सारांश :
इस कविता में कवि ने देश के रक्षक और सीमा पर पहरेदारों को देश की रक्षा व देश में आने वाले समय में नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है। देश को आज़ाद करवाने के लिए देश के कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। स्वाधीनता संग्राम में न जाने कितने ही लोगों का लहू बहा तथा कितनी ही घोर यातनाओं को सहकर हमारे देश भारत ने जो स्वतंत्रता प्राप्त की उसे हमें सांप्रदायिक एकता, मानव प्रेम, देश प्रेम तथा नैतिकता के बल पर सुरक्षित रखना है। कवि इस कविता को देश की एकता अखंडता के लिए समर्पित युवा पीढ़ी को जिन्हें अब देश की बागडोर अपने सबल हाथों में सँभालकर रखनी है, समर्पित करते हुए उन्हें सावधान करना चाहता है कि वे भविष्य में भी भारत की अखंडता का स्वर उच्च रखें ताकि कोई शत्रु इस ओर आँख उठाकर देखने का साहस न कर सके।
कविता की व्याख्या
1. आज जीत की रात -------------------------- पहरुए, सावधान रहना।।
व्याख्या : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से देश के पहरेदारों से कहते हैं कि देश के पहरेदारों! आज जीत की रात है। देश की रक्षा के लिए सावधान रहना। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद देश के कई बंद दरवाज़े खुल गए हैं। उसमें तुम स्थिर दीपक के समान गतिहीन होकर प्रकाश करते रहना। हमें मिली स्वतंत्रता नए स्वर्ग को पाने की पहली मंजिल है। लोगों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किया आंदोलन बिलकुल उस सुनहरे अवसर के समान है जो रत्न से भरी जल तरंग के जैसा है। अभी तो हमें जीवन के विकास व समृद्धि और देश के पुनः निर्माण अर्थात नवनिर्माण के लिए बहुत कुछ करना है। पराधीन भारत को गुलामी के कारण बहुत हानि उतनी पड़ी है परंतु आज़ादी के बाद भी वह की काली छाया बनी हुई है अर्थात आज भी कई बड़ी समस्याएँ हैं जिनका समय रहते हल नहीं निकला गया तो वे हमारे देश को कमज़ोर को बना देंगी। इस नए युग रूपी नाव की पतवार को लेकर तुम सागर के समान महान बनकर इस देश की बड़ी सावधानी से रक्षा करो। पहरेदारों, देश के रक्षकों तुम सावधान रहना।
2. विषम शृंखलाएँ टूटी हैं ----------------------------पहरुए सावधान रहना।।
व्याख्या : गुलाम भारत के समय जो भीषण परिस्थितियाँ बाधा बनी हुई थीं, इस समय वो दूर हो चुकी हैं और अब हम सभी दिशाओं में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं। लंबे समय से बँधी हुई हवाएँ अब खुल कर प्रचंड होकर चलने लगी हैं। हमारी सीमाएँ जो हमसे ले ली गई यानी जिन्हें हमसे छीन लिया गया आज वो प्रश्नचिह्न बनकर हमारे सामने खड़ी हैं। अंग्रेजों द्वारा बनाई प्रतिमाएँ आज टूट गई हैं और उनकी जगह नए प्रतीक बन रहे हैं। अब हम प्रगतिपथ पर आगे बढ़ रहे हैं, इस प्रगति के तूफान को तुम चंद्रमा की तरह प्रकाशमान होकर आगे बढ़ाओ। देश के रक्षको सावधान रहकर देश की रक्षा करो।
3. ऊँची हुई मशाल हमारी ------------------------------पहरुए, सावधान रहना।।कवि कहते हैं
व्याख्या : कवि कहते हैं कि आज़ादी तो पा ली हमने परंतु अब हमें कठिन रास्ते पर चलना है। अब हमें विकास की राह पर आगे बढ़ना है। रास्ता कठिन और अंधकार भरा है परंतु इस रास्ते पर चलने के लिए और आगे राह देखने के लिए हमने अपनी मशाल ऊँची कर दी है। भले ही हमारे देश से शत्रु चले गए हैं परंतु उनकी छाया, उनकी परछाई से हमें सावधान रहना है, सतर्क रहना है। शत्रु के दिए शोषण हमारा देश और समाज मृत जीवन जी रहा है परंतु अब हमें अभावग्रस्त व कमज़ोर देश में, समाज में प्रगति करनी है। देश की जनसमूह रूपी गंगा में नया उत्साह उत्पन्न हुआ है अर्थात लोगों में एक नया जोश भर गया है। देश के पहरेदारों तुम इस जनसमुदाय रूपी गंगा में लहर बनकर ऐसे अच्छी तरह प्रवाह दो, एक गति दो। देश के पहरेदारों! देश के रक्षकों! सावधानी से देश की सुरक्षा करो।
अभ्यास प्रश्न :
* निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
प्रश्न 1- 'पहरुए सावधान रहना' कविता के रचियता का नाम बताइए।
उत्तर- 'पहरुए सावधान रहना' कविता 'गिरिजाकुमार माथुर' द्वारा रचित है।
प्रश्न 2 - इस कविता में कवि किससे सावधान रहने को कह रहा है ?
उत्तर- कवि देश के शत्रुओं और भीतरी समस्यों से सावधान रहने को कह रहा है।
प्रश्न 3 - आपके विचार से यह कविता कब लिखी गई होगी ?
उत्तर- हमारे विचार से यह कविता स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लिखी गई है।
प्रश्न 4- इस कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर- इस कविता के माध्यम कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने देश की सांप्रदायिक एकता, मानव प्रेम, देशप्रेम और नैतिकता को सदा बनाए रखना है। देश को प्रगति पथ पर आगे ले जाने के लिए सबको साथ मिलकर चलना होगा। देश ने यह आज़ादी बहुत बलिदान देकर पाई है। इन बलिदानों बहुमूल्य समझते हुए ज़रूरत पड़ने पर हमें भी देश के लिए कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना चाहिए। देश के लोगों को सावधान रहते हुए अपने देश की रक्षा करनी है।
प्रश्न 5- विषम शृंखला टूटने से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- पराधीनता के समय जो भीषण परिस्थितियाँ हमारी राह में, हमारे विकास में बाधा बनी हुई थीं, आज़ादी मिलने के बाद वे बाधा रूपी जंजीरें टूट चुकी हैं। अब हमारा देश हर दिशा में विकास करने को आगे बढ़ने को तैयार है। गुलामी के कारण देश का जो विकास रुक गया था अब पूरी गति से देश का स्वतंत्र विकास होगा।
प्रश्न 6- 'शत्रु हट गए, लेकिन उसकी छायाओं का डर है'- इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इन पंक्तियों का यह अर्थ है कि आज़ादी प्राप्त करने के बाद देश शत्रुओं से तो मुक्त हो गया है परंतु उनकी छाया के रूप में साम्प्रदायिकता, जाति के नाम पर भेदभाव आदि देश की समस्याएँ कभी सर उठा सकती हैं और देश को कमज़ोर कर सकती हैं।
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