HINDI BLOG : Extra Question Answer for Class 9 Hindi Sanchayan Book Chapter HAMID KHAN

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Friday, 11 February 2022

Extra Question Answer for Class 9 Hindi Sanchayan Book Chapter HAMID KHAN

हामिद खाँ 
लघु प्रश्न-उत्तर:
 1. 'हामिद खाँ' हिंदू-मुसलमान संबंधों के विषय में क्या चाहता था ? 
उत्तर- हामिद खाँ चाहता था कि हिंदुओं और मुसलमानों में आपसी प्रेम, सद्भाव, विश्वास और भाईचारा हो। हिंदू लोग मुसलमानों को अत्याचारी और अपवित्र न मानें उसे इस बात का दुःख था कि हिंदू लोग मुसलमानों को अत्याचारियों की संतान मानते हैं और उनके होटलों में खाना नहीं खाते। 
2. हामिद खाँ ने लेखक को पैसे किसलिए वापस किए ? 
उत्तर- हामिद खाँ चाहता था कि हिंदू-मुसलमान के बीच सद्भाव और बढ़े। इसलिए उसने पैसे न लेकर अपनी सद्भावना का परिचय दिया। उसने यह भी कहा कि वह उन पैसों से भारत के मुसलमानी होटल से पुलाव खाए। इससे भी उसकी सांप्रदायिक भावना का पता चलता है। 
3. लेखक पाकिस्तान किस उद्देश्य से गया था ? 
उत्तर- लेखक पाकिस्तान में स्थित तक्षशिला के खंडहरों को देखने हेतु वहाँ की यात्रा पर गया था। 
तक्षशिला के गाँव के बाजार का दृश्य कैसा था ? 
उत्तर- तक्षशिला के गाँव के बाजार में हस्तरेखाओं के थी, कहीं-कहीं सढ़े हुए चमड़े की बदबू भी। 
5. दुकान के कोने में खाट पर कौन लेटा हुआ था ? वह क्या कर रहा था ? 
उत्तर- खाट पर एक दढ़ियल बूढ़ा गर्द तकिए पर कोहनी टेके हुए दीन-दुनिया से बेखबर हुक्का पी रहा था। वह व्यक्ति हामिद खाँ का पिता था। समान तंग गलियाँ फैली थीं। हर जगह धुआँ, मच्छर और गंदगी लंबे कद के पठान मस्त चाल से चलते नजर आ रहे थे। 
6. हामिद खाँ को किस बात पर आश्चर्य हुआ और क्यों ? 
उत्तर- 'हामिद खाँ' को एक हिंदू द्वारा मुसलमानी होटल में खाना खाने पर आश्चर्य हुआ। पाकिस्तान के हिंदू मुसलमाना के यहाँ भोजन नहीं किया करते। इसलिए हामिद खाँ को आश्चर्य होना स्वाभाविक था।

निबंधात्मक प्रश्न-उत्तर 
1. हामिद खाँ का चरित्र-चित्रण कीजिए। 
उत्तर- हामिद खाँ की कहानी का नायक, तक्षशिला के होटल का मालिक, अतिथि सत्कार में निपुण अपने वृद्ध पिता की देखभाल करने वाला, एक ऐसा चरित्र है, जो कहानी के आदि से लेकर अंत तक बना रहता है। भूखे-प्यासे लेखक जब तक्षशिला पहुँचते हैं तो हामिद खाँ के होटल में चपाती, सालन और चावल खाकर तृप्ति का अनुभव करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हामिद खाँ अतिथि-सत्कार में निपुण है। हामिद खाँ अपने मुल्क में हिंदू-मुसलमानों में एकता देखना चाहते हैं इसलिए लेखक से भोजन के पैसे लेना अस्वीकार कर देते हैं। पश्तो भाषा के धनी हामिद खाँ इस कटु सत्य से भी परिचित हैं कि जालिमों की इस दुनिया में शैतान को भी लुक छिप कर चलना पड़ता है इसलिए ईमान और मुहब्बत के साथ मुसलमानी होटल में खाना खाने आए, हिंदुस्तानी मित्र को यह जता देना चाहते हैं कि परस्पर प्रेम, सद्भाव एवं भ्रातृत्व की भावना जैसे मानवीय मूल्य धार्मिक बंधन से परे होते हैं। 
2. तक्षशिला की गलियों को सँकरी और गंदी लिखकर लेखक क्या जताना चाहते हैं ? ग्रामीण इलाकों के धूल भरे वातावरण में भी सच्ची मित्रता का दृश्य किस प्रकार उभरकर सामने आया ?
उत्तर- तक्षशिला की गलियों का वर्णन करते हुए लेखक ने उन्हें हस्तरेखाओं के समान फैली गलियों कहा क्योंकि जहाँ तक उनकी नज़र जाती थी, धुआँ, मच्छर गंदगी और सड़े हुए चमड़े की बदबू की आती थी। उन्हीं धूल भरी, गंदी बदबूदार गलियों के एक छोर पर हामिद खाँ का होटल था। ग्रामीण इलाकों के धूल भरे वातावरण में भी हामिद खाँ और लेखक के विधर्मी होने पर भी गहरी दोस्ती उभरकर सामने आती है। लेखक ने रोटी, चावल और सालन का भरपूर आनंद लिया और हामिद खाँ ने भी बड़े प्रेम से अपने अतिथि का सत्कार किया लेखक द्वारा भोजन के लिए पैसे देने पर हामिद खाँ ने उसे मित्रता का वास्ता देते हुए पैसे लेने से इंकार कर दिया। इससे इस स्पष्ट होता है कि वातावरण कैसा भी हो, सच्ची मित्रता का स्वरूप उभरकर सामने अवश्य आता है। हामिद खाँ की आवाज़ उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी लेखक की स्मृति में उभरती रहती हैं। इसलिए तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़ते ही लेखक को मित्र हामिद खाँ की याद आई और वे ईश्वर से उसकी कुशलता की कामना करने लगे।
3. लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर- लेखक भारत में स्थित मालाबार के निवासी थे और हामिद खाँ पाकिस्तान का रहने वाला था। लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने पाकिस्तान गए थे। वहाँ की कड़कड़ाती धूप में भूख और प्यास से व्याकुल होकर रेलवे स्टेशन से पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल गए थे। वहीं चपातियों की सोंधी महक ने उन्हें हामिद खाँ के होटल में पहुँचा दिया। बातचीत करते हुए दोनों में मैत्री संबंध स्थापित हो गए। एक हिंदू का मुसलमानी होटल में खाना खाना, पुलाव और चाय की तारीफ़ करना, भारत में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे का नहीं के बराबर होना जैसी बातों ने हामिद को लेखक का प्रशंसक बना दिया। उसने रोटी, चावल और सालन परोसकर लेखक की मेहमाननवाज़ी की। इस प्रकार हामिद खाँ से लेखक का परिचय उसके होटल में खाना खाने के दौरान हुआ।
4. हामिद खाँ लेखक के मुल्क जाकर अपनी आँखों से क्या देखना चाहता था ?  
उत्तर- लेखक जब हामिद खाँ से मिलता है तो उसे बताता है कि उनके मुल्क में हिंदू-मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं है। सब लोग आपस में प्यार से रहते हैं। वहाँ पर कौम के नाम पर झगड़े न के बराबर हैं। सब लोग एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करते हैं। हामिद खाँ ने जब लेखक के मुँह से ऐसी बातें सुनीं तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उसे तो यही लगता था कि हिंदू उन्हें आततायियों को औलाद समझते हैं। हामिद खाँ लेखक के मुल्क जाकर हिंदू-मुसलमानों की परस्पर एकता को देखना चाहता था। यह भी जानना चाहता था कि बिना दंगे के से दो विरोधी धर्मों के लोग आपस में प्यार से कैसे रहते हैं। ऐसा क्या है वहाँ पर जो भेदभाव को समाप्त कर रहा है। वास्तव में हामिद खाँ ने इन दो धर्मों के लोगों को हमेशा ही एक-दूसरे के विपरीत ही देखा था। उसे इन बातों पर विश्वास ही नहीं होता था कि ये लोग कभी मिलजुल कर भी रह सकते हैं इन्हीं बातों की सच्चाई जानने के लिए वह लेखक के मुल्क जाना चाहता था। 
5. तक्षशिला में आगजनी का समाचार पढ़ने के बाद लेखक को अचानक किसका ध्यान आया और क्यों ? 
उत्तर- लेखक एक दिन समाचार पत्र पढ़ रहा था। अचानक ही उसकी निगाह एक ऐसी खबर पर पड़ी जिसने लेखक को भावविभोर कर दिया। यह खबर थी कि तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी की वारदात। यह पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ का ख्याल आया, जो उसे तक्षशिला। दौरे के समय मिला था। हामिद खाँ एक छोटा-सा होटल चलाता था और यही उसकी जीविका थी। लेखक तक्षशिला में हामिद खाँ के में हो खाना खाने गया था। जबकि हामिद खाँ उसे देखकर अचंभित भी हो गया था कि एक मुसलमान के होटल में खाना जैसे खा सकता है ? आगजनी की खबर पढ़कर लेखक ने भगवान से प्रार्थना को कि हामिद खाँ और उसके होटल को कुछ न हुआ हो। खाँ के प्रति लेखक के आत्मीयता और मानवीयता के भाव थे। वह हामिद खाँ के प्रति स्नेह व आदर रखता था। हामिद खाँ एक नेक इनसान था और लेखक की भूख-प्यास को उसने शांत किया था। भले हो वह मुसलमान था, फिर भी उसने लेखक से खाने के पैसे लेने नहीं लिए थे। उसने लेखक को अतिथि मानकर अपना अतिथि धर्म निभाया था। यही वजह थी कि लेखक उसकी भलाई के विषय में ईश्वर से विनती करता है।
6. हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था ? 
उत्तर- हामिद को लेखक द्वारा बताई गई भारत में हिंदू-मुसलमानों की एकता, प्रेमपूर्ण व्यवहार, मुसलमानी होटल में चाय पीने और पुलाव खाने एक साथ उत्सव मनाने जैसी बातों पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वह इस बात पर विश्वास नहीं कर सका कि लेखक हिंदू थे। तक्षशिला के निकटवर्ती क्षेत्रों में हामिद खाँ ने कभी किसी हिंदू को मुसलमानों की तारीफ़ करते हुए नहीं सुना था। उसके अनुसार हिंदू तो हमेशा मुसलमानों को आततायियों की संतान समझते थे। हिंदू मुसलमानों में आपसी एकता नहीं थी। पाकिस्तान में वे एक दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित नहीं होते थे। कोई हिंदू-मुसलमान के होटल में खाना नहीं खाता था और कोई मुसलमान हिंदू की दुकान पर नहीं जाता था। इसलिए हिंदू-मुसलमानों की एकता की बातें हामिद खाँ के लिए आश्चर्यजनक ही थीं । 
7. हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया ? 
उत्तर- लेखक की मेहमाननवाज़ी करते हुए हामिद खाँ ने उन्हें गरम-गरम चपातियाँ, चावल और सालन परोसा। उसके सहायक अब्दुल ने पानी से भरा एक कटोरा मेज पर रख दिया। लेखक ने बड़े चाव से भरपेट भोजन किया। भोजन करने के बाद लेखक ने पैसे देने चाहे तो हामिद खाँ ने अपनी मुहब्बत की कसम देते हुए पैसे लेने से इंकार कर दिया। हामिद खाँ लेखक का प्रेमपूर्ण व्यवहार और भाईचारा देखकर बहुत प्रभावित हुआ था। वह चाहता था कि लेखक भारत लौटकर उस रुपए से किसी मुसलमानी होटल में (खाना) पुलाव खाकर तक्षशिला में मिले भाई हामिद खाँ को याद करें। वास्तव में वह हिंदू-मुसलमानों की एकता, परस्पर भाई-चारे के संबंध को पाकिस्तान में भी देखने की कामना कर रहा था। इसलिए मित्र और सद्भावपूर्ण संबंध को पैसे से न तौलकर हामिद खाँ ने सच्ची मित्रता की मिसाल कायम की। 
8. सांप्रदायिक दंगों का प्रभाव समाज के किस वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित करता है ? यह भी स्पष्ट कीजिए कि इस प्रकार के दंगों को रोकने के लिए आप क्या उपाय करेंगे ?  
उत्तर- सांप्रदायिक दंगों का प्रभाव समाज के मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के लोगों पर सबसे अधिक पड़ता है । इसका प्रमुख कारण यह है कि ये लोग बहुत धनी या अमीर नहीं होते प्रतिदिन की कमाई से ही इनके घर की रोजी-रोटी चलती है। आगजनी, तोड़-फोड़, कर्फ्यू इत्यादि की परिस्थितियों में इनका काम काज ठप हो जाता है, दुकानें बंद हो जाती हैं, आग लग जाती है, दुकानें जला दी जाती है या फिर इन पर दबाव डाला जाता है कि ये अपना कारोबार बंद रखें। गरीब बेचारा बे-मौत ही मारा जाता है। उसकी प्रतिदिन की आमदनी बंद हो जाती है। उसके बच्चे भूख से बिलखने लगते हैं तो फिर वह इस बात को नहीं सोचता कि वह हिंदू है या मुसलमान। वह इन सांप्रदायिक दंगों से दूर भागता है, जिनसे किसी का भला नहीं होता। इस प्रकार के दंगों को रोकने के लिए आपसी प्रेम-प्यार को बढ़ाना होगा। एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करना होगा। मंदिर हो या मसजिद दोनों ही आदरणीय एवं पूजनीय होने चाहिए। धर्म के भेदभाव को समाप्त करना होगा। हमें चाहिए कि हम मिलजुल कर केवल एक ही बात कहे यह धरती न हिंदू की है न मुसलमान। यह तो केवल एक इनसान की है। 
9. हामिद खाँ लेखक से खाने के पैसे क्यों नहीं लेना चाहता था ? 
उत्तर- हामिद खाँ तक्षशिला का रहने वाला एक मुसलमान था, जो कि एक छोटा-सा होटल चलाता था। लेखक जब तक्षशिला के खंडहर देखने जाता है तो गर्मी में भूख-प्यास से व्याकुल होकर हामिद खाँ के होटल में जाता है। हामिद खाँ लेखक के व्यवहार से उसकी बातों से उसके बोलचाल से बहुत प्रभावित होता है। वह लेखक को अपना अतिथि मानता है क्योंकि उसने ऐसे बहुत कम हिंदू देखे थे, जिनके मन में मुसलमानों के प्रति शत्रुता का भाव नहीं होता। लेखक की दृष्टि में हिंदू-मुसलमान सब एक थे। इसलिए हामिद खाँ लेखक को एक भला व्यक्ति लगता है। हामिद को खाने के पैसे लेना बहुत छोटी-सी बात लगती है क्योंकि जहाँ मानवीय मूल्यों की प्रधानता हो, वहाँ पैसा तुच्छ हो जाता है। वह एक रुपया भी यह कहकर लौटा देता है कि लेखक उसकी तरफ से कभी पुलाव खा ले। लेखक और हामिद खाँ के संबंध प्यार और भावुकता से जुड़ जाते हैं। ऐसे संबंधों में यदि पैसा बीच में आ जाए तो स्वार्थ पनपने लगता और इंसानियत समाप्त हो जाती है।
10. किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए हामिद और लेखक जैसे व्यक्तियों का होना आवश्यक है- स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए हामिद खाँ और लेखक जैसे व्यक्तियों का होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि ऐसे लोगों के मन में परस्पर विरोध की भावनाएँ नहीं होती। ये लोग धर्म के नाम पर आपस में नहीं झगड़ते। राष्ट्र की उन्नति के लिए अधिक से अधिक ऐसे लोगों का होना आवश्यक है क्योंकि कोई भी देश आर्थिक, राजनैतिक या तकनीकी रूप से उन्नति तभी कर पाएगा जब देशवासियों को ऊर्जा, धन तथा समय का दुरूपयोग झगड़ों और दंगों में नहीं होगा। यदि देश के भीतर ही हिंसा की आग भड़कने लग जाएगी तो फिर वह देश दूसरे देश से मुकाबला कैसे कर पाएगा। यदि हमें उन्नत बनना है, प्रगति करनी है। विभिन्न देशों के समक्ष एक सबल राष्ट्र की छवि बनानी है, तो अवश्य ही आपसी मन-मुटाव, भेदभाव और धर्म तथा जाति के नाम पर झगड़े समाप्त करने होंगे। राष्ट्र की उन्नति इन बातों पर निर्भर करती है कि वहाँ की तकनीकी कैसी है ? वहाँ की अर्थ-व्यवस्था कैसी है ? वहाँ शिक्षा को कितना महत्व दिया जाता है न कि इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ किस धर्म की प्रबलता है। हामिद खाँ एक मुसलमान था और लेखक एक हिंदू, फिर भी उनमें आपस में आत्मीयता के भाव थे। दोनों में परस्पर प्यार और भाईचारे की भावना थी। राष्ट्र को आवश्यकता है- हामिद और लेखक जैसे व्यक्तियों की।
11.'हामिद खाँ' नामक पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ? 
उत्तर- 'हामिद खाँ' नामक पाठ से हमें प्रेम, शांति, सद्भाव, भाईचारे और एकता की शिक्षा मिलती है। यह पाठ हमें सिखाता है कि धर्म और जाति के नाम पर इंसान में भेद करना गलत है। हिंदू और मुसलमान के बीच उत्पन्न भ्रम और अलगाव अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। परस्पर मेल-मिलाप से आपसी मतभेदों का दूर करके हमें एकता और भाईचारे की भावना पर बल देना चाहिए । 
12.हिंसा और आगजनी की घटनाएँ समाचार पत्रों की सुर्खियों कैसे बन जाती हैं ? लेखक समाचार पढ़कर दुखी क्यों हुए ?
उत्तर- हिंसा और आगजनी की घटनाएँ जानमाल की हानि करती है, इसलिए समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बन जाती हैं। तक्षशिला में हस्तरेखाओं के समान फैली गलियों से भरा तंग बाजार था। हामिद खाँ के जिस होटल में लेखक की भूख मिटी थी, उस तक्षशिला में आगजनी हुई है ऐसी ख़बर पढ़कर लेखक का दिल दहल उठा। वे आगजनी की भयानक घटना की कल्पना करके सिहर उठे। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियाँ हामिद खाँ के उस होटल से दूर रहें, जिसने लेखक को छाया प्रदान की और उसकी क्षुधा को शांत किया था। दुनिया के किसी भी कोने में आग लगी हो, समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन उसे दुनिया के सभी हिस्सों में दिखा देते हैं। तक्षशिला के खंडहरों में लगी आग की खबर ने लेखक को इस विचार से दुखी कर दिया कि कहीं अग्निकांड में उसके मित्र और उसके होटल को कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा। 
13. लेखक द्वारा वर्णित मालावार में हिंदू-मुसलमानों की एकता ने हामिद खाँ को किस सीमा तक प्रभावित किया ? 
उत्तर- लेखक ने हामिद खाँ को बताया कि भारत में हिंदू-मुसलमान मिलजुलकर रहते हैं। उनके बीच आपस में दंगे नहीं के बराबर होते हैं। हिंदुओं को अगर बढ़िया चाय पीनी होती है या बढ़िया पुलाव खाना होता है तो वे मुसलमानों के होटल में जाते हैं । हिंदू-मुसलमानों द्वारा एक साथ दोनों के पर्व-उत्सव मनाने तथा देवालय-मस्जिद बनाने जैसी गतिविधियाँ तक्षशिला में नहीं दिखाई देती थीं। तक्षशिला के हिंदू मुसलमानों के साथ सद्व्यवहार नहीं करते थे। उनकी दृष्टि में मुसलमान आततायियों की औलादें हैं और अपनी इस दूषित छवि को मिटाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता था। वस्तुतः हामिद खाँ को भी यही अपेक्षा थी कि उसके देश में भी मानवीय मूल्यों का विकास तथा सभी जातियाँ प्रेमपूर्वक आपस में मिलजुल कर रहें। 
14.  'हामिद खाँ' पाठ के अनुसार ईमानदारी और प्रेम मानवीय रिश्तों को कैसे प्रभावित करते हैं ? 
उत्तर- हामिद खाँ ने तक्षशिला के पौराणिक खंडहरों को देखने के लिए आए लेखक के साथ एक अच्छे मित्र का बर्ताव करते हुए बड़ी ईमानदारी से मित्रता का नाता निभाया। लेखक द्वारा हामिद खाँ के होटल में किए गए भोजन का मूल्य चुकाए जाने पर हामिद खाँ ने उसे लेने से इंकार कर दिया एवं लेखक से आग्रह किया कि वे भारत जाकर किसी मुसलमानी होटल में चाय और बिरयानी का आनंद लेते हुए हामिद खाँ की मित्रता को याद रखें। इस प्रकार रिश्तों के निर्वाह में निपुण हामिद खाँ ने मुसलमान होते हुए भी हिंदू मित्र के साथ बड़ी ईमानदारी से सच्ची मित्रता का नाता निभाया। धर्म के नाम पर ईर्ष्या, द्वेष, भेदभाव करते हुए यदि वह मित्रता का फर्ज न निभाता तो कदाचित लेखक भी उसे भूल जाते ओर बरसों बाद आगजनी की खबर सुनकर मन ही मन मित्र हामिद खाँ की सलामती की दुआ न माँगते।
15. हामिद खाँ ने लेखक की किस बात का विश्वास नहीं किया और क्यों ? स्पष्ट कीजिए । लेखक के द्वारा दिए गए उत्तर से हमें क्या सीख मिलती है ? बताइए। 
उत्तर- जब लेखक ने बड़े गर्व के साथ यह कहा कि भारत में हिंदू मुसलमानों में कोई फर्क नहीं है। सब मिल-जुलकर रहते हैं। भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जिद का निर्माण करवाया था वह भी उन्हीं के राज्य में स्थित है हामिद खाँ को उनकी बातों पर पहले तो विश्वास नहीं हुआ। फिर उसने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि वह स्वयं उनके मुल्क में आकर हिंदू मुसलम की एकता का नजारा अपनी आँखों से देखना चाहता है। हामिद खाँ के मुल्क में हिंदू मुसलमानों की एकता का दृश्य तो दिखाई ही नहीं देता क्योंकि हिंदू उन्हें आतातायियों की औलादें कहते हैं और मुसलमानों को भी अपनी आन बचाने के लिए लड़ना पड़ता है। लेखक की गर्वोक्ति से यही शिक्षा मिलती है कि धर्म के नाम पर मानवमात्र में भेदभाव करना उचित नहीं है। परस्पर एकता, सद्भाव और भाईचारा ही हमारे देश भारत की पहचान है। लेखक को अपने भारतवासी होने पर गर्व था और उन्होंने बड़े गर्व के साथ अपने देश की इस विशेषता को हामिद खाँ के समक्ष प्रकट किया। 
16. 'काश में आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता'- हामिद ने ऐसा क्यों कहा ? 
उत्तर- हामिद खाँ ने लेखक के मुल्क (भारत) आकर स्वयं अपनी आँखों से हिंदू-मुसलमानों की मित्रता का भव्य दृश्य देखने की चाह इसलिए व्यक्त की क्योंकि उसे लेखक की बातों पर विश्वास नहीं था। लेखक जिस आत्मविश्वास से मुसलमानों की प्रशंसा कर रहे थे, हिंदुओं के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार की चर्चा कर रहे थे, वैसा तक्षशिला और निकटवर्ती गाँव में कोई भी हिंदू किसी मुलसमान से नहीं कह सकता था। हिंदुओं की नज़र में मुसलमान आततायियों की औलादें थीं। ऐसी हालत में मुसलमानों को भी अपनी आन की हिफ़ाज़त के लिए लड़ना पड़ता था। लेखक उसके कथन के पीछे छिपी सच्चाई को भली-भाँति समझ गए।
17. 'आगजनी' शब्द से क्या तात्पर्य है ? आपके विचार से तक्षशिला में आगजनी होने का क्या कारण हो सकता है ? लेखक ने आगजनी में हामिद खाँ की दुकान बची रहने की प्रार्थना ईश्वर से क्यों की ? आप लेखक की जगह होते तो क्या करते और क्यों ? 
उत्तर-  'आगजनी' का अर्थ होता है आग लगाना। इसका तात्पर्य वास्तव में दंगो, झगड़ों या विरोध प्रदर्शन में आग लगाकर किसी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाना या किसी के पुतले को जलाना इत्यादि। 'तक्षशिला' में आगजनी का मुख्य कारण वहाँ फैले सांप्रदायिक भेदभाव या धर्म के नाम पर परस्पर विरोधी प्रदर्शन हो रहा होगा। वहीं हिंदुओं और मुसलमानों में परस्पर मतभेद पाया जाता है। धर्म के नाम पर ये लोग आपस में लड़ते हैं। एक-दूसरे के धर्म को अपमानित किया जाता है। वहाँ आपसी मेल-जोल न के बराबर है। 'हामिद खाँ' पाठ में इस प्रकार के भेद-भाव की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। वहाँ हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे का आदर नहीं, अनादर करते हैं यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सभी उँगलियाँ बराबर नहीं होती, यानी यह जरूरी नहीं कि सभी हिंदुओं और मुसलमानों में शत्रुता का भाव हो। 'हामिद खाँ' एक मुसलमान था और लेखक था एक हिंदू परंतु दोनों के संबंध आत्मीयतापूर्ण थे। जब लेखक समाचार पत्र में तक्षशिला की आगजनी की खबर पड़ता है तो उसे हामिद खाँ का ही ख्याल आता है। वह उसे अपना मित्र समझता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि इस आगजनी में हामिद खाँ और उसके होटल को कोई नुकसान न हुआ हो। ऐसा व्यक्ति उसी के लिए सोचता है, जो आपका प्रिय हो, जिसके लिए आपके मन में प्यार हो। यदि हम लेखक की जगह होते तो हम भी सोचते जो लेखक की सोच थी। हामिद खाँ जैसे व्यक्ति के लिए किसी के भी मन में प्यार उमड़ना या उसकी चिंता करना स्वाभाविक है । 
 18. 'सांप्रदायिकता' और 'धर्म निरपेक्षता' में उदाहरण सहित अंतर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- विभिन्न धर्मों में परस्पर भेदभाव, दंगे-फसाद, लड़ाई-झगड़ा होना सांप्रदायिकता है। जहाँ पर लोग धर्म के नाम पर विरोध प्रदर्शन करते हैं, एक-दूसरे के धर्म का अपमान करते हैं या फिर धर्म के नाम पर आगजनी और दंगे करते हैं, वहाँ सांप्रदायिकता प्रबल हो जाती है। इससे समय तथा धन दोनों को ही बरबादी होती है। लोग धर्म की आड़ में अपना फ़ायदा उठाकर धर्म को बदनाम करते हैं। सांप्रदायिक दंगों से कभी किसी का भला नहीं होता। सांप्रदायिकता सदैव विनाश को जन्म देती है। सांप्रदायिकता के नाम पर लड़ने वाले लोग देश की उन्नति को बात को भूलकर स्वयं को ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं।
19. 'हामिद खाँ' पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या समझाने का प्रयास किया है ? 
उत्तर- प्रस्तुत पाठ हमें हिंदू-मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाता है। हामिद खाँ एक मुसलमान है। वह तक्षशिला का रहनेवाला है। वह हिंदू मुस्लिम के मतभेदों को लेकर दुखी है। लेखक से बातें करने पर वह सहज भाव से इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता कि हिंदुस्तान में हिंदू-मुसलमानों में कोई भी भेद नहीं किया जाता। तक्षशिला में हामिद खाँ के होटल में लेखक खाना खाने जाता है, उनकी इसी मुलाकात से दोनों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना प्रकट होती है। लेखक ने भी पाया कि सभी जगह मानव की समस्याएँ और संवेदनाएँ समान होती हैं। हामिद खाँ चाहता है कि सभी एक-दूसरे के साथ मुहब्बत से रहें तो सहयोग, भाईचारा बढ़े। आपसी, द्द्वेष समाप्त हो जाए, सभी मिल-जुलकर रहें, क्योंकि हम किसी पर धौंस जमाकर प्यार नहीं पा सकते।

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