HINDI BLOG : लघु कथाएँ - कर्मों का फल, हीन भावना, गुस्से की दवा

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Friday, 4 June 2021

लघु कथाएँ - कर्मों का फल, हीन भावना, गुस्से की दवा

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1 कर्मों का फल 

भगवान बुद्ध जब चेतवन विहार में रह रहे थे। भिक्षु चक्षुपाल तब वहाँ भगवान बुद्ध से मिलने के लिए आए । 

उनके आगमन के साथ उनकी दिनचर्या, व्यवहार और गुणों की भी चर्चा हुई। शिशुपाल जन्म से अंधे थे। 

एक दिन विहार के कुछ भिक्षुओं ने कुछ  मरे हुए कीड़ों को चक्षुपाल की कुटी के बाहर देखा। 

चक्षुपाल की कुटी के बाहर मरे कीड़ों  देखकर उन्होंने चक्षुपाल की निंदा करनी शुरू कर दी।

 वे सभी भिक्षु यही सोच रहे थे कि चक्षुपाल ने ही इन जीवित प्राणियों की हत्या की है। 

भगवान बुद्ध ने उन भिक्षुओं को अपने पास बुलाया जो चक्षुपाल की निंदा कर रहे थे। 

बुद्ध ने उनसे पूछा कि क्या तुमने भिक्षु चक्षुपाल को उन कीड़ों को मारते हुए देखा है। उन भिक्षुओं ने  उत्तर दिया कि हमने उन्हें उन कीड़ो को मरते हुए नहीं देखा है। 

यह सुनकर भगवान बुद्ध ने उन भिक्षुओं से कहा कि जब तुमने चक्षुपाल कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन कीड़ों को मरते हुए नहीं देखा और उन्होंने कीड़ों को जान बूझकर नहीं मारा है। इसलिए उनकी निंदा करना उचित नहीं है। 

भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध से चक्षुपाल के अंधे होने का कारण पूछा ? वे यह जानना चाहते थे कि क्या चक्षुपाल ने इस जन्म में अथवा पिछले जन्म में कुछ पाप किए हैं? 

भगवान बुद्ध ने चक्षुपाल के बारे में भिक्षुओं को बताया कि पिछले जन्म में चक्षुपाल एक चिकित्सक थे और लोगों का इलाज किया करते थे।

 एक बार एक अंधी स्त्री ने उनसे वादा किया  कि यदि वह उसकी आँखें ठीक कर देंगे तो वह और उसका पूरा परिवार उनके दास बन जाएँगे और उनकी सेवा करेंगे।

 चिकित्सक ने इलाज करके उस स्त्री की आँखें ठीक कर दीं। आँखें ठीक हो जाने पर दासी बनने के भय से उस स्त्री ने  यह मानने से इंकार कर दिया कि उसकी आँखें ठीक हो गईं हैं। 

मगर चिकित्सक को तो पता था कि उस स्त्री की आँखें ठीक हो गईं हैं  और वह उनसे  झूठ बोल रही है। उस स्त्री को सबक सिखाने के लिए या उससे बदला लेने के लिए चक्षुपाल ने उसे दूसरी दवा दी, उस दवा से महिला फिर अंधी हो गई। 

वह स्त्री कितना ही रोई-पीटी, लेकिन चक्षुपाल  का हृदय उसके लिए ज़रा भी नहीं पसीजा । इस पूर्व जन्म के पाप कर्म के फल स्वरुप ही अगले जन्म में चिकित्सक को अंधा बनना पड़ा। 

2 हीन भावना 

संगीतकार गॉल्फ़र्ड के पास उसकी एक शिष्य अपने मन की व्यथा कहने गई वह कुरूप होने के कारण संगीत मंच पर जाते ही यह सोचने लगती है कि दूसरी आकर्षक लड़कियों की तुलना में उसे दर्शक नापसंद करेंगे और उसकी हँसी उड़ाएँगे।

 मन में ऐसे विचार आते ही वह घबरा जाती है और गाने की जो तैयारी वो घर से करके जाती , वह सब उसके घबराने से गड़बड़ा जाती थी। 

घर पर वह इतना मधुर गीत गाती है, इतना मधुर, कि जो भी उसे सुने वह उसकी प्रशंसा करे, पर मंच पर जाते ही न जाने उसे क्या हो जाता है कि हक्का-बक्का होकर अपनी सारी प्रतिभा गँवा बैठती है। 

गॉल्फ़र्ड ने उसे एक बड़ी शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि देखते हुए गाने की सलाह दी और कहा, वस्तुतः वह कुरूप नहीं, जैसी कि उसकी मान्यता है। फिर स्वर की मधुरता और कुरूपता का कोई विशेष संबंध नहीं है। 

जब वह भाव-विभोर होकर गाती है, तब उसके चेहरे का आकर्षण बहुत अधिक बढ़ जाता है और उस समय उसके चेहरे की कुरूपता की बात कोई सोच भी नहीं सकता। 

गॉल्फ़र्ड उस कहते हैं कि अपने मन में से इस हीनता की भावना को निकाल दे। हमेशा सुंदरता के अभाव को ही न सोचती रहे, बल्कि स्वर की मधुरता और भाव-विभोर होने की मुद्रा से उत्पन्न आकर्षण पर विचार करे और अपना आत्मविश्वास जगाए, उस आत्मविश्वास को बढ़ाए। 

 लड़की ने ऐसा ही किया। शुरूआती दिनों में जो लड़की सदा घबराई हुई रहती थी और कुछ आयोजनों में जाने के बाद एक प्रकार से बुरी तरह हताश व निराश ही हो गई थी, अब उसके अंदर नया उत्साह और साहस बढ़ गया था।  

इसी साहस और उत्साह के कारण उसने बहुत प्रगति की और फ्रांस की प्रख्यात गायिका मेरी वुडनाल्ड  के नाम से विश्व में विख्यात हुई।


3  गुस्से की दवा 

यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिसे बात-बात पर गुस्सा आ जाता था। उसके क्रोध करने की आदत से पूरा परिवार परेशान रहता था। 

उसकी इस आदत की वजह से हमेशा परिवार में क्लेश का माहौल बना ही रहता था। घर में लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। 

 एक दिन उस महिला के दरवाजे पर एक साधु आए। महिला ने साधु को अपनी समस्या बताई। उसने साधु से कहा, "महाराज! मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, मैं बात-बात में गुस्सा करने लगती हूँ।

 मैं चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाती। आप कोई उपाय बताइए जिससे मेरा गुस्सा शांत हो जाए और मेरी ये बुरी आदत छूट जाए। 

साधु ने अपने झोले से एक दवा की शीशी निकाल कर उस महिला को दी और और उसे उस दवा को कैसे इस्तेमाल करना है, इसका तरीका भी बताया। 

साधु ने महिला से कहा कि जब भी तुमको गुस्सा आए इस शीशी में से चार बूँद दवा अपनी जीभ पर डाल लेना। 10 मिनट तक दवा को मुँह में ही रखना है।  10 मिनट तक मुँह नहीं खोलना है, नहीं तो दवा असर नहीं करेगी। 

महिला ने साधु के बताए तरीके अनुसार दवा का प्रयोग शुरू किया। सात दिन में ही उसकी गुस्सा करने की आदत बिल्कुल छूट गई। 

सात दिन बाद वह साधु फिर से उसके दरवाजे पर आए तो महिला उसके पैरों में गिर पड़ी। 

उसने साधु से कहा, "महाराज! आप की दवा से मेरा क्रोध बिल्कुल गायब हो गया है। अब मुझे गुस्सा नहीं आता और मेरे परिवार में शांति का माहौल रहता है।

 उसकी बात सुनकर साधु महाराज ने उसे बताया कि जो दवा की शीशी उन्होंने उसे दी थी, वह कोई दवा नहीं थी। उस शीशी में केवल पानी भरा था।

 गुस्से का इलाज केवल चुप रहकर ही किया जा सकता है क्योंकि गुस्से में व्यक्ति उल्टा-सीधा बोलता है, जिससे विवाद बढ़ता चला जाता है। 

इसलिए क्रोध का इलाज केवल मौन ही है। जब व्यक्ति क्रोध करना छोड़ देता है तब घर में शांति का माहौल बनता है।  

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