पद -मीरा
पाठ के माध्यम से हमें बताया गया है कि मनुष्य जीवन की सार्थकता ईश्वर की भक्ति करने में है, उससे प्रेम करने में है। इन पदों की रचयिता मीरा को तो ईश्वर की भक्ति अपने पूर्व जन्म के संस्कारों तथा ईश्वर की कृपा से ही मिल गई थी। मीरा संत 'रैदास' की शिष्या थीं। बचपन से ही वह श्री कृष्ण से प्रेम करने लगी थी। उनका कृष्ण के लिए प्रेम चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था। विवाह के बाद उन्हें परिवार के लोगों की बहुत-सी यातनाएँ सहनी पड़ी थीं क्योंकि परिवार के लोगों को उनका भक्ति करना पसंद न था। उनके विरोध करने पर भी मीरा की भक्ति में कोई कमी नहीं आई। वह तो दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होती चली गई और अंततः वह श्री कृष्ण में ही समा गईं। इन पदों में हमें मीरा की भक्ति के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं।
* 'मीराबाई की पदावली' में मीरा के गीतों को संकलित किया गया है।
* मीरा का देहावसान सन 1546 में हुआ था।
प्रस्तुत 'पद' भक्ति काल की कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित हैं। श्री कृष्ण के अनन्य भक्त मीरा के पद ब्रज, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं में लिखे हुए हैं। मीरा अपना घर-परिवार छोड़कर श्री कृष्ण भगवान की लीला स्थली वृंदावन में जाकर बस गई और कृष्णमयी हो गई थीं। प्रस्तुत दोनों 'पद' मीरा के आराध्य श्री कृष्ण से ही संबंधित हैं। मीरा इन पदों में कभी अपने आराध्य से बभी विनती करती हैं, तो कभी उनसे लाड़ लड़ाती हैं और मौका मिलने पर उनसे शिकायत करना भी नहीं भूलती हैं, अर्थात मीरा का हर भाव, हर क्षण, हर पल, सब कुछ श्रीकृष्ण से ही जुड़ा हुआ था। इनकी भक्ति दैन्य और माधुर्य भाव की है। इन सभी भक्तिपूर्ण बातों का इन पदों में संकलन किया गया है।
पद का भावार्थ
1.हरि आप हरो ---म्हारी भीर।।
भावार्थ :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मीरा अपने आराध्य से अपने दुखों व कष्टों को दूर करने के साथ ही सबकी रक्षा का निवेदन किया है और इसी विनती के साथ करते हुए कहती हैं कि -हे प्रभु! आप ही हो जो लोगों के मन की व्यथा को दूर करते हो, उनके दुखों व कष्टों को दूर करते हो। आपने न जाने कितने ही लोगों की मुसीबत में सहायता की है। मीराबाई उन भक्तों के उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जब दुशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण करना चाहा तब आपने उसके वस्त्र बढ़ाकर उसको दुशासन के हाथों लज्जित होने से बचाया था। आपने ही भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा करने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया था और उसके प्राणों की रक्षा की थी। आपने डूबते हुए ऐरावत (हाथी) को मगरमच्छ से बचाकर उसे प्राण दान दिया था।आपने ही गजराज (हाथी) का कष्ट दूर करने के लिए उस मगरमच्छ को मारा था। हे प्रभु! मैं भी आपकी अर्थात अपने आराध्य श्री कृष्ण की दासी हूँ इसलिए मेरे भी कष्टों को दूर कीजिए। मीरा के जीवन की सबसे बड़ी कामना है कि वह अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहे।
शिल्प सौंदर्य:
(i) भक्ति रस है।
(ii) भाषा कोमल, सरल एवं मधुर है।
(iii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. (क) स्याम म्हाने चाकर--------------तीनूं बाताँ सरसी।।
भावार्थ :
प्रस्तुत पद में मीराबाई अपने आराध्य श्री कृष्ण की सेविका बनकर चाकरी अर्थात नौकरी करने की इच्छा दर्शाते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! मुझे अपनी दासी बना लो। मुझे आपकी चाकरी करने का सौभाग्य प्रदान करें। इसी प्रार्थना को दोहराते हुए वह कहती हैं कि हे गिरधारी! तुम मुझे अपनी दासी बना लो। मैं आपकी दासी बनकर आपके लिए बाग-बगीचे लगाऊँगी। इससे प्रतिदिन सुबह उठते ही मैं आपके दर्शन पा सकूँगी। फिर मैं वृंदावन की कुंज गलियों में कृष्ण लीला का गुणगान करते हुए आपका स्मरण करुँगी। आपकी चाकरी करते हुए आपके दर्शन और स्मरण का अवसर प्राप्त होगा। आपकी भाव-भक्ति से मुझे नाम स्मरण रूपी खर्ची मिलेगी। आपकी भाव-भक्ति से मुझे तीनों लोकों के सुख अर्थात आपकी भक्ति रूपी जागीर प्राप्त होगी। इस प्रकार तीनों बातें पूरी हो जाएँगी। मुझे आपके दर्शन, आपका सानिध्य और स्मरण की जागीर अर्थात साम्राज्य प्राप्त होगा।
शिल्प सौंदर्य:
(i) मीरा की प्रेम और भक्ति प्रकट हुई है।
(ii) भाषा मधुर, कोमल व भावानुकूल है।गौएँ
(iii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) मोर मुगट पीतांबर--------------- हिवड़ो घणो अधीराँ।।
मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सुंदरता पर मोहित हैं और उनके रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के सिर पर मोर पंखयुक्त मुकुट सुशोभित है। वे शरीर पर पीले वस्त्र धारण करते हैं। उनके गले में पाँच रंगों की वैजयंती माला शोभायमान हैं। मोहन कहलाने वाले तथा मुरली बजाने वाले श्रीकृष्ण वृंदावन की गलियों में गायों को चराते हैं।
शिल्प सौंदर्य:
(i) माधुर्य गुण है।
(ii) भक्ति रस की प्रधानता है।
(ग) ऊँचा ऊँचा महल --- -----------हिवड़ो घणो अधीरा।।
भावार्थ :
मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन और सान्निध्य की कामना करते हुए कहती हैं कि वह अपने आराध्य के लिए ऊँचे-ऊँचे महल बनाकर उसमें खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं और साथ ही उनके दर्शन के लिए बीच-बीच में फुलवारी रखने की कामना करती हैं। श्रीकृष्ण के दर्शन की प्यासी मीरा कुसुंबी अर्थात लाल रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना नदी के तट पर उनसे मिलना जाना चाहती है ताकि मिलन में कोई बढ़ा उत्पन्न न हो। मीरा बाई कहती हैं हे गिरिधर! मेरा हृदय आपसे मिलने के लिए अत्यंत व्याकुल हो रहा है। आप मुझे दर्शन अवश्य दीजिए।
शिल्प सौंदर्य:
(i) दास्य और माधुर्य भाव की भक्ति है।
(ii) ब्रज भाषा के शब्दों से युक्त राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt let me know.