HINDI NCERT SOLUTIONS CLASS 8, 9,10 SPARSH
परीक्षापयोगी मूल्यपरक प्रश्न
(क) किन कारणों से गिल्लू खिड़की की जाली से बाहर झाँकता था ? गिल्लू के इस प्रकार बाहर देखने पर लेखिका ने क्या कदम उठाए ?
उत्तर-गिल्लू लेखिका के घर में एक फूलों की डलिया में रहता था । उस पर एक जाली लगी थी और उसे एक तार के सहारे दीवार पर टाँग दिया गया था । गिल्लू के जीवन में पहला वसंत आया । उस समय चारों ओर फैली नीम-चमेली की खुशबू लेखिका के कमरे तक भी आने लगी।
-लेखिका ने जब गिल्लू को जाली के पास बैठकर बाहर झाँकते और दूसरी गिलहरियों को उसे निहारते देखा तो उन्हें लगा कि शायद गिल्लू भी बाहर जाकर वसंती हवा का आनंद उठाना चाहता है।
-वह भी अन्य गिलहरियों के साथ मिलकर उछल-कूद करना चाहता है। उसे इस प्रकार सारा दिन जाली में बंद करना ठीक नहीं ।
-यही विचार करके लेखिका ने गिल्लू को मुक्त करने के बारे में सोचा। उन्होंने खिड़की के कोने की जाली की कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया।
-अब गिल्लू ने बाहर जाने के मार्ग को देखा तो वह अत्यंत प्रसन्न हो गया और उसने सचमुच ही मुक्ति की साँस ली ।
-घर में लेखिका के लिए इतने छोटे जीव को पालतू कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या थी।
-जिस समय भी लेखिका घर से बाहर जाती तो गिल्लू भी खिड़की को खुली जाली के रास्ते से बाहर निकल जाता और पूरा दिन गिलहरियों के झुंडका नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता।
-गिल्लू यद्यपि एक मानव नहीं था, परंतु उसे इस बात का अहसास था कि जब ठीक चार बजे लेखिका घर आती तो वह भी खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
-गिल्लू की यह गतिविधि प्रतिदिन चलती थी।
(ख) अस्वस्थ लेखिका का ध्यान गिल्लू किस प्रकार रखता था ? इस प्रकार लेखिका का ध्यान रखने से आपको गिल्लू की कौन-सी विशेषता पता चलती है ?
उत्तर- एक बार जब लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई तब उन्हें कुछ समय के लिएअस्पताल रहना पड़ा था। उस समय लेखिका को घर पर न देखकर गिल्लू बहुत उदास रहता था।
-उस समय जब उसे उसका मनपसंद खाद्य पदार्थ काजू भी दिया जाता तो वह भी न खाता।
-लेखिका जब अस्पताल से लौट कर आई तो उन्हें गिल्लू की टोकरी में काजू पड़े हुए मिले, इस प्रकार लेखिका को पता चला कि उसने उदासी में उन्हें नहीं खाया था।
-लखिका जब तक अस्वस्थ रही उस समय वह ज़्यादातर उनके पास ही तकिए पर सिरहाने बैठता था। उसकी यह क्रिया लेखिका को अपने पन का अहसास दिलाती थी। वह अपने नन्हे-नन्हे पंजों से लेखिका के सिर के बालों को इतने हौले -हौले सहलाता था कि लेखिका को इससे बहुत आराम मिलता था।
-जिस प्रकार एक परिचारिका एक रोगी को देखभाल करती है, उसी प्रकार गिल्लू लेखिका के इर्द-गिर्द रहता था। गिल्लू का अपने पास से हटना या दूर जाना लेखिका को एक परिचारिका के हटने के जैसा लगता था ।
-जब उसे गरमी लगती तो वह लेखिका के पास रखी एक सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार वह ठंडक भी महसूस करता और लेखिका के पास भी रहता। गिल्लू लेखिका से बहुत प्यार करता था । उपर्युक्त बातों से उसकी इस विशेषता का पता चलता है।
-उसके अंदर आत्मीयता की भावना थी। वह लेखिका को पूर्णतः स्वस्थ देखना चाहता था , इसलिए सकी देखभाल के प्रति सजग रहता था।
(ग) गिल्लू संस्मरण के आधार पर लेखिका के पशु-पक्षी प्रेम पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- लेखिका को पशु-पक्षियों से बहुत गहरा लगाव था, उन्होंने अपने घर पर बहुत से पशु-पक्षी पाल रखे थे। वह पशु-पक्षियों के प्रति भी उसी प्रकार का प्रेम भाव दिखातीं थीं, जो मानव दूसरे मानव के प्रति दिखाता है।
-गिल्लू संस्मरण लेखिका महादेवी वर्मा के पशु-पक्षियों के प्रति जीव-प्रेम को अभिव्यक्त करता है। लेखिका को गिल्लू घायल अवस्था में सोनजुही के पौधे के पास मिला था । उसे एक कौए ने चोंच मारकर घायल कर दिया था ।
-लेखिका गिल्लू के प्रति संवेदनशील हो गईं । उन्होंने उसे उठाया, उसका उपचार किया। गिलहरी के नन्हें बच्चे के घावों को साफ़ किया और उस पर मरहम इत्यादि लगाया ।
-यदि लेखिका उसे केवल एक जानवर के बच्चा समझकर वहीं पड़ा रहने देतीं तो शायद वह बच नहीं पाता ।
-लेखिका द्वारा उस गिलहरी के बच्चे को बचाना हो लेखिका का इन जीवों के प्रति प्यार दिखाता है ।
-लेखिका ने उसके रहने के लिए फूलों की टोकरी में रुई बिछाई और ऊपर जाली लगा दी। फिर एक कील लगाकर उसे दीवार के सहारे टाँग दिया ।
-लेखिका उसके खाने का पूरा ध्यान रखती थी । एक प्रकार से गिल्लू लेखिका के परिवार का सदस्य ही समझा जाता था लेखिका के प्रति गिल्लू भी अपना पूरा उत्तरदायित्व निभाता था ।
-जब लेखिका बीमार हुई तो एक -परिचारिका की भाँति उनकी सेवा की। गिल्लू लेखिका के समीप रहकर उन्हें अपनेपन का अहसास कराता था। लेखिका और गिल्लू के संबंधों में प्रेम तथा आत्मीयता स्पष्ट दिखाई देती थी ।
- इस सस्मरण के माध्यम से महादेवी जी ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि जीव-जंतुओं में भी प्यार की भावना होती है । यदि बदले में उन्हें प्यार मिल जाए तो वे हमारे परिवार के सदस्य ही बन जाते हैं ।
-प्यार इतना सशक्त होता है कि जीव-जंतु भी उसके द्वारा हमसे जुड़ जाते हैं । मानव ही नहीं, जीव-जंतु भी हमारे लिए प्रेम का भाव रखते हैं । ये भी हमारे जीवन के सूनेपन को दूर करने में सक्षम हैं।
-इस प्रकार यह संस्मरण हमें इस बात को प्रेरणा देता है कि प्यार और अपनेपन को भूख केवल मनुष्य को ही नहीं , पशु-पक्षियों को भी होती है।
(घ) " धैर्य बहुत आवश्यक है और खासतौर पर तब जब हमें घायलों की सहायता करनी होती है। " - 'गिल्लू' पाठ के आधार पर इस पंक्ति को स्पष्ट करते हुए बताइए कि किसी घायल के प्रति आपका व्यवहार कैसा होगा ?
उत्तर- घायलों की सहायता एवं उपचार के लिए धैर्य का होना बहुत आवश्यक है ।
-प्रस्तुत पाठ ' गिल्लू ' में लेखिका को एक नन्हा गिलहरी का बच्चा घायल अवस्था में सोनजुही के पौधे के पास मिलता है ।
-लेखिका जीव-जंतुओं और पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करती थी ।
-उन्होंने कई जानवरों को घर में पाल भी रखा था ।
-जब लेखिका गिल्लू को देखती हैं तो बहुत धैर्य से काम लेती हैं ।
-पहले उसे उठाकर उसका घाव साफ किया जाता है। फिर उस पर मरहम लगाई जाती है।
-लेखिका ने तनिक भी जल्दबाजी या अधीरता नहीं दिखाई थी।
-एक रुई को गीला करके उससे एक-एक बूँद पानी उसके मुँह में डाला गया ।
-पानी के बाद लेखिका ने उसे बूँद-बूँद करके दूध पिलाया ।
- तीन दिन की देखभाल व उपचार के पश्चात गिल्लू स्वस्थ हो गया ।
- इससे हमें यह बोध होता है कि किसी घायल के प्रति हमारा व्यवहार दयापूर्ण, भावुक तथा धीरतापूर्ण होना चाहिए ।
-यदि हमारे अंदर इन गुणों का समावेश है, तो हम अवश्य ही किसी घायल को ठीक कर पाएँगे ।
(ङ) 'पितर-पक्ष आते ही हमारे पितृ हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर हमारे पास आते हैं ।' इस पंक्ति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर- 'पित्तर-पक्ष ' एक साल में एक बार पद्रह दिन की अवधि होती है, जब हम अपने पूर्वज या पितरों को सम्मानित करते हैं ।
-इसे श्राद्ध भी कहा जाता है ।
-इस पाठ के माध्यम से पितर-पक्ष में कौओं के सम्मान के विषय में बताया गया है ।
-हमारे पूर्वजों का पितर-पक्ष में धरती पर अवतरण न तो मोर के रूप में, न ही गरुड़ के रूप में और न ही हंस के रूप में होता है ।
-पितर पक्ष में हम पितरों के नाम जो भी दान इत्यादि देते है, उसे प्राप्त करने के लिए उन्हें कौए के रूप में धरती पर उतरना पड़ता है।
-इन दिनों में कौओं को विशेष सम्मान दिया जाता है।
-इन्हें आदरपूर्वक बुलाया जाता है और स्वादिष्ट भोजन भी खिलाया जाता है।
- इस समय लोग इन्हें काक न मानकर अपने पूर्वज मानते हैं ।
-इनको सम्मान देकर व भोजन खिलाकर हम पितरों को प्रसन्न करते हैं, जिससे हमारे परिवार में सुख-शांति रहती है ।
-कौओं के माध्यम से ही हमारा भोजन पूर्वजों तक पहुँचता है ।
-वैसे देखा जाए तो कौए को कोई पसंद नहीं करता ।
-उसकी काँव-काँव की कर्कश ध्वनि कानों को अप्रिय लगती है। उसको अनादर की दृष्टि से देखा जाता है ।
-मगर यही कौआ पितर-पक्ष में सम्मान प्राप्त करता है ।
-इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे पूर्वज कौए के रूप में पितर-पक्ष में धरती पर अवतीर्ण होते हैं ।
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt let me know.