दुःख का अधिकार
अति लघु प्रश्न
1. हमारे समाज में क्या देखकर किसी व्यक्ति का स्तर निर्धारित किया जाता है ?
उत्तर- हमारे समाज में व्यक्ति की पोशाक देखकर उसका स्तर निर्धारित किया जाता है । उसकी पहचान उसकी पोशाक से ही होती है, क्योंकि वही उसे अधिकार व दर्जा दिलाती है ।
2. पोशाक कब बंधन बनकर अड़चन डाल देती है ?
उत्तर- जब हम समाज को निम्न श्रेणी के दुःख को देखकर झुकना चाहते हैं अर्थात् दुःख का कारण जानना चाहते हैं, उनसे खुलकर बातें करना चाहते हैं , तब पोशाक बंधन बनकर अड़चन डाल देती है।
3. लोगों का व्यवहार बुढ़िया के साथ कैसा था ?
उत्तर- बुढ़िया घुटनों में मुँह छिपाकर रो रही थी। बाजार में खड़े लोग उसकी दयनीय स्थिति से अनजान बनकर उसे धिक्कार रहे थे तथा तरह-तरह की बातें बना रहे थे ।
4. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का कारण किस प्रकार पता लगाया ?
उत्तर- लेखक ने पास-पड़ोस की दुकानों से पूछकर पता लगाया कि उसका तेईस साल का जवान लड़का भगवाना सौंप के काटने से मर गया था। वही एकमात्र कमानेवाला सदस्य था । आर्थिक तंगी ने उसे ऐसा करने पर विवश किया था ।
5. ' जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है' पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में व्यग्य निहित है । जीवित रहते जो लोग फटे-पुराने कपड़े पहनते हैं, उन्हें मरने पर नया कफन देना आवश्यक नहीं है। मनुष्य को इस रूढ़िवादी परंपरा को नहीं मानना चाहिए क्योंकि जीते जी व्यक्ति को स्वच्छ वस्त्रों की आवश्यकता होती है, मरने पर नहीं।
6. बुढ़िया के हाथों का छन्नी-ककना क्यों बिक गया ?
उत्तर- बुढ़िया के बेटे की मृत्यु हो गई थी। उसके अंतिम संस्कार के लिए नया कपड़ा खरीदना आवश्यक था। इसलिए बुढ़िया के हाथों का छन्नी-ककना बिक गया ।
लघु प्रश्न
1. भगवाना की मृत्यु का क्या कारण था ?
उत्तर- भगवाना प्रतिदिन खेतों पर जाता था । एक दिन एक साँप पर उसका पैर पड़ गया । साँप ने उसे डस लिया । उसे बचाने के अनेक प्रयास किए गए, परंतु वह बच नहीं पाया।
2. समाज में किस आधार पर एक मनुष्य का दर्जा निश्चित किया जाता है ?
उत्तर- समाज में मनुष्य का दर्जा उसकी पोशाक निश्चित करती है। पोशाक ही मनुष्य को विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती है । पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और दर्जा भी निश्चित करती है।
3. पोशाक कब मनुष्य के लिए बंधन या अड़चन बन जाती है ?
उत्तर- कई बार जब पोशाक बहुत अच्छी तथा मनुष्य के स्तर अनुसार होती है । ऐसे समय में यदि वह निचली श्रेणी के लोगों से मिलना भी चाहें तो बीच में पोशाक बाधा बनकर उसे झुकने से रोकती है ।
4. लेखक बुढ़िया के दुख का कारण किस प्रकार जान पाया ?
उत्तर- लेखक ने जब बुढ़िया को घुटनों में मुँह छिपाकर फफक-फफककर रोते देखा तो आसपास के लोगों से उसके रोने का कारण पूछा । लोगों ने लेखक को बताया कि उसका तेईस साल का लड़का भगवाना मृत्यु को प्राप्त हो चुका है । तभी लेखक बुढ़िया के दुख का कारण जान पाया ।
5. मुर्दे को नंगा विदा नहीं किया जा सकता । स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- मुर्द को नंगा विदा इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि यह उसके जीवन की अंतिम यात्रा है । जीते जी तो मनुष्य के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। मगर मृत्यु के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता । इसलिए आखिरी बार मृतक को नए वस्त्र ( कफन ) पहनाए जाते हैं ।
6. बाजार के लोगों की बुढ़िया के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर- बाजार के लोगों का बुढ़िया के प्रति व्यवहार अमानवीय था । वे उसके दुख को समझने की बजाय उस पर तानाकशी कर रहे थे । सूतक के कारण कोई उसके खरबूजों को हाथ भी नहीं लगा रहा था । अधिकतर लोगों का यही मानना था कि बेटे के मरने के बाद यह इतनी जल्दी दुकान क्यों लगाने लगी ।
7. भगवाना को बचाने के लिए बुढ़िया ने क्या प्रयास किया था ?
उत्तर- भगवाना को बचाने के लिए उसकी माँ झाड़-फूँक करने वाले ओझा को बुलाकर लाई । नागदेवता की पूजा भी करवाई गई । आटे तथा अनाज को दान-दक्षिणा भी दी गई ताकि भगवाना बच जाए । परंतु दुर्भाग्यवश वह बच न पाया ।
8. भगवाना किस प्रकार निर्वाह करता था ?
उत्तर- भगवाना प्रतिदिन डेढ़ बीघा जमीन पर कछियारी करने जाता था । इस काम से उसे जो भी पैसे मिलते थे, उसी से उसकी जीविका चलती थी । भगवाना अकेला ही अपने परिवार का निर्वाह करता था । वही था केवल परिवार में कमाने वाला ।
निबंधात्मक प्रश्न
1. बुढ़िया माँ का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
उत्तर- भगवाना की बुढ़िया माँ अति निम्नवर्ग की सीधी-सादी, परिवार और पुत्र के प्रति प्रेम और ममता रखने वाली साधारण स्त्री है। अभाव और अंधविश्वासों से घिरे होने के कारण वह भगवाना का इलाज नहीं करवा सकी और ओझा के झाड़-फूँक के चक्कर में फँसकर अपने बेटे को गँवा बैठी । उसके मन में पुत्रवधू और पोता - पोती के लिए अपार स्नेह और ममता है । कर्तव्यनिष्ठा की भावना से वह दूसरे ही दिन बाज़ार में खरबूजे बेचने चली आई । वह लोगों की जली-कटी बातों को चुपचाप आँसू बहाते हुए सुनती रही । बहू की बीमारी की चिंता ने उसे कठिन परिस्थितियों से लड़ने और जूझने की शक्ति प्रदान की । सामाजिक नियमों की रक्षा के लिए उसने हाथों की छन्नी-ककना बेच कर भगवाना को विदा किया । नाग देवता की पूजा कर देवी-देवताओं के प्रति विश्वास जताया परंतु समाज के लोगों ने उसके दुख-दर्द तथा दयनीय स्थिति को नहीं समझा और उसके कर्तव्यबोध की भावना पर ताने कसे ।
2 क्या आप इस कवन से सहमत हैं कि भगवाना की बूढ़ी माँ समाज में व्याप्त अंधविश्वासों का शिकार बनी ।
उत्तर- हाँ, यह कथन कहानी के संदर्भ में पूरी तरह से सार्थक प्रतीत होता है । जैसे ही बुड़िया माँ को पता चला कि भगवाना को साँप ने काटा है वह बावली होकर ओझा को बुला लाई तथा झाड़-फूँक करवाया और नाग देवता की पूजा करवाई । घर में जो कुछ आटा अनाज था, दान-दक्षिणा में चला गया । इसके स्थान पर यदि बुढ़िया भगवाना को अस्पताल ले जाती या किसी डॉक्टर के पास ले जाती तो कदाचित साँप का जहर निकाल देने तथा समय पर उचित इलाज मिलने से भगवाना की जान बच सकती थी । परंतु अज्ञानता और धन की कमी के कारण गरीब लोग अंधविश्वासों में जकड़े रहते हैं और जीवन गँवा बैठते हैं ।
3 धनी और निधन के शोक मनाने में क्या अंतर होता है ?
उत्तर- शोक धनी और निर्धन दोनों को तोड़ देता है । शोक से संतप्त होकर धनी और निर्धन दोनों ही आँसू बहाते हैं परंतु लेखक ने इस सत्व को बड़े ही मार्मिक ढंग से उजागर किया है । सुविधा-संपन्न अमीरों को तो शोक मनाने के लिए असवर मिल जाता है परंतु गरीबों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वे घर बैठकर शोक मनाएं । यदि वे काम पर नहीं जाएँगे तो भला क्या खाएँगे और क्या खिलाएँगे ? शोक के समय निर्धन लोग भूखे मरने की स्थिति पर पहुँच जाते हैं इसलिए वे चाहकर भी अपना दुख-दर्द नहीं जता सकते । धनी लोगों के पास समय और साधन की कमी नहीं होती है इसलिए वे शोक मनाने का अधिकार रखते हैं ।
4 . भगवाना की बुढ़िया माँ के प्रति लेखक चाहकर भी सहानुभूति क्यों नहीं जता सके ?
उत्तर- बाज़ार के फुटपाथ पर खरबूजे बेचने के लिए बैठी भगवाना की बुढ़िया माँ के दुख-दर्द को जानकर लेखक उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त करना चाहते थे, परंतु वे चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाए । उनकी कसी हुई पोशाक फुटपाथ पर नीचे बैठकर सहानुभूति जताने में बाधक बन गई । आस-पास खड़े लोग बुढ़िया को गालियाँ दे रहे थे । कोई उसे 'बेहया', कोई 'धर्म-ईमान भ्रष्ट करने वाली ' तो कोई ' रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली ' कहकर ताने दे रहे थे । लेखक भी समाज के उन लोगों से भयभीत होकर मन ही मन उसके दुख-दर्द का अंदाज़ा लगाते रहे परंतु उसके पास जाकर उसकी मदद नहीं कर पाए ।
Nice
ReplyDelete