HINDI BLOG : CLASS 10 तताँरा-वामीरो कथा - पाठ का सार..../ लेखक : लीलाधर मंडलोई

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

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Tuesday, 3 August 2021

CLASS 10 तताँरा-वामीरो कथा - पाठ का सार..../ लेखक : लीलाधर मंडलोई

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तताँरा-वामीरो कथा -   लेखक : लीलाधर मंडलोई (1954)

पाठ का सार :
इस पाठ के माध्यम से यह बताया गया है कि प्रेम सब को जोड़ता है और घृणा आपस में केवल दूरी बढ़ाती है। जो मनुष्य अपने समाज के लिए बिना किसी स्वार्थ के अपने प्रेम तथा अपने प्राणों तक का बलिदान कर देता है, उसके इस महान बलिदान के लिए सदियों याद रखा जाता है। 
साथ ही यह समाज न केवल उसे याद रखता है बल्कि उसके बलिदान को कभी व्यर्थ नहीं जाने देता। तत्कालीन समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करने वाले इस युगल त्यागी बलिदान को आज भी उस द्वीप  के निवासी गर्व और श्रद्धा के साथ याद करते हैं। यह पाठ एक प्रेमी-युगल के बलिदान की कथा है।
 सदियों पूर्व लिटिल अंडमान और कार-निकोबार आपस में जुड़े हुए थे। तब वहाँ  एक ''पासा नामक गाँव हुआ करता था। 
जिसमें तताँरा नामक एक युवक रहता था। वह युवक बहुत ही सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व और स्वभाव वाला था। इसलिए निकोबारी उससे बहुत प्रेम करते थे। वह अपनी कमर में लकड़ी की एक तलवार सदैव बाँधे रहता था।
 इस तलवार को लेकर लोगों का यह मत था कि उसकी तलवार में दैवीय शक्ति है। एक दिन वह 'लपाती' गाँव के समुद्र-तट पर घूम रहा था। 
वहाँ उसकी भेंट सुरीला, सरस और शृंगार गीत गाती हुई वामीरो नामक अप्रतिम सौंदर्य वाली युवती से होती है। दोनों का मिलना-जुलना शुरू हो जाता है। दोनों के भीतर एक गहरा समर्पण-भाव था, पर दोनों का गाँव अलग-अलग था। अनुसार दोनों का होना जरूरी था वैवाहिक बंधन में बँधने के लिए परंपरा के अनुसार दोनों का एक ही गाँव का होना आवश्यक था। यही वहीं की रीति और परंपरा थी। इसके बावज़ूद दोनों अडिग रहे और नियमित रूप से लपाती के समुद्री किनारे पर मिलते रहे। उधर अफ़वाहें फैलती रहीं। 
कुछ समय बाद पासा गाँव में 'पशु-पर्व' का आयोजन हुआ, जिसमें तताँरा वामीरो से मिला। वामीरो की माँ ने दोनों को देख लिया। वह क्रोध से उफ़न पड़ी। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया। 
गाँववालों ने भी उसके विरुद्ध आवाज़ें उठाईं। यह सब तताँरा के लिए असहनीय था। उसे इस विवाह की निषेध परंपरा पर क्षोभ था। 
उसे अपनी विवशता पर खीझ हो रही थी। इसी खीझ और क्रोध में उसने अपनी तलवार निकाली और भरपूर शक्ति से धरती में घोंप दी। फिर वह पूरी ताकत से उसे खींचने लगा। ताकत लगाने के कारण वह पसीने से तरबतर हो उठा। यह देखकर गाँव वाले घबरा गए। 
तताँरा तलवार को अपनी तरफ़ खींचते हुए बहुत दूर तक पहुँच गया। लेकिन अचानक जहाँ तक वह लकीर खिंच गई थी, वहाँ से धरती फटने लगी और देखते-ही-देखते द्वीप दो टुकड़ों में विभक्त हो गया। 
तताँरा की तरफ़ का द्वीप समुद्र में धँसने लगा। तताँरा समुद्र से फिसल रहा था। उसके मुँह पर केवल एक ही नाम था- 'वामीरो'। इधर वामीरो भी पागल-सी हो गई। 
वह घंटों वहाँ बैठी रहती, जहाँ तताँरा उससे अलग हुआ था। उसने खाना, पीना छोड़ दिया और परिवार से अलग हो गई। लोगों को उसका कोई सुराग तक नहीं मिला। 
आज दोनों ही नहीं हैं, पर उनकी प्रेम-कथा आज भी घर-घर सुनाई जाती है। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। आज भी उस द्वीप के लोग उनको श्रद्धा और गर्व के साथ याद करते हैं। 

कहानी विशेष  :
तताँरा 
* तताँरा पासा गाँव का सुंदर एवं शक्तिशाली युवक था। 
* स्वभाव से नेक, आत्मीयतापूर्ण तथा दूसरों की सहायता करने वाला। 
* एक दिन समुद्र तट पर पर सायंकाल वामीरो से मुलाकात। ततपश्चात वामीरो से प्रेम। 
* मुलाकातें होती रहीं तथा अफवाहें फैलती रहीं। 
* तताँरा का परंपरा पर क्षोभ और अपनी बेबसी पर खीझ होना। 
* अंततः प्रेम-पथ पर अपने  जीवन का त्याग कर देना। 

वामीरो 
* गाँव की एक सुंदर युवती है। 
* सुरीला कंठ तथा गीत संगीत का जादू बिखेरने की कला में माहिर है। 
* वामीरो का आकर्षण भी तताँरा की तरफ था। 
* दोनों के बीच मौन अभिव्यक्ति और मूक समर्पण। 
* वामीरो की माँ का विरोध करना तथा तताँरा को अपमानित करना। 
* तताँरा की मृत्यु के बाद वामीरो विक्षिप्त होना। 
 * प्रेम-पथ में अपना संपूर्ण  जीवन समर्पित कर देना। 

तताँरा की चारित्रिक विशेषताएँ : 
1.आकर्षक व्यक्तित्व - तताँरा सुंदर, बलिष्ट व आकर्षक था। वामीरो भी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उससे प्रेम करने लगी थी। 
2.परोपकारी- वह सभी द्वीपवासियों की सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था। इसलिए सभी लोग उसे बहुत चाहते थे। 
3.विलक्षण शक्ति- तताँरा के पास एक लकड़ी की तलवार थी। उसमें विलक्षण शक्ति थी, जिसके बलबूते पर वह साहसिक कार्य करने में सफल हो जाता था। 
4.सच्चा प्रेमी- वह वामीरो के गीत से प्रभावित होकर उसकी ओर आकर्षित हुआ। उसकी सुंदरता व मधुर आवाज़ पर मोहित होकर वह उस से प्रेम करने लगा। जब गाँव वालों ने उसकी शादी न होने दी तो उसने अपने प्राण त्याग दिए।

वामीरो की चारित्रिक विशेषताएँ :  
1.प्रकृति प्रेमी- वामीरो प्रकृति प्रेमी थी। पहली बार तताँरा ने जब उसे देखा तो वह प्रकृति के सौंदर्य से प्रभावित हो गीत गाने में मग्न थी। 
2. लोक-लाज की रक्षक- वह तताँरा से प्रेम करती है। वह मन-ही-मन यह भी जानती है कि वह अपने गाँव के बंधन को तोड़ नहीं सकती इसलिए पासा पर्व में तताँरा को देखकर वह रोने लगती है। 
3. निश्चल प्रेमिका- वह तताँरा को मन-ही-मन प्रेम करने लगती है। उसका निश्चल प्रेम तब प्रकट होता है जब तताँरा की मृत्यु हो जाती है फिर वह भी घर से अलग होकर उसकी याद में अपने प्राण त्याग देती है। 

* 'तताँरा-वामीरो कथा' एक सच्ची प्रेमगाथा है- 

एक सच्ची प्रेमगाथा वह है, जहाँ मानवीय संबंधों का आधार केवल प्रेम हो। जहाँ  प्रेमी-प्रेमिका धन, सम्मान, संपत्ति, मर्यादा या किसी अन्य वस्तु के लिए नहीं, अपितु मन के सच्चे प्रेम के कारण एक-दूसरे को चाहते हों और एक-दूसरे के लिए मर-मिटने को तैयार हों।  इस आधार पर तताँरा-वामीरो कथा एक सच्ची प्रेमगाथा सिद्ध  होती है। तताँरा-वामीरो के मधुर गीत को सुनकर उस पर मोहित हो जाता है। तताँरा का हृदय उसके मधुर लय में मग्न हो वशीभूत हो जाता है। वह गायन इतना मधुर था कि वह मदहोश होने लगता है। वह उस और बढ़ने लगता है, जिधर से गीत के स्वर में चले आ रहे थे। आगे बढ़ने पर उसकी नज़र उस युवती पर पड़ी, जो ढलती शाम में बेसुध होकर एक शृंगार गीत गा रही थी। बस उसी क्षण से तताँरा वामीरो को चाहने लगा। उसे वामीरों की धन-संपत्ति, मान-मर्यादा से कोई लगाव नहीं था। वह तो बस वामीरो का निश्चय हृदय चाहता था। इसीलिए वह उसे सामने पाकर निशब्द निहारता रहता था। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तताँरा-वामीरो कथा सच्ची प्रेमगाथा है। 

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