HINDI BLOG : June 2021

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Wednesday, 23 June 2021

जब शेख मुंबई पहुँचा- किस्सा शेखचिल्ली का /Shekhchili In Mumbai

Top Best Famous Moral Stories In Hindi  -  कहानियाँ एवं लघु कथाएँ

एक दिन शेखचिल्ली ने अभिनेता बनने के लिए मुंबई जाने का पक्का फैसला कर लिया और ट्रेन में बैठकर मुंबई जा पहुँचा । 
जब वह मुंबई रेलवे स्टेशन पर उतरा तो उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी । 
उसके कपड़े फट चुके थे। 
उसकी दाढ़ी लंबी हो गई थी और उसके बाल गंदे हो चुके थे। 
स्टेशन पर मौजूद सभी लोग शेख को कोई पागल आदमी समझ रहे थे ।
 लेकिन शेख मुंबई आकर खुद को बहुत किस्मतवाला समझ रहा था । 
थोड़ी देर स्टेशन पर ही आराम करने के बाद शेखचिल्ली गेटवे ऑफ इंडिया पर जा पहुँचा । 
वहाँ पर काफी शांति थी । 

वह समुद्रतट पर बालू में बैठा हुआ सोच रहा था कि लोग उसे मूर्ख क्यों समझते हैं। 
वह न तो किसी जानवर की तरह दिखता है, न ही उसके सिर में सींग उगे हुए हैं । 
जहाँ तक उसकी बुद्धिमत्ता की बात थी तो वह हर काम बहुत ध्यान से मन लगाकर करता था । 
हाँ, वह बेवकूफियाँ जरूर कर देता था, लेकिन उससे क्या ? 
दुनिया में ऐसा कौन आदमी है, जो कभी बेवकूफी नहीं करता । 
शेखचिल्ली यही सब सोच रहा था, तभी एक मोटा आदमी आकर उसके पैर पकड़कर जोर से चिल्लाया, " शेख मिल गए, शेख मिल गए । 
मोटे आदमी की इस हरकत से शेख बुरी तरह चौंक पड़ा । 
वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मामला क्या है और वह मोटा आदमी उसके पैर पकड़कर चिल्ला क्यों रहा है ?

वह उस मोटे आदमी को घूरता हुआ बोला, ' अरे, क्या हुआ मियाँ ? 
इस तरह मेरे पैर पकड़ने से क्या फायदा ? पैर ही पकड़ने है तो किसी पीर-फकीर के पकड़ो ।" 
लेकिन उस मोटे आदमी ने शेख की बात का कोई जवाब नहीं दिया। 
वह बस उसे देखकर खुश होता रहा और चिल्लाता रहा, “ यही हैं शेख !
 'बेचारा शेखचिल्ली घबराकर वहाँ से भागने ही वाला था, 
तभी वह मोटा आदमी हाथ जोड़कर चिल्लाया, " तुम धन्य हो, मालिक ! आज मैं अपना सारा पैसा लगा दूँगा।" 
यह कहते हुए वह थोड़ी दूर पर खड़ी अपनी कार में बैठकर वहाँ से चला गया। 
उस मोटे के जाने के बाद शेख का ध्यान पेट की आग बुझाने पर गया। 
वह सोचने लगा कि मुंबई में भोजन की व्यवस्था कैसे की जाए ? 
वह कोई नौकरी करना नहीं चाहता था क्योंकि इसके पहले भी वह कई जगह नौकरी कर चुका था, लेकिन कहीं भी उसकी मालिक से पटरी नहीं बैठी थी। 

यही सब सोचते हुए शेख शाम तक गेटवे ऑफ इंडिया पर ही पड़ा रहा। 
शाम तक शेख को तेज भूख लग आई। 
वह भूख मिटाने के लिए पैसे का इंतजाम करने का कोई उपाय सोच ही रहा था, तभी एक कार अचानक शेख के सामने आ खड़ी हुई । 
शेख कुछ कह पाता, इससे पहले ही वही आदमी दोनों हाथ जोड़े कार से उतरकर शेख के पास जा पहुँचा और बोला, “ मैंने आपकी दुआ से पचास हजार रुपए कमाए हैं। 
अब आप कृपा करके मेरे साथ घर चलिए और मुझे अपनी खातिरदारी करने का मौका अदा फरमाइए।
 शेख के तो पल्ले ही नहीं पड़ा कि वह मोटा आदमी कहना क्या चाहता था ? 
लेकिन वह बहुत भूखा था, इसलिए उसने उस मोटे आदमी के साथ जाना ही ठीक समझा। 
वह सोच रहा था कि शायद उसे उस मोटे के घर में ही कुछ खाने को मिल जाए । 
इसलिए वह उसके साथ उसकी कार में जा बैठा ।

फिर उसकी कार तेजी से उसके बंगले की तरफ चल दी और थोड़ी ही देर में उसके बंगले में जा पहुँची। 
उसका स्वागत करने के लिए वहाँ सेठ के नौकर-चाकरों का काफिला घर के बाहर मौजूद था। 
जैसे ही शेख सेठ के साथ कार से उतरा, वे सभी चिल्लाने लगे, “ शेख जिंदाबाद ! शेख जिंदाबाद ! 
फिर शेख की खूब खातिरदारी की गई। उसे बंगले के अंदर ले जाकर उसके सामने लजीज खाना परोसा गया।
 शेख तुरंत कमर कसकर खाने पर टूट पड़ा। 
उसे इस तरह खाते देखकर सेठ भी बहुत खुश हुआ। 

भरपेट खाना खाकर शेख सेठ से बोला, " बढ़िया खाने के लिए शुक्रिया ! अब मुझे चलने की इजाजत दीजिए।" 
"अजी ! आप यहाँ से जाकर क्या करेंगे ? आप तो यहीं रहकर मुझे अपनी मेहमाननवाजी करने का मौका दीजिए।"

'लेकिन मियाँ , हमें समझ में नहीं आ रहा, तुम मुझे अपने साथ क्यों रखना चाहते हो ? मेरे साथ रहकर तुम्हें तकलीफ ही होगी।'


'अरे , कैसी बातें करते हैं आप ? कृपा करके मुझसे इस तरह बात मत करिए । अब आपको मेरे साथ ही रहना है । मैं एक फिल्म बना रहा हूँ और आपको अपनी फिल्म का डायरेक्टर बनाना चाहता हूँ ।'

 "क्या कह रहे हैं आप ? मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूँ ।" शेखचिल्ली हैरत के साथ बोला ।" 
'जल्दी ही आपको सब कुछ समझ में आ जाएगा । जल्दी ही आपका नाम मुल्क के हर बच्चे की जुबान पर होगा ।' 

अगले दिन फिल्म के संबंध में सारी सूचना अखबारों में छप गई । 
अब तो शेख शहर का ही नहीं बल्कि पूरे देश का जाना-माना नाम बन गया । फिर तो मोटे सेठ ने उसे फिल्म का डायरेक्टर ही नहीं बल्कि हीरो भी बना दिया । 

कुछ ही दिनों में फिल्म का मुहूर्त हुआ । इस मौके पर शेख को कार पर स्टूडियो ले जाया गया ।
 कैमरे के सामने ले जाने से पहले शेख का मेकअप किया जाना था । बेचारा शेख यह सब देखकर हक्का-बक्का था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । 

उसने किसी तरह हिम्मत करके सेठ से पूछा , “ यहाँ यह सब क्या हो रहा है ? " " मेरे मालिक, आज फिल्म का मुहूर्त है। आज आपको कैमरे के सामने अपनी अदाकारी दिखानी है।" सेठ शेख से बोला। 
शेख को तब भी कुछ समझ में नहींआया । 

तभी एक आदमी भागता हुआ वहाँ आया और उससे बोला , “ हुजूर , मेकअपमैन तैयार है ।" 
बेचारा शेख मेकअपमैन का नाम तो पहली बार ही सुन रहा था । उसने सोचा कि उसकी जगह पर मेकअपमैन को फिल्म का हीरो बना दिया गया है। 

यह ख्याल आते ही उसे गुस्सा आ गया। हीरो बनने की उसकी तमन्ना मटियामेट हुई जा रही थी। 
वह गुस्से से बोला, “ तुम लोगों की अक्ल पर मुझे तरस आता है। अगर किसी बेवकूफ को ही हीरो बनाना था तो मुझे यहाँ बुलाने की क्या जरूरत थी ?" 

उधर मोटे सेठ ने सोचा कि शेख को किसी कारण से मेकअपमैन पर गुस्सा आ गया है ।
 उसने शेख का गुस्सा ठंडा करने के लिए उसी वक्त मेकअपमैन को नौकरी से निकाल दिया।

साथ ही उसने शेख का मेकअप करने की जिद भी छोड़ दी। फिर शेख को सेट पर ले जाया गया ।
शेख के आते सेट पर मौजूद सभी लोग तालियाँ बजाने लगे। 

तभी सेठ चिल्लाया , "लाइट , कैमरा !" उसी समय फिल्म की हीरोइन  वहाँ आ पहुँची। 
मैडम बुलबुल बहुत ही चंचल, चुलबुली और बुलबुल की तरह बोलने वाली थी । वह सीधे शेख के पास पहुँचकर उसे प्यार से निहारने लगी। 
तभी सेठ चिल्लाया , “एक्शन ! " इतना सुनते ही वह  शेख की तरफ बढ़ी। उसे इस तरह अपनी ओर बढ़ते देखकर शेख घबरा गया ।

वह चिल्लाया , “तुम्हारे पास शर्म नाम की कोई चीज है भी या नहीं ? 
तुम एक भारतीय नारी हो और इस तरह की हरकतें तुम्हें शोभा नहीं देतीं ।" 
बुलबुल आगे बढ़ती हुई बोली , “ मेरे सरताज , मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती । 

यह सुनते ही शेख आगबबूला होकर चिल्लाया, “ चली जाओ यहाँ से नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा ' 
मैडम बुलबुल रोते हुए बोली , “ आज तो तुम मेरा प्यार ठुकरा रहे हो, लेकिन देखना , कल तुम पछताओगे ।' 
उसकी बात सुनकर शेख घबरा गया और सेट से कूदकर भागा। 
जैसे ही वह नीचे कूदा, उसके चारों ओर खड़े लोग चिल्लाने लगे , “वाह ! क्या शाट दिया है ? " 
यह सुनकर शेख ने सोचा कि लोग उसे पीटने के लिए रहे हैं। 
यह सोचकर वह तेजी से रेलवे स्टेशन भाग खड़ा हुआ। 
वहाँ उसे जो भी ट्रेन पहले दिखाई दी , वह उस पर बिना टिकट जा बैठा और मुंबई से भाग निकला।


Friday, 18 June 2021

CLASS 9 GILLU /गिल्लू....... संचयन ..महत्त्वपूर्ण प्रश्न PART-1

HINDI NCERT SOLUTIONS  CLASS 8, 9,10 SPARSH 

परीक्षापयोगी मूल्यपरक प्रश्न 

(क) किन कारणों से गिल्लू खिड़की की जाली से बाहर झाँकता था ? गिल्लू के इस प्रकार बाहर देखने पर लेखिका ने  क्या कदम उठाए ? 

उत्तर-गिल्लू लेखिका के घर में एक फूलों की डलिया में रहता था । उस पर एक जाली लगी थी और उसे एक तार के सहारे दीवार पर टाँग दिया गया था । गिल्लू के जीवन में पहला वसंत आया । उस समय चारों ओर फैली नीम-चमेली की खुशबू लेखिका के कमरे तक भी आने लगी। 

-लेखिका ने जब गिल्लू को जाली के पास बैठकर बाहर झाँकते और दूसरी गिलहरियों को उसे निहारते देखा तो उन्हें लगा कि शायद गिल्लू भी बाहर जाकर वसंती हवा का आनंद उठाना चाहता है। 

-वह भी अन्य गिलहरियों के साथ मिलकर उछल-कूद करना चाहता है। उसे इस प्रकार सारा दिन जाली में बंद करना ठीक नहीं । 

-यही विचार करके लेखिका ने गिल्लू को मुक्त करने के बारे में सोचा। उन्होंने खिड़की के कोने की जाली की कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया।

-अब गिल्लू ने बाहर जाने के मार्ग को देखा तो वह अत्यंत प्रसन्न हो गया और उसने सचमुच ही मुक्ति की साँस ली । 

-घर में लेखिका के लिए इतने छोटे जीव को पालतू  कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी  एक समस्या  थी। 

-जिस समय भी लेखिका घर से बाहर जाती तो गिल्लू भी खिड़की को खुली जाली के रास्ते से बाहर निकल जाता और पूरा दिन गिलहरियों के झुंडका नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता। 

-गिल्लू यद्यपि एक मानव नहीं था, परंतु उसे इस बात का अहसास था कि जब ठीक चार बजे लेखिका घर आती तो वह भी खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता। 

-गिल्लू की यह गतिविधि प्रतिदिन चलती थी। 

(ख) अस्वस्थ लेखिका का ध्यान गिल्लू किस प्रकार रखता था ? इस प्रकार लेखिका का ध्यान रखने से आपको गिल्लू की कौन-सी विशेषता पता चलती है ? 

उत्तर- एक बार जब  लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई तब उन्हें कुछ समय के लिएअस्पताल रहना पड़ा था। उस समय  लेखिका को घर पर न देखकर गिल्लू बहुत उदास रहता था। 

-उस समय जब उसे उसका मनपसंद खाद्य पदार्थ काजू भी दिया जाता तो वह भी न खाता। 

-लेखिका जब अस्पताल से लौट कर आई तो उन्हें गिल्लू की टोकरी में काजू पड़े हुए मिले, इस प्रकार लेखिका को पता चला कि उसने उदासी में उन्हें नहीं खाया था। 

-लखिका जब तक अस्वस्थ रही उस समय वह ज़्यादातर उनके पास ही तकिए पर सिरहाने बैठता था। उसकी यह क्रिया लेखिका को अपने पन का अहसास दिलाती थी। वह अपने नन्हे-नन्हे पंजों से लेखिका के सिर के बालों को इतने हौले -हौले सहलाता था कि लेखिका को इससे बहुत आराम मिलता था। 

-जिस प्रकार एक परिचारिका एक रोगी को देखभाल करती है, उसी प्रकार गिल्लू लेखिका के इर्द-गिर्द रहता था। गिल्लू का अपने पास से हटना या दूर जाना लेखिका को एक परिचारिका के हटने के जैसा लगता था ।

-जब उसे गरमी लगती तो वह लेखिका के पास रखी एक सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार वह ठंडक भी महसूस करता और लेखिका के पास भी रहता। गिल्लू लेखिका से बहुत प्यार करता था । उपर्युक्त बातों से उसकी इस विशेषता का पता चलता है। 

-उसके अंदर आत्मीयता की भावना थी। वह लेखिका को पूर्णतः स्वस्थ देखना चाहता था , इसलिए सकी देखभाल के प्रति सजग रहता था। 

(ग) गिल्लू संस्मरण के आधार पर लेखिका के पशु-पक्षी प्रेम पर प्रकाश डालिए । 

उत्तर- लेखिका को  पशु-पक्षियों से बहुत गहरा लगाव था, उन्होंने अपने घर पर बहुत से पशु-पक्षी पाल रखे थे। वह पशु-पक्षियों के प्रति भी उसी प्रकार का प्रेम भाव दिखातीं थीं, जो मानव दूसरे मानव के प्रति दिखाता है। 

-गिल्लू संस्मरण लेखिका महादेवी वर्मा के पशु-पक्षियों के प्रति जीव-प्रेम को अभिव्यक्त करता है। लेखिका को गिल्लू घायल अवस्था में सोनजुही के पौधे के पास मिला था । उसे एक कौए ने चोंच मारकर घायल कर दिया था । 

-लेखिका गिल्लू के प्रति संवेदनशील हो गईं । उन्होंने उसे उठाया, उसका उपचार किया। गिलहरी के नन्हें बच्चे के घावों को साफ़ किया और उस पर मरहम इत्यादि लगाया । 

-यदि लेखिका उसे केवल एक जानवर के बच्चा समझकर वहीं पड़ा रहने देतीं तो शायद वह बच नहीं पाता । 

-लेखिका द्वारा उस गिलहरी के बच्चे को बचाना हो लेखिका का इन जीवों के प्रति प्यार दिखाता है । 

-लेखिका ने उसके रहने के लिए फूलों की टोकरी में रुई बिछाई और ऊपर जाली लगा दी। फिर एक कील लगाकर उसे दीवार के सहारे टाँग दिया । 

-लेखिका उसके खाने का पूरा ध्यान रखती थी । एक प्रकार से गिल्लू लेखिका के परिवार का सदस्य ही समझा जाता था लेखिका के प्रति गिल्लू भी अपना पूरा उत्तरदायित्व निभाता था ।

-जब लेखिका बीमार हुई तो एक -परिचारिका की भाँति उनकी सेवा की। गिल्लू लेखिका के समीप रहकर उन्हें अपनेपन का अहसास कराता था। लेखिका और गिल्लू के संबंधों में प्रेम तथा आत्मीयता स्पष्ट दिखाई देती थी । 

- इस सस्मरण के माध्यम से महादेवी जी ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि जीव-जंतुओं में भी प्यार की भावना होती है । यदि बदले में उन्हें प्यार मिल जाए तो वे हमारे परिवार के सदस्य ही बन जाते हैं । 

-प्यार इतना सशक्त होता है कि जीव-जंतु भी उसके द्वारा हमसे जुड़ जाते हैं । मानव ही नहीं, जीव-जंतु  भी हमारे लिए प्रेम का भाव रखते हैं । ये भी हमारे जीवन के सूनेपन को दूर करने में सक्षम हैं। 

-इस प्रकार यह संस्मरण हमें इस बात को प्रेरणा देता है कि प्यार और अपनेपन को भूख केवल मनुष्य को ही नहीं , पशु-पक्षियों को भी होती है।

(घ) " धैर्य बहुत आवश्यक है और खासतौर पर तब जब हमें घायलों की सहायता करनी होती है। " - 'गिल्लू' पाठ के आधार पर इस पंक्ति को स्पष्ट करते हुए बताइए कि किसी घायल के प्रति आपका व्यवहार कैसा होगा ?  

उत्तर- घायलों की सहायता एवं उपचार के लिए धैर्य का होना बहुत आवश्यक है । 

-प्रस्तुत पाठ ' गिल्लू ' में लेखिका को एक नन्हा गिलहरी का बच्चा घायल अवस्था में सोनजुही के पौधे के पास मिलता है । 

-लेखिका जीव-जंतुओं और पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करती थी । 

-उन्होंने कई जानवरों को घर में पाल भी रखा था । 

-जब लेखिका गिल्लू को देखती हैं तो बहुत धैर्य से काम लेती हैं । 

-पहले उसे उठाकर उसका घाव साफ किया जाता है। फिर उस पर मरहम लगाई जाती है। 

-लेखिका ने तनिक भी जल्दबाजी या अधीरता नहीं दिखाई थी। 

-एक रुई को गीला करके उससे एक-एक बूँद पानी उसके मुँह में डाला गया । 

-पानी के बाद लेखिका ने उसे बूँद-बूँद करके दूध पिलाया ।

- तीन दिन की देखभाल व उपचार के पश्चात गिल्लू स्वस्थ हो गया । 

- इससे हमें यह बोध होता है कि किसी घायल के प्रति हमारा व्यवहार दयापूर्ण, भावुक तथा धीरतापूर्ण होना चाहिए । 

-यदि हमारे अंदर इन गुणों का समावेश है, तो हम अवश्य ही किसी घायल को ठीक कर पाएँगे । 

(ङ) 'पितर-पक्ष आते ही हमारे पितृ हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर हमारे पास आते हैं ।' इस पंक्ति पर अपने विचार लिखिए। 

 उत्तर- 'पित्तर-पक्ष ' एक साल में एक बार पद्रह दिन की अवधि होती है, जब हम अपने पूर्वज या पितरों को सम्मानित करते हैं । 

-इसे श्राद्ध भी कहा जाता है । 

-इस पाठ के माध्यम से पितर-पक्ष में कौओं के सम्मान के विषय में बताया गया है । 

-हमारे पूर्वजों का पितर-पक्ष में धरती पर अवतरण न तो मोर के रूप में, न ही गरुड़ के रूप में और न ही हंस के रूप में होता है ।

 -पितर पक्ष में हम पितरों के नाम जो भी दान इत्यादि देते है, उसे प्राप्त करने के लिए उन्हें कौए के रूप में धरती पर उतरना पड़ता है। 

-इन दिनों में कौओं को विशेष सम्मान दिया जाता है। 

-इन्हें आदरपूर्वक बुलाया जाता है और स्वादिष्ट भोजन भी खिलाया जाता है। 

- इस समय लोग इन्हें काक न मानकर अपने पूर्वज मानते हैं । 

-इनको सम्मान देकर व भोजन खिलाकर हम पितरों को प्रसन्न करते हैं, जिससे हमारे परिवार में सुख-शांति रहती है । 

-कौओं के माध्यम से ही हमारा भोजन पूर्वजों तक पहुँचता है । 

-वैसे देखा जाए तो कौए को कोई पसंद नहीं करता । 

-उसकी काँव-काँव की कर्कश ध्वनि कानों को अप्रिय लगती है। उसको अनादर की दृष्टि से देखा जाता है । 

-मगर यही कौआ पितर-पक्ष में सम्मान प्राप्त करता है । 

-इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे पूर्वज कौए के रूप में पितर-पक्ष में धरती पर अवतीर्ण होते हैं । 

Tuesday, 15 June 2021

शेखचिल्ली और उसके किस्से- शेख चिल्ली और उसका घोड़ा, ख्याली पुलाव

Top Best Famous Moral Stories In Hindi  
शेख चिल्ली और उसका घोड़ा
एक बार जब शेख चिल्ली की बेगम मायके से नहीं लौटी तो शेख चिल्ली उसे लाने के लिए खुद उसके घर गया। 

कुछ दिन वहाँ बिताने के बाद शेख और उसकी बेगम वापस अपने घर की ओर रवाना हुए। 
शेख अपने कमजोर घोड़े पर सवार था जबकि उसकी बेगम पैदल चल रही थी। 

रास्ते में एक आदमी ने यह दृश्य देखा तो ताना कसा, 'कितना बेवकूफ आदमी है इसकी बेगम तो पैदल चल रही है और यह खुद ठाठ से घोड़े पर बैठा हुआ है।' 

शेख चिल्ली नहीं है बात सुन ली। 
अपनी बेगम से बोला, 'बेगम, तुम घोड़े पर बैठ जाओ। मैं पैदल चलूँगा।'
बेगम भी पैदल चलते-चलते बहुत थक चुकी थी। उसने झट से शेख की बात मान ली और जल्दी से घोड़े पर बैठ गई। 
कुछ दूर चलने पर उन्हें कुछ औरतें दिखाई दीं, जो कुएँ  के पास बैठकर कपड़े धो रही थीं। 
शेख और उसकी बीवी को देख कर उनमें से एक औरत बोली,' यह आदमी कितना मूर्ख है! 
घोड़ा साथ होते हुए भी खुद पैदल चल रहा है और इसकी बीवी शान से घोड़े पर बैठकर जा रही है। 
इसकी बीवी को शर्म आनी चाहिए।'
जब खेत में यह बात सुने तो वह भी अपनी बेगम के साथ घोड़े पर बैठ गया। घोड़ा इतना दुबला-पतला और कमजोर था कि वह उन दोनों का भार नहीं संभाल पाया और वहीं खड़ा रह गया। 
तभी वहां से कुछ यात्री गुजरे। जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो बोले,' कितने मूर्ख है यह दोनों! एक कमजोर, दुबला-पतला घोड़ा इन दोनों का भार कैसे उठाएगा? क्या इन्हें उस घोड़े पर तरस नहीं आता?'
शेख ने जब यह बात सुनी तो अपनी बेगम से कहा, ' बेगम, कभी कोई कुछ कहता है तो कभी कोई कुछ! मैं तो परेशान हो गया।'
उसकी बेगम ने जवाब दिया, ' लोगों काम ही है कुछ-न-कुछ  कहना!  तुम इनकी बातें मत सुनो और अपने रास्ते चलते रहो।'
शेख ने झुंझलाकर कहा, 'मुझसे यह सब नहीं सहा जाता! एक काम करते हैं। हम दोनों ही पैदल चलते हैं।'

बेगम यह चाहती तो नहीं थी, लेकिन उसने शेख की बात मान ली और दोनों पैदल चलने लगे। 
थोड़ा आगे जाने पर उन्हें कुछ लोग मिले। उन्होंने जब यह दृश्य देखा तो वे ठहाके लगाकर हँसने लगे।
एक आदमी चिल्लाकर बोला,' मूर्ख है यह दोनों! घोड़ा होते हुए भी दोनों पैदल चल रहे हैं। लगता है इनका दिमाग खराब हो गया है!! हा-हा-हा!!'
सेठ ने जब यह सब सुना तो वह आपे से बाहर हो गया वह अपना गुस्सा रोक न सका। 
वह घोड़े को अपनी पीठ पर लादकर नदी तक ले गया और फिर उसे पानी में धकेल दिया। 
फिर उसने अपनी बेगम के साथ आगे का रास्ता पैदल ही तय किया।

ख्याली पुलाव 
शेखचिल्ली की अम्मी हमेशा उससे कोई नौकरी ढूँढ़ने को कहती रहती थीं । 
एक दिन वह शेखचिल्ली से बोली, " बेटा, मुझे इस बात की बहुत चिंता रहती है कि मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा । तुम्हें कोई अच्छी-सी नौकरी मिल जाए और तुम्हारा घर बस जाए, तभी मुझे चैन मिलेगा ।"
 “ मैं तुम्हारी बात मानूँगा, अम्मी । मैं अपने लिए जल्दी से जल्दी कोई नौकरी ढूँढ़ने की कोशिश करूँगा ।" 
शेखचिल्ली अपनी अम्मी को भरोसा दिलाते हुए बोला। 
शेखचिल्ली ने अपनी अम्मी से नौकरी  ढूँढ़ने का वादा तो कर लिया, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि वह नौकरी कैसे ढूँढ़े। 
आखिर नौकरी पाना इतना आसान नहीं था। 
यही सब सोचते हुए वह सड़क पर घूम रहा था । 
तभी उसे एक आदमी मिला, जो अंडों से भरी टोकरी अपने सिर पर लादे हुए था। 
कड़ी मेहनत के कारण उसकी कमर झुक गई थी और उसके शरीर से पसीना बह रहा था।
जैसे ही उस आदमी की नजर शेखचिल्ली पर पड़ी, वह उससे बोला, "भाई, क्या तुम मेरी मदद करोगे ?"
 " क्यों नहीं !" शेखचिल्ली तुरंत बोला। “यह अंडों से भरी टोकरी जरा मेरे घर ले चलो । मैं तुम्हें इसके बदले दो अंडे दूँगा ।"
उसकी बात सुनकर शेख बहुत खुश हुआ। जिंदगी में पहली बार उसे कमाने का मौका मिला था। 
वह तुरंत अंडों से भरी टोकरी अपने सिर पर लादकर उस आदमी के साथ उसके घर की ओर चल पड़ा । 
अपनी आदत के अनुसार वह चलते-चलते ख्याली पुलाव पकाने लगा।' 
यह आदमी मेरे काम के बदले मुझे दो अंडे देगा।
 उन अंडों से दो बच्चे पैदा होंगे । मैं उनकी अच्छी तरह देखभाल करूँगा । 
धीरे-धीरे वे बड़े होंगे । उनमें से एक मुर्गा होगा और दूसरी मुर्गी। 
वह मुर्गी रोज अंडे देगी। उन अंडों से और भी बच्चे निकलेंगे । धीरे-धीरे वे भी बड़े होंगे । 
कुछ ही दिनों में मेरे पास बहुत-सी मुर्गियाँ और अंडे हो जाएँगे। 
फिर तो मैं रोज बाजार में अंडे पैसे कमाऊँगा। जल्दी ही मेरे पास ढेर सारे पैसे हो जाएँगे। 
फिर खूब मैं अपने गाँव का सबसे बड़ा घर खरीद लूँगा और मेरी शादी दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के साथ हो जाएगी ।
 फिर अम्मी को भी काम करने की जरूरत नहीं रहेगी । 
मेरे घर में ढेर सारे नौकर रहेंगे , जो घर का सारा काम करेंगे । सारे नौकर मेरी अम्मी की खूब सेवा करेंगे। 
मेरी खूबसूरत बीवी अपने हाथों से मुझे लजीज खाना खिलाएँगी। 
मैं सारा दिन मजे से पतंगें उड़ाऊँगा। मैं अपने लिए पतंगबाजों से बड़ी और शानदार पतंगें तैयार करवाऊँगा । 
जब मैं शानदार पोशाक पहनकर अपने घर की छत पर चढ़कर पतंग उड़ाऊँगा तो पूरे गाँव के लोग खड़े होकर मुझे देखेंगे ... 'यह सोचते-सोचते शेख ने काल्पनिक पतंगें उड़ाने के लिए अपने हाथ फैलाए। 
उसके ऐसा करते ही अंडों से भरी टोकरी फर्श पर जा गिरी और सारे अंडे टूटकर इधर-उधर छितरा गए।" बेवकूफ ! गधा !! नालायक !!! तू जानता है तूने क्या कर दिया है ?" 
वह आदमी तो गुस्से से बिफर उठा, “ तेरे कारण मुझे आज पूरे सौ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है। यह नुकसान कौन भरेगा ?" 
"अरे सेठ ! "शेखचिल्ली हाथ मलते हुए बोला, " तुम तो सौ रुपए के नुकसान पर रो रहे हो । मेरा तो सारा भविष्य बर्बाद हो गया है !"

Saturday, 12 June 2021

Class-9 GILLU/गिल्लू -संचयन भाग-1लेखिका -महादेवी वर्मा ....... पाठ का सारांश

HINDI NCERT SOLUTIONS  CLASS 8, 9,10 SPARSH 

अध्याय 1 गिल्लू                 

लेखिका-परिचय: 

-हिंदी साहित्य की अमर साधिका और ममता का जीवंत रूप महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में 25 मार्च को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद नामक स्थान पर हुआ था। 

-उनकी प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई। 

-वे बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं परंतु महात्मा गाँधी के आह्वान पर सामाजिक कार्यों में जुट गई। 

-इलाहाबाद ही उनका कर्मक्षेत्र रहा। प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचायां के रूप में उन्होंने नारी-शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 

-छायावाद के चार प्रमुख रचनाकारों में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाली महादेवी जी का संपूर्ण काव्य साहित्य वेदनामय है, तो गद्य साहित्य सर्वथा बेजोड़ मानवीय अनुभूतियों को अपने में समाहित किए हुए है।

 -समय-समय पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण एवं पद्मविभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 

-उनका निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ । 

रचनाएँ - काव्य कृतियाँ- नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्निरेखा, यामा । 

-आठ वर्ष की आयु में रचित 'बारहमासा' विशेष रूप से सराहनीय है। 

-गद्य रचनाएँ- अतीत के चलचित्र, शृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, चिंतन के क्षण, मेरा परिवार।

पाठ का सारांश 

-'गिल्लू ' पाठ हिंदी साहित्य की मूल स्तंभ कही जाने वाली लेखिका‘सुश्री महादेवी वर्मा' द्वारा रचित हैं। 

-महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'मेरा परिवार' में से चयनित 'गिल्लू' एक संस्मरणात्मक गद्य रचना है। 

-इस रेखाचित्र के माध्यम से उन्होंने पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम,दया, सहानुभूति और उनके संरक्षण की भावना को उकेरा है।

--प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने प्रकृति के अन्य जीवों ( मनुष्य के अतिरिक्त) के प्रति प्रेम-भाव का प्रदर्शन किया है और हमें यह संदेश दिया है कि पशु-पक्षी भी प्रेम-प्यार को भाषा को समझते हैं। 

-सोनजुही के पौधे देखकर लेखिका को उस 'गिल्लू' को याद आ जाती थी, जो उन्हें इसी पौधे के पास घायल अवस्था में मिला था। 

-'गिल्लू' नाम उसे लेखिका द्वारा ही दिया गया था।यह एक नन्हा-सा गिलहरी का बच्चा था, जिसे कौए ने चोंच मारकर घायल कर दिया था।

-लेखिका ने उसे उठाकर उसकी मरहम-पट्टी की। 

-उसके मुँह में एक एक बूँद करके पानी व दूध डाला।उचित चिकित्सा तथा देखभाल मिलने के कारण गिल्लू तीन ही दिन में स्वस्थ हो गया । 

-स्वस्थ होकर गिल्लू लेखिका के जीवन का हिस्सा बनकर उनके साथ ही रहने लगा। 

-लेखिका ने भी उसे एक फूल रखने की डलिया में रुई रखकर एक तार से खिड़की पर टाँग दिया। 

-अब यही गिल्लू का घर था। वह इसे झूला समझकर स्वयं ही हिलाता रहता था। 

-लेखिका जब भी लिखने बैठतीं तो उनके पास ही मँडराता रहता था। 

-सर्र से परदे पर चढ़ना, उसका खेल बन गया था।

-कभी- कभी लेखिका उसे आधा लिफ़ाफ़े में बंद भी करती तो वह टुकर-टुकर उन्हें देखता रहता था। 

-गिल्लू के जीवन का पहला वसंत आया तो फूलों की खुशबू लेखिका के बगीचे में फैलने लगी। 

-गिल्लू देखता कि गिलहरियाँ बाहर उछल-कूद कर रही हैं। 

-उन्हें देखकर उसका भी मन बाहर जाने को तरसता। लेखिका ने एक तरफ़ से जाली को खोल दिया। 

-अब गिल्लू अकसर अपनी जाली से बाहर निकलकर घूमता और मस्त रहता। 

-शाम को बजे जब लेखिका वापिस आ जाती तो गिल्लू भी खिड़की की जाली से होता हुआ अपनी टोकरी में वापस आ जाता। 

-धीरे-धीरे गिल्लू के प्रति लेखिका की आत्मीयता बढ़ती गई। 

-एक बार लेखिका को मोटर दुर्घटना के बाद अस्पताल में भरती करवाया गया। 

-जब लेखिका अस्पताल से घर लौटकर आई तो गिल्लू ने एक परिचारिका की भाँति अपनी स्वामिनी की देखभाल की। 

-वह घटों लेखिका के पास बैठकर उनके बालों को सहलाता था। गिल्लू को काजू बहुत पसंद थे। 

-परंतु जब लेखिका अस्पताल से वापिस आई तो गिल्लू की टोकरी में काजू ज्यों-के-त्यों पड़े मिले।

-इसका यह अर्थ था कि लेखिका की अनुपस्थिति में उसे अपना सबसे अच्छा लगने वाला पदार्थ काजू भी अच्छा नहीं लगता था। 

-गिलहरियों को उम्र दो वर्ष से अधिक नहीं होती। गिल्लू के अंतिम समय वह बहुत उदास था। 

-उस दिन वह न तो बाहर खेलने गया और न ही उसने कोई उछल-कूद दिखाई। 

-अपने ठंडे पंजों से वह लेखिका की उँगली को उसी प्रकार पकड़ कर बैठा रहा, जैसे उसने बचपन में प्राप्त अवस्था में पकड़ा था।

-उसके पंजों को गरमाहट देने के लिए लेखिका ने होटर भी चलाया, लेकिन सुबह होते-होते वह गहरी नींद में सोया और उसके बाद नहीं उठा।

-लेखिका ने सोनजुही की लता के नीचे ही गिल्लू की समाधि बनाई। 

-लेखिका सोनजुही देखते ही गिल्लू की स्मृति में खो जाती थी। 

-उन्हें विश्वास था कि शायद एक दिन गिल्लू सोनजुही के छोटे से पीले फूल के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।

शेखचिल्ली और ज्योतिषी -शेखचिल्ली और उसके किस्से

Top Best Famous Moral Stories In Hindi  
शेखचिल्ली और ज्योतिषी 
एक दिन शेखचिल्ली एक पेड़ पर चढ़कर उसकी शाखाएँ काटने लगा। काटते-काटते बेध्यानी में वह उसी डाल को काटने लगा, जिस पर वह खुद बैठा हुआ था ।

 संयोगवश एक ज्योतिषी उसी समय वहाँ से गुजरा ।
'मैं क्यों गिर जाऊँगा ?' "शेख ने हैरत से पूछा।" क्योंकि तुम उसी डाल को काट रहे हो, जिस पर तुम खुद बैठे हो !"

शेखचिल्ली की बेवकूफी देखकर वह चिल्लाया , "अरे बेवकूफ ! यह तुम क्या कर रहे हो ? इस तरह तो तुम पेड़ से गिर जाओगे ।" 

"अरे ! आप महान हैं ! अगर आप महान नहीं होते तो यह भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे कि मैं डाल काटते-काटते गिर जाऊँगा ।

 यह कहते हुए शेखचिल्ली पेड़ से नीचे उतर आया और ज्योतिषी से अपने हाथ की रेखाएँ पढ़ने को कहने लगा । उधर उस ज्योतिषी ने सोचा, 'यह आदमी तो कोई बेवकूफ लग रहा है। 

फिर यह मुझे जानता भी नहीं । 

ऐसा करता हूँ, मौके का फायदा उठाकर इससे पैसे ठग लेता हूँ ।' यह सोचकर वह ज्योतिषी उससे बोला, "तुम मुझे सवा रुपए दक्षिणा दो ।

फिर मैं तुम्हें एक करामाती डोरी दूँगा, जिसमें तुम्हारी जान कैद हो जाएगी । जब तक वह डोरी तुम्हारे गले में मौजूद रहेगी, तुम नहीं मरोगे । जब भी तुम्हारे गले में मौजदू डोरी टूट जाए, तुम समझ लेना कि तुम मर चुके हो।" "और अगर मैं डोरी टूटने के बाद भी नहीं मरा तो ?" 
"तो मैं तुम्हें सवा रुपया दक्षिणा के बदले पाँच रुपए दूँगा।" 

 यह सुनकर शेखचिल्ली बहुत खुश हुआ। वह सोच रहा था कि सवा रुपए में करामाती डोरी जैसी चीज कहाँ मिलती है ? अगर डोरी करामाती नहीं भी हुई तो भी उसे पाँच रुपए तो मिलेंगे ही। 
यह सोचकर उसने उस ज्योतिषी को सवा रुपए दे दिए। फिर उस ज्योतिषी ने एक डोरी निकाल कर एक मंत्र पढ़ा और वह डोरी शेखचिल्ली के गले में पहना दी । डोरी पहनकर शेखचिल्ली बहुत खुश हुआ।
 फिर वह ज्योतिषी वहाँ से चलता बना। शेखचिल्ली ने उससे उसका नाम-पता भी नहीं पूछा। 

शेखचिल्ली मुस्कुरा रहा था । वह समझ रहा था कि उसने उस ज्योतिषी को ठग लिया है।
 उसने सोचा, 'वह ज्योतिषी शक्ल से तो बहुत विद्वान लग रहा था, लेकिन था निरा बेवकूफ! जब मैं अपनी बीवी और अम्मी को बताऊँगा कि मैंने उसे कैसे मूर्ख बनाया है तो वे हैरत में पड़ जाएँगी !' 

यही सब सोचते-सोचते वह खुश होता हुआ अपने घर की ओर चल पड़ा। तभी उसके दिमाग में अपनी बीवी के साथ मज़ाक करने का ख्याल आया। घर पहुँचकर वह अपने कुर्ते के बटन खोलकर बिस्तर पर लेट गया। 

जल्दी ही जब उसकी पत्नी की नजर उस डोरी पर पड़ी तो उसने उसके पास जाकर पूछा, “यह डोरी आपके गले में कैसे आई जी ? जब आप घर से गए थे, तब तो यह आपके गले में नहीं थी ?" तब शेख ने उसे 'करामाती' डोरी के बारे में बताया। 
यह सब सुनकर शेख की बीवी भावुक होकर बोली, “मेरे सरताज! मुझे ऐसी फालतू बातों पर बिल्कुल यकीन नहीं ।"
 'अरे बेगम!'  शेखचिल्ली बोला, "तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं है ?" 
"नहीं है, "उसकी बेगम ने कहा, “अगर मैं यह धागा अभी तोड़  दूँ, तब भी तुम्हें कुछ नहीं होगा। 
यह सुनकर शेखचिल्ली घबरा कर बोला, "और अगर मैं मर गया तो ?" 
"बेवकूफों जैसी बातें मत करो। इतने तेजदिमाग हो कर कैसी बातें कर रहे हो ? यह सब अंधविश्वास है, और कुछ नहीं।" 
"धागा टूटा और मेरा दम निकला।" यह कहकर शेख रोने लगा। 
"लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे । मुझे धागा तोड़ना ही पड़ेगा।" यह कहकर उसकी बेगम ने धागा तोड़ दिया । धागा टूटते ही शेखचिल्ली जमीन पर लेट गया। 
"अरे! तुम जमीन पर क्यों लेट गए ?" बेगम ने पूछा।
"तुमने धागा जो तोड़ दिया है । अब तो मैं मर गया।" यह सुनकर बेगम ठहाके लगाने लगी और बोली, "मुर्दे कभी बोलते नहीं हैं ।" 
"ठीक है, मैं भी बात नहीं करूँगा, "शेख ने कहा। तभी शेख की अम्मी कमरे में आ गई। जब उसने शेख को फर्श पर लेटा देखा तो वह घबराकर बोली, "क्या हुआ? तुम फर्श पर क्यों लेटे हो?" 
"तुम्हारी बहू ने मेरी जिंदगी की डोरी तोड़ दी है, अम्मी । मैं मर चुका हूँ !" 
यह कहते हुए शेखचिल्ली ने अपनी अम्मी को सारी बात बता दी। 
अम्मी ने कहा, "नहीं मेरे लाल ! तू मरा नहीं है । जल्दी से उठ खड़ा हो ! 
"शेखचिल्ली रोते हुए चिल्लाने लगा, "नहीं, मैं मर चुका हूँ।" 
शेख की ऐसी बातें सुनकर उसकी अम्मी और बेगम ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं । 
उनके रोने की आवाज सुनकर थोड़ी ही देर में गाँववालों की भीड़ वहाँ जमा हो गई।
 शेखचिल्ली की हालत देखकर उन्होंने उसे पागल हो गया समझकर तुरंत पागलखाने में भर्ती कराने का फैसला किया। 
तभी शेख घबराकर चिल्लाया, "रुको, रुको! मैं तो मज़ाक कर रहा था । खेल खत्म हुआ।" 
"अरे! इसने तो पागलपन की हद कर दी !" एक गाँववाले ने कहा । 
"अरे नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूँ । मैं सिर्फ मज़ाक कर रहा था।" शेख गला फाड़कर चिल्लाया। 
"पर लोगों ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे पागलखाने ले गए। 
हकीम के सामने पहुँचते ही शेख फिर चिल्लाया, "हकीम साहब! मैं पागल नहीं हूँ। मैं तो मजाक कर रहा था।
"जब हकीम ने शेखचिल्ली की जाँच-पड़ताल की तो वे भी जान गए कि शेख पूरी तरह ठीक है। 
उन्होंने यह बात गाँव वालों और शेख की अम्मी के सामने जाहिर कर दी । शेख की अम्मी ने उसे खूब डाँटा और घर ले गईं।

Wednesday, 9 June 2021

निबंधात्मक प्रश्न-उत्तर /हरिहर काका- संचयन CLASS 10 EXTRA QUESTIONS PART-2

HINDI NCERT SOLUTIONS  CLASS 8, 9,10 SPARSH 

निबंधात्मक प्रश्न 

प्रश्न क)- गाँव में आस्था का प्रतीक ठाकुरबारी लोगों के अविश्वास  का केंद्र बन गई है। 

-धन-संपत्ति के लालच में क्या अन्याय में साझीदार बनते हैं महंत व पुजारी ?

-उनके इस लालची रवैये से बचने के उपाय सुझाए ।

उत्तर- ठाकुरबारी सदृश संस्थाओं का यह दायित्व है कि वह समाज में व्याप्त स्वार्थ की भावना को दूर कर जन - जन में परोपकार का भाव जगाए । 

- पर 'हरिहर काका' जैसे लोगों के साथ उनकी आस्था और विश्वास के साथ दुर्व्यवहार करके, धोखा और विश्वासघात करके, उन्होंने यह दिखाया कि बदलते समय और समाज के साथ धार्मिक संस्थाएँ भी भ्रष्ट होती जा रही हैं। एक तरह से वे भ्रष्टाचार का अड्डे बन गई हैं। 

-लोभ-लालच और षड्यंत्रों में फंसे महंत व पुजारी धार्मिक संस्थाओं य समाज का आदर्श नहीं हो सकते । 

-एक लाचार असहाय, दुखी बुजुर्ग को ज़बरन उठाना, उसकी जमीन-जायदाद को हड़पने का प्रयास करना, मारना-पीटना, वंदी बनाना महंत व पुजारियों द्वारा किए गए ऐसे कुकृत्य थे जो धार्मिक संस्थाओं से लोगों के विश्वास को डगमगाने के लिए पर्याप्त है ।

 - इन धार्मिक संस्थाओं में फैले लोभ-लालच को दूर करने के उपाय ढूँढ़ने की जरूरत है, ताकि 'हरिहर काका' की तरह फिर कोई व्यक्ति  इनके जाल में न फँसे । 

-इसके लिए शिक्षा के प्रचार की आवश्यकता है।

 -शिक्षित व्यक्ति अंधविश्वास और धोखे की संभावना के प्रति जागरूक रहता है। 

-चोरी -ठगी, धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है । 

ख) हमारे समाज में  एक महंत या पुजारी से क्या-क्या उम्मीदें लगाई जाती हैं ?  'हरिहर काका' कहानी को ध्यान में रखते हुए उत्तर दीजिए।  

उत्तर - समाज को एक महंत या पुजारी से बहुत-सी उम्मीदें होती है कि वह समाज के लोगों में सामाजिक समरसता, उनमें सद्भावना, भक्ति-भावना पैदा करे या जगाए तथा धर्म से  दूर जा हो रहे या धर्म से मुख मोड़ रहे लोगों को वापस रास्ते पर लाएँ  । 

-धार्मिक स्तर पर ही सही एक महंत का स्थान समाज के लोगों के लिए 'गुरु' तथा 'पिता' के समान होता है, जो अपने शिष्यों तथा संतानों की हित-साधना में संलग्न रहता है और ध्यान रखता है कि वे किसी कुमार्ग पर न चल पड़ें । 

-उक्त कहानी के आधार पर देखा जाए तो यहाँ मठों, मंदिरों और ठाकुरबारियों के महंत तथा पुजारी निहायत ही घृणित, दुराचारी और पापी प्रतीत होते हैं । 

- महंत लालचवश अपनी उच्चाकांक्षाओं को बढ़ावा देते हैं और किसी भी तरह अपनी धन-संपत्ति को  बढ़ाना चाहते हैं । 

-इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हुए नीचता की किसी भी सीमा तक पहुँच जाते हैं । 

-चोरी, डाका और अपहरण का सहारा लेना तो मामूली बात है, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वे हत्या तक कर सकते हैं या करवा सकते हैं । 

-संभवतः सभी महंत उक्त कहानी के पात्र महंत जैसे न होते हों , किंतु एक महंत का चरित्र अन्य महंतों के प्रति भी अविश्वास और संदेह उत्पन्न कर देता है । 

-यह कहानी समाज के प्रति महंतों और धर्मगुरुओं के कर्तव्यों को स्पष्ट करती है तथा कुछ पथभ्रष्ट महंतों को शिक्षा देती है कि वे ईमानदारी से समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करें । 

ग) ' हरिहर काका ' कहानी हमें समाज के कई पहलुओं की ओर ध्यान देने को बाध्य करती है। 

 ' हरिहर काका' जैसे  ही किसी व्यक्ति को क्या अपने आस-पास देखा है ? 

यदि देखा है तो उनकी मदद आप किस प्रकार करेंगे ? अपने शब्दों में लिखिए । 

उत्तर- हरिहर काका कहानी में धार्मिक अंधविश्वास की झलक मिलती है । 

-यह कहानी पारिवारिक रिश्तों की यांत्रिकता व संवेदनहीनता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है । 

-कहानी हमारे टूटते हुए मूल्यों व जनतिकता का परिचय देती है । 

-पहले तो परिवारवालों ने हरिहर काका को खूब आदर-सत्कार दिया, परंतु धीरे-धीरे उनका बर्ताव हरिहर काका के लिए बदलने लगा वे उन्हें बोझ मानकर उनका अपमान करने लगे। स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि उन्होंने हरिहर काका को जान से मारने की भी कोशिश की । 

- उपर्युक्त बातों से यह तो स्पष्ट हो रहा है कि अब समाज में रिश्तों के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। लोगों में स्वार्थ भावना बढ़ती जा रही है । 
-इस कहानी में ठाकुरवारी के प्रति लोगों के अंधविश्वास का भी परिचय मिलता है । 
ठाकुरबारी के संतों-महंतों द्वारा हरिहर काका का अपहरण कर उन्हें मारना-पीटना और जबरन उनके अँगूठे का निशान लेना यह स्पष्ट करता है कि साधु-संतों, महंतों के वेश में अपराधी लोग समाज को गुमराह करते हैं ।
 लोगों को धर्म के नाम पर उकसाते हैं, फिर धर्म को ही हथियार बनाकर लूटते हैं, समाज में अंधविश्वास फैलाते हैं ।  हरिहर काका जैसे लोग इसका उदाहरण हैं। 
 आजकल कई बुजुर्ग अपना कोई न होने  घरवालों द्वारा समय न दिए जाने पर अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं।  घरवालों को वे बोझ लगने लगते हैं तो वे उन्हें वृद्ध आश्रमों में भेज देते हैं । 
-हम उन्हें जागरूक करने का प्रयास करते हुए जरूरत पड़ने पर पुलिस या मीडिया की सहायता लेंगे और उनकी मदद करेंगे । 
- समाज में जागरूकता अभियान चलाकर हम इन लोगों की सहायता कर सकते हैं । 

घ)  ठाकुरवारी जैसी धार्मिक संस्थाओं का गाँव के लोगों के प्रति कर्तव्यों तथा उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए । 
उत्तर - ठाकुरबारी जैसी धार्मिक संस्थाओं का गाँव के लोगों के प्रति अपने महत्त्वपूर्ण दायित्व को निभाना  चाहिए । 
-किसी भी धार्मिक संस्था का यह कर्तव्य होता है कि वह समाज व लोगों में फैली स्वार्थ की भावना को दूर करने का प्रयास करे और लोगों में जनकल्याण,परोपकार की भावना विकसित करे । 
-समाज में व्याप्त अनाचार, अराजकता, अन्याय और आपाधापी को दूर कर लोगों में संतोष एवं धैर्य की भावना का प्रसार करें । 
-कहानी 'हरिहर काका' में भी गाँव के लोगों क  ठाकुरबारी पर गहरी आस्था व विश्वास था। 
- गाँव वालों के सभी शुभ कार्यों का आरंभ  ठाकुरबारी से होता था, यदि वे किसी कारणवश दुखी होते थे तो वहीं दुखी मन को आश्रय देने का स्थान भी उन्हें ठाकुर द्वार ही दिखाई देता था । 
-पर आस्था और विश्वास के इस मंदिर ने हरिहर काका जैसे लोगों के साथ विश्वासघात करके, उनके साथ दुर्व्यवहार करके ये दिखा दिया कि बदलते परिवेश के साथ-साथ धार्मिक संस्थाएँ भी भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं । 

-ऐसे में ठाकुरबारी के महंत एवं तथा-कथित साधु समाज के प्रति जन-मानस में विरक्ति और घृणा का भाव ही पैदा होता है क्योंकि समाज उनसे अच्छे और आदर्श आचरण की अपेक्षा करता है। 

-लोभ-लालच और से षड्यंत्रों में फंसे साधु-संतों के इस आचरण से युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 

-धार्मिक संस्थाओं और समाज की उच्च आदर्शवादिता से उनका विश्वास उठने लगता है जो किसी भी समाज के लिए हितकारी नहीं है । 

ङ ) महंत द्वारा हरिहर काका का अपहरण महंत के चरित्र की किस सच्चाई को सामने लाता है ?
 आपके मन में इससे ठाकुरबारी जैसी संस्थाओं के प्रति कैसी धारणा बनती है ?

 उत्तर -महंत द्वारा हरिहर काका का अपहरण करवाना उसकी दबंगई, मौकापरस्ती, लालची स्वभाव, और -अनैतिक कार्य करने के लिए तत्पर रहने वाले व्यक्ति की छवि हमारे सामने उभरती है।
 -जो साधु के वेश में ठग है । ऐसे धूर्त लोगों को देख कर, हमारे मन में ठाकुरबारी सदृश संस्थाओं के लिए यही धारणा बनती है कि बदलते परिवेश के साथ ये भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं । 
-अब यहाँ जाकर मनुष्य की आत्मा धैर्य, सुख, शांति प्राप्त नहीं करती । वह इस बात से भयभीत रहती है कि कहीं हरिहर काका जैसी स्थिति हमारी भी न हो जाए । 
-लोभ-लालच और षड्यंत्रों में फँसे साधु -संतों के आचरण से युवा पीढ़ी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। 

च)  कहानी के अंत में हरिहर काका ने ज़मीन को लेकर जो निर्णय लिया वह क्या था ? 
वह निर्णय किस प्रकार परिवार के मूल्यों की परिस्थिति पर असर डालता है ?
 हरिहर काका की यह परिस्थिति हमें क्या संदेश देती है  ? 

उत्तर- गाँव की ठाकुरबाड़ी तथा परिवार के सदस्यों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार पाकर अंत में हरिहर काका ने ज़मीन को अपने पास ही रखने का निर्णय लिया। 
-उन्होंने अपनी देखभाल करने के लिए एक सेवक रख लिया । 
-उनका यह निर्णय परिवार को सामाजिक तथा आर्थिक प्रतिष्ठा के हनन के रूप में प्रभावित करता है ।
 -परिवार के वृद्ध व्यक्ति के अलग रहने की स्थिति को समाज में, सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता ।
 -परिवार की कलहपूर्ण स्थिति सबके समक्ष आ जाती है तथा गाँव,समाज को यह पता चल जाता है कि इस घर-परिवार में रिश्तों तथा मानवीय भावनाओं का कोई मूल्य नहीं है। 
-आर्थिक रूप से भी परिवार प्रभावित होता है क्योंकि संपत्ति छोटे-छोटे भागों में विभक्त होने लगती है । 
-यह स्थिति हर व्यक्ति को यह संदेश प्रदान करती है कि परिवार जैसी सुदृढ़ संस्था का विघटन सदैव हानिकारक होता है । 
-अतः पारिवारिक मूल्यों की रक्षा करनी आवश्यक है । 
-घर-परिवार में वयोवृद्धों को पर्याप्त सम्मान, सुरक्षा तथा प्रेम मिले तो संबंध तथा संपत्ति दोनों के साथ प्रतिष्ठा भी सुरक्षित रहेगी । 

छ) संयुक्त परिवार में सुखपूर्वक रहने के लिए आप किन-किन जीवन-मूल्यों को आवश्यक मानते हैं और क्यों ?  
उत्तर- संयुक्त परिवार भारतीय संस्कृति की विभिन्न परंपराओं का एक महत्त्वपूर्ण अंग सदैव रहा है। 
-ऐसे परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होती है तथा आयु-वर्ग भिन्न-भिन्न होते हैं । 
-संयुक्त परिवार में सुखपूर्वक रहने के लिए आवश्यक है कि सभी सदस्य आपसी प्रेम, स्नेह तथा बड़ों को आदर देना जैसे मूल्यों को सर्वोपरि मानते हों ।
-उनमें एक-दूसरे के सुख-दुख को समझने तथा विपरीत परिस्थितियों में एक-दूसरे का साथ निभाने की प्रवृत्ति होनी चाहिए । 
-घर के वयोवृद्ध व्यक्तियों के प्रति उपेक्षा तथा अनादर जैसी नकारात्मक भावनाएँ नहीं होनी चाहिए । 
-निजी स्वार्थ, धन-लोलुपता तथा अहंकारी मनोवृत्ति को छोड़कर सहनशीलता तथा सहयोग जैसे मानवीय मूल्यों को अपनाकर ही संयुक्त परिवार में रहा जा सकता है। 
-हरिहर काका का संयुक्त परिवार तभी बिखरा, जब परिवार के सदस्यों को संपत्ति के लालच ने घेर लिया । -स्वार्थवश पहले तो काका की पूरी आवभगत की गई तथा मान-सम्मान भी दिया गया, परंतु जैसे ही भाईयों की -स्वार्थ-सिद्धि के मार्ग में बाधा आई, उन्होंने अपने नकली मुखौटे उतार दिए । 
-सहनशीलता, प्रेम तथा आदर समाप्त हो गए और काका उपेक्षा के शिकार बन गए। जिसका लाभ महंत, नेता आदि ने उठाने की कोशिश की ।

Tuesday, 8 June 2021

हरिहर काका- संचयन CLASS 10 EXTRA QUESTIONS PART-1

हरिहर काका -लघु उत्तरीय  प्रश्न 

प्रश्न1- हरिहर काका पाठ से आपको क्या सीख मिलती है ?

उत्तर- यह पाठ पारिवारिक संबंधों में भ्रातृभाव को नकारते हुए पाँव पसारती जा रही स्वार्थ-लिप्सा पर आधारित है।

 -इस पाठ में धर्म की आड़ में फलने-फूलने का अवसर पा रही हिंसावृत्ति को बेनकाब किया है।

-पाठ में आज के ग्रामीण जीवन का ही नहीं, बल्कि शहरी जीवन की यथार्थता को भी उजागर करता है। 

-इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज के समय में धन का महत्त्व सर्वोपरि है। 

-धन-प्राप्ति के लिए इंसान किसी भी हद तक नीचे गिर सकता है। 

2. गाँव में ठाकुरबारी की अहमियत थी, उससे आपमें कौन-से मानवीय गुण विकसित होते हैं ?

उत्तर- गाँव के लोग कुमार्ग पर न चलें , इसके लिए गाँव में एक ठाकुरवारी की स्थापना की गई थी, जिससे कि गाँववाले आध्यात्मिकता से जुड़ें । 

-गाँववालों की ठाकुरवारी के प्रति अपार बदा थी । 

-इसलिए सभी अपना प्रत्येक कार्य ठाकुर जी की मनौती मानकर ही करते थे । 

-इससे हमारे अंदर गुण विकसित होते हैं कि कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए ।

 3.  'हरिहर काका' पाठ से आज की युवा पीढ़ी को क्या प्रेरणा लेनी चाहिए ?

 उत्तर-' हरिहर काका ' पाठ से आज की युवा पीढ़ी को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि अगर हरिहर काका की तरह कोई व्यक्ति जमीन का मालिक है, धनी है, तो उसे स्वार्थ के धरातल से उठकर अपनी जमीन तया संपत्ति को सत्कर्मो तथा परोपकार में लगा देना चाहिए । 

ऐसा करने से उसका सारा जीवन आनंद से बीतता है और उसका लोक-परलोक दोनों सार्थक हो जाते हैं ।

 4. इस पाठ के माध्यम से लेखक कौन-सी सामाजिक प्रवृत्तियों को बताना चाहते हैं ?

 उत्तर- इस पाठ के माध्यम से लेखक आज के पारिवारिक संबंधों में भ्रातृभाव,

  •  रिश्तों की अहमियत, 
  • रिश्तों की गरमाहट के भावों को नकारती हुई तथा पाँव पसारती हुई स्वार्थ-लिप्सा और धर्म की आड़ में फलने-फूलने का अवसर पा रही हिंसात्मक प्रवृत्ति को उजागर करना चाहते हैं ।

5-'हरिहर काका' पाठ के आधार पर लिखिए कि 'स्वार्थ-लिप्सा' के कारण आजकल पारिवारिक संबंध कैसे बनते-बिगड़ते हैं ? 

उत्तर- ' स्वार्थ - लिप्सा ' के कारण आजकल पारिवारिक संबंध बिगड़ रहे हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थी हो गया है , जिससे घर की शांति भंग हो गई है । 

-बुजुर्ग उपेक्षा भरा जीवन जी रहे हैं । 

-हर व्यक्ति अधिक-से-अधिक धन कमाने की होड़ में लगा हुआ है, चाहे इसके लिए उसे गलत तरीके ही क्यों न अपनाने पड़ें । 

-हर व्यक्ति अपना स्वार्थ पूरा करना चाहता है, उसे दूसरे की कोई परवाह नहीं है । 

-आज धन सर्वोपरि समझा जाने लगा है । इसी कारण पारस्परिक संबंधों में बदलाव आ गया है

6- किन परिस्थितियों या कारणों से हरिहर काका के  सगे भाई उनसे पहले जैसा व्यवहार नहीं करते थे ?

 उत्तर-ऐसे कई कारण थे जिस वजह से हरिहर काका के साथ उनके सगे भाइयों का व्यवहार, क्योंकि उन्होंने जीते - जी अपनी 15 बीघे जमीन उन सभी के नाम करने से इंकार कर दिया था और ऐसा करने से ही उनके सगे भाइयों ने उनपर बहुत जुल्म और अत्याचार किए ।

 7- 'हरिहर काका' गाँव में चर्चाओं के केंद्र हैं बन गए थे।' हरिहर काका के विषय में ऐसी किन्हीं चार चर्चाओं/ खबरों का उल्लेख कीजिए ।

 उत्तर- हरिहर काका आँगन , खेत , खलिहान , बाग - बगीचे , गाँव की हर जगह चर्चा का केंद्र हैंI

(I) उनकी 15 बीघे ज़मीन पर किसका हक होगा ।

(ii) उनके भाइयों को उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए ।

(iii) हरिहर काका को अपनी ज़मीन स्वयं ही अपने भाइयों को दे देनी चाहिए ।

(iv) हरिहर काका को ज़मीन ठाकुर जी के नाम लिख देनी चाहिए ।

8- क्या कारण थे कि लेखक के मन में हरिहर काका के प्रति विशेष आसक्ति थी ?

उत्तर- हरिहर काका और लेखक दोनों एक ही गाँव के निवासी थे । दोनों के बीच आत्मीय संबंध थे।  

लेखक गाँव के जिन कुछ लोगों का  सम्मान करता था और हरिहर काका उनमें से एक थे । 

उनके प्रति लेखक के मन में सम्मान के जो व्यावहारिक और वैचारिक कारण हैं, उनके लिए निम्नलिखित बातें आधार थीं-

( क ) हरिहर काका उनके पड़ोसी थे ।

( ख ) लेखक की माँ के अनुसार हरिहर काका ने उसे ( लेखक को ) बचपन में बहुत प्यार किया था 

 ( ग) लेखक के बड़े होने पर उसकी पहली दोस्ती हरिहर काका के साथ ही हुई थी । दोनों आपस में बहुत ही खुल कर बातें करते थे ।

9- महंत जी ने हरिहर काका को एकांत कमरे में बैठाकर प्रेम से क्या समझाया ?

उत्तर- परिवारवालों पर क्रोधित हरिहर काका को महंत जी ने यह कहते हुए समझाया कि यहाँ कोई भी किसी का नहीं है। 

-सब माया का बंधन है । पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब स्वार्थी हैं । 

-तुम्हारे हिस्से में पंद्रह बीघे खेत हैं, इसलिए वे तुम्हें रखे हुए हैं । 

-यदि तुम उन्हें ये खेत न देकर किसी दूसरे को दे दोगे, तो ये खून के संबंध समाप्त हो जाएंगे । 

-तुम ये खेत ठाकुर के नाम लिख दोगे, तो तुम्हें बैकुंठ मिलेगा । 

-तीनों लोकों में तुम्हारी कीर्ति जगमगा उठेगी । जब तक सूरज-चाँद रहेंगे, तुम्हारा नाम रहेगा । 

-सभी तुम्हारा यशोगान करेंगे और तुम्हारा जीवन सार्थक हो जाएगा ।


लघु कथाएँ -दुष्ट से दूर रहें, संगीत की ताकत, महत्त्वपूर्ण दान

Top Best Famous Moral Stories In Hindi  -  कहानियाँ एवं लघु कथाएँ
1 दुष्ट से दूर रहें
एक बार एक दुष्ट बाघ के गले में एक हड्डी फंस गई। वह ठीक से न तो साँस ले पा रहा था और नहीं बोल पा रहा था। 
बहुत प्रयास करने के बाद भी वह गले से हड्डी नहीं निकाल पाया। वह इस तकलीफ से निजात पाने के लिए मदद ढूँढ़ने लगा।  
वह जंगल के सभी जानवरों के पास गया और सबसे गले में फंसी हड्डी को निकालने के लिए कहा। साथ ही उसने यह प्रलोभन भी दिया कि जो मेरे गले में फंसी हड्डी निकालेगा, उसे वह इनाम भी देगा।

जंगल के सभी जानवर उसके स्वभाव से परिचित है इसलिए किसी ने उसकी मदद नहीं की। 
बाघ. निराश हो चुका था। तभी उसे एक बगुला दिखाई दिया। 
बगुले को देखकर उसके मन में आशा जगी। बगुले के पास जाकर उसने उससे कहा, "मेरे गले में एक हड्डी फंस गई है। 
जिसके कारण मैं बहुत तकलीफ में हूँ।तुम्हारी चोंच लंबी है, इससे तुम मेरे गले में फंसी हड्डी निकाल दो। मैं इसके बदले में तुम्हें इनाम दूँगा।"

 बगुला इनाम के लालच में तैयार हो गया। उसने अपनी लंबी चोंच बाघ के गले में डालकर हड्डी निकाल दी। 
बाघ की तकलीफ दूर हो गई। वह बहुत ज़ोर से दहाड़ा और वहाँ जाने लगा। 
इनाम के बारे में कोई बात न करने पर बगुले ने उससे इस संबंध में पूछा। इस पर बाघ बोला, "तू पागल है क्या ? तेरी चोंच मेरे मुँह में जाकर भी सही सलामत वापस आ गई। 
यह क्या किसी इनाम से कम है। तुझे देखकर मेरी भूख फिर से जाग रही है। भाग जा नहीं तो मैं तुझे भी खा जाऊँगा।" यह सुनकर बगुला मन मसोसकर रह गया और वहाँ से उड़ जाने में ही उसने अपनी भलाई समझी। 

2 संगीत की ताकत 

अकबर तानसेन के गुरु हरिदास का गायन सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे लेकिन उनके दिल्ली आने की उन्हें कोई उम्मीद न थी और न ही भरोसा था कि वृंदावन में कभी भी उनके सामने गाना गाएँगे।
 
 अकबर के बार-बार निवेदन करने पर तानसेन ने एक उपाय सोचा। अकबर साधारण वेश में वृंदावन पहुँचे और हरिदास की कुटिया के बाहर छिप कर बैठ गए। 
तानसेन इस बीच कुटिया के भीतर जा गुरु के सामने बैठ गाने लगे। तानसेन ने एक जगह जान-बूझ कर गलती कर दी।
 शिष्य की भूल सुधारने के लिए हरिदास खुद गाने लगे। इस तरह सम्राट अकबर ने हरिदास का गायन सुना। 

वापस लौटते समय अकबर ने तानसेन से प्रश्न किया, "तानसेन मैंने न जाने कितनी ही बार तुम्हें गाना गाते सुना है। तुम बहुत अच्छा गाते हो, लेकिन वैसा नहीं गाते जैसा जैसे तुम्हारे गुरु गाते हैं। 
जब वह गा रहे थे तब उनका स्वर सौंदर्य कुछ और ही तरह का था। आखिर, इसकी वजह क्या है?"

 तानसेन ने अकबर से कहा, "जहाँपनाह, इसकी वजह यह है कि मैं आपके लिए गाता हूँ, हिंदुस्तान के बादशाह के लिए गाता हूँ मगर वे तो सारी दुनिया के मालिक के लिए गाते हैं। 
संगीत में ताकत तब  पैदा होती है, जब उसे प्रकृति के लिए और प्रकृति के बीच में बैठकर गाया जाए। दरबार में बैठकर गाने से ऐसा संगीत नहीं पैदा हो सकता।"

 3 महत्त्वपूर्ण दान 

एक दिन भगवान बुद्ध एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हुए थे। उनके पास उस समय भक्तों का ताँता लगा हुआ था। 
वे हर भक्त की भेंट स्वीकार को बड़े प्रेम से स्वीकार कर रहे थे। तभी एक वृद्धा उन भक्तों की भीड़ से निकल कर वहाँ आई। 

 उसने काँपते स्वर में भगवान बुद्ध से कहा, "भगवन, मैं बहुत गरीब हूँ।  मेरे पास आपको भेंट देने के लिए इस आम के सिवा और कुछ भी नहीं है।
 आज यह एक आम मुझे मिला है परंतु मैं इसे आधा जब खा चुकी थी तभी मुझे पता चला कि तथागत (महात्मा बुद्ध )आज दान ग्रहण करेंगे। 
अतः मैं इस आम को लेकर यहाँ आ गई ताकि आपके चरणों में इसे भेंट कर सकूँ। भगवन! कृपा कर इस भेंट को स्वीकार करें। 

गौतम बुद्ध ने उस आधे आम को अपने पात्र में बड़े प्रेम और श्रद्धा से रख दिया। 
मानो भेंट में उन्हें कोई बड़ा रत्न मिला हो। वृद्धा संतुष्ट भाव से वहाँ से लौट गई। 
वहाँ उपस्थित राजा यह सब देखकर चकित रह गए। उन्हें यह समझ नहीं आया कि भगवान वृद्धा का झूठा आम प्राप्त करने के लिए अपना आसन छोड़कर नीचे तक, हाथ पसार कर क्यों आए? 
उन्होंने महात्मा बुद्ध से पूछा, "भगवन इस वृद्धा में और इसकी भेंट में ऐसी क्या विशेषता है ?" 

महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, "राजन, इस वृद्धा ने अपनी संपूर्ण संचित पूँजी मुझे भेंट कर दी जबकि आप लोगों ने अपनी संपूर्ण संपत्ति का केवल एक छोटा-सा भाग ही मुझे भेंट किया है।
आप सब दान के अहंकार में डूबे हुए बग्गी पर चढ़कर यहाँ आए हो। 
वह वृद्धा पैदल चलकर दूर से आई थी। उस वृद्धा के मुख पर कितनी करुणा और नम्रता थी। ऐसा अनमोल दान तो युगों-युगों के बाद ही मिलता है। 


Sunday, 6 June 2021

लघु कथाएँ-सबसे बड़ा मूर्ख,पटेल की कर्तव्यनिष्ठा, तिनके का महत्त्व

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1.  सबसे बड़ा मूर्ख 
एक बहुत धनी व्यापारी था । उसमें बहुत धन-संपत्ति इकट्ठे कर रखी थी । 

उसका एक नौकर था शंभू जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। 
व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता लेकिन शंभू पर कोई असर नहीं होता था।

इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने शंभू को एक डंडा दिया और कहा कि जब तुम्हें अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इस डंडे को उसे दे देना। 
इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता, क्या  तुम्हें तुम से बड़ा मूर्ख मिला। शंभू विनम्रता से इंकार कर देता। एक दिन व्यापारी बहुत बीमार हो गया। 
धीरे-धीरे उसका रोग बढ़ता चला गया। उसका रोज इतना बड़ा कि वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया।
अपने अंतिम समय में उसने शंभू को अपने पास बुलाया और कहा, "अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूँ।" शंभू ने व्यापारी से कहा, "मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।" 
व्यापारी ने प्यार से  हुए डाँटते कहा, "वहाँ कोई किसी के साथ नहीं जाता।"
शंभू ने फिर कहा, "आप धन दौलत सुख-सुविधा के सामान जरूर ले जाइए और आराम से वहाँ रहिएगा।" 
व्यापारी ने शंभू से कहा, "पगले! कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।"
इस पर शंभू बोला," मालिक! तब तो यह डंडा आप ही रखिए क्योंकि मुझे सबसे बड़ा मूर्ख तो आप ही दिखे।
 जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता तो ने बेकार ही पूरा जीवन धन-दौलत और सुख-सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। 
न तो दान-पुण्य किया, न ही भगवान का भजन। इस झंडे के असली हकदार तो आप ही हैं ।"

2 पटेल की कर्तव्यनिष्ठा
सरदार वल्लभभाई पटेल अदालत में एक मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। मामला बहुत ही गंभीर था। 
थोड़ी-सी लापरवाही भी उनके क्लाइंट को फांसी की सजा दिला सकती थी।
 सरदार पटेल जज के सामने तर्क दे रहे थे। एक व्यक्ति ने आकर उन्हें एक कागज थमाया। सरदार पटेल ने उस कागज को पढ़ा।
एक क्षण के लिए उनका चेहरा गंभीर हो गया लेकिन फिर उन्होंने उस कागज को मोड़कर जेब में रख लिया।
मुकदमे की कार्यवाई समाप्त हुई। 
सरदार पटेल के प्रभावशाली तर्कों से उनके क्लाइंट की जीत हुई। अलग से निकलते समय उनके एक साथी वकील ने पटेल जी से पूछा, पत्र में क्या लिखा था? 
तब सरदार पटेल ने बताया कि वह मेरी पत्नी की मृत्यु की सूचना का तार था। साथी वकील ने आश्चर्य से कहा कि इतनी बड़ी घटना घट गई और आप बहस करते रहे।
सरदार पटेल ने उत्तर दिया, "उस समय मैं अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था। 
मेरे क्लाइंट का जीवन मेरी बहस पर निर्भर था। मेरी थोड़ी सी अधीरता उसे फांसी के तख्ते पर पहुँचा सकती थी। 
मैं उसे कैसे छोड़ सकता था? पत्नी तो जा ही चुकी थी।
 क्लाइंट को कैसे जाने देता?" 
ऐसे दृढ़ चरित्र व चरित्रनिष्ठा के कारण वह लौहपुरुष कहे जाते हैं ।

 3 तिनके का महत्त्व
कोमल हरी भरी घास से भरा एक मैदान था। हरी घास के बीच में एक सूखा तिनका भी पड़ा हुआ था। 
घास ने तिनके को देखकर हंसते हुए कहा," हरी-भरी कोमल घास के बीच में तुम क्या कर रहे हो? 
तुम तो सूखे और मुरझाए हुए हो। न तो तुम दिखने में सुंदर हो, न ही किसी काम के ही हो । 
तुम्हारा तो जीवन ही व्यर्थ है।" घास की बात सुनकर तिनके को बहुत दुख हुआ उसने सोचा " सच ही तो है। मैं सचमुच किसी काम का नहीं हूं।"
तभी तेज हवा चलने लगी। हवा के जोर से घास जोर- जोर से हिलने लगी । 
घास में पड़ा सूखा तिनका तेज हवा से उड़कर पास की पानी की खुली टंकी में जा गिरा। उस टंकी के पानी में बड़ी देर से एक चींटी मृत्यु से संघर्ष कर रही थी।
तिनका जैसे ही उसके पास पहुँचा बहुत जल्दी से तिनके पर चढ़ गई। बहते-बहते तिनका टंकी के किनारे पहुँच  गया । चींटी टंकी की दीवार पर चढ़कर बाहर निकल गई।
 बाहर पहुँच कर उसने तिनके को धन्यवाद दिया।
तिनका बोला," धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए। तुम्हारे कारण आज मुझे अपना महत्त्व पता चल गया। 
मुझे आज ही पता चला इस धरती पर मौजूद हर वस्तु का अपना ही महत्व है।"

Friday, 4 June 2021

लघु कथाएँ - कर्मों का फल, हीन भावना, गुस्से की दवा

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1 कर्मों का फल 

भगवान बुद्ध जब चेतवन विहार में रह रहे थे। भिक्षु चक्षुपाल तब वहाँ भगवान बुद्ध से मिलने के लिए आए । 

उनके आगमन के साथ उनकी दिनचर्या, व्यवहार और गुणों की भी चर्चा हुई। शिशुपाल जन्म से अंधे थे। 

एक दिन विहार के कुछ भिक्षुओं ने कुछ  मरे हुए कीड़ों को चक्षुपाल की कुटी के बाहर देखा। 

चक्षुपाल की कुटी के बाहर मरे कीड़ों  देखकर उन्होंने चक्षुपाल की निंदा करनी शुरू कर दी।

 वे सभी भिक्षु यही सोच रहे थे कि चक्षुपाल ने ही इन जीवित प्राणियों की हत्या की है। 

भगवान बुद्ध ने उन भिक्षुओं को अपने पास बुलाया जो चक्षुपाल की निंदा कर रहे थे। 

बुद्ध ने उनसे पूछा कि क्या तुमने भिक्षु चक्षुपाल को उन कीड़ों को मारते हुए देखा है। उन भिक्षुओं ने  उत्तर दिया कि हमने उन्हें उन कीड़ो को मरते हुए नहीं देखा है। 

यह सुनकर भगवान बुद्ध ने उन भिक्षुओं से कहा कि जब तुमने चक्षुपाल कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन कीड़ों को मरते हुए नहीं देखा और उन्होंने कीड़ों को जान बूझकर नहीं मारा है। इसलिए उनकी निंदा करना उचित नहीं है। 

भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध से चक्षुपाल के अंधे होने का कारण पूछा ? वे यह जानना चाहते थे कि क्या चक्षुपाल ने इस जन्म में अथवा पिछले जन्म में कुछ पाप किए हैं? 

भगवान बुद्ध ने चक्षुपाल के बारे में भिक्षुओं को बताया कि पिछले जन्म में चक्षुपाल एक चिकित्सक थे और लोगों का इलाज किया करते थे।

 एक बार एक अंधी स्त्री ने उनसे वादा किया  कि यदि वह उसकी आँखें ठीक कर देंगे तो वह और उसका पूरा परिवार उनके दास बन जाएँगे और उनकी सेवा करेंगे।

 चिकित्सक ने इलाज करके उस स्त्री की आँखें ठीक कर दीं। आँखें ठीक हो जाने पर दासी बनने के भय से उस स्त्री ने  यह मानने से इंकार कर दिया कि उसकी आँखें ठीक हो गईं हैं। 

मगर चिकित्सक को तो पता था कि उस स्त्री की आँखें ठीक हो गईं हैं  और वह उनसे  झूठ बोल रही है। उस स्त्री को सबक सिखाने के लिए या उससे बदला लेने के लिए चक्षुपाल ने उसे दूसरी दवा दी, उस दवा से महिला फिर अंधी हो गई। 

वह स्त्री कितना ही रोई-पीटी, लेकिन चक्षुपाल  का हृदय उसके लिए ज़रा भी नहीं पसीजा । इस पूर्व जन्म के पाप कर्म के फल स्वरुप ही अगले जन्म में चिकित्सक को अंधा बनना पड़ा। 

2 हीन भावना 

संगीतकार गॉल्फ़र्ड के पास उसकी एक शिष्य अपने मन की व्यथा कहने गई वह कुरूप होने के कारण संगीत मंच पर जाते ही यह सोचने लगती है कि दूसरी आकर्षक लड़कियों की तुलना में उसे दर्शक नापसंद करेंगे और उसकी हँसी उड़ाएँगे।

 मन में ऐसे विचार आते ही वह घबरा जाती है और गाने की जो तैयारी वो घर से करके जाती , वह सब उसके घबराने से गड़बड़ा जाती थी। 

घर पर वह इतना मधुर गीत गाती है, इतना मधुर, कि जो भी उसे सुने वह उसकी प्रशंसा करे, पर मंच पर जाते ही न जाने उसे क्या हो जाता है कि हक्का-बक्का होकर अपनी सारी प्रतिभा गँवा बैठती है। 

गॉल्फ़र्ड ने उसे एक बड़ी शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि देखते हुए गाने की सलाह दी और कहा, वस्तुतः वह कुरूप नहीं, जैसी कि उसकी मान्यता है। फिर स्वर की मधुरता और कुरूपता का कोई विशेष संबंध नहीं है। 

जब वह भाव-विभोर होकर गाती है, तब उसके चेहरे का आकर्षण बहुत अधिक बढ़ जाता है और उस समय उसके चेहरे की कुरूपता की बात कोई सोच भी नहीं सकता। 

गॉल्फ़र्ड उस कहते हैं कि अपने मन में से इस हीनता की भावना को निकाल दे। हमेशा सुंदरता के अभाव को ही न सोचती रहे, बल्कि स्वर की मधुरता और भाव-विभोर होने की मुद्रा से उत्पन्न आकर्षण पर विचार करे और अपना आत्मविश्वास जगाए, उस आत्मविश्वास को बढ़ाए। 

 लड़की ने ऐसा ही किया। शुरूआती दिनों में जो लड़की सदा घबराई हुई रहती थी और कुछ आयोजनों में जाने के बाद एक प्रकार से बुरी तरह हताश व निराश ही हो गई थी, अब उसके अंदर नया उत्साह और साहस बढ़ गया था।  

इसी साहस और उत्साह के कारण उसने बहुत प्रगति की और फ्रांस की प्रख्यात गायिका मेरी वुडनाल्ड  के नाम से विश्व में विख्यात हुई।


3  गुस्से की दवा 

यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिसे बात-बात पर गुस्सा आ जाता था। उसके क्रोध करने की आदत से पूरा परिवार परेशान रहता था। 

उसकी इस आदत की वजह से हमेशा परिवार में क्लेश का माहौल बना ही रहता था। घर में लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। 

 एक दिन उस महिला के दरवाजे पर एक साधु आए। महिला ने साधु को अपनी समस्या बताई। उसने साधु से कहा, "महाराज! मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, मैं बात-बात में गुस्सा करने लगती हूँ।

 मैं चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाती। आप कोई उपाय बताइए जिससे मेरा गुस्सा शांत हो जाए और मेरी ये बुरी आदत छूट जाए। 

साधु ने अपने झोले से एक दवा की शीशी निकाल कर उस महिला को दी और और उसे उस दवा को कैसे इस्तेमाल करना है, इसका तरीका भी बताया। 

साधु ने महिला से कहा कि जब भी तुमको गुस्सा आए इस शीशी में से चार बूँद दवा अपनी जीभ पर डाल लेना। 10 मिनट तक दवा को मुँह में ही रखना है।  10 मिनट तक मुँह नहीं खोलना है, नहीं तो दवा असर नहीं करेगी। 

महिला ने साधु के बताए तरीके अनुसार दवा का प्रयोग शुरू किया। सात दिन में ही उसकी गुस्सा करने की आदत बिल्कुल छूट गई। 

सात दिन बाद वह साधु फिर से उसके दरवाजे पर आए तो महिला उसके पैरों में गिर पड़ी। 

उसने साधु से कहा, "महाराज! आप की दवा से मेरा क्रोध बिल्कुल गायब हो गया है। अब मुझे गुस्सा नहीं आता और मेरे परिवार में शांति का माहौल रहता है।

 उसकी बात सुनकर साधु महाराज ने उसे बताया कि जो दवा की शीशी उन्होंने उसे दी थी, वह कोई दवा नहीं थी। उस शीशी में केवल पानी भरा था।

 गुस्से का इलाज केवल चुप रहकर ही किया जा सकता है क्योंकि गुस्से में व्यक्ति उल्टा-सीधा बोलता है, जिससे विवाद बढ़ता चला जाता है। 

इसलिए क्रोध का इलाज केवल मौन ही है। जब व्यक्ति क्रोध करना छोड़ देता है तब घर में शांति का माहौल बनता है।  

Tuesday, 1 June 2021

लघु कथाएँ - महान रचनाकार, जीवन में शांति, चलो तो सही

महान रचनाकार 
एक युवक ने समाज के दुख दर्द की कथा, सीधी  सरल भाषा में नई तकनीक के साथ लिखी। 
वह उसे अपने देश के प्रमुख समाचार-पत्र में प्रकाशित करने के लिए संपादक के पास ले गया। 

संपादक उस युवक को देखकर बोला- कहानीकार के अनुभव और सृजन कला में तुम अभी कच्चे हो। मैं नहीं समझता कि हमारे जैसे समाचार-पत्र के स्तर की कहानी तुम्हारे पास है। 

यह सुनकर युवक संपादक से बोला, "सर मैं अपने इस कहानी को आपके पास छोड़कर जा रहा हूँ। उम्मीद है समय मिलने पर आप इसे एक नजर अवश्य देखेंगे और कुछ कमी पाए जाने पर मुझे बताएँगे ताकि मैं उसे सुधार सकूँ।" 

 कुछ दिन बाद वही संपादक उस युवक के दरवाजे पर खड़ा दस्तक दे रहा था। जब युवक ने दरवाजा खोला तो संपादक को सामने पाया। युवक दंग रह गया। 

वह संपादक से बोला, "सर! आप मुझे सूचित करते तो मैं स्वयं आपके पास आ जाता।" 

संपादक बोले, "आना तो मुझे ही था। फ्रांस के महान कहानीकार से मिलने।" यह सुनकर युवक हैरान रह गया। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। संपादक कह रहे थे, "आपकी कहानी पढ़ने पर उसे उच्च कोटि का पाया गया। 
आपको महान कहानीकार की पदवी से विभूषित किया गया है। मैं आपको बधाई देने के लिए आया हूँ। आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आप अपनी रचनाएँ भेजते रहेंगे।"

यही युवक बाद में महान कथाकार मोपासां बना। जीवन में यदि हम कोई भी काम पूर्ण समर्पण एवं ईमानदारी से करते हैं तो सफलता निश्चित ही हमारे हाथ लगती है। 
शुरुआती किन्हीं भी अड़चनों से हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्किअपने प्रयत्न जारी रखने चाहिए। 

2जीवन में शांति   

 सेठ नारायण  के पास अपार धन-संपदा, सुख समृद्धि थी। हर तरह का ऐशो-आराम होने पर भी उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। 
वे इस बात से बहुत परेशान थे कि इतना सब होने पर भी उनके मन को शांति क्यों नहीं मिल पा रही है। एक बार सेठ किसी काम से कहीं जा रहे थे तब रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। 
आश्रम से उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई पड़ी। उन प्रवचनों की आवाज़ों  सुनकर वह आश्रम के अंदर चले गए और संत  के प्रवचनों को सुनने के लिए वहीं पर बैठ गए ।
 
जैसे ही प्रवचन समाप्त हुए तब वहाँ उपस्थित सभी व्यक्ति अपने-अपने घर को चले गए मगर सेठ वहीं पर बैठे रहे। सेठ को वहीं बैठा देखकर संत सेठ से पूछा, "कहो, तुम्हारे मन में ऐसी कौन-सी जिज्ञासा है, कौन-सी बात तुम्हें परेशान कर रही है।" 
अमीरचंद बोला ने संत से कहा, "बाबा मेरे जीवन में शांति नहीं है।"

 यह सुनकर संत सेठ से बोले, "घबराओ नहीं तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। बस तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।"  
संत की बात सुनकर  सेठ ज्यों ही ध्यान की मुद्रा में बैठा त्यों ही उसके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगी और उसका ध्यान उचट गया । 
संत ने जब सेठ की ऐसी स्थिति देखी तो वे समझ गए कि सेठ ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं तब उन्होंने सेठ से कहा, "चलो जरा आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।" 

इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। अमीर चंद ने आश्रम में एक सुंदर वृक्ष देखा। उनके मन में आया कि उस वृक्ष को छू कर देखें। 
सेठ ने जैसे ही वृक्ष को हाथ लगाया उसके हाथ में एक काँटा चुभ गया। काँटा चुभते ही सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगा।  
यह देख संत वापस अपने कुटिया में गए और सेठ के हाथ के कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। 
लेप लगाने के बाद संत सेठ से बोले, "तुम्हारे हाथ में जरा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे मन में  ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे काँटे, बुराइयाँ छिपी हैं तो तुम्हारा मन शांत कैसे हो सकता है ? 
संत की बात से सेठ अमीरचंद को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह समझ गया कि ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रहेंगे तब तक मन में शांति नहीं हो सकती। वह संतुष्ट होकर वहाँ से चला गया। 

 चलो तो सही 

एक राजा था। उसने मन में निश्चय किया  कि जो इस संसार में सबसे बड़ा बढ़िया धर्म होगा उसी धर्म को हम स्वीकार करेंगे। 
राजा ने बड़े-बड़े आचार्यों को अपने दरबार में आमंत्रित किया। उन आचार्यों में से कोई कहता कि हम ईश्वर के इकलौते बेटे हैं, हमारा धर्म सबसे बढ़िया है। 
कोई कहता कि हमारे पास तो खुदा ने स्वयं खास  पैगाम भेजा है इसलिए हमारा धर्म सबसे बढ़िया है। 
इस तरह सभी धर्माचार्य अपने-अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बतलाने लगे। राजा को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस धर्म के मार्ग पर चले। 

राजा के राज्य में एक महात्मा रहते थे। वह महात्मा स्वयं राजा के पास पहुँचे। उन्होंने राजा से कहा, राजन! तुम्हारी परेशानी क्या है ? 
राजा ने महात्मा से कहा कि मैं यह निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि दुनिया का सबसे बढ़िया धर्म कौन-सा है ?

 महात्मा ने कहा देखो राजन! इसमें ज़्यादा सोच-विचार करने की जरूरत नहीं है  और लड़ाई-झगड़ा करके भी कुछ तय नहीं हो सकता है। 
राजन- क्यों न तुम मेरे साथ नदी के उस पार चलो। नदी पार पहुँच कर हम तुम्हें शुद्ध भाव से बता देंगे कि इस संसार में सबसे बड़ा धर्म कौन-सा है ?

राजा ने कहा, "ठीक है महाराज ऐसा ही सही।" महात्मा राजा से बोले, "तुम्हारे राज्य में कितनी नावें हैं ? राजन उनमें से जो सबसे बढ़िया है उसे ही नदी पार करने के लिए मंगवाओ।
" राजा ने दो हजार नावें मंगवा लीं। फिर महात्मा को नाव एक-एक नाव दिखाते हुए  कहा, "देखो महाराज! यह नाव बढ़िया है ।" 
महात्मा राजा के साथ नाव के पास जाते फिर राजा से कहते - नहीं इसका रंग तो काला है। यह अच्छी नहीं है। 
राजा उन्हें दूसरी नाव के पास ले जाते तो महात्मा उस नाव को देखकर कहते -इसमें तो काली कील लगी है। 

इस प्रकार महात्मा ने सभी नावों में कुछ-न-कुछ नुक्स निकाल दिए। यह देखकर राजा बहुत परेशान हो गए कि महात्मा हर नाव में कोई-न-कोई कमी निकाल रहें हैं। 
उन्होंने महात्मा से कहा, "महाराज! छोटी-सी नदी  ही तो है, इसको पार करना है तो किसी भी नाव में बैठकर पार कर लेते हैं। 
यह बात सुनकर महात्मा ने राजा से कहा, राजन! सच में इतनी-सी तो बात है कि हमें छोटी- सी नदी पार करनी है। तो फिर सर्वश्रेष्ठ नाव चुनने की क्या ज़रूरत है। 
उसी प्रकार तुम धर्म से पार करो, भक्ति से पार से करो अथवा ज्ञान से पार करो। तुम जिस मार्ग पर चलोगे बस वही मार्ग सबसे बढ़िया है। पर किसी मार्ग पर चलो तो सही।"