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अध्याय 1 गिल्लू
लेखिका-परिचय:
-हिंदी साहित्य की अमर साधिका और ममता का जीवंत रूप महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में 25 मार्च को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद नामक स्थान पर हुआ था।
-उनकी प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई।
-वे बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं परंतु महात्मा गाँधी के आह्वान पर सामाजिक कार्यों में जुट गई।
-इलाहाबाद ही उनका कर्मक्षेत्र रहा। प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचायां के रूप में उन्होंने नारी-शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
-छायावाद के चार प्रमुख रचनाकारों में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाली महादेवी जी का संपूर्ण काव्य साहित्य वेदनामय है, तो गद्य साहित्य सर्वथा बेजोड़ मानवीय अनुभूतियों को अपने में समाहित किए हुए है।
-समय-समय पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण एवं पद्मविभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
-उनका निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ ।
रचनाएँ - काव्य कृतियाँ- नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्निरेखा, यामा ।
-आठ वर्ष की आयु में रचित 'बारहमासा' विशेष रूप से सराहनीय है।
-गद्य रचनाएँ- अतीत के चलचित्र, शृंखला की कड़ियाँ, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, चिंतन के क्षण, मेरा परिवार।
पाठ का सारांश
-'गिल्लू ' पाठ हिंदी साहित्य की मूल स्तंभ कही जाने वाली लेखिका‘सुश्री महादेवी वर्मा' द्वारा रचित हैं।
-महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'मेरा परिवार' में से चयनित 'गिल्लू' एक संस्मरणात्मक गद्य रचना है।
-इस रेखाचित्र के माध्यम से उन्होंने पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम,दया, सहानुभूति और उनके संरक्षण की भावना को उकेरा है।
--प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने प्रकृति के अन्य जीवों ( मनुष्य के अतिरिक्त) के प्रति प्रेम-भाव का प्रदर्शन किया है और हमें यह संदेश दिया है कि पशु-पक्षी भी प्रेम-प्यार को भाषा को समझते हैं।
-सोनजुही के पौधे देखकर लेखिका को उस 'गिल्लू' को याद आ जाती थी, जो उन्हें इसी पौधे के पास घायल अवस्था में मिला था।
-'गिल्लू' नाम उसे लेखिका द्वारा ही दिया गया था।यह एक नन्हा-सा गिलहरी का बच्चा था, जिसे कौए ने चोंच मारकर घायल कर दिया था।
-लेखिका ने उसे उठाकर उसकी मरहम-पट्टी की।
-उसके मुँह में एक एक बूँद करके पानी व दूध डाला।उचित चिकित्सा तथा देखभाल मिलने के कारण गिल्लू तीन ही दिन में स्वस्थ हो गया ।
-स्वस्थ होकर गिल्लू लेखिका के जीवन का हिस्सा बनकर उनके साथ ही रहने लगा।
-लेखिका ने भी उसे एक फूल रखने की डलिया में रुई रखकर एक तार से खिड़की पर टाँग दिया।
-अब यही गिल्लू का घर था। वह इसे झूला समझकर स्वयं ही हिलाता रहता था।
-लेखिका जब भी लिखने बैठतीं तो उनके पास ही मँडराता रहता था।
-सर्र से परदे पर चढ़ना, उसका खेल बन गया था।
-कभी- कभी लेखिका उसे आधा लिफ़ाफ़े में बंद भी करती तो वह टुकर-टुकर उन्हें देखता रहता था।
-गिल्लू के जीवन का पहला वसंत आया तो फूलों की खुशबू लेखिका के बगीचे में फैलने लगी।
-गिल्लू देखता कि गिलहरियाँ बाहर उछल-कूद कर रही हैं।
-उन्हें देखकर उसका भी मन बाहर जाने को तरसता। लेखिका ने एक तरफ़ से जाली को खोल दिया।
-अब गिल्लू अकसर अपनी जाली से बाहर निकलकर घूमता और मस्त रहता।
-शाम को बजे जब लेखिका वापिस आ जाती तो गिल्लू भी खिड़की की जाली से होता हुआ अपनी टोकरी में वापस आ जाता।
-धीरे-धीरे गिल्लू के प्रति लेखिका की आत्मीयता बढ़ती गई।
-एक बार लेखिका को मोटर दुर्घटना के बाद अस्पताल में भरती करवाया गया।
-जब लेखिका अस्पताल से घर लौटकर आई तो गिल्लू ने एक परिचारिका की भाँति अपनी स्वामिनी की देखभाल की।
-वह घटों लेखिका के पास बैठकर उनके बालों को सहलाता था। गिल्लू को काजू बहुत पसंद थे।
-परंतु जब लेखिका अस्पताल से वापिस आई तो गिल्लू की टोकरी में काजू ज्यों-के-त्यों पड़े मिले।
-इसका यह अर्थ था कि लेखिका की अनुपस्थिति में उसे अपना सबसे अच्छा लगने वाला पदार्थ काजू भी अच्छा नहीं लगता था।
-गिलहरियों को उम्र दो वर्ष से अधिक नहीं होती। गिल्लू के अंतिम समय वह बहुत उदास था।
-उस दिन वह न तो बाहर खेलने गया और न ही उसने कोई उछल-कूद दिखाई।
-अपने ठंडे पंजों से वह लेखिका की उँगली को उसी प्रकार पकड़ कर बैठा रहा, जैसे उसने बचपन में प्राप्त अवस्था में पकड़ा था।
-उसके पंजों को गरमाहट देने के लिए लेखिका ने होटर भी चलाया, लेकिन सुबह होते-होते वह गहरी नींद में सोया और उसके बाद नहीं उठा।
-लेखिका ने सोनजुही की लता के नीचे ही गिल्लू की समाधि बनाई।
-लेखिका सोनजुही देखते ही गिल्लू की स्मृति में खो जाती थी।
-उन्हें विश्वास था कि शायद एक दिन गिल्लू सोनजुही के छोटे से पीले फूल के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।
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