शेखचिल्ली चार साल का था अपनी बेवकूफी के लिए नाम कमाने वाले शेखचिल्ली का जन्म हरियाणा के एक गाँव में हुआ था । वह बेवकूफी की हद तक पहुँच चुका एक सीधा - सौदा आदमी था ।
वह हमेशा हवाई किले बनाने में व्यस्त रहता था । उसके अम्मी और अब्बा , दोनों ही उससे बहुत प्यार करते थे , लेकिन वे उसकी बेवकूफियों से तंग आ चुके थे ।
एक दिन उसकी अम्मी उससे बोली , " शेख , अब तू चार साल का हो चुका है । अब तो जरा होशियारी से काम करना सीख । अगर तू होशियारी से काम नहीं करेगा तो लोग तुझे बेवकूफ बनाएंगे ।"
एक दिन शेख अपने अब्बा और अम्मी के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहा था । पैसे बचाने की फिराक में शेख के अब्बा ने अपना और अपनी बीवी का टिकट तो ले रखा था , लेकिन शेख का टिकट उन्होंने नहीं लिया था । थोड़ी देर तक वे अपने परिवार के साथ ट्रेन की यात्रा का मजा लेते रहे ।
तभी टिकट जाँचने वाला रेलवे कर्मचारी उस डिब्बे में आ घुसा और उसने शेख के अब्बा से टिकट दिखाने को कहा ।शेख के अब्बा ने अपना और अपनी बीवी का टिकट दिखा दिया ।
उसे देखकर टिकट निरीक्षक बोला , " इस बच्चे का टिकट कहाँ है ? " तब शेखचिल्ली के अब्बा ने कहा , " मेरा की उम्र केवल तीन साल है । फिर मैं इसका टिकट क्यों लूँ ? " यह तो बस तीन साल की है ! " टिकट निरीक्षक ने हैरत से पूछा । " तुम्हें कोई शक है ! " शेख के अब्बा भी अड़ गए , “ बच्चा तुम्हारा हैया मेरा?"
तभी शेख बीच में बोल पड़ा , " झूठ क्यों बोल रहे हो, अब्बा ? कल ही तो मुझे अम्मी ने बताया था कि मैं चार साल का हूँ ।" शेखचिल्ली की बात सुनते ही उसके अब्बा बगलें झाँकने लगे । तब टिकट निरीक्षक हँसने लगा और हँसते हुए उनसे बोला , " तुम्हारे बच्चे ने सच कहा है, इसके सच बोलने के कारण मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ। अगर ये सच न बोलता तो तुम पर इतना हर्ज़ाना लगाता कि तुम्हारी तबियत ठीक हो जाती।" यह कहकर वह चला गया ।
टिकट निरीक्षक के जाने के बाद शेख के अब्बा उसे थप्पड़ मारते हुए बोले , " कैसा बेवकूफ लड़का है ! इसके कारण मुझे जुर्माना भरना पड़ जाता । "
एक गज दूध
शेख चिल्ली को हमेशा यह शिकायत रहती थी कि उसकी अम्मी उसे घर का कोई काम करने को नहीं देती। जबकि उसे यह भी पता था कि कई बार वह खुद भी ठीक से काम नहीं कर पाता। इसलिए जब उसके पास कोई काम नहीं होता था, तब वह बाजार में घूम-घूम कर लोगों और दुकानदारों को गौर से देखता रहता था कि वह किस तरह सौदा करते हैं।
एक दिन वह एक हलवाई की दुकान बाहर खड़े होकर उसे बहुत ध्यान से देख रहा था। उस समय हलवाई एक छोटे बर्तन से कड़ाहे में दूध डाल रहा था।
"तुम यह क्या कर रहे हो ?" शेख चिल्ली ने आश्चर्य से पूछा।
"देख नहीं रहे, मैं दूध माप रहा हूँ।" हलवाई ने उससे कहा।
"चिल्ला क्यों रहे हो ? मैं तो सिर्फ पूछ रहा था कि तुम क्या कर रहे हो।" शेखचिल्ली ने कहा और कुछ दूरी पर खड़ा रहकर हलवाई के काम करने के तरीके को देखता रहा। थोड़ी देर बाद जब उसका मन उचड़ने लगा तो वह वहाँ से चला गया।
अगले दिन शेखचिल्ली की अम्मी उसे जगाती हुई बोली, "बेटा, हलवाई की दुकान पर जाकर दो रुपए का दूध ले आओ।"
शेखचिल्ली तुरंत एक लोटा लेकर दूध लेने चल पड़ा। हलवाई की दुकान पर पहुँचकर उसने सोचा, 'अम्मी ने मुझे दो रुपए का दूध लाने को कहा था, लेकिन उन्होंने मुझे यह तो बताया ही नहीं कि दूध लाना है।'
उस समय हलवाई किसी दूसरे ग्राहक का दूध माप रहा था। जब उसने शेखचिल्ली को खड़े हुए देखा तो उसने पूछा, "तुम्हें क्या चाहिए ?"
"मैं भी दूध खरीदने आया हूँ ।" शेखचिल्ली ने हलवाई से कहा।
"कितना?"
" अम्मी ने यह तो बताया ही नहीं।"
"तो जाओ और उनसे पूछ कर आओ।"
"बिना दूध लिए घर जाऊँगा तो अम्मी डाँटेगी।" शेखचिल्ली ने सोचा।
फिर वह वहीं खड़ा रह कर हलवाई को गौर से देखता रहा। वह जानना चाहता था कि हलवाई दूध का माप कैसे कर रहा है। फिर वह हलवाई की ओर लोटा बढ़ाते हुए बोला, "मेरा दूध भी माप दो।"
"कितना ?"
"एक गज !" तुरंत बोला।
शेखचिल्ली की बात सुनकर हलवाई और वह ग्राहक ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। बेचारा शेखचिल्ली आँखें झपकते हुआ उन्हें देखने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे सब उसकी इस बात पर क्यों हँस रहे हैं।
एक बार शेखचिल्ली नौकरी तलाशते-तलाशते लखनऊ जा पहुँचा। इत्तेफाक से उसे वहाँ जल्दी ही एक नौकरी मिल गई।
एक दिन शेखचिल्ली के मालिक ने उसे कुछ पैसे देकर उसे मनीऑर्डर करने के लिए डाकघर भेजा। शेखचिल्ली ने पहले कभी डाकघर की शक्ल नहीं देखी थी। उसने डाकखाने में मौजूद एक पढ़े-लिखे आदमी से मनीआर्डर का फॉर्म भरवा लिया और वह फॉर्म पोस्टमास्टर को दे दिया।
उसी वक्त उसने कुछ लोगों को पार्सल करते हुए देखा। यह देखकर उसने भी सोचा कि वह भी अपनी बेगम को पार्सल करेगा। लेकिन उस वक्त उसके पास कुछ नहीं था। इसलिए वह चुपचाप अपने मालिक के पास लौट आया।
कुछ दिनों बाद उसे उसकी तनख्वाह मिल गई।
उसे याद आया कि उसकी बीवी ने उसे शहर से तमिल चमेली का तेल लाने को कहा था। शेखचिल्ली ने सोचा, 'उस दिन इतने सारे लोग से सामान भेज रहे थे। मैं भी अपनी बीवी के लिए चमेली का तेल डाक से भेज दूँगा।'
यह सोचकर वह चमेली का तेल खरीदकर सीधा डाकघर जा पहुँचा और पोस्टमास्टर को चमेली के तेल की शीशी पकड़ाते हुए बोला, "इस शीशी को डाक से भेज दीजिए।"
उसकी बात सुनकर पोस्टमास्टर को समझते देर न लगी कि उसका एक बेवकूफ से पड़ गया है।
उसने चमेली के तेल की बोतल अपने पास रख ली और शेख को डाक से बोतल भेज देने का भरोसा दिलाया।
कुछ दिनों बाद शेख को अपनी बीवी की चिट्ठी मिली, जिसमें उसकी बीवी ने उसको चमेली का तेल डाक से भेजने की याद दिलाई थी। शेख समझ गया कि पोस्टमास्टर के पास गया और उससे बोला, "मैंने चमेली का तेल डाक से इसलिए भेजा था कि वह जल्दी मेरे घर पहुँच जाए, लेकिन अभी तक नहीं पहुँचा है ?"
चालाक पोस्टमास्टर ने तुरंत जवाब दिया, "हुआ यह कि जब तुम्हारी शीशी डाक से जा रही थी, उसी समय किसी और ने दूसरी तरफ से डंडा भेज दिया। डंडा लगने के कारण तुम्हारी शीशे टूट गई। अब तुम ही बताओ, इस मामले में मेरा क्या कसूर है।"
"अच्छा आपका कसूर नहीं है ये तो समझ गया मैं । लेकिन मुझे दूसरी तरफ से डंडा किसने भेजा है उसका पता चल जाए तो मैं अभी जाकर उसका सिर फोड़ दूँगा अपने डंडे से ।" यह कहते हुए शेख वहाँ से चला गया।
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