HINDI BLOG : Anuchched Lekhn For Class 7, 8, 9,10

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Saturday, 19 February 2022

Anuchched Lekhn For Class 7, 8, 9,10

अनुच्छेद लेखन 
कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों पर अनुच्छेद निम्नलिखित हैं- 

1.कथनी और करनी समान होनी चाहिए 
संकेत-बिंदु: •  वाणी पर संयम      • कथनी और करनी में संबंध      • दोनों की एकरूपता 
कथनी करनी एक समान मिलता जीवन में सम्मान मानव क्रियाशील प्राणी है । चुपचाप बैठना उसके लिए संभव नहीं है । इसलिए जो कुछ भी वह अपनी वाणी से बोलता है, उसे करने की सोचता है । लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि मनुष्य जो कहता है, वह कर नहीं पाता, जैसे अगर आप कहते हैं कि मैं तारों को जमीन पर ला सकता है, तो क्या यह संभव है ? नहीं न, इसलिए हमारी कथनी और करनी में अंतर देखने को मिलता है । हमें अपनी वाणी पर संगुम रखना चाहिए तथा जो करने के लिए हम समर्थ हो, वही बात अपनी वाणी से कहनी चाहिए, जिससे हमारी कथनी और करनी एक समान हो । कई बार आपने देखा होगा कि व्यक्ति कह देता है कि मैं आज जरूर यह कार्य कर लूँगा लेकिन यदि वह समर्थ नहीं होता तो उस कार्य को नहीं कर पाता। हमें स्वयं को इतना समर्थ बनाना है कि जो बात हम अपनी वाणी से बोलें, उसे अवश्य पूर्ण कर सकें। हमें अपनी कथनी और करनी में एकरूपता रखनी चाहिए, तभी हम समाज में सम्मान और प्रशंसा के पात्र बन सकते हैं । 

2.परंपराएँ जीवनदायक होती हैं । 
संकेत बिंदु: • परंपराओं का महत्त्व     • परंपराओं का विभाजन     • निष्कर्ष 
मनुष्य के जीवन में परंपराएँ वास्तव में विशेष महत्त्व रखती हैं क्योंकि परंपराए जीवन-मूल्य का इस्पाती स्तंभ हैं परंपराएँ व्यक्ति का मार्गदर्शन करती हैं । परंपराएँ धार्मिक तथा रोजाना चलने वाली प्रक्रिया भी हो सकती हैं । हमारी संस्कृति में इन परंपराओं का बहुत महत्त्व है । कुछ परंपराएँ ऐसी होती हैं , जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती हैं । कुछ परंपराएँ ऐसी भी होती हैं , जिन्हें हम अपनी आदतों के रूप में स्वीकारते हैं , जैसे प्रभात बेला में जागना, बड़ों को नमस्कार करना अतिथि सत्कार करना, छोटों के प्रति स्नेह भाव रखना आदि । परंपराएँ व्यक्ति की आत्मा में बसी होती हैं । धार्मिक परंपराओं के अंतर्गत व्यक्ति संस्कारों का पालन करते हुए धर्म निभाता है । व्यक्ति के मार्ग को संतुलित करने के लिए परंपराएँ निरंतर चलती रहती हैं । परंपराएँ मनुष्य को व्यवस्थित ढंग से जीना सिखाती हैं और उसे अपनी संस्कृति से अवगत कराती हैं ।

3.पुस्तकों का महत्त्व 
संकेत बिंदु - ● पुस्तकों का जीवन में महत्त्व     ●  विद्यालय के पुस्तकालय     ●  पुस्तकें हमारी सच्ची                       मित्र              ● ज्ञान एवं मनोरंजन का असीम भंडार 
प्रत्येक प्राणी के जीवन में पुस्तकों का अत्यधिक महत्त्व है , लेकिन विद्यार्थियों के जीवन में पुस्तकों का विशेष महत्व होता है । सभी विद्यालयों में बड़े-बड़े पुस्तकालय होते हैं , जिनमें विद्यार्थियों के पढ़ने वाले सभी विषयों, सामान्य ज्ञान की तथा अन्य पुस्तकें होती हैं । वास्तव में, ये पुस्तकें ही तो पुस्तकालय की शान है, जो विद्यार्थियों के जीवन में विशेष भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं, जो उसके एकांत के समय को सरसता से भर देती हैं। मनुष्य अकेले होते हुए भी पुस्तक के प्रत्येक शब्द से जुड़ जाता है, प्रत्येक घटना से, व्यक्ति विशेष से, दृश्यों से जुड़कर स्वयं को पूर्ण सा मानने लगता है। सच्चे मित्र की तरह पुस्तकें मनुष्य के तनावों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

4.आत्मनिर्भरता 
संकेत- बिंदु :  ● आत्मनिर्भरता का अर्थ          स्वतंत्रता      ● देश में आत्मनिर्भरता 
                       विकास में सहायक 
 आत्मनिर्भरता सफलता की कुंजी है। कोई भी देश, राज्य, समाज, परिवार या व्यक्ति अपना विकास तभी कर सकता है जब वह आत्मनिर्भर होगा। आत्मनिर्भरता का अर्थ है-अपने ऊपर निर्भर होना। शिक्षा और कर्म आत्मनिर्भरता के मूल आधार है।  शिक्षा से विवेकशोलता आती है और कर्म से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। आत्मनिर्भर होने से स्वाभिमान विकसित होता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति सच्चा सुख प्राप्त करता है और उसे दूसरों से सहायता नहीं माँगनी पड़ती। आत्मनिर्भर होने परतंत्र व्यक्ति को अपनी आत्मा को दबाना पड़ता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति परिश्रम करके आत्मनिर्भर होना चाहिए। आधारभूत संरचनाओं का विकास, आय के नियमित साधन और स्वशासन किसी भी देश के लिए आत्मनिर्भरता के मूलतत्व है। शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था करना शासन का दायित्व है। आर्थिक विकास के लिए देशो संसाधनों का विकास करना आवश्यक होता है। हमारे देश का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो आत्मनिर्भर नहीं है। धर्म-परिवर्तन का मामला भी वैसे क्षेत्रों में नजर आता है, जहाँ लोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं और अशिक्षित हैं देश में महिलाओं की स्थिति कमजोर है और वे अशिक्षित है। हमारा देश तब तक विकसित नहीं हो सकता, जब तक देश का प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भर नहीं होगा और विकास में समान रूप से भागीदार नहीं बनेगा। 

5.विज्ञापन और हमारा जीवन 
संकेत-बिंदु : ●  विज्ञापन का उद्देश्य       दायित्व          विज्ञापनों के विविध प्रकार   
                    विज्ञापनों की भूमिका     ● विज्ञापनों का सामाजिक 
किसी भी वस्तु , व्यक्ति या विचार के प्रचार - प्रसार को विज्ञापन कहते हैं । विज्ञापन का उद्देश्य श्रोता , पाठक या उपभोक्ता के मन पर गहरी छाप छोड़ना है ताकि वह उससे प्रभावित हो सकें विज्ञापनों के अनेक प्रकार होते हैं । सामाजिक विज्ञापनों के अंतर्गत दहेज, नशा, परिवार नियोजन आदि संदेश आते हैं । विभिन्न कार्यक्रमों, रैलियों, आंदोलनों के विज्ञापन भी इसके अंतर्गत आते हैं। कुछ विज्ञापन विवाह, नौकरी, संपत्ति की खरीद बेच संबंधी आते हैं। सबसे लोकप्रिय और लुभावने विज्ञापन होते हैं व्यापारिक विज्ञापन उद्योगपति अपने माल को दूर-दूर तक बेचने के लिए अत्यंत आकर्षक विज्ञापनों का प्रयोग करते हैं । विज्ञापन खरीददारी में अहम् भूमिका निभाते हैं । ग्राहक प्रसिद्ध वस्तुओं के विज्ञापन को देख व सुनकर उन्हें खरीदता है। चाहे अन्य श्रेष्ठ उत्पादन वहाँ मौजूद क्यों न हो । विज्ञापन प्रभावकारी होते हैं इसलिए उनका सामाजिक दायित्व भी बहुत बड़ा होता है। प्राय: माल बेचने के लिए ग्रामक विज्ञापन दिए जाते हैं। गलत व दूषित माल बेचने के लिए भी आकर्षक सितारों का उपयोग किया जाता है । विज्ञापनों में समाज को प्रभावित करने की अद्भुत शक्ति है । ये सरकार, व्यापार तथा समाज के लिए वरदान है परंतु गलत हाथों में पड़कर इसका दुरुपयोग भी हो सकता है । इस दुरुपयोग से बचा जाना चाहिए । 
 
6.पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं 
संकेत-बिंदु : ● पराधान का अर्थ          स्वतंत्रता का महत्त्व    पराधीनता का कलक         
                     ● पराधीनता के प्रकारा 
गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो कुछ भी लिखा उसके पीछे गहरा चिंतन एव अनुभूति थी । उनकी यह उक्ति- 'पराधीन सपनेहु सुख नाही' अर्थात् पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख प्राप्त नहीं होता, जीवन की कसौटी पर खरी उतरती है । पराधीनता नरक के समान है। पराधीन के लिए दुख-सुख में कोई अंतर नहीं होती। वह पशु समान जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाता है । लोकमान्य तिलक ने कहा था- 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।' मनुष्य हा क्या प्रत्येक प्राणी स्वतंत्र रहना चाहता। है । जंजीरों से बंधा-पशु और पिंजड़े में बंद पक्षी स्वतंत्र होने के लिए सदैव छटपटाते रहते हैं । इतिहास साक्षी है कि जब-जब किसी शक्तिशाली राष्ट्र ने अन्य राष्ट्रों को गुलाम बनाया तो वहां की जनता स्वतंत्रता के लिए छटपटा उठी और अपने प्राणों का मूल्य चुकाकर भी इसे प्राप्त किया तथा इसे लेकर रहे स्वतंत्रता का अर्थ अपनी शक्तियों का उपयोग आत्मोन्नति एवं मानव-कल्याण के लिए करने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना है, न कि मनमाने ढंग से निर्बल को कष्ट पहुंचाना एवं गलत ढंग से स्वार्थ पूर्ति हेतु धन आदि इकट्ठा करना। पराधीनता मनुष्य के लिए अभिशाप है। इसमें मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है । उसमें विचारों की स्वतंत्रता नहीं होती, आत्मोन्नति की ललक नहीं होती, उसकी अपनी इच्छाओं का कोई महत्त्व नहीं होता ऐसा व्यक्ति आलसी हो जाता है। उसकी मानसिक सोच कुंठित हो जाती है। उसकी खुशी दुख में बदल पराधीनता उसे विकास के सभी सुखों से वंचित कर देती है। वास्तव में ईश्वर ने सभी को स्वतंत्र उत्पन्न किया है और वह स्वतंत्र हो जीना चाहता है। 

7. नर हो न निराश करो मन को 
संकेत बिंदु : • निराश न होने की प्रेरणा        हिम्मत और शक्ति आवश्यक         • निराशा से जूझना 
                   • कर्म करके निराशा समाप्त करना । 
' नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो।' जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं सुख - दुःख का क्रम रहता है । सफलता और असफलता आती-जाती रहती है पर किसी एक घटना को याद कर निराश नहीं होना चाहिए । हमेशा अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। संघर्ष मानव जीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना जीवन के अस्तित्व चलता को बचाना कठिन है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने भी कहा है- " कर्म के बिना किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। स्वयं मैं भी इससे वंचित नहीं हूँ, सफलता और असफलता जीवन के आवश्यक अंग है। असफलताओं को जीवन का अंग मानकर अपने कार्य में जो लगा रहता है , सफलता उसे ही मिलती है। निराश होकर बैठ जाने वाले कभी सफल नहीं हो पाते। निराशा तो एक ऐसी बीमारी है जो कैंसर और एड्स से भी खतरनाक है। जो व्यक्ति एक बार इसका शिकार हुआ उसका इलाज कोई नहीं कर सका। 'कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' इस सूक्ति को ध्यान में रखकर मनुष्य को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए । मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करना है। फल की इच्छा करना नहीं मनुष्य को हमेशा आशावादी होता चाहिए और अपने मन को कभी भी निराश नहीं होने देना चाहिए।

8. साँच बराबर तप नहीं ( सत्यमेव जयते ) 
संकेत-बिंदु : • सत्य का अभिप्राय             • आवश्यकता     • सत्य की भूमिका      
                    • सत्य का मार्ग कठिन         • सत्य की जीत 
कबीरदास के अनुसार "साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर याप। जाके हृदय साँच है- ताक हिरदय प्रभु आप।" अर्थात सत्य ही वह तपस्या है , जिसके बल से अपने आप में ही प्रभु और सभी प्रकार की सफलता को पाया जा सकता है । मन, वचन, कर्म, में एकरूपता ही सत्य है। संसार में सत्य की उसी प्रकार आवश्यकता है, जिस प्रकार अंधकार में दीपक की। जब तक सत्य छिपा रहता है, तब तक झूठ, पाखंड, छल-कपट, धोखा, रिश्वत और भ्रष्टाचार आदि दुर्गुण फैलते हैं। सत्य प्रकट होने पर झूठ के पाँव उखड़ जाते हैं । पाखंड का मंडा फूट जाता है। छल-कपट रूपी बादल फट जाता है। धोखा धुलकर बह जाता है। रिश्वत और भ्रष्टाचार समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप जीवन और समाज का सारा वातावरण उज्ज्वल हो जाता है ।पारस्परिक व्यवहार और सभी प्रकार के व्यापार का तो आधार ही सत्य है। राष्ट्रों का व्यवहार भी सत्य के सहारे चलता है। सभी धर्मों, जातियों और देश के सभी धर्म-ग्रंथ सत्य का प्रचार करते हैं । यहाँ तक कि बुरे से बुरा व्यक्ति भी यही चाहता है कि उसके सामने कोई झूठ न बोले । सत्यवादी के सामने कठिनाइयों अवश्य आती है। उनका देखते है कि झूठ बोलनेवाले छूट जाते हैं और सत्य बोलनेवाले यदी बना लिए जाते हैं । इससे दूसरे लोगों का सत्य के प्रति विश्वास हिल अधिक देर तक सूर्य आचरण करत किरणों के समान एक-न-एक दिन उजागर होकर अपने प्रकाश से सभी को चमत्कृत कर दिया करता है । सत्य का जाता है । सत्य को दबाया नहीं जा सकता। वह बादलों को फाड़कर प्रगट होनेवाली निश्चय ही कठिन होता है, किंतु दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से सत्य को सफल साधना कर पाना कठिन और असभव नहीं है। इतिहास ऐसे ही पुरुषों को मान्यता और अमरत्व प्रदान किया करता है , जो सत्य को जीवन का दृढ आधार बनाती है। इसलिए सत्य पर अटल रहने का भरसक अभ्यास करना और आदत डालनी चाहिए। अंतिम विजय निश्चित है।

9. नशा और आज का युवा 
संकेत-बिंदु:   नशे के प्रकार              कारण और दुष्परिणाम                  दूर रहने के उपाय । 
युवा वर्ग जोश और शक्ति का प्रतीक है । किसी भी देश की शक्ति युवा शक्ति पर ही निर्भर करती है । परंतु खेद का विषय है आज का युवा तेज़ी से नशे के मकड़जाल में फंसता चला जा रहा है । देश को उन्नति के शिखर पर ले जाने का उत्तरदायित्व युवाओं के कंधों पर है । ऐसे लड़खड़ाते कदमों से ये युवा देश को कहाँ ले जाएंगे , ये प्रश्न विचारणीय है । आज नशे का व्यापार तेजी से है । शराब, तंबाकू, ड्रग्स इत्यादि की ओर युवाओं के आकर्षण के कई कारण हैं । इनमें बुरी संगत, शौक, घरेलू कारणवश तनाव , निग जिज्ञासा इत्यादि प्रमुख हैं । एक बार नशा शुरू करने के बाद वे इसके आदी हो जाते हैं । नशे के कुप्रभाव के कारण उन्हें प्रारंभ में आनंद आता है और वे स्वयं को हल्का महसूस करते हैं परंतु बाद में नशा इनकी कमजोरी बन जाती है । इसके कुप्रभाव स्वरूप उन्हें कम उम्र में ही बीमारियाँ घेर लेती हैं । सोचने-समझने व निर्णय की क्षमता, आत्मविश्वास, आत्मनियंत्रण आदि कम होता जाता है । अतः इनसे दूर रखने में ही समझदारी है । इसके लिए बुरी संगत से बचें तथा अपने दिनचर्या में खेलकूद, व्यायाम और योगाभ्यास को शामिल करें ।

10. जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान 
संकेत बिंदु :   अभिप्राय     • सुख-शांति का मूलमंत्र       असंतोष से हानियाँ । 
मानव एक संवेदनशील सामाजिक प्राणी है।  उसकी समस्त परेशानियों का एक प्रमुख कारण है तृष्णा तृष्णा एक ऐसी इच्छा कभी तृप्त नहीं होती। वह सदैव अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में लगा रहता है, लेकिन इच्छाएँ कमी समाप्त नहीं होतीं। इच्छाओं का क्रम निरंतर चलता ही रहता है। वह संसार की हर वस्तु की लालसा में रहता है। जिस प्रकार एक प्यास की खोज में मरुस्थल में जा निकलता है और दूर चमकता रेत उसे बहता हुआ पानी दिखाई देता है, उसी प्रकार भी संसार के साधनों को ही असली सुख मान लेता है। संतोष मनुष्य की वह दशा है, जिसमें वह अपनी वर्तमान स्थिति में प्रसन्न है, तृप्त है। अधिक की कामना उसे नहीं है। संतोष जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है । इससे मन में ईर्ष्या, कुंठा, दूद्वेष, घृणा जैसे विकार नहीं उत्पन्न होते। इसके विपरीत असंतोष दुख, वैमनस्य, द्वेष आदि का जनक बनता है। वह इंसान की भावनाओं को संतुष्ट नहीं होने देता। जो कुछ जाता है, उससे खुश न रहकर वह व्यक्ति को और पाने के लिए बेचैन करता है। इसीलिए हमारे धर्म और दर्शन में संतोष को सबसे बहुमूल्य धन माना गया है, जिसे पाकर व्यक्ति को और कोई कामना नहीं रहती ।वह हर तनाव, परेशानी से मुक्त हो जाता है।

11. " सादा जीवन, उच्च विचार" 
संकेत-बिंदु : • सूक्ति से आशय                 • जीवन में सादा जीवन और उच्च विचारों का महत्त्व 
                    • मानवता का कल्याण ।
 ' सादा जीवन, उच्च विचार- यह सूक्ति जीवन के दो अलग तथ्यों रूपों को प्रदर्शित करने वाली होते हुए भी मूलतः एक ही सत्य को स्वीकार या उजागर करने वाली है। सादा जीवन उन्हीं का हुआ करता है, जो उच्च विचारशील व्यक्ति हुआ करते रहस्य पहचानकर जीवन के रहन-सहन, खान-पान, कार्य- पद्धति आदि को सादा बनाकर व्यवहार किया करते हैं । ऐसा करके वे संसार के लिए । आदर्श तो स्थापित करते ही हैं , लोगों के लिए आदरणीय एवं चिरस्मरणीय भी बन जाते हैं । यदि व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक कर्म और व्यवहार में सादगी को अपना लेता है तो उसके लिए जीवन सरल तथा तनावरहित हो जाता है । सादा जीवन जीने वाला व्यक्ति प्राय : ईर्ष्या-द्वेष जैसे मनोविकारों से भी बचा रहता है । संसार ने आज तक आध्यात्मिक, भौतिक, वैज्ञानिक सामाजिक क्षेत्र में जितनी और जिस प्रकार की भी प्रगति की है, वह सादे जीवन के साथ उच्च विचार की अवधारणा के साथ ही की है । जीवन में सादगी अपनाकर ही उच्च विचारों की पृष्ठभूमि तैयार की जाती है । विचारों की उच्चता पा लेने वाले व्यक्ति के पास सादगी स्वतः ही आ जाती है इसलिए उन्नति और सफलता के इच्छुक व्यक्ति को अपनी चेतना को हीनभावना और दूषित-विचारों से ग्रस्त नहीं होने देना चाहिए । सूक्ति में व्यक्त आदर्श को अपनाने में ही मानवता का सच्चा कल्याण निहित है । इसी से उदात्त मानवीय समाज की परिकल्पना की जा सकती है । 

12. गया वक़्त फिर हाथ नहीं आता 
संकेत बिंदु : • बीता समय फिर हाथ नहीं आता • समय सबसे बड़ा धन जीवन में सफलता का आधार समय • समय नष्ट करने वाले को समय ही नष्ट कर देता है । 
कहा जाता है कि जिस प्रकार मुँह से निकली बात, कमान से छूटा तीर, देह से निकली आत्मा, शाखा से टूटे पत्ते और बीता हुआ बचपन फिर नहीं लौटते, उसी प्रकार हाथों से रेत की तरह फिसलता समय अर्थात् गया हुआ वक़्त फिर कभी हाथ नहीं आता । वेदों में भी कहा गया है कि समय लगातार अग्रसर अश्व के समान है, जो एक बार निकल जाए तो लौटकर नहीं आता। समय तो जगत्-नियंता से भी अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि रूठे हुए प्रभु को तप, आराधना और भक्ति से पुनः मनाया जा सकता है, परंतु रूठे हुए कल का अर्थात् बीते हुए समयको बहुमूल्य निधि है, समय ही सबसे बड़ा घन है; अत : समय की करोड़ों उपाय करके भी वापस नहीं बुलाया जा सकता है । उसे प्रसन्न नहीं किया जा सकता है । समय मानव को धनी है, सिद्ध पुरुष है । समय जब द्वार पर दस्तक देता है तो होते हैं और जो दैव-दैव पुकारते रहते हैं , वे जीवन की मार से कब बचा है ? समय सत्य का पथ-प्रदर्शक लाभान्वित समय गति को पहचानकर कार्य करने वाला भाग्यशाली में जो उसकी आवाज़ पर कर्म करने वाले होते है में पिछड़ जाते हैं। समय की अवहेलना करने वाल है। समय की पाबंदी ही सफलता की कुंजी है। बस का काम आज निपटाना ही यशस्वी बनने का साधन है। समय को नष्ट करने वालों को एक दिन समय हो नष्ट कर देता है; क्योंकि गया हुआ वक़्त फिर हाथ नहीं आता।

13. विपति कसौटी जे कसै, ते ही साँचे मीत/सच्चा मित्र 

संकेत-बिंदु : • मित्र को आवश्यकता     • सच्चे मित्र के गुण        • मित्रों का चुनाव । 
जीवन में सच्चा मित्र का मिलना ईश्वर का वरदान है । यह एक ऐसी नियामत है, जिसके अभाव में जीवन सूना और दुःखमय हो जाता है । व्यक्ति उदास और खोया-खोया रहता है। सच्चा मित्र जीवन में उत्साह और प्रदान नई चेतना प्रदान करने वाला, निष्पाप, निष्कपट और निःस्वार्थ व्यक्ति होता है , जो हृदय की गहराइयों और आपसे जुड़ जाता है । एक सच्चा मित्र जीवन में औषधि के समान होता है वह केवल सुख का साथी नहीं, बल्कि विपत्ति में भी सहायक और सहयोगी बनता है। वह व्यक्ति का शुभेच्छु और हितचितक होता है । वह स्वार्थ के शुद्र बंधनों से ऊपर उठकर मित्र को सही मार्ग दिखाता है। एक अनुभवी वैद्य की तरह मित्र के दुर्गुणों और बुराइयों को परखकर उनका उपचार करता है । सच्चा मित्र विपत्ति में धैर्यपूर्वक मित्र का साथ देकर उसे दुःखों से उबारता है । सुख के समय या धन-संपत्ति पास होने पर तो व्यक्ति के अनेक मित्र बन जाते हैं , किंतु संकट के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है । सच्चा मित्र जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग होता है। जीवन के उत्थान-पतन में मित्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है ; अतः मित्रों का चुनाव करते समय हमेशा सतर्कता बरतना आवश्यक है । छात्र जीवन में कई बार ऊपरी दिखावे के वशीभूत हो छात्र बिना सोचे-समझे मित्र बना लेते हैं और बाद में उन्हें इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है । मित्र बनाने से पहले उनके आचरण पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। मित्रता करने में कभी भी जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, बल्कि भली प्रकार परखकर ही मित्र बनाने चाहिए । 

14. समय का सदुपयोग  

संकेत-बिंदु:  • समय का महत्त्व     समय का सदुपयोग     समय-पालन की आवश्यकता । 

"समय और लहर किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं ।" समय का पहिया सदा घूमता रहता है। समय कभी रुकता नहीं है। जीवन में सब चीज़ों की क्षतिपूर्ति हो सकती है, पर समय की नहीं समय ऐसे लोगों को कभी क्षमा नहीं करता, जो उसका निरादर करते हैं और व्यर्थ में उसे बरबाद करते हैं। जो समय की कद्र नहीं करता, समय भी उसकी कद्र नहीं करता। जो व्यक्ति समय का सदुपयोग नहीं करते और अवसर पाकर चूक जाते हैं, वे बाद में पछताते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं। समय गंवाकर पश्चात्ताप करना मूर्खता है ; अतः उचित समय पर उचित कार्य करके उसका सदुपयोग करना चाहिए। एक बार गांधी जो से किसी ने पूछा कि जीवन की सफलता का श्रेय आप किसे देते हैं- शिक्षा, शक्ति अथवा धन को ? गांधी जी ने उत्तर दिया- " ये वस्तुएं जीवन को सफल बनाने में सहायक अवश्य हैं, परंतु सबसे महत्त्वपूर्ण है समय की परख। जिसने समय की परख करना सीख लिया, उसने जीने की कला सीख ली। "समय का सदुपयोग करने से जीवन में निश्चितता आती है । सभी कार्य सुचारु रूप से व्यवस्थित ढंग से होते हैं। व्यर्थ का तनाव व चिंता नहीं होती। छात्र जीवन वह समय है, जब पूरे जीवन को आधारशिला रखी जाती है; अतः छात्र जीवन में समय के महत्व को समझना और एक-एक क्षण का सही उपयोग करना आवश्यक है। इधर-उधर व्यर्थ समय बरबाद करने वाले छात्रों को सदैव असफलता का मुँह देखना पड़ता है।

15. टी० वी० रियल्टी शो का समाज पर प्रभाव 
संकेत-बिंदु:  
अर्थ         रियल्टी शो का आकर्षण            इसका प्रभाव 
रियल्टी शो टेलीविजन पर चल रहे ऐसे सीरियल कार्यक्रम को कहते हैं, जिसमें देश की जनता सीधे-सीधे कार्यक्रम का हिस्सा बनती है। उसमें कथा-कहानी की तरह काल्पनिक संबंध नहीं होते, बल्कि उस शो में वास्तविक लोग वास्तविक स्थितियों में भाग लेते हैं। संगीत, नृत्य, हास्य, प्रश्नोत्तरी, खतरों के खेल आदि ऐसे कार्यक्रम हैं, जो टेलीविजन पर बहुत लोकप्रिय हैं। लोग बढ़-चढ़कर इन कार्यक्रमों को देखते हैं। इनमें अधिकतर आम लोग ही भाग भी लेते हैं। इन कार्यक्रमों में इनाम के रूप में रुपये वाहन, आधुनिक यंत्र आदि मिलते हैं। 'सा रे गा मा पा', 'नच बलिए' , 'बिग बॉस', 'कौन बनेगा करोड़पति' आदि कई ऐसे रियल्टी शो हैं, जिनके कारण न जाने कितने ही गुमनाम कलाकारों को देशभर में फलने-फूलने का अवसर मिला। इन कार्यक्रमों के फलस्वरूप देश के गली-कूचों में कलाकारों के बीच कला और प्रतिभा का बल दिखाने की एक स्पर्धा-सी छिड़ गई हैं । यह अपने आप में एक शुभ संकेत है । 

16. मोबाइल फोन सुविधा या असुविधा 
संकेत-बिंदु : 
आवश्यक अंग         ढेरों सुविधाएँ          हानियाँ      उचित प्रयोग आवश्यक 
वर्तमान समय में मोबाइल फोन जीवन का अभिन्न हिस्सा बनकर रह गया है। इसके बिना जीवन सूना-सूना लगता है। आज के युग में हर व्यक्ति चाहे वो उच्च वर्ग का हो या निम्न वर्ग का, मोबाइल फोन जरूर रखता है। यह सभी के पास हो भी क्यों न ? इससे हम फोटोग्राफी कर सकते हैं, हिसाब-किताब लगा सकते हैं, संगीत सुन सकते हैं। अब यह केवल बातचीत का जरिया मात्र नहीं रह गया है, इसे इंटरनेट से जोड़कर आप कोई भी खबर पलक झपकते ही मोबाइल में देख सकते हैं। इससे प्राप्त सुविधाओं का कोई अंत नहीं। जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही इसके भी कुछ लाभ हैं तो कुछ नुकसान भी। इससे समय की बरबादी होती है, स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है यहाँ तक कि जान का खतरा भी हो सकता है। आजकल बच्चे इस पर कई तरह के गेम्स खेलते हैं, जिससे कुछ बच्चों को 'ब्लू वेल' गेम खेलते हुए अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा। इसलिए इसका सदुपयोग करें और जितनी आवश्यकता हो, उतना ही प्रयोग करें। कहीं ऐसा न हो कि इससे लाभ मिलने के स्थान पर हानि अधिक हो जाए। 

17. वृक्षारोपण का महत्त्व
संकेत-बिंदु:   वृक्षारोपण का अर्थ      वृक्षारोपण क्यों          हमारा दायित्व 
'वृक्षारोपण' शब्द वृक्ष + आरोपण दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है वृक्ष को आरोपित करना (लगाना)। अर्थात् पृथ्वी पर वृक्ष का लगाया जाना ही 'वृक्षारोपण' कहलाता है। इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि कहीं भी मिट्टी कुरेदकर बीज दबा देना या कोई पौधा लाकर लगा देना। सही मायनों में वृक्षारोपण का अर्थ है-उपयुक्त मिट्टी तथा हवा, पानी की उपलब्धता वाले स्थान पर सही मौसम में किसी पौधे या बीज को मिट्टी में लगाना (बोना)। किसी पौधे को लगा देने भर से ही हमारा वृक्षारोपण का दायित्व पूरा नहीं हो जाता है। उस पौधे के साथ आत्मीयता स्थापित करते हुए परिपक्व होने तक उसकी देख-रेख करना भी वृक्षारोपण का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। विकास प्रक्रिया के दौरान वनों की इतनी अंधाधुंध कटाई हुई है कि आज प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई है। प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएँ, नित नयी-नयी बीमारियों का प्रकोप आदि इसी का परिणाम हैं। इस प्राकृतिक क्षतिपूर्ति के लिए आज अधिक से अधिक वृक्ष लगाना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बन गया है। मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, जल तथा भोजन की आपूर्ति पौधों से ही होती है। अतः यदि इस धरती पर जीवन उसी प्रकार अपना दायित्व मानकर चलना होगा, जिस प्रकार हम शरीर के पोषण के लिए भोजन तथा को, विशेष रूप से मानव-जीवन को बचाकर रखना है, तो हम सभी को वृक्षारोपण ( वृक्षों को लगाना) उसी प्रकार अपना दायित्व मानकर चलना होगा, जिस प्रकार हम शरीर के पोषण के लिए भोजन तथा जल की व्यवस्था करके रखते हैं । 

18. शांति किसे प्रिय नहीं है । 
संकेत-बिंदु:   भारत : एक शांतिप्रिय देश           अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म 
                       शांति से बढ़कर कोई हथियार नहीं  
 इस बात से कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि भारत एक शांतिप्रिय देश है। इस देश की जड़ों में सत्य, अहिंसा, त्याग और प्रेम की भावनाएँ भरी हुई हैं। इस देश ने स्वयं को ही नहीं, सारे विश्व को प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाया है। महात्मा गौतम बुद्ध ने सत्य और अहिंसा का जो संदेश दिया, उससे न केवल भारत, बल्कि चीन, जापान, कोरिया, वर्मा, श्रीलंका, तिब्बत जैसे देशों के लोग भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हो गए। विश्व के अन्य परतंत्र देशों ने जहाँ अपनी आज़ादी रक्त बहाकर प्राप्त की, वहीं भारत ने अपनी आज़ादी महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसा के बल पर प्राप्त की। भारत की शांतिप्रियता का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता। हमारे ऋषि-मुनियों ने तो 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का ही संदेश दिया है और हमने भी यही कामना की है कि सबका कल्याण हो तथा सब सुखी हों । 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कामना करने वाला देश शांतिप्रियता की मिसाल है, पर हमारी शांति की भावना को हमारी कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। हम अपनी किसी से शत्रुता नहीं रखना चाहते, पर यदि कोई जान-बूझकर हमसे टकराता है, तो हम उसे चूर-चूर करने का हौसला भी रखते हैं । वास्तव में शक्ति की चादर में लिपटी हुई शांति ही श्रेयस्कर होती है।

19. समाचार पत्र 
संकेत बिंदु :    • समाचार से लाभ     • समाचार पत्र का महत्त्व         •प्रचार का सशक्त माध्यम 
समाचार-पत्र वह मुद्रित पत्र है, जिसके द्वारा देश-विदेश की घटनाओं की जानकारी मिलती है। यह बहु शृंखला है जो हमें विश्व के साथ जोड़ती है। यह जन-जागरण का सशक्त माध्यम है। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब आवश्यकता पड़ी, तब-तब समाचार पत्रों ने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई । पिछले 68 वर्षों में पर्यावरण प्रदूषण, आरक्षण, नारी सुरक्षा, दहेज प्रथा, परिवार नियोजन इत्यादि सामाजिक समस्याओं को जितना समाचार-पत्रों ने उजागर किया है, इतना किसी अन्य ने नहीं। यह ज्ञानवृद्धि व शिक्षा का साधन है। इससे देश-विदेश साथ-साथ ज्ञानवर्धक लेख भी पढ़ने को मिलते हैं। खान-पान संबंधी मौसम की जानकारी, शिक्षा के समाचारों धर्म, सेल, व्यापार, नौकरी विज्ञान, आदि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो इससे अछूता हो। मनोरंजन के क्षेत्र में यह और भी आगे बढ़ गया है। बच्चों के लिए कहानियाँ, पहेलियाँ, चित्रकारी, मानसिक व्यायाम की सामग्री इत्यादि इसमें पर्याप्त मात्रा में छपती है। 

20. करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान 
संकेत बिंदु :    • अभ्यास का अर्थ             • महत्त्व               • सफलता का सर्वोत्तम साधन । 
यह पंक्ति वृंद कवि के एक दोहे की है । अभ्यास का अर्थ है, ' निरंतर और बार-बार प्रयत्न तब तक प्रयास करते रहना, जब तक इच्छित कार्य में सफलता न मिल जाए । निरंतर अभ्यास से जो मूर्ख हैं, वे भी सुजान अर्थात् विद्वान हो जाते हैं और जो सुजान होते हैं । वे अपनी कला में निपुण हो जाते हैं संसार में कोई व्यक्ति जन्म से ही विद्वान नहीं होता । प्रारम्भ में सभी अबोध होते हैं । अभ्यास ही उन्हें विद्वान बनाता है । निरंतर अभ्यास से ही व्यक्ति कुछ भी कर पाने में समर्थ होता है। शिशु गिर-गिरकर ही चलना सीखता है । सवार गिर-गिरकर ही थोड़े पर सवारी करना सीखता है। बिना अभ्यास के सिद्धि प्राप्त नहीं होती । उसे बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयत्न करना पड़ता है। अभ्यास आत्म-विश्वास का सर्वोत्तम साधन और सफलता की कुंजी है।

21. ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा खोए अथवा मधुर वाणी 
संकेत-बिंदु:  • वाणी व्यक्ति की पहचान     • मधुर वाणी औषधि के समान  
                    • कटु वाणी के बुरे प्रभाव 
मधुर वाणी में शक्ति वाणी व्यक्ति की पहचान करने का महत्त्वपूर्ण साधन है। जिस प्रकार कौए और कोयल की पहचान उनकी वाणी से ही हो पाती है, उसी प्रकार किसी व्यक्ति के आचार-व्यवहार तथा स्वभाव की परख उसकी वाणी द्वारा ही होती है। मीठों वाणी वास्तव में ऐसी औषधि है जिससे हम सभी को अपने वश में कर सकते हैं। जब हम मधुर वाणी को सुनते हैं तो हमारा चित्त प्रसन्न हो उठता है। हम उसकी हर बात मानने के लिए तैयार हो जाते हैं। सज्जन सर्वदा मधुर वाणी का ही प्रयोग करते हैं जबकि दुर्जनों की वाणी कटु तथा कर्कश होती है। मीठी वाणी बिगड़े कार्य बना सकती है, शत्रु को मित्र बना सकती है तथा निराश व्यक्तियों में आशा और उत्साह का संचार कर सकती है। इसके विपरीत कटु वाणी बने बनाए कार्य को बिगाड़ देती है तथा मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। कड़वी बात हृदय में शूल की भाँति चुभती है। कड़वे वचन कभी-कभी युद्ध का कारण भी बन जाते हैं। इतिहास गवाह है कि द्रौपदी के कटु वचन महाभारत के संग्राम का कारण बने। अतः व्यक्ति को कुछ बोलने से पहले अपने वचनों को हृदय के तराजू पर तौल लेना चाहिए । जिस व्यक्ति ने अपनी वाणी को वश में करके मधुर वचनों का प्रयोग करना सीख लिया, मानो उसने सब कुछ पा लिया। मृदुभाषी अपनी वाणी से सबको अपने वश में कर लेता है। मधुर वाणी अमृत के समान कार्य करती है। महाकवि तुलसीदास जी ने भी कहा है- वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर।

22. विपति कसौटी जे कसै, ते ही साँचे मीत / सच्चा मित्र 
संकेत-बिंदु : • मित्र को आवश्यकता     • सच्चे मित्र के गुण       • मित्रों का चुनाव 
नई सच्ची चेतना भावना से साथी नहीं, बल्कि जीवन में सच्चा मित्र का मिलना ईश्वर का वरदान है। यह एक ऐसी नियामत है, जिसके अभाव में जीवन सूना और दुःखमय हो जाता है। व्यक्ति उदास और खोया-खोया रहता है । सच्चा मित्र जीवन में उत्साह और प्रदान करने वाला, निष्पाप, निष्कपट और निःस्वार्थ व्यक्ति होता है, जो हृदय की गहराइयों और आपसे जुड़ जाता है। एक सच्चा मित्र जीवन में औषधि के समान होता है वह केवल सुख का विपत्ति में भी सहायक और सहयोगी बनता है। वह व्यक्ति का शुभेच्छु और हितचितक होता है। वह स्वार्थ के शुद्र बंधनों से ऊपर उठकर मित्र को सही मार्ग दिखाता है। एक अनुभवी वैद्य की तरह मित्र के दुर्गुणों और बुराइयों को परखकर उनका उपचार करता है । सच्चा मित्र विपत्ति में धैर्यपूर्वक मित्र का साथ देकर उसे दुःखों से उबारता है। सुख के समय या धन-संपत्ति पास होने पर तो व्यक्ति के अनेक मित्र बन जाते हैं, किंतु संकट के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है। सच्चा मित्र जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग होता है । जीवन के उत्थान-पतन में मित्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है ; अतः मित्रों का चुनाव करते समय हमेशा सतर्कता बरतना आवश्यक है। छात्र जीवन में कई बार ऊपरी दिखावे के वशीभूत हो छात्र बिना सोचे-समझे मित्र बना लेते हैं और बाद में उन्हें इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है । मित्र बनाने से पहले उनके आचरण पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। मित्रता करने में कभी भी जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, बल्कि भली प्रकार परखकर ही मित्र बनाने चाहिए। 

23. स्वयं से प्रेम करो 
संकेत बिंदु:  • प्रेम का स्वरूप     • स्वयं को प्रेम तक पहुँचाने का मार्ग      • स्वयं के दोष  
प्रत्येक मनुष्य के अंदर परमात्मा का वास है और परमात्मा प्रेम का स्वरूप है। प्रेम ही परमात्मा है और परमात्मा ही प्रेम है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं प्रेम करता है। अगर हम स्वयं से प्रेम करेंगे तो दूसरे व्यक्ति भी हम से प्रेम करेंगे। प्रेम में विश्वास होता है, जिसके माध्यम से हम दिलों को जीत लेते हैं। प्रेम के कई रूप होते हैं। प्रेम जीवन जीने की कला है। प्रेम व्यक्ति को शांत स्वभाव व भाईचारे से जीना सिखाता है। अगर हम स्वयं से प्रेम करेंगे तो अपने जीवन को सुखद बनाकर दूसरों को भी प्रेम से सिंचित करेंगे। व्यक्ति को अपने क्रोध पर भी नियंत्रण करना चाहिए। जब वह क्रोध, हिंसा, मोह, माया जैसे स्वभाव को दूर करेगा, तो वह निश्चय ही प्रेम के पथ पर चलेगा और न केवल स्वयं से, बल्कि सबसे प्रेम ही करेगा। प्रेम तो सबको जोड़ता है। इसलिए जब हम स्वयं से प्रेम करेंगे तो सबकी आत्मा से जुड़ जाएँगे। 

24. पश्चिमी सभ्यता का बढ़ता प्रभाव 
संकेत बिंदु: • प्राचीन काल से संबंध    •  पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव   •  पश्चिमी सभ्यता पर रोक । 
आज पश्चिमी सभ्यता का बढ़ता प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन भारत की प्राचीन सभ्यता में केवल शरीर पुष्टि व आवश्यकताओं की पूर्ति का ही उद्देश्य नहीं था, बल्कि उसमें उत्कृष्ट संस्कार, भावनाएँ व अध्यात्म का भी समावेश था। निजी स्वार्थ के अलावा पड़ोस में रहने वाले व्यक्तियों तथा समाज व देश के प्रति जिम्मेदारियों व कर्तव्यों का पालन करना भी परम आवश्यक है। दीन-दुखियों की सेवा करना भी धर्म समझा जाता है, परंतु पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से मनुष्य अपने संस्कार छोड़कर लोभ में पड़ रहा है। आज केवल स्वार्थ पूर्ति तथा धन बटोरने की होड़ लगी हुई है। वास्तव में, पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित फैशन, टेलीविज़न इत्यादि के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया जा रहा है। यदि समय रहते पाश्चात्य सभ्यता के अंधे अनुकरण पर अंकुश न लगाया गया, तो देश का भविष्य अंधकारमय हो सकता है ।

25. जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि 
संकेत बिंदु:  •  एक विचारणीय विषय     •  प्रकृति से संबंध     • दृष्टि और सृष्टि का एकरूप  
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि यह एक अतिसुंदर विचार है। जब हम प्रकृति की सुंदरता को निहारते हैं, तो उसकी सुंदरता मन को भा जाती है। ठीक उसी तरह, हम अपने जीवन को जिस दृष्टि से देखेंगे, वह उसी प्रकार से हमें दिखेगा। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो मन में कुछ तथा सामने कुछ और दिखाते हैं। व्यक्ति अगर अपने मन को निर्मल रखे तथा अपने व्यवहार में शुद्धता लाए तो वह निश्चय ही सृष्टि को सुंदर रूप में देखेगा। व्यक्ति को अपने विचारों में शालीनता व शुद्धता लानी चाहिए तथा अपने सुंदर मन से सृष्टि को देखना चाहिए। हम अपने आस-पास के लोगों के बारे में जिस तरह से सोचेंगे, वैसा ही हमें लोगों से मिलेगा। यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो हमें सब वैसा ही दिखेगा। अर्थात जैसी दृष्टि-वैसी सृष्टि। हम जिस रंग के चश्मे को पहनकर सृष्टि को देखेंगे, हमें वैसी ही सृष्टि दिखाई देगी। इसलिए हमारी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए, तभी संपूर्ण सृष्टि हमें सुंदर दिखाई देगी।

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