकर संगीत में मग्न हो रखे हो और उधर शेर ने दो बकरियाँ को मार दिया है।"
क्या कहा आपने, शेर ने बकरियाँ को मार डाला है!" घबराते हुए तीनों के मुख से एक साथ निकला। अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह व्यक्ति फिर से उन पर गरजते हुए बोला, "मेरा मन तो कर रहा है कि तुम तीनों के दो-दो थप्पड़ रसीद कर दूँ ।"
उस व्यक्ति की डाँट से लग रहा था कि जैसे वे अपने ही बच्चों को डाँट रहे हों।
उनकी डाँट सुनकर तीनों मित्र डर गए। उन्हें लगा कि शयद उन्हें अभी और भी डाँट मिलेगी पर वह व्यक्ति भरे गले से उन्हें समझाने व प्यार करने लगे। उन्होंने कहा यह तो ईश्वर का शुक्र है कि तुम तीनों सही सलामत हो। उसके बाद वे उन तीनों मित्रों को उनके घर तक छोड़ने गए। कुछ दिनों बाद उन तीनों को पता चला कि उनका पुत्र भी ऐसी प्रकार पहाड़ी पर गया था जहाँ किसी जंगली जानवर ने उसे मार दिया था। उन तीनों को समझ आ गया कि वह व्यक्ति उन्हें अपना बीटा समझकर डाँट रहे थे।
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