HINDI BLOG : Class 9 Lesson Dharm Ki Aad / पाठ धर्म की आड़

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Saturday, 5 February 2022

Class 9 Lesson Dharm Ki Aad / पाठ धर्म की आड़

 पाठ पर आधारित प्रश्न-उत्तर 
प्रश्न1- धर्म की आड़ में किस प्रकार के प्रपंच रचे जा रहे हैं ?  
उत्तर- धर्म के ठेकेदार और मठाधीश धर्म के नाम पर साधारण लोगों को मूर्ख बनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। धर्म और ईमान की दुहाई देकर लोगों को ठगना ही उनका पेशा बन गया है। धार्मिक अनुष्ठान करवाकर धन एकत्रित कर रहे हैं। इन लोगों ने प्रपचों का ऐसा जाल बिछा रखा है कि एक साधारण गरीब आदमी उस जाल से निकलने की हिम्मत नहीं कर पाता क्योंकि उसे धर्म के नाम पर डराकर मूर्ख बनाया जा रहा है। 
2- रमुआ पासी और बुधू मियाँ का उदाहरण लेखक ने किस संदर्भ में दिया है ? 
उत्तर- रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ का उदाहरण देकर लेखक ने समाज के कुछ ऐसे लोगों की ओर संकेत किया है, जो धर्म के नाम पर काँप जाते हैं चाहे वे लोग धर्म को जाने या न जाने, ईमान का अर्थ उन्हें समझ आए या नहीं, पर उनके धर्म के विरुद्ध यदि कोई एक शब्द भी कहे तो फिर बरस पड़ते हैं। 3- रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ किस भाव को प्रदर्शित करते हैं ? 
उत्तर- ये दोनों विभिन्न धर्मों की भावनाओं को प्रदर्शित करते हैं। ये दोनों मुसलमान और हिंदू के नाम पर भावुक हो उठते हैं और एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार जाते हैं । वास्तव में ये अपने-अपने धर्म को जानते तक नहीं। 
4- 'लकीर पीटते रहना' से लेखक का क्या तात्पर्य है ? 
उत्तर- लकीर पीटते रहने से लेखक का यह तात्पर्य है कि एक ही ढरे पर चलते रहना; किसी भी बदलाव को स्वीकार न करना। गरीब साधारण व्यक्ति बेचारा धर्म के ठेकेदारों द्वारा मूर्ख बनाया जाता है, लूटा जाता है, पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि इसके खिलाफ़ आवाज उठाए। वह धर्म के तत्वों को नहीं जानता। लकीर पीटते रहना को ही अपना धर्म समझता है। 
5- धर्म का सही आचरण क्या है ? 
उत्तर- सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलना ही सही आचरण कहलाता है। मानवता का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म कहा गया है। सत्य के मार्ग पर चलना, सदाचार का पालन करना और मानव सेवा करना ही धर्म का सही स्वरूप कहा गया है।  
6- नास्तिक और ला-मजहब लोग लेखक की दृष्टि में क्यों सही है ?
उत्तर- नास्तिक और ला-मराहब लोग लेखक इसलिए सही हैं क्योंकि वे मंत्र, नमाज़, पूजा-पाठ न करके सदाचार का पालन करते हैं। धर्म का झूठा नाटक न करके मानव- मात्र की सेवा करते हैं। ऐसे ही लोगों का इश्वर द्वारा पसंद किया जाता है। 
7- धर्म और ईमान के नाम पर लोगों को किस प्रकार मूर्ख बनाया जा रहा है ? 
उत्तर- धर्म और ईमान के नाम पर ऐसा घिनौना व्यापार चल रहा है कि धर्म के ठेकेदार साधारण को मूर्ख बनाकर संप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। वे लोग एक-दूसरे को उनके धर्म के विरुद्ध भड़काकर उत्पात मचवाते हैं और अपना वर्चस्व बनाए रखते हैं। वे केवल अपनी गद्दों को सुरक्षित रखना चाहते हैं। 
8- गरीब और अधिक गरीब कैसे हो रहे हैं ? 'धर्म की आड़' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए । 
उत्तर- गरीब और साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए  तक दे देना वाजिब हैं। धर्म के ठेकेदार ऐसे लोगों को मूर्ख बनाकर लूटने का प्रयास करते रहते हैं और वे बेचारे लुटते चले जाते है। धर्म के नाम पर इन्हें मूर्ख बनाया जाता है और मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं।
9- ईश्वर का ईश्वरत्व कैसे कायम रह सकता है। 'धर्म की आड़' पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए। 
उत्तर- लेखक कहते हैं कि यह आवश्यक नहीं कि पाँचों वक्त की नमाज, पूजा-पाठ और गायत्री मंत्र के जाप से ही ईश्वर का ईश्वरत्व कायम रहेगा। यदि हम समार्ग पर चलते हैं, सदाचार का पालन करते हैं , मानव-मात्र की सेवा करते हैं, तो ईश्वर का ईश्वरत्व  रहता है। क्योंकि- 'ईश्वर उनकी सहायता करते हैं जो मानव मात्र की सहायता करता है।' 
10- 'नास्तिक' और 'आस्तिक' में से लेखक ने किसे श्रेष्ठ बताया है ? 
उत्तर- लेखक ने उस नास्तिक व्यक्ति को श्रेष्ठ बताया है जो धर्म का आडंबर नहीं करता। पूजा-पाठ, नमाज, गायत्री मंत्र का जाप नहीं करता मगर सदाचार का पालन करता है। वह बेईमान नहीं है। मानवता की सेवा करता है। यह सब करते हुए यदि वह नास्तिक कहलाए, तो भी ईश्वर को इसमें आपत्ति नहीं है। इसके विपरीत धर्म के नाम पर पूजा-पाठ करके लोगों को ठगने वालों से ईश्वर कभी प्रसन्न नहीं रहता। 
11- धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं ? 
उत्तर- अजॉँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न है। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात् यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुँचाने के लिए आजाद समझते हैं, तो इस धर्म को, अब आगे आने समय कदापि नहीं टिकने देगा।
12- चलते पुर्जे लोग धर्म के नाम पर किस प्रकार व्यापार करते हैं ? 
उत्तर- चलते-पुर्जे लोग मूर्ख लोगों का लाभ उठाते हैं। धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाना उनका पेशा बन गया है। अशिक्षित और भोली-भाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं। उनकी शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं। साधारण व्यक्ति धर्म के क्षेत्र में फैले अधविश्वास के कारण अपनी आवाज़ उठा नहीं पाता और चलते पुर्जे लोगों का वर्चस्व बना रहता है।जनता उनके द्वारा किए गए शोषण का शिकार बनती रहती है।  
13- 'देश में धर्म की धूम है' से लेखक का क्या आशय है ?
 उत्तर- 'देश में धर्म की धूम है' से लेखक का आशय यह है कि आजकल देश में धर्म के नाम पर खूब चर्चाएँ, सभाएँ, सम्मेलन आदि हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने धर्म को एक-दूसरे के धर्म से श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगा हुआ है। इस प्रकार देश में चारों ओर धार्मिक कट्टरता का वातावरण बन गया। 
14- 'धर्म और ईमान को जाने या न जाने' - लेखक ने किन लोगों के लिए और क्यों कहा है ? 
उत्तर- लेखक साधारण व्यक्तियों को धर्म का वास्तविक रहस्य जानने वाला नहीं मानता है। ऐसे लोग अपने धर्मगुरुओं को बातों को बिना विचार किए स्वीकार कर लेते हैं। वे उनके उकसाने पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। उनकी इस विचारहीनता के कारण धर्म के नाम पर उत्पात होने लग जाते हैं। 
15- लेखक धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए क्या सुझाव देता है ? 
उत्तर- लेखक का मानना है यदि हम धर्म और ईमान के नाम पर होने वाले उत्पातों को रोकना चाहते हैं तो हमें साहस और दृढ़ता के साथ स्वार्थी तत्वों को बेनकाब करना होगा। धर्म और उपासना के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं आने दी जाए और प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की पूजा-अर्चना करने में स्वतंत्र हो। कोई किसी के धार्मिक कार्यों में अड़चन न डाले। 
16- धर्म और ईमान के नाम पर कैसा व्यापार हो रहा है ? 
उत्तर- धर्म और ईमान के नाम पर बड़े-बड़े धर्माचार्य और मठाधीश अपना स्वार्थ सिद्ध करने और अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अपने अनुयायियों को दूसरे धर्म के विरुद्ध भड़काकर उत्पात करा देते हैं, जिससे उनकी गद्दी सुरक्षित रहे और उनकी मनमानी चलती रहे। 
17- लेखक गांधी जी से क्या सीखने के लिए कहता है ? 
उत्तर- लेखक चाहता है कि हम भी गांधी जी से यह सीखें कि हमें अपने जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करना है, जिससे हम एक अच्छा समाज बना सकें। ऐसे समाज में धर्म के नाम पर उत्पात नहीं होंगे तथा सब परस्पर मिल-जुलकर रहेंगे।
18- अच्छे आचरण वालों के लिए लेखक ने क्या कहा है ? 
उत्तर- यदि कोई नास्तिक या ला-मजहब है, परंतु उसके विचार ऊँचे व अच्छे हैं,. आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ सिद्धि के लिए उकसाना बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मजहब लोगों को अधिक प्यार करेगा और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके मनुष्यता को मानो पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो !  
19-  पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन में क्या अंतर है ? 'धर्म की आड़' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। 
उत्तर- पाश्चात्य देशों में धार्मिकता की भावना को अमीरी और गरीबों के तराजू में तोला जाता है। अमीर तथा गरीब दो अलग-अलग दल बन जाते हैं। अमीर लोग गरीब लोगों का शोषण करते हैं। धनी लोगों की आकाश से छूती अट्टालिकाएँ गरीबों की झोपड़ियों का मज़ाक उड़ाती हैं। गरीबों को लूटकर हो ये लोग अमीर बनते हैं। यह भयंकर अवस्था है। इसी के कारण साम्यवाद व बोल्शेविस्म आदि का पाश्चात्य देशों जन्म हुआ। 
20- धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है ? 
उत्तर- धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ विरोध होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक भारतवर्ष में नित्य प्रति बढ़ते जाने वाले झगड़े कम न होंगे। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को मन में जगाए। किसी दशा में भी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता कुचलने या छीनने का साधन न बने। धर्म के ठेकेदारों को अपनी उन दुकानों को बंद करना होगा, जिनमें बैठकर वे लोग गरीबों की भावनाओं से खिलवाड़ का व्यापार करते हैं यदि ऐसा हुआ तो धर्म और ईमान के नाम पर किया जाने वाला व्यापार बंद हो जाएगा। 
21- महात्मा गांधी ने धर्म का क्या स्वरूप बताया ?
उत्तर- महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र स्थान दिया है । वे एक पग भी धर्म के बिना चलने को तैयार नहीं थे। उनकी बात ग्रहण करने से पहले प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्मा जी के 'धर्म' का स्वरूप क्या है ? धर्म से महात्मा जी का मतलब धर्म ऊँचे और उदार तत्वों ही का हुआ करता है। ऊँचे और उदार तत्वों से अभिप्राय सदाचार और मानवता में है। उनके मानने में भला किसे एतराज हो सकता है। 
22- कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए ? 
उत्तर- स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचायों को स्थान दिया जाना स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हमें इसका फल भोगना ही पड़ेगा। धर्म के ठेकेदारों का वह व्यापार जिसके बल पर वे अशिक्षित और भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाते हैं, वह बंद होना चाहिए। मानवता ही सर्वोपरि धर्म है, इसी धारणा का प्रसार होना चाहिए। 
23- मूर्ख लोगों की शक्तियों का दुरुपयोग किस प्रकार किया जा रहा है ? 
उत्तर- हमाने देश में धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए करोड़ो आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। मूर्ख बेचार धर्म का दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोड़े से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। इस प्रकार का व्यापार बंद होने पर ही शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होगा। 
24- पाश्चात्य देशों में धनी लोगों की अट्टालिकाएँ किसका मजाक उड़ाती हैं ? 
उत्तर- पाश्चात्य देशों में धनी लोगों की अट्टालिकाएँ (बड़े-बड़े भवन, इमारतें) गरीबों की झोपड़ियों का मजाक उड़ाती है। गरीबों का खून चूसकर ही इनके महल खड़े किए जाते हैं। उनका सदैव यही प्रयास रहता है कि गरीब शोषित किया जा सके और उसके शोषण के बल पर वे आगे बढ़ते रहें।  पाश्चात्य देशों में धर्म के वर्ग भी धन के आधार पर घंटे हैं। वहाँ धन की मार है। धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है और फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए जोर दिया जाता है।

निबंधात्मक प्रश्न 
1- प्रस्तुत निबंध 'धर्म की आड़' का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- 'धर्म की आड़' निबंध के लेखक गणेशशंकर विद्यार्थी हैं। इस निबंध में लेखक ने धर्माचार्यों की स्वार्थ सिद्धि का पर्दाफाश किया है। ये लोग किस प्रकार समाज में एक धर्म के विरुद्ध दूसरे धर्मवालों को भड़काकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। धर्म की आड़ लेकर जनता को भड़काते हैं। लेखक का मानना है कि एक सामान्य व्यक्ति धर्म के रहस्य को नहीं समझ पाता। इसलिए उसके भोलेपन का लाभ तथाकथित धर्मगुरु उठाते हैं। वे उन्हें गुमराह कर दूसरे धर्मवालों से लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। लेखक ऐसे लोगों से बचकर मानव धर्म को अपनाने पर बल देता है । हम सुख-दुख में एक-दूसरे की सहायता करें। हमारा आचरण शुद्ध हो। हम किसी के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक न बनें। हम सब को अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की स्वतंत्रता हो। यही सच्चा धर्म है । 
2- अच्छे आदमी की पहचान क्या है ? धर्म की आड़ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पाठ में गणेशशंकर विद्यार्थी के विचार प्रकट हुए हैं। लेखक बताते हैं कि अच्छे आदमी की सही पहचान है उसका सदाचरण। जो व्यक्ति भला है, सबकी भलाई चाहता है, सबके कल्याण के लिए कर्म करता है वह अच्छा है।  इसके विपरीत जो धर्म के नाम पर संप्रदाय के नाम पर लोगों को आपस में लड़वाता है, उन्हें एक-दूसरे से अलग करता है, वह धार्मिक होते हुए भी उत्पाती है, मानवता का विरोधी है। लेखक के शब्दों में ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे लामजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं और जो मूखों को किसी स्वार्थसिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
3- "उबल पड़ने वाले आदमी का इसमें केवल यही दोष है कि वह कुछ सूझबूझ नहीं रखता और दूसरे लोग उसे देते हैं उधर ही जुत जाता है।" पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति से लेखक का यह आशय है कि कुछ लोग इतने सीधे होते हैं कि सदियों से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं परंपराओं की ही मानते चले जाते हैं। धर्म के ठेकेदार इस बात का लाभ उठाकर अपनी स्वार्थ सिद्ध करते चले जाते हैं। ऐसे सीधे लोगों में एक यहाँ दोष होता है कि अपनी सूझ-बूझ से काम नहीं लेते और एक ही लीक पर चलते हैं। धर्म में उनका इतना अधिक अंधविश्वास होता है कि उन्हें लगता है यदि वे धर्म के विरुद्ध जाएँगे या परंपराओं में कुछ भी फेर-बदल करेंगे तो उनका अनिष्ट अवश्य हो जाएगा। ये लोग धर्म के पाखंडों में इस प्रकार लिप्त हो जाते हैं कि किसी प्रकार के बदलाव को स्वीकार होना पाते। धार्मिक मान्यताओं में बदलाव न करने के कारण कुछ धर्म के ठेकेदारों के शोषण का शिकार बन जाते हैं । जिसने जिधर धकेल दिया, उधर ही हो जाते हैं। इनकी अपनी सूझ-बूझ न के बराबर होती है यदि कोई इनकी धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध बोले तो ये क्रोधित हो जाते हैं। लेखक कहते हैं इस प्रकार की परिस्थितियाँ हमारी स्वाधीनता के विरुद्ध है। हमें इनसे लड़ना ही होगा। 
4- "यहाँ बुद्धि का परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना, भिड़ाना।" 'धर्म की आड़' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर-  प्रस्तुत पंक्ति उन धर्माडंबरियों के लिए कही गई हैं जो साधारण लोगों की सूझ-बूझ को सामने नहीं आने देते। मूर्ख और साधारण लोग, जिन्हें अधिक सूझ-बूझ नहीं है, वे ऐसे धर्म ठेकेदारों के हाथ की कठपुतली बन जाते हैं। ये लोग धर्म के अंधविश्वासों में इस प्रकार लिप्त हो जाते हैं कि किसी भी प्रकार का बदलाव या परिवर्तन इन्हें मान्य नहीं। यदि इन्हें 'कूप-मंडूक' भी कहा जाए तो इस अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसी बात का लाभ उठाकर कुछ धनी लोग अपना बल बनाए रखते हैं और वर्चस्व कायम रखते हैं। धर्म के प्रति आस्था को इस प्रकार कूट-कूट कर भर देते हैं कि अपने धर्म के विरुद्ध कुछ भी सुनना इन्हें सहन नहीं होता। इन परिस्थितियों के फलस्वरूप ही तो उत्पातों और सांप्रदायिक दंगों का जन्म होता है। धन और धर्म के रखवाले ये बात भली प्रकार जानते हैं कि यदि इनके अंदर की मानवता जाग गई तो उनकी गद्दी अवश्य छीन जाएगी। धर्म, ईमान और ईश्वर के नाम की दुहाई देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। भोली-भाली जनता इनके मनसूबों को समझ नहीं पाती और इनके हाथों का खिलौना बन जाती है। समाज के समुचित विकास के लिए सीधे-साधे लोगों की बुद्धि पर पड़े पर्दों को हटाना होगा और धर्म के ठेकेदारों की अनुचित मनमानी को रोकना होगा।  
5-  साधारण मूर्ख व्यक्तियों की क्या दशा है और धूर्त उनकी इस दशा का क्या-क्या लाभ उठाते हैं ? 
उत्तर- साधारण मूर्ख व्यक्तियों की यह दशा है कि वे कुछ भी नहीं समझते-बूझते और दूसरे लोग उन्हें जिस दशा की ओर मोड़ते हैं उधर ही मुड़ जाते हैं। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरज़े , पढ़े-लिखे लोगों का, जो मूख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरूपयोग इसलिए कर रहे है कि ऐसा करने से इन्हीं जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना इन्हें बहुत आसान लगता है। आसान तो है ही, दूसरों को मूर्ख बनाओ और अपना उल्लू सीधा करो। पाश्चात्य देशों में देखा जाए तो और भी बुरा हाल है। वहाँ धनी लोगों के ऊँचे-ऊँचे महल गरीबों की झोपड़ियों का मजाक बनाते हैं। गरीबों की कमाई से ही वे लोग फलते-फूलते हैं और सदैव उनका यही प्रयास रहता है कि गरीब कभी अपनी आवाज न उठाए और वे लोग निरंतर उसका शोषण करते रहे। गरीब बेचारा चूसा जाता रहे और इनका बाल भी बांका न हो। यह भयंकर परिस्थियाँ हैं। इन्हीं के कारण साम्यवाद, बोल्शेविरम की उत्पत्ति हुई। हमारे अपने देश में साधारण लोगों की  बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है। बुद्धि पर परदा डालकर ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ पूर्ति के लोगों को लड़ाना-भिड़ाना ही इन धूर्त लोगो का मकसद बन गया है ।   
6- सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ? 'धर्म की आड़ पाठ के आधार पर बताएँ ?
उत्तर- समय परिवर्तनशील है। आज समय बदल चुका है। पूजा-पाठ, पाँच समय की नमाज़ या गायत्री मंत्र जपने का नाम धर्म नहीं है। लोग धर्म के पाखंडों की बजाय मानवता का श्रेष्ठ मानते है। आज के समय में शुद्ध आचरण और शिष्टाचार ही धर्म के चिह्न हैं। यदि आप दो घंटे बैठकर पूजा-पाठ करते हैं या पाँचों समय की नमाज़ पढ़ते हैं और फिर उसके बाद आपका बेईमानी का दौर शुरू होता है। आप सारा दिन बेईमानी करके लोगों को लूटते हैं और दूसरों को दुख पहुँचाने के लिए स्वयं को आज़ाद समझते हैं, तो इस धर्म को आगे आने वाला समय कदापि टिकने नहीं देगा। ये वास्तव में धर्म नहीं, धर्म के नाम पर लोगों का अंधविश्वास है। अब पूजा-पाठ को महत्व न देकर भलमनसाहत और अच्छाई देखी जाएगी। जो जितना अधिक भला मानस है, उसका धर्म उतना ही ऊँचा माना जाएगा। सबके कल्याण के लिए अपने आचरण को सुधारना होगा। यदि आचरण को सुधारा नहीं जाएगा तो नमाज, रोजे, पूजा-पाठ द्वारा  आप देश के अन्य लोगों की आजादी तो छीनेंगे ही, साथ-ही-साथ उत्पातों को भी जन्म मिलेगा। चाहे आप आस्तिक (ईश्वर को मानने वाला) न होकर नास्तिक (ईश्वर को न मानने वाला) हैं, तो भी यदि आपका आचरण अच्छा है तो आप सच्चा धर्म का पाठ पढ़ना जानते हैं। ईश्वर का ईश्वरत्व केवल आस्तिकों की आस्था का गुलाम नहीं है। ईश्वर का ईश्वरत्व तो मानव-मात्र की भलाई में है। समाज कल्याण में है। शुद्ध आचरण में है और सदाचार में है । 



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