HINDI BLOG : नैतिक शिक्षा देती कहानी : पिता की तीन सीख ,महानता

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Sunday, 25 April 2021

नैतिक शिक्षा देती कहानी : पिता की तीन सीख ,महानता

पिता की तीन सीख 
एक बार उस राजा ने अपने मन मे विचार किया  कि क्यों न मैं अपने पुत्रों को कोई ऐसी सीख दूँ जिससे समय आने पर वे अपना राज्य भार आसानी से संभाल सकें। 
मन में यही  विचार करके राजा ने अपने तीनों पुत्रों को एक साथ दरबार में बुलाया और उनसे कहा, “पुत्रों, हमारे राज्य सभी फलों के वृक्ष हैं परंतु नाशपाती का कोई वृक्ष नहीं है। 
तुम तीनों से मैं यही चाहता हूँ कि तुम साल के हर चार महीने के अंतर पर इस वृक्ष की खोज में जाओ और उस वृक्ष का पता लगाओ कि वो वृक्ष दिखता कैसा है ?”
 राजा की आज्ञा सुनकर  तीनों पुत्र बारी-बारी से नाशपाती के वृक्ष की तलाश में निकल पड़ें और कुछ समय पश्चात वापस लौट भी आये। 
जब सभी पुत्र लौट आए तब राजा ने पुनः उन तीनों को दरबार में बुलाया। राजा ने उन तीनों से उस नाशपाती के वृक्ष के बारे में बताने को कहा।
सबसे पहले बड़ा पुत्र बोला, “ पिताजी!   वह वृक्ष तो बिलकुल टेढ़ा था और सूख भी चुका था।”
“ नहीं -नहीं ऐसा बिलकुल नहीं था बल्कि वह एकदम हरा –भरा था, परंतु उसमें कुछ तो कमी थी क्योंकि उस पर एक भी फल नहीं था।" दूसरे पुत्र ने बड़े भाई को बीच में ही रोकते हुए कहा।
अब राजा पुत्र ने कहा, “भैया, मुझे लगता है, शायद आप दोनों ही कोई और ही पेड़ देख कर आ गए हो।  मैंने तो सचमुच ही नाशपाती का पेड़ देखा था, वो पेड़ तो बहुत ही सुंदर और पूरा फलों से लदा हुआ था।”
 तीनों  पुत्र अपनी-अपनी बात पर अडिग रहे और फिर आपस में ही बहस करने लगे। 
अपने पुत्रों को आपस में इस प्रकार उलझता और बहस करते देखकर राजा अपने पुत्रों के पास आकर पुत्रों से कहने लगे, “सुनो पुत्रों, तुम तीनों को वृक्ष को लेकर आपस में बहस नहीं करनी चाहिए, असल में तुम तीनों ही एक ही वृक्ष की बात कर रहे हो और उसका सही वर्णन कर रहे हो। 
राजा ने उन तीनों से कहा कि, "तुम तीनों सही कह रहे हो। मैंने तुम्हें अलग-अलग ऋतु में वृक्ष ढूँढ़ने भेजा था और तुम तीनों ने जो कुछ देखा वह सब उस मौसम के अनुसार था। 
दरसअल मैं यह चाहता हूँ पुत्रों कि इस अनुभव के आधार पर तुम तीन बातों को गाँठ बाँध लो । 
सबसे पहली- अगर किसी चीज़ के बारे में बिलकुल सही और पूरी जानकारी चाहिए तो तुम्हें लंबे समय तक उसे देखना और परखना चाहिए।  
भले ही वह कोई चीज़, व्यक्ति या कोई वस्तु ही क्यों न हो। कभी भी जल्दबाज़ी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। निर्णय लेने से पहले उस चीज़ या व्यक्ति से संबंधित हर पहलू पर गौर करना चाहिए।  
दूसरी बात - सारे  मौसम एक-से नहीं होते।अगर मौसम एक से नहीं रहते तो समय भी सदा एक सा नहीं रहता। जिस प्रकार वृक्ष मौसम के अनुसार सूखता, हरा-भरा या फलों से भरा होता है ठीक उसी प्रकार कई तरह की परिस्थितियाँ भी मनुष्य के जीवन में आती-जाती रहती हैं।
 इसलिए अगर कभी तुम जिंदगी में किसी बुरे समय से गुजर रहे हों, तब अपने अंदर  हिम्मत और धैर्य को सदा बनाए रखना, यह बात सदा याद रखना कि हमेशा समय एक-सा नहीं रहता। समय ज़रूर बदलता है।
और सबसे ज़रूरी है यह तीसरी बात कि हमेशा अपनी बात को ही सही मान कर उस पर अड़े मत रहना । अपने दिमाग का प्रयोग करना, सोचना और दूसरों के विचारों को जांनने की भी कोशिश करना। 
पुत्रों, यह संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, तुम चाह कर भी सारा ज्ञान अकेले अर्जित नहीं कर सकते।अतः कभी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो तो किसी ज्ञानी व्यक्ति से सलाह लेने में कभी संकोच मत करना । किसी भी तरह की दुविधा होने पर दूसरों की राय अवश्य लें अपनी बात पर अडिग न रहें। 

महानता 
एक बार एक गुरु और एक शिष्य तीर्थ यात्रा पर निकले। उन्हें चलते हुए उन्हें शाम हो गई। रात होता देख वे एक पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए रुक गए। जब गुरु की नींद पूरी हो गई तो वे अपने दैनिक कार्यों से निपटने के बाद अपनी पूजा-पाठ शुरु करने लगे। 
पूजा-पाठ करते हुए उन्होंने देखा कि एक साँप उनके शिष्य की ओर बढ़ रहा था। परन्तु उस समय शिष्य बहुत गहरी नींद ने सोया हुआ था। गुरु पशु-पक्षियों की बोली जानते थे। गुरु ने उस साँप से प्रश्न किया कि "सोये हुए शिष्य के पास जाने का क्या कारण है ?"
कारण बताते हुए साँप बोला, "भगवन! मुझे बदला लेना है आपके शिष्य से। पिछले जन्म में उसने मेरी हत्या की थी और मेरी अकाल मृत्यु हुई जिस कारण मुझे साँप की योनि में जन्म लेना पड़ा। इसलिए मैं आपके शिष्य को डस कर अपना बदला लेना चाहता हूँ।"
उसकी बात सुनकर गुरु जी ने उससे कहा, सुनो! मेरे शिष्य को काट लेने से तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी क्योंकि मेरा शिष्य तो बहुत ही होनहार और सदाचारी है। वह बहुत ही अच्छा साधक भी है।"
गुरू जी ने उस साँप को बहुत समझाने का प्रयास किया परंतु वह साँप अपने निश्चय पर अडिग रहा। उसके इस प्रकार अपने फैसले से हटता न देख गुरु जी ने उसके सामने एक प्रस्ताव रखा। 
गुरु जी ने साँप से कहा, "सुनो भाई! अभी मेरे शिष्य की साधना पूरी नहीं हुए है। उसे अपनी साधना पूरी करनी है और इस क्षेत्र में आगे भी बहुत कुछ करना है। परन्तु मेरी साधना पूरी हो गई है और मुझे अब जीवन में और कुछ नहीं करना है। अब मेरा जीवन भी ज़्यादा नहीं बचा है। अगर मेरा नाश हो भी गया तो उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा इसलिए हे सर्प महाराज! मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे डस लें मेरे शिष्य के स्थान पर। मैं  इसके लिए पूरी ख़ुशी से तैयार हूँ।"
गुरु के इस प्रकार के वचन सुनकर उस साँप का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने उस शिष्य को डँसने का विचार त्याग दिया और उस परोपकारी गुरु को प्रणाम करके वहाँ से दूर चला गया।गुरु की महानता और परोपकारी स्वभाव से साँप ने भी प्रतिशोध की भावना को त्याग दिया।

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