1 महान रचनाकार
संपादक उस युवक को देखकर बोला- कहानीकार के अनुभव और सृजन कला में तुम अभी कच्चे हो। मैं नहीं समझता कि हमारे जैसे समाचार-पत्र के स्तर की कहानी तुम्हारे पास है।
यह सुनकर युवक संपादक से बोला, "सर मैं अपने इस कहानी को आपके पास छोड़कर जा रहा हूँ। उम्मीद है समय मिलने पर आप इसे एक नजर अवश्य देखेंगे और कुछ कमी पाए जाने पर मुझे बताएँगे ताकि मैं उसे सुधार सकूँ।"
कुछ दिन बाद वही संपादक उस युवक के दरवाजे पर खड़ा दस्तक दे रहा था। जब युवक ने दरवाजा खोला तो संपादक को सामने पाया। युवक दंग रह गया।
वह संपादक से बोला, "सर! आप मुझे सूचित करते तो मैं स्वयं आपके पास आ जाता।"
संपादक बोले, "आना तो मुझे ही था। फ्रांस के महान कहानीकार से मिलने।" यह सुनकर युवक हैरान रह गया। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। संपादक कह रहे थे, "आपकी कहानी पढ़ने पर उसे उच्च कोटि का पाया गया।
आपको महान कहानीकार की पदवी से विभूषित किया गया है। मैं आपको बधाई देने के लिए आया हूँ। आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आप अपनी रचनाएँ भेजते रहेंगे।"
यही युवक बाद में महान कथाकार मोपासां बना। जीवन में यदि हम कोई भी काम पूर्ण समर्पण एवं ईमानदारी से करते हैं तो सफलता निश्चित ही हमारे हाथ लगती है।
शुरुआती किन्हीं भी अड़चनों से हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्किअपने प्रयत्न जारी रखने चाहिए।
2जीवन में शांति
सेठ नारायण के पास अपार धन-संपदा, सुख समृद्धि थी। हर तरह का ऐशो-आराम होने पर भी उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी।
वे इस बात से बहुत परेशान थे कि इतना सब होने पर भी उनके मन को शांति क्यों नहीं मिल पा रही है। एक बार सेठ किसी काम से कहीं जा रहे थे तब रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी।
आश्रम से उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई पड़ी। उन प्रवचनों की आवाज़ों सुनकर वह आश्रम के अंदर चले गए और संत के प्रवचनों को सुनने के लिए वहीं पर बैठ गए ।
जैसे ही प्रवचन समाप्त हुए तब वहाँ उपस्थित सभी व्यक्ति अपने-अपने घर को चले गए मगर सेठ वहीं पर बैठे रहे। सेठ को वहीं बैठा देखकर संत सेठ से पूछा, "कहो, तुम्हारे मन में ऐसी कौन-सी जिज्ञासा है, कौन-सी बात तुम्हें परेशान कर रही है।"
अमीरचंद बोला ने संत से कहा, "बाबा मेरे जीवन में शांति नहीं है।"
यह सुनकर संत सेठ से बोले, "घबराओ नहीं तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। बस तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।"
संत की बात सुनकर सेठ ज्यों ही ध्यान की मुद्रा में बैठा त्यों ही उसके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगी और उसका ध्यान उचट गया ।
संत ने जब सेठ की ऐसी स्थिति देखी तो वे समझ गए कि सेठ ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं तब उन्होंने सेठ से कहा, "चलो जरा आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।"
इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। अमीर चंद ने आश्रम में एक सुंदर वृक्ष देखा। उनके मन में आया कि उस वृक्ष को छू कर देखें।
सेठ ने जैसे ही वृक्ष को हाथ लगाया उसके हाथ में एक काँटा चुभ गया। काँटा चुभते ही सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगा।
यह देख संत वापस अपने कुटिया में गए और सेठ के हाथ के कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया।
लेप लगाने के बाद संत सेठ से बोले, "तुम्हारे हाथ में जरा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे मन में ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे काँटे, बुराइयाँ छिपी हैं तो तुम्हारा मन शांत कैसे हो सकता है ?
संत की बात से सेठ अमीरचंद को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह समझ गया कि ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रहेंगे तब तक मन में शांति नहीं हो सकती। वह संतुष्ट होकर वहाँ से चला गया।
3 चलो तो सही
एक राजा था। उसने मन में निश्चय किया कि जो इस संसार में सबसे बड़ा बढ़िया धर्म होगा उसी धर्म को हम स्वीकार करेंगे।
राजा ने बड़े-बड़े आचार्यों को अपने दरबार में आमंत्रित किया। उन आचार्यों में से कोई कहता कि हम ईश्वर के इकलौते बेटे हैं, हमारा धर्म सबसे बढ़िया है।
कोई कहता कि हमारे पास तो खुदा ने स्वयं खास पैगाम भेजा है इसलिए हमारा धर्म सबसे बढ़िया है।
इस तरह सभी धर्माचार्य अपने-अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बतलाने लगे। राजा को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस धर्म के मार्ग पर चले।
राजा के राज्य में एक महात्मा रहते थे। वह महात्मा स्वयं राजा के पास पहुँचे। उन्होंने राजा से कहा, राजन! तुम्हारी परेशानी क्या है ?
राजा ने महात्मा से कहा कि मैं यह निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि दुनिया का सबसे बढ़िया धर्म कौन-सा है ?
महात्मा ने कहा देखो राजन! इसमें ज़्यादा सोच-विचार करने की जरूरत नहीं है और लड़ाई-झगड़ा करके भी कुछ तय नहीं हो सकता है।
राजन- क्यों न तुम मेरे साथ नदी के उस पार चलो। नदी पार पहुँच कर हम तुम्हें शुद्ध भाव से बता देंगे कि इस संसार में सबसे बड़ा धर्म कौन-सा है ?
राजा ने कहा, "ठीक है महाराज ऐसा ही सही।" महात्मा राजा से बोले, "तुम्हारे राज्य में कितनी नावें हैं ? राजन उनमें से जो सबसे बढ़िया है उसे ही नदी पार करने के लिए मंगवाओ।
" राजा ने दो हजार नावें मंगवा लीं। फिर महात्मा को नाव एक-एक नाव दिखाते हुए कहा, "देखो महाराज! यह नाव बढ़िया है ।"
महात्मा राजा के साथ नाव के पास जाते फिर राजा से कहते - नहीं इसका रंग तो काला है। यह अच्छी नहीं है।
राजा उन्हें दूसरी नाव के पास ले जाते तो महात्मा उस नाव को देखकर कहते -इसमें तो काली कील लगी है।
इस प्रकार महात्मा ने सभी नावों में कुछ-न-कुछ नुक्स निकाल दिए। यह देखकर राजा बहुत परेशान हो गए कि महात्मा हर नाव में कोई-न-कोई कमी निकाल रहें हैं।
उन्होंने महात्मा से कहा, "महाराज! छोटी-सी नदी ही तो है, इसको पार करना है तो किसी भी नाव में बैठकर पार कर लेते हैं।
यह बात सुनकर महात्मा ने राजा से कहा, राजन! सच में इतनी-सी तो बात है कि हमें छोटी- सी नदी पार करनी है। तो फिर सर्वश्रेष्ठ नाव चुनने की क्या ज़रूरत है।
उसी प्रकार तुम धर्म से पार करो, भक्ति से पार से करो अथवा ज्ञान से पार करो। तुम जिस मार्ग पर चलोगे बस वही मार्ग सबसे बढ़िया है। पर किसी मार्ग पर चलो तो सही।"
Very nice
ReplyDeleteThat was just fabulous ।
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