(i) नूह
(ii) शेख अयाज़
(iii) सोलोमेन
उत्तर - (iii)
सोलोमेन
'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...
उत्तर - (iii)
सोलोमेन
एक सच्ची प्रेमगाथा वह है, जहाँ मानवीय संबंधों का आधार केवल प्रेम हो। जहाँ प्रेमी-प्रेमिका धन, सम्मान, संपत्ति, मर्यादा या किसी अन्य वस्तु के लिए नहीं, अपितु मन के सच्चे प्रेम के कारण एक-दूसरे को चाहते हों और एक-दूसरे के लिए मर-मिटने को तैयार हों। इस आधार पर तताँरा-वामीरो कथा एक सच्ची प्रेमगाथा सिद्ध होती है। तताँरा-वामीरो के मधुर गीत को सुनकर उस पर मोहित हो जाता है। तताँरा का हृदय उसके मधुर लय में मग्न हो वशीभूत हो जाता है। वह गायन इतना मधुर था कि वह मदहोश होने लगता है। वह उस और बढ़ने लगता है, जिधर से गीत के स्वर में चले आ रहे थे। आगे बढ़ने पर उसकी नज़र उस युवती पर पड़ी, जो ढलती शाम में बेसुध होकर एक शृंगार गीत गा रही थी। बस उसी क्षण से तताँरा वामीरो को चाहने लगा। उसे वामीरों की धन-संपत्ति, मान-मर्यादा से कोई लगाव नहीं था। वह तो बस वामीरो का निश्चय हृदय चाहता था। इसीलिए वह उसे सामने पाकर निशब्द निहारता रहता था। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तताँरा-वामीरो कथा सच्ची प्रेमगाथा है।
शेखचिल्ली चार साल का था अपनी बेवकूफी के लिए नाम कमाने वाले शेखचिल्ली का जन्म हरियाणा के एक गाँव में हुआ था । वह बेवकूफी की हद तक पहुँच चुका एक सीधा - सौदा आदमी था ।
वह हमेशा हवाई किले बनाने में व्यस्त रहता था । उसके अम्मी और अब्बा , दोनों ही उससे बहुत प्यार करते थे , लेकिन वे उसकी बेवकूफियों से तंग आ चुके थे ।
एक दिन उसकी अम्मी उससे बोली , " शेख , अब तू चार साल का हो चुका है । अब तो जरा होशियारी से काम करना सीख । अगर तू होशियारी से काम नहीं करेगा तो लोग तुझे बेवकूफ बनाएंगे ।"
एक दिन शेख अपने अब्बा और अम्मी के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहा था । पैसे बचाने की फिराक में शेख के अब्बा ने अपना और अपनी बीवी का टिकट तो ले रखा था , लेकिन शेख का टिकट उन्होंने नहीं लिया था । थोड़ी देर तक वे अपने परिवार के साथ ट्रेन की यात्रा का मजा लेते रहे ।
तभी टिकट जाँचने वाला रेलवे कर्मचारी उस डिब्बे में आ घुसा और उसने शेख के अब्बा से टिकट दिखाने को कहा ।शेख के अब्बा ने अपना और अपनी बीवी का टिकट दिखा दिया ।
उसे देखकर टिकट निरीक्षक बोला , " इस बच्चे का टिकट कहाँ है ? " तब शेखचिल्ली के अब्बा ने कहा , " मेरा की उम्र केवल तीन साल है । फिर मैं इसका टिकट क्यों लूँ ? " यह तो बस तीन साल की है ! " टिकट निरीक्षक ने हैरत से पूछा । " तुम्हें कोई शक है ! " शेख के अब्बा भी अड़ गए , “ बच्चा तुम्हारा हैया मेरा?"
तभी शेख बीच में बोल पड़ा , " झूठ क्यों बोल रहे हो, अब्बा ? कल ही तो मुझे अम्मी ने बताया था कि मैं चार साल का हूँ ।" शेखचिल्ली की बात सुनते ही उसके अब्बा बगलें झाँकने लगे । तब टिकट निरीक्षक हँसने लगा और हँसते हुए उनसे बोला , " तुम्हारे बच्चे ने सच कहा है, इसके सच बोलने के कारण मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ। अगर ये सच न बोलता तो तुम पर इतना हर्ज़ाना लगाता कि तुम्हारी तबियत ठीक हो जाती।" यह कहकर वह चला गया ।
टिकट निरीक्षक के जाने के बाद शेख के अब्बा उसे थप्पड़ मारते हुए बोले , " कैसा बेवकूफ लड़का है ! इसके कारण मुझे जुर्माना भरना पड़ जाता । "
एक गज दूध
शेख चिल्ली को हमेशा यह शिकायत रहती थी कि उसकी अम्मी उसे घर का कोई काम करने को नहीं देती। जबकि उसे यह भी पता था कि कई बार वह खुद भी ठीक से काम नहीं कर पाता। इसलिए जब उसके पास कोई काम नहीं होता था, तब वह बाजार में घूम-घूम कर लोगों और दुकानदारों को गौर से देखता रहता था कि वह किस तरह सौदा करते हैं।
एक दिन वह एक हलवाई की दुकान बाहर खड़े होकर उसे बहुत ध्यान से देख रहा था। उस समय हलवाई एक छोटे बर्तन से कड़ाहे में दूध डाल रहा था।
"तुम यह क्या कर रहे हो ?" शेख चिल्ली ने आश्चर्य से पूछा।
"देख नहीं रहे, मैं दूध माप रहा हूँ।" हलवाई ने उससे कहा।
"चिल्ला क्यों रहे हो ? मैं तो सिर्फ पूछ रहा था कि तुम क्या कर रहे हो।" शेखचिल्ली ने कहा और कुछ दूरी पर खड़ा रहकर हलवाई के काम करने के तरीके को देखता रहा। थोड़ी देर बाद जब उसका मन उचड़ने लगा तो वह वहाँ से चला गया।
अगले दिन शेखचिल्ली की अम्मी उसे जगाती हुई बोली, "बेटा, हलवाई की दुकान पर जाकर दो रुपए का दूध ले आओ।"
शेखचिल्ली तुरंत एक लोटा लेकर दूध लेने चल पड़ा। हलवाई की दुकान पर पहुँचकर उसने सोचा, 'अम्मी ने मुझे दो रुपए का दूध लाने को कहा था, लेकिन उन्होंने मुझे यह तो बताया ही नहीं कि दूध लाना है।'
उस समय हलवाई किसी दूसरे ग्राहक का दूध माप रहा था। जब उसने शेखचिल्ली को खड़े हुए देखा तो उसने पूछा, "तुम्हें क्या चाहिए ?"
"मैं भी दूध खरीदने आया हूँ ।" शेखचिल्ली ने हलवाई से कहा।
"कितना?"
" अम्मी ने यह तो बताया ही नहीं।"
"तो जाओ और उनसे पूछ कर आओ।"
"बिना दूध लिए घर जाऊँगा तो अम्मी डाँटेगी।" शेखचिल्ली ने सोचा।
फिर वह वहीं खड़ा रह कर हलवाई को गौर से देखता रहा। वह जानना चाहता था कि हलवाई दूध का माप कैसे कर रहा है। फिर वह हलवाई की ओर लोटा बढ़ाते हुए बोला, "मेरा दूध भी माप दो।"
"कितना ?"
"एक गज !" तुरंत बोला।
शेखचिल्ली की बात सुनकर हलवाई और वह ग्राहक ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। बेचारा शेखचिल्ली आँखें झपकते हुआ उन्हें देखने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे सब उसकी इस बात पर क्यों हँस रहे हैं।
एक बार शेखचिल्ली नौकरी तलाशते-तलाशते लखनऊ जा पहुँचा। इत्तेफाक से उसे वहाँ जल्दी ही एक नौकरी मिल गई।
एक दिन शेखचिल्ली के मालिक ने उसे कुछ पैसे देकर उसे मनीऑर्डर करने के लिए डाकघर भेजा। शेखचिल्ली ने पहले कभी डाकघर की शक्ल नहीं देखी थी। उसने डाकखाने में मौजूद एक पढ़े-लिखे आदमी से मनीआर्डर का फॉर्म भरवा लिया और वह फॉर्म पोस्टमास्टर को दे दिया।
उसी वक्त उसने कुछ लोगों को पार्सल करते हुए देखा। यह देखकर उसने भी सोचा कि वह भी अपनी बेगम को पार्सल करेगा। लेकिन उस वक्त उसके पास कुछ नहीं था। इसलिए वह चुपचाप अपने मालिक के पास लौट आया।
कुछ दिनों बाद उसे उसकी तनख्वाह मिल गई।
उसे याद आया कि उसकी बीवी ने उसे शहर से तमिल चमेली का तेल लाने को कहा था। शेखचिल्ली ने सोचा, 'उस दिन इतने सारे लोग से सामान भेज रहे थे। मैं भी अपनी बीवी के लिए चमेली का तेल डाक से भेज दूँगा।'
यह सोचकर वह चमेली का तेल खरीदकर सीधा डाकघर जा पहुँचा और पोस्टमास्टर को चमेली के तेल की शीशी पकड़ाते हुए बोला, "इस शीशी को डाक से भेज दीजिए।"
उसकी बात सुनकर पोस्टमास्टर को समझते देर न लगी कि उसका एक बेवकूफ से पड़ गया है।
उसने चमेली के तेल की बोतल अपने पास रख ली और शेख को डाक से बोतल भेज देने का भरोसा दिलाया।
कुछ दिनों बाद शेख को अपनी बीवी की चिट्ठी मिली, जिसमें उसकी बीवी ने उसको चमेली का तेल डाक से भेजने की याद दिलाई थी। शेख समझ गया कि पोस्टमास्टर के पास गया और उससे बोला, "मैंने चमेली का तेल डाक से इसलिए भेजा था कि वह जल्दी मेरे घर पहुँच जाए, लेकिन अभी तक नहीं पहुँचा है ?"
चालाक पोस्टमास्टर ने तुरंत जवाब दिया, "हुआ यह कि जब तुम्हारी शीशी डाक से जा रही थी, उसी समय किसी और ने दूसरी तरफ से डंडा भेज दिया। डंडा लगने के कारण तुम्हारी शीशे टूट गई। अब तुम ही बताओ, इस मामले में मेरा क्या कसूर है।"
"अच्छा आपका कसूर नहीं है ये तो समझ गया मैं । लेकिन मुझे दूसरी तरफ से डंडा किसने भेजा है उसका पता चल जाए तो मैं अभी जाकर उसका सिर फोड़ दूँगा अपने डंडे से ।" यह कहते हुए शेख वहाँ से चला गया।
पद -मीरा
पाठ के माध्यम से हमें बताया गया है कि मनुष्य जीवन की सार्थकता ईश्वर की भक्ति करने में है, उससे प्रेम करने में है। इन पदों की रचयिता मीरा को तो ईश्वर की भक्ति अपने पूर्व जन्म के संस्कारों तथा ईश्वर की कृपा से ही मिल गई थी। मीरा संत 'रैदास' की शिष्या थीं। बचपन से ही वह श्री कृष्ण से प्रेम करने लगी थी। उनका कृष्ण के लिए प्रेम चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था। विवाह के बाद उन्हें परिवार के लोगों की बहुत-सी यातनाएँ सहनी पड़ी थीं क्योंकि परिवार के लोगों को उनका भक्ति करना पसंद न था। उनके विरोध करने पर भी मीरा की भक्ति में कोई कमी नहीं आई। वह तो दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होती चली गई और अंततः वह श्री कृष्ण में ही समा गईं। इन पदों में हमें मीरा की भक्ति के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं।
* 'मीराबाई की पदावली' में मीरा के गीतों को संकलित किया गया है।
* मीरा का देहावसान सन 1546 में हुआ था।
प्रस्तुत 'पद' भक्ति काल की कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित हैं। श्री कृष्ण के अनन्य भक्त मीरा के पद ब्रज, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं में लिखे हुए हैं। मीरा अपना घर-परिवार छोड़कर श्री कृष्ण भगवान की लीला स्थली वृंदावन में जाकर बस गई और कृष्णमयी हो गई थीं। प्रस्तुत दोनों 'पद' मीरा के आराध्य श्री कृष्ण से ही संबंधित हैं। मीरा इन पदों में कभी अपने आराध्य से बभी विनती करती हैं, तो कभी उनसे लाड़ लड़ाती हैं और मौका मिलने पर उनसे शिकायत करना भी नहीं भूलती हैं, अर्थात मीरा का हर भाव, हर क्षण, हर पल, सब कुछ श्रीकृष्ण से ही जुड़ा हुआ था। इनकी भक्ति दैन्य और माधुर्य भाव की है। इन सभी भक्तिपूर्ण बातों का इन पदों में संकलन किया गया है।
पद का भावार्थ
1.हरि आप हरो ---म्हारी भीर।।
भावार्थ :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मीरा अपने आराध्य से अपने दुखों व कष्टों को दूर करने के साथ ही सबकी रक्षा का निवेदन किया है और इसी विनती के साथ करते हुए कहती हैं कि -हे प्रभु! आप ही हो जो लोगों के मन की व्यथा को दूर करते हो, उनके दुखों व कष्टों को दूर करते हो। आपने न जाने कितने ही लोगों की मुसीबत में सहायता की है। मीराबाई उन भक्तों के उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जब दुशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करना चाहा तब आपने उसके वस्त्र बढ़ाकर उसको दुशासन के हाथों लज्जित होने से बचाया था। आपने ही भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा करने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया था और उसके प्राणों की रक्षा की थी। आपने डूबते हुए ऐरावत (हाथी) को मगरमच्छ से बचाकर उसे प्राण दान दिया था।आपने ही गजराज (हाथी) का कष्ट दूर करने के लिए उस मगरमच्छ को मारा था। हे प्रभु! मैं भी आपकी अर्थात अपने आराध्य श्री कृष्ण की दासी हूँ इसलिए मेरे भी कष्टों को दूर कीजिए। मीरा के जीवन की सबसे बड़ी कामना है कि वह अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहे।
शिल्प सौंदर्य:
(i) भक्ति रस है।
(ii) भाषा कोमल, सरल एवं मधुर है।
(iii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. (क) स्याम म्हाने चाकर--------------तीनूं बाताँ सरसी।।
भावार्थ :
प्रस्तुत पद में मीराबाई अपने आराध्य श्री कृष्ण की सेविका बनकर चाकरी अर्थात नौकरी करने की इच्छा दर्शाते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! मुझे अपनी दासी बना लो। मुझे आपकी चाकरी करने का सौभाग्य प्रदान करें। इसी प्रार्थना को दोहराते हुए वह कहती हैं कि हे गिरधारी! तुम मुझे अपनी दासी बना लो। मैं आपकी दासी बनकर आपके लिए बाग-बगीचे लगाऊँगी। इससे प्रतिदिन सुबह उठते ही मैं आपके दर्शन पा सकूँगी। फिर मैं वृंदावन की कुंज गलियों में कृष्ण लीला का गुणगान करते हुए आपका स्मरण करुँगी। आपकी चाकरी करते हुए आपके दर्शन और स्मरण का अवसर प्राप्त होगा। आपकी भाव-भक्ति से मुझे नाम स्मरण रूपी खर्ची मिलेगी। आपकी भाव-भक्ति से मुझे तीनों लोकों के सुख अर्थात आपकी भक्ति रूपी जागीर प्राप्त होगी। इस प्रकार तीनों बातें पूरी हो जाएँगी। मुझे आपके दर्शन, आपका सानिध्य और स्मरण की जागीर अर्थात साम्राज्य प्राप्त होगा।
शिल्प सौंदर्य:
(i) मीरा की प्रेम और भक्ति प्रकट हुई है।
(ii) भाषा मधुर, कोमल व भावानुकूल है।गौएँ
(iii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) मोर मुगट पीतांबर--------------- हिवड़ो घणो अधीराँ।।
मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सुंदरता पर मोहित हैं और उनके रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के सिर पर मोर पंखयुक्त मुकुट सुशोभित है। वे शरीर पर पीले वस्त्र धारण करते हैं। उनके गले में पाँच रंगों की वैजयंती माला शोभायमान हैं। मोहन कहलाने वाले तथा मुरली बजाने वाले श्रीकृष्ण वृंदावन की गलियों में गायों को चराते हैं।
शिल्प सौंदर्य:
(i) माधुर्य गुण है।
(ii) भक्ति रस की प्रधानता है।
(ग) ऊँचा ऊँचा महल --- -----------हिवड़ो घणो अधीरा।।
भावार्थ :
मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन और सान्निध्य की कामना करते हुए कहती हैं कि वह अपने आराध्य के लिए ऊँचे-ऊँचे महल बनाकर उसमें खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं और साथ ही उनके दर्शन के लिए बीच-बीच में फुलवारी रखने की कामना करती हैं। श्रीकृष्ण के दर्शन की प्यासी मीरा कुसुंबी अर्थात लाल रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना नदी के तट पर उनसे मिलना जाना चाहती है ताकि मिलन में कोई बढ़ा उत्पन्न न हो। मीरा बाई कहती हैं हे गिरिधर! मेरा हृदय आपसे मिलने के लिए अत्यंत व्याकुल हो रहा है। आप मुझे दर्शन अवश्य दीजिए।
शिल्प सौंदर्य:
(i) दास्य और माधुर्य भाव की भक्ति है।
(ii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।