HINDI BLOG : लघु कथाएँ -दुष्ट से दूर रहें, संगीत की ताकत, महत्त्वपूर्ण दान

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Tuesday, 8 June 2021

लघु कथाएँ -दुष्ट से दूर रहें, संगीत की ताकत, महत्त्वपूर्ण दान

Top Best Famous Moral Stories In Hindi  -  कहानियाँ एवं लघु कथाएँ
1 दुष्ट से दूर रहें
एक बार एक दुष्ट बाघ के गले में एक हड्डी फंस गई। वह ठीक से न तो साँस ले पा रहा था और नहीं बोल पा रहा था। 
बहुत प्रयास करने के बाद भी वह गले से हड्डी नहीं निकाल पाया। वह इस तकलीफ से निजात पाने के लिए मदद ढूँढ़ने लगा।  
वह जंगल के सभी जानवरों के पास गया और सबसे गले में फंसी हड्डी को निकालने के लिए कहा। साथ ही उसने यह प्रलोभन भी दिया कि जो मेरे गले में फंसी हड्डी निकालेगा, उसे वह इनाम भी देगा।

जंगल के सभी जानवर उसके स्वभाव से परिचित है इसलिए किसी ने उसकी मदद नहीं की। 
बाघ. निराश हो चुका था। तभी उसे एक बगुला दिखाई दिया। 
बगुले को देखकर उसके मन में आशा जगी। बगुले के पास जाकर उसने उससे कहा, "मेरे गले में एक हड्डी फंस गई है। 
जिसके कारण मैं बहुत तकलीफ में हूँ।तुम्हारी चोंच लंबी है, इससे तुम मेरे गले में फंसी हड्डी निकाल दो। मैं इसके बदले में तुम्हें इनाम दूँगा।"

 बगुला इनाम के लालच में तैयार हो गया। उसने अपनी लंबी चोंच बाघ के गले में डालकर हड्डी निकाल दी। 
बाघ की तकलीफ दूर हो गई। वह बहुत ज़ोर से दहाड़ा और वहाँ जाने लगा। 
इनाम के बारे में कोई बात न करने पर बगुले ने उससे इस संबंध में पूछा। इस पर बाघ बोला, "तू पागल है क्या ? तेरी चोंच मेरे मुँह में जाकर भी सही सलामत वापस आ गई। 
यह क्या किसी इनाम से कम है। तुझे देखकर मेरी भूख फिर से जाग रही है। भाग जा नहीं तो मैं तुझे भी खा जाऊँगा।" यह सुनकर बगुला मन मसोसकर रह गया और वहाँ से उड़ जाने में ही उसने अपनी भलाई समझी। 

2 संगीत की ताकत 

अकबर तानसेन के गुरु हरिदास का गायन सुनने के लिए बहुत उत्सुक थे लेकिन उनके दिल्ली आने की उन्हें कोई उम्मीद न थी और न ही भरोसा था कि वृंदावन में कभी भी उनके सामने गाना गाएँगे।
 
 अकबर के बार-बार निवेदन करने पर तानसेन ने एक उपाय सोचा। अकबर साधारण वेश में वृंदावन पहुँचे और हरिदास की कुटिया के बाहर छिप कर बैठ गए। 
तानसेन इस बीच कुटिया के भीतर जा गुरु के सामने बैठ गाने लगे। तानसेन ने एक जगह जान-बूझ कर गलती कर दी।
 शिष्य की भूल सुधारने के लिए हरिदास खुद गाने लगे। इस तरह सम्राट अकबर ने हरिदास का गायन सुना। 

वापस लौटते समय अकबर ने तानसेन से प्रश्न किया, "तानसेन मैंने न जाने कितनी ही बार तुम्हें गाना गाते सुना है। तुम बहुत अच्छा गाते हो, लेकिन वैसा नहीं गाते जैसा जैसे तुम्हारे गुरु गाते हैं। 
जब वह गा रहे थे तब उनका स्वर सौंदर्य कुछ और ही तरह का था। आखिर, इसकी वजह क्या है?"

 तानसेन ने अकबर से कहा, "जहाँपनाह, इसकी वजह यह है कि मैं आपके लिए गाता हूँ, हिंदुस्तान के बादशाह के लिए गाता हूँ मगर वे तो सारी दुनिया के मालिक के लिए गाते हैं। 
संगीत में ताकत तब  पैदा होती है, जब उसे प्रकृति के लिए और प्रकृति के बीच में बैठकर गाया जाए। दरबार में बैठकर गाने से ऐसा संगीत नहीं पैदा हो सकता।"

 3 महत्त्वपूर्ण दान 

एक दिन भगवान बुद्ध एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हुए थे। उनके पास उस समय भक्तों का ताँता लगा हुआ था। 
वे हर भक्त की भेंट स्वीकार को बड़े प्रेम से स्वीकार कर रहे थे। तभी एक वृद्धा उन भक्तों की भीड़ से निकल कर वहाँ आई। 

 उसने काँपते स्वर में भगवान बुद्ध से कहा, "भगवन, मैं बहुत गरीब हूँ।  मेरे पास आपको भेंट देने के लिए इस आम के सिवा और कुछ भी नहीं है।
 आज यह एक आम मुझे मिला है परंतु मैं इसे आधा जब खा चुकी थी तभी मुझे पता चला कि तथागत (महात्मा बुद्ध )आज दान ग्रहण करेंगे। 
अतः मैं इस आम को लेकर यहाँ आ गई ताकि आपके चरणों में इसे भेंट कर सकूँ। भगवन! कृपा कर इस भेंट को स्वीकार करें। 

गौतम बुद्ध ने उस आधे आम को अपने पात्र में बड़े प्रेम और श्रद्धा से रख दिया। 
मानो भेंट में उन्हें कोई बड़ा रत्न मिला हो। वृद्धा संतुष्ट भाव से वहाँ से लौट गई। 
वहाँ उपस्थित राजा यह सब देखकर चकित रह गए। उन्हें यह समझ नहीं आया कि भगवान वृद्धा का झूठा आम प्राप्त करने के लिए अपना आसन छोड़कर नीचे तक, हाथ पसार कर क्यों आए? 
उन्होंने महात्मा बुद्ध से पूछा, "भगवन इस वृद्धा में और इसकी भेंट में ऐसी क्या विशेषता है ?" 

महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, "राजन, इस वृद्धा ने अपनी संपूर्ण संचित पूँजी मुझे भेंट कर दी जबकि आप लोगों ने अपनी संपूर्ण संपत्ति का केवल एक छोटा-सा भाग ही मुझे भेंट किया है।
आप सब दान के अहंकार में डूबे हुए बग्गी पर चढ़कर यहाँ आए हो। 
वह वृद्धा पैदल चलकर दूर से आई थी। उस वृद्धा के मुख पर कितनी करुणा और नम्रता थी। ऐसा अनमोल दान तो युगों-युगों के बाद ही मिलता है। 


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