कहानी 'आप जीत सकते हैं'
'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...
Monday, 31 May 2021
Top Best Famous Moral Stories In Hindi ......लघु कथाएँ - अनुपम दान...संकल्प की ताकत...कृतज्ञता की पराकाष्ठा
Saturday, 29 May 2021
व्यंग्यपूर्ण लघुकथाएँ - गुलछर्रे, नजर मत चुराओ ,कहाँ जा रहे हो ?
Friday, 28 May 2021
लघु कथाएँ - सुधार की गुंजाइश, चित्रकार की गलती, पिता की प्रार्थना
Friday, 21 May 2021
अंतिम शिक्षा - लघुकथा
Wednesday, 19 May 2021
लक्ष्मी का वास- लघु कथा
Tuesday, 18 May 2021
माँ की इच्छा -प्रेरक कथा
पद- रैदास अति लघु उत्तरीय प्रश्न......CLASS 9...अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न-उत्तर
1- कवि को किसकी रट लग गई है ?
उत्तर -कवि संत रैदास को राम नाम जपने की रट लगी है।
2 - पहले पद के अनुसार किसमें किसकी सुगंध समाई हुई है ?
उत्तर - संत रैदास के अनुसार, जिस प्रकार पानी के कण-कण में चंदन की सुगंध समा जाती है, ठीक उसी प्रकार भक्तों के रोम-रोम में प्रभु भक्ति की सुगंध समाई हुई है ।
3 - मोर क्या देखकर नाच उठते हैं ?
उत्तर- मोर काले बादलों को देखकर नाच उठते हैं ।
4- सोने की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उसमें क्या मिलाया जाता है ?
उत्तर- सोने की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उसके साथ सुहागा नामक क्षार द्रव्य प्रयोग किया जाता है।
5 - दूसरे पर में कवि ईश्वर के किस विशेष गुण से प्रभावित हुए ?
उत्तर -दूसरे पद में कवि ईश्वर के 'गरीब-निवाजु अर्थात दीन-दुखियों पर दया करने और उनके समदर्शी स्वभाव के विशेष गुण से अत्यंत प्रभावित हुए।
6- अछूत लोगों पर किसकी विशेष दया-दृष्टि रहती है?
उत्तर- ईश्वर की विशेष दया-दृष्टि अछूत लोगों पर बनी रहती है।
7 - रैदास ने अपने प्रभु को किन-किन रूपों में देखा है ?
उत्तर- कवि रैदास ने ईश्वर के लिए चंदन, घन, चंद्रमा, दीपक, मोती जैसे उपमानों का प्रयोग किया है ।
8 - पहले पद में रैदास ने सुहागे की उपमा क्यों दी?
उत्तर- संत कवि रैदास ने प्रभु और अपने अटूट संबंध को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने प्रभु और स्वयं के बीच सोने और सुहागे का संबंध बताते हुए स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार सुहागे के संपर्क में आने पर सोने की चमक बढ़ जाती है, उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भी भक्त को निखार देती है।
9- पहले पद में रैदास ने चाँद और चकोर का उदाहरण क्यों दिया है ?
उत्तर - रैदास ने प्रभु को अपना सर्वस्व माना है और स्वयं को उनकी कृपा पर आश्रित। चकोर जिस तरह बिना पलके झपकाए एकटक चाँद को देखता रहता है उसी तरह कवि भी प्रभु भक्ति में निरंतर लगे रहते हैं।
10- रैदास के स्वामी कौन हैं ? वे क्या-क्या कार्य करते हैं?
उत्तर- रैदास के ईश्वर (स्वामी) निराकार प्रभु हैं। उनकी कृपा से नीच भी उच्च और अछूत भी महान बन जाते हैं।
11-रैदास किसकी भक्ति करते हैं?
उत्तर - रैदास निराकार ईश्वर की भक्ति करते हैं। ईश्वर की असीम कृपा से नीच तथा तुच्छ कहलाने वाला व्यक्ति भी राजा के समान सम्मान प्राप्त करके श्रेष्ठ बन जाता है।
12- कवि के ईश्वर ने किन-किन का उद्धार किया है ?
उत्तर- रैदास स्वयं को तुच्छ बताते हुए कहते हैं कि प्रभु ने उनके जैसे अनेक नीच लोगों का कल्याण करके उन्हें सम्मान दिलवाया है। संसार उन्हें 'अछूत' समझता था, मगर प्रभु के संपर्क में आकर कबीर जुलाहा, नामदेव, त्रिलोचन, सधना कसाई और सैनु जैसे नाई संसार रूपी भवसागर से तर चुके हैं।
13 - सोने में सुहागा मिलाए जाने से उसमें क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर -सोने की चमक बढ़ जाती है। सुहागा भी अपना महत्व दर्शा देता है। अर्थात प्रभु के संपर्क में आने पर भक्त की भक्ति और निखर उठती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1-रैदास ने स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन क्यों माना है?
उत्तर- रैदास स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। पानी तो रंग, गंध और स्वाद रहित होता है, लेकिन प्रभु रूपी चंदन में मिलकर रंग और सुगंध पा जाता है। ईश्वर ही सभी गुणों को प्रदान कर अपने भक्तों को गुणवान बना देता है।
2 -रैदास की भक्ति दास्य-भाव की है- सिद्ध कीजिए।
उत्तर- दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहता है तथा प्रभु को दीनदयाल, भक्तवत्सल कहता है। कवि अपने आप को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं।
कवि अपने-आप को तुच्छ मानते हुए मोर समझते हैं और अपने ईश्वर को घने वन जैसा विराट यानी बड़ा मानते हैं।
रैदास स्वयं को दास मानते हुए अपने मन के भाव प्रकट करते हुए अपने ईश्वर को गरीब निवाजु, निडर व दयालु कहते हैं।
3- रैदास को क्यों ऐसा लगता है कि उनके ईश्वर उन पर मेहरबान हैं या उनपर द्रवित हैं?
उत्तर- रैदास का जन्म निम्न जाति में हुआ हुआ था। रैदास अछूत जाति के थे। चमार जाति का होने के कारण उन्हें अछूत समझा जाता था और समाज ऐसे लोगों को छूने में भी पाप समझते थे।
परंतु ऐसा नीच माने जाने पर भी प्रभु की कृपा उन पर हुई। वे प्रभु के संपर्क में आकर प्रसिद्ध संत बन गए। उन्हें समाज के उच्च वर्ग के लोगों ने भी सम्मान दिया। यह सब ईश्वर के द्रवित होने के कारण ही हुआ था।
5- सोने के लिए सुहागा कैसे महत्वपूर्ण है?
उत्तर- सुहागा का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, परंतु जब उसे सोने के साथ मिलाया जाता है तो वह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वह सोने में चमक पैदा करने के साथ उसे मज़बूत बना देता है।
ऐसे ही तुच्छ मनुष्य जब ईश्वर के संपर्क में आते हैं तो उनका भी उद्धार हो जाता है। प्रभु ने अनेक तुच्छ तथा छोटे लोगों को सँवारकर श्रेष्ठ बनाया है।
6-कवि ने स्वयं को धागे के समान क्यों माना है ?
उत्तर- ईश्वर का स्वरूप तो अमूल्य है। मन में छिपे भक्ति के भावों से उस स्वरूप का गुणगान किया जा सकता है। भक्त तो उस धागे के समान है जो भक्ति के अमूल्य मूर्तियों को ईश्वर नाम के रूप में पिरोता है।
ईश्वर अपने गुणों से अपने भक्तों को तरह-तरह से प्रभावित करता है। वे सारे गुण ही मोतियों के समान हैं जिन्हें भक्ति भावना रूपी धागे से भक्त पिरोता है इसलिए रैदास ने स्वयं को धागा माना है।
प्रश्न 7 - कवि ने सोने पर सुहागे की बात किस संबंध में कही है व क्यों ?
उत्तर - सोने व सुहागे का आपस में बहुत गहरा संबंध है। लेकिन सुहागे का अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता है। परंतु जब वह सोने के साथ मिल जाता है तो उसमें चमक उत्पन्न कर देता है।
जिस कारण उसका महत्व बढ़ जाता है, उसी प्रकार कवि का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं था, किंतु ईश्वर की भक्ति करके उसकी आत्मा का परमात्मा से मेल हो गया है। उसका जीवन सफल हो गया।
प्रश्न 8 - रैदास ने 'गरीब निवाजु' किसे और क्यों कहा है?
उत्तर- कवि 'गरीब निवाजु' ईश्वर को कहता है क्योंकि वही गरीब व दीनों का रखवाला है।
प्रभु की कृपा से हमारे सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है।
नीच लोग भी प्रतिष्ठा प्राप्त करने लगते हैं। ऐसे लोगों पर प्रभु इतनी कृपा बरसाते हैं कि अछूत व नीच होते हुए भी प्रतिष्ठित हो जाते हैं।
प्रश्न 9- रैदास द्वारा रचित 'अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी' पद का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में कवि रैदास ने ईश्वर के साथ संबंध स्थापित कर लिया है।
कवि को प्रभु के नाम की धुन लग गई है। वह केवल प्रभु को ही स्मरण करना चाहते हैं।
प्रभु के नाम की लगन (रट) को अब वह छोड़ नहीं सकते क्योंकि प्रभु के साथ कवि उसी प्रकार मिल गए हैं जैसे चंदन के साथ पानी मिल जाता है यानी कवि के मन से अब राम नाम कभी नहीं हटेगा।
प्रश्न 10- 'जाकि छोति जगत कउ लागै'- रैदास की पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में कवि रैदास कहते हैं कि कुछ लोगों को संसार में अछूत माना है, नीच तथा तुच्छ माना है, कवि स्वयं के साथ-साथ कबीर, नामदेव, त्रिलोचन, सधना कसाई तथा सैनु नाई की भी बात कर रहे हैं।
ऐसे नीच लोगों का उद्धार करके ईश्वर ने उन्हें राजाओं जैसा सम्मान दिलवाया है।
जिस प्रकार राजा सिर पर छत्र धारण करके प्रतिष्ठित हो जाता है, उसी प्रकार ये लोग भी ईश्वर की कृपा पाकर संसार रूपी सागर से तर चुके हैं।
प्रश्न 11- कवि रैदास के प्रभु निडर कैसे हैं ?
उत्तर- रैदास ने प्रभु को निडर इसलिए कहा है क्योंकि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, दयालु हैं, छोटे-बड़े, नीच-ऊँचे सब पर कृपादृष्टि डालते हैं।
वे सबका उद्धार करते हैं। निम्न वर्ग के लोगों को उठाकर इस प्रकार प्रतिष्ठित करते हैं कि उनकी तुच्छता उनकी प्रतिष्ठा के समक्ष टिक नहीं पाती ।
जब ईश्वर सबका उद्धार और कल्याण करते हैं, तो फिर उन्हें डर कैसा?
प्रश्न 12- 'चंदन की सुगंध अंग-अंग में बसने से' पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि ने प्रभु को तथा स्वयं को पानी बताया है। चंदन के साथ पानी मिलने पर, पानी के कण-कण में चंदन की सौगंध बस जाती है। पानी भी सुगंधित हो जाता है।
उसी प्रकार तुच्छ या नीच लोग जब ईश्वर की कृपा प्राप्त कर लेते हैं, तब वे नीच नहीं रहते।
उनका उद्धार हो जाता है।
प्रश्न13- रैदास की भक्ति में से कौन-सा भाव उभरकर सामने आता है ? 'रैदास के पहले पद' से प्रमाण दीजिए।
उत्तर- कवि रैदास द्वारा रचित पंक्ति- प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, में कवि द्वारा प्रभु को स्वामी तथा स्वयं को दास या सेवक बताया गया।
कवि कहते है कि मैं प्रभु का दास हूँ और उनकी कृपा प्राप्त करना चाहता हूँ।
भगवान के चरणों में कवि अपनी दास्य भक्ति को अर्पित कर रहे हैं।
प्रश्न 14- 'जैसे चितवत चंद चकोरा' पंक्ति से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - इस पंक्ति से कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिस प्रकार चकोर पक्षी बिना पलकें झपकाए, एकनिष्ठ होकर चंद्रमा की ओर ताकता रहता है,
-उसी प्रकार भक्त भी एकाग्रचित्त होकर अपने प्रभु के मुख-चंद्र की ओर निहारना चाहता है।
इसी कारण भक्त का ध्यान प्रभु-भक्ति से एक पल के लिए भी नहीं हटता।
Monday, 17 May 2021
शब्दों का प्रभाव/सूझबूझ/तकलीफ़ का अहसास - लघु कथाएँ
Top Best Famous Moral Stories In Hindi
शब्दों का प्रभाव
राजा भद्र सिंह प्रजा पालक एवं न्याय प्रिय थे किंतु उनका पुत्र निर्दयी था। राजपूत्र होने के कारण उसकी शिकायत करने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता था लेकिन राजा तक यह बात पहुँच ही गई।राजा ने इसे सुधारने के लिए अनेक उपाय किए परंतु उसे सुधार न सके। राजा बहुत चिंतित हो चुके थे और दुखी रहने लगे थे। सौभाग्य से कुछ दिन बाद औषधाचार्य नामक एक ऋषि उस राजा के पास रहने आए। ऋषि ने राजा से मुलाकात की। राजा ने ऋषि के सामने अपनी समस्या को रखा। राजा की परेशानी को सुनकर ऋषि ने राजपुत्र को रास्ते पर लाने का निश्चय किया। उन्होंने उसी दिन से राजपुत्र को सुधारने का प्रयास करना शुरू कर दिया परंतु उनके प्रयास का कोई परिणाम न निकला।
एक दिन औषधाचार्य ऋषि उस राजपूत के साथ उद्यान में भ्रमण कर रहे थे, तभी उस बालक ने एक नन्हे पौधे से पत्तियाँ तोड़कर मुँह में डालकर चबानी शुरू कर दी। पत्तियाँ बहुत कड़वी थीं। क्रोध में आकर उसने पौधों को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया। इस हरकत से बहुत नाराज हुए और उसे डाँटने लगे।
उद्दंड बालक बोला कि इसकी पत्तियों की वजह से मेरा सारा मुँह कड़वा हो गया है इसलिए मैंने इसे जड़ से ही उखाड़ दिया। ऋषि की बातें सुनकर कुछ गंभीर हो गए फिर कुछ सोचकर बोले, "पुत्र! यह तो केवल औषधि का पौधा है। इसके पत्तों के अर्क से औषधि बनाई जाती है जो अनेक असाध्य रोगों को दूर करने का काम करती है। तुम्हें इसकी कड़वाहट तुम्हें पसंद नहीं आई। पर क्या तुमने कभी अपने स्वभाव के बारे सोचा, कि तुम सबसे कैसा व्यवहार करते हो ? तुम्हारे इस व्यवहार के कारण तुम्हारे पिता का प्रजा में कितनी निंदा हो रही है।"
ऋषि के शब्दों ने जादू का काम किया। उनके शब्द उस उद्दंड बालक के हृदय को छू गए। और उसी पल, उसी क्षण से उसके जीवन की दिशा बिलकुल बदल गई। अब वह अपने नीतिवान पिता का वास्तविक उत्तराधिकारी बनने के लायक हो गया और सबके साथ उचित व्यवहार करके सबका दिल जीतने का प्रयास करने लगा।
सूझबूझ
एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड में आई.पी.एस का इंटरव्यू देने के लिए गए थे। जब उनकी बारी आई तो वे अंग्रेज़ अधिकारियों के सामने पहुँचे। इंटरव्यू के लिए वे उन अंग्रेज अधिकारियों के सामने बैठते हैं। उन्हें देखकर एक अंग्रेज़ अधिकारी ने व्यंग्य से उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए प्रश्न पूछा, "बताओ कि छत पर लगे के पंखे में कुल कितनी पंखुड़ियाँ हैं।"
इस प्रकार के प्रश्न को सुनकर नेताजी की नजरें यकायक पंखे पर चली गईं। पंखा उस समय पंखा बहुत तेज गति से चल रहा था। वे उस पंखें की तरफ देखते हैं। वहाँ बैठे एक अधिकारी ने कहा कि यदि आप इसकी सही संख्या हमें नहीं बता पाए तो इस इंटरव्यू में फेल हो जाओगे।
वहीं बैठे एक और सदस्य ने कहा, "भारतीयों में बुद्धि होती ही कहाँ है।" सुभाष चंद्र ने उनकी बातें सुनकर निर्भीकता उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि अगर मैंने इसका सही उत्तर दे दिया तब आप भी मुझसे कोई दूसरा प्रश्न कर ही नहीं पाएँगे और साथ ही आपको मेरे सामने यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि भारतीय न सिर्फ बुद्धिमान होते हैं बल्कि वे धैर्य और निर्भीकता से हर प्रश्न का उत्तर ढूँढ ही लेते हैं। उनकी बातें सुनकर अंग्रेज काफी आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा आप उत्तर तो दें यदि आप उत्तर दे सके तो हम आपकी बात मान लेंगे।
अंग्रेजो के द्वारा उत्तर माँगने पर सुभाष चंद्र बोस अपनी जगह से उठे और उन्होंने चलता पंखा बंद कर दिया। जैसे ही पंखा रुका उन्होंने पंखे की पंखुड़ियों की संख्या उन अधिकारियों को बता दी।
इस प्रकार सुभाष चंद्र द्वारा दिए गए जवाब से वे आश्चर्यचकित रह गए। सुभाष की विलक्षण बुद्धि, सूझबूझ और साहस को देखकर इंटरव्यू में बैठे बोर्ड के सदस्य फिर उनसे कोई प्रश्न करने लायक नहीं रहे और न ही कोई दूसरा प्रश्न पूछ पाए। इसके साथ उन्हें यह बात भी स्वीकार करनी पड़ी कि भारतीयों के पास बुद्धि, साहस और आत्मविश्वास होता है जिससे वे हर मुसीबत का हल खोज ही लेते हैं।
तकलीफ़ का अहसास
एक राजकुमार की जब आश्रम में शिक्षा पूरी हो गई तो उसके पिता महाराज स्वयं उसे लेने के लिए आश्रम में पहुँचे। उस राजकुमार को शिक्षा दे रहे गुरु ने महाराज से कहा, "राजन! इसकी शिक्षा तो पूरी हो गई है, लेकिन एक सबक अभी भी इसको देना बाकी रह गया है। वह भी अभी पूरा हो जाएगा।"
यह बात राजन से कहकर वे कुटिया के अंदर गए और एक कोड़ा अपने साथ लेकर बाहर आए। उन्होंने ज़ोर से राजकुमार की पीठ पर दो बार कूड़े जड़ दिए। उसके बाद उन्होंने राजकुमार को आशीर्वाद दिया और उसे वहाँ से विदा किया। आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा, "जाओ वत्स! तुम्हारा कल्याण हो।
वहाँ से जाने से पहले राजा ने गुरु से इसका कारण पूछना चाहा। उन्होंने गुरु से कहा, "अगर मेरा अपराध क्षमा हो, तो मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि आपने किस कारण से राजकुमार कोड़े जड़े ? गुरुवर! आपका यह व्यवहार मेरी समझ में नहीं आया ।
उनकी बात सुनकर गुरुदेव बोले, "महाराज! इसे आगे चलकर शासन करना है, राजा बनना है और जब यह राजा बनेगा तो न्याय भी करेगा, लोगों को दंड भी देगा। राजन, इसे पता होना चाहिए कि मार की तकलीफ क्या होती है।
राजा एक बहुत ही बुद्धिमान और नेक व्यक्ति थे। वे गुरु की बात सुनकर उनकी बात से सहमत हो गए और वे समझ गए कि गुरु उस राजकुमार को क्या सीख देना चाहते हैं।
Sunday, 16 May 2021
जब शेख मेहमान बना -शेखचिल्ली और उसके किस्से
Saturday, 15 May 2021
ख़ुशी के आँसू - लघुकथा
ख़ुशी के आँसू
गली-गली सब्जी बेचते हुए सब्जी वाला एक गली से गुज़रा उसने एक बड़ी-सी इमारत की पाँचवीं मंजिल के घर की घंटी बजाई।ऊपर से बालकनी का दरवाजा खुला और एक महिला बाहर आई। उस महिला ने नीचे झाँककर देखा...सब्जी वाले ने महिला की और देखते हुए कहा:"बहन! सब्जी लाया हूँ। नीचे आकर सब्जी ले लो ...
बताओ बहन क्या तौलना है? क्या कोई और सब्जी वाला यहाँ सब्जी देने आता है क्योंकि आप तो मुझसे सब्जी लेती थीं पर आपने तो बहुत दिनों से मुझसे कोई सब्जी नहीं खरीदी।
सब्जी वाला नीचे चिल्लाकर बोला ।सब्जीवाले की बात सुनकर महिला बोली:"रुको भाई! मैं नीचे आकर बात करती हूँ ।"
महिला इमारत से नीचे गली में आई। गली में खड़े सब्जी वाले के पास जाकर वह कहने लगी -"भाई! अब हमारी घंटी मत बजाना । हमें अभी सब्जियों की ज़रूरत नहीं है।"
"यह कैसी बात कर रही हो आप दीदी! सब्ज़ी खाना तो बहुत ज़रूरी है। सच बोलो दीदी, क्या तुम किसी और से सब्जी लेती हो?" सब्जी वाले ने महिला से कहा।
"नहीं भाई! दरअसल बात यह है कि उनके(पति) पास अभी कोई काम नहीं है और किसी तरह हम खुद को इस हालात में जीवित रख रहे हैं।
लेकिन जब सब कुछ ठीक होने लगेगा, पति काम पर जाएँगे और घर में कुछ पैसे आने लगेंगे, तब मैं तुमसे ही सब्जी लूँगी । आप इस तरह से घंटी बजाते हो तो उन्हें बहुत बुरा लगता है, अपनी मजबूरी पर उन्हें दुख होता है। इसलिए भाई, अब से हमारी घंटी मत बजाना ।" यह बात कहकर वह महिला अपने घर वापस लौटने लगी।
"अरे दीदी! थोड़ा रुको। हम इतने सालों से तुम्हें सब्जियाँ दे रहे हैं। जब आपका दिन अच्छा रहा, तो आपने हमसे बहुत सारी सब्जियाँ और फल ले लिए। अब अगर आपको कोई समस्या है, तो क्या हम आज छोड़ देंगे। तुम ऐसे ही हो?
अरे दीदी, हम सब्जी वाले हैं, कुछ नेता हैं, जिन्हें आज जब आपको मेरी जरूरत है, तो हम आपको ऐसे ही छोड़ देते हैं, परेशान। दीदी, दो मिनट रुको। ”
और एक बैग में टमाटर, आलू, प्याज, घी, कद्दू और करेला डालने के साथ ही सब्जी वाले ने उसमें धनिया और मिर्च डाली।.यह सब देखकर महिला हैरान रह गई।
उसने सब्जीवाले से तुरंत कहा- "भैया! इसे तोलो तो सही, तुम मुझे उधार सब्जी दे रहे हो, कम से कम इसे तोलो, और मुझे इसके पैसे भी बताओ। मैं तुम्हारा सब्जी का हिसाब लिख लूँगी ।
भैया जब मेरे हालात ठीक हो जाएँगे, तब आपके सब्जी के सारे पैसे मैं आपको दे दूँगी ।" उस महिला ने सब्जी वाले कहा।"वाह... क्या हुआ बहन ?
मैंने सब्जी इसलिए नहीं तोली क्योंकि कोई मामा अपनी भतीजी और भतीजे से पैसे नहीं लेता है। और बहन! मैं भी कोई एहसान नहीं कर रहा हूँ। यह सब, यहीं से उसने कमाया है, इसलिए उसने आप में उसका हिस्सा है।
मैं यह थोड़े से 'आम' गुड़िया के लिए और कुछ 'मौसम्बी' भतीजे के लिए सब्जी के साथ रख रहा हूँ ।बच्चों का अच्छे से ख्याल रखना बहन। यह कोरोना रोग बहुत ही बुरा है। और हाँ, एक बात और सुन.लो .. मैं यहाँ से जब भी निकलूँगा तो तुम्हारी घंटी जरूर बजाऊँगा । "
सब्जी वाले ने हँसते हुए उस महिला के हाथ में दोनों थैले पकड़ा दिए। महिला की आँखों में लाचारी व मज़बूरी की जगह स्नेह के आँसू भर आए थे ।
Friday, 14 May 2021
HINDI NCERT SOLUTIONS CLASS 8, 9,10 SPARSH अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग,नुक्ता परिभाषा व नियम /ANUSVAR, ANUNASHIK, VISRAG, NUKTA
अनुनासिक:
अनुनासिक स्वरों को उच्चारित करते समय वायु मुँह तथा नासिका दोनों से निकलती है। |
जैसे-
ऊँगली, काँटा, पाँव आदि। |
*अनुनासिक व्यंजन नहीं है बल्कि स्वर का गुण है।
*शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगने पर उनमें चंद्रबिंदु की जगह बिंदु का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
सिंचाई, सींचना, भैंस, घोंसला, रेंगना, धौंस |
*हिंदी में अनुनासिकता के तीन रूप :
(i) बहुवचन बनाने के लिए :
गुड़िया- गुड़ियाँ | बहू -बहुएँ | तितली-तितलियाँ | नदी - नदियाँ |
ii) अर्थ परिवर्तन के संदर्भ में :
सवार-सँवार | बाट - बाँट | चौक - चौंक | उगल - उँगली |
(iii) उच्चारण के संदर्भ में:
हँसी, महँगा, कुँआ, चाँद, लहँगा, लेखकों |
* अनुनासिक के कुछ नियम:
(i) शिरोरेखा से बाहर मात्राओं का कोई हिस्सा बाहर न होने पर चंद्रबिंदु का
प्रयोग किया जाना चाहिए।
जैसे-
गाँव, ऊँट, चाँद आदि। |
(ii) शिरोरेखा के ऊपर अनुनासिक का प्रयोग :
कोंपल, में, उन्हें, मैंने, मैं, हैं, |
(iii) अनुनासिक शब्दों का प्रयोग :
अ, आ, उ, ऊ तथा ऋ स्वर के साथ।
जैसे : आँगन, घूँघट, कुँवारा आदि।
अनुस्वार:
जिन स्वरों को उच्चारित करते समय वायु नाक से निकलती है और उस स्वर का उच्चारण ज़ोर से किया जाता है, उसे अनुस्वार कहते हैं।
*अनुस्वार शब्द का अर्थ है -स्वर के बाद आने वाला। इसलिए यह शब्द के मध्य तथा अंत में ही आ सकता है किंतु शुरू में नहीं आ सकता है। इस ध्वनि का अपना कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता। इसका उच्चारण इसके आगे आने वाले व्यंजन से प्रभावित होता है। यह जिस व्यंजन के पहले आता है, उसी व्यंजन के वर्ग की नासिक्य ध्वनि के रूप में इसका उच्चारण करते हैं।
* अनुस्वार के स्थान पर बिंदु रूप का प्रयोग होता है।
जैसे: व्यंजन, ग्रंथ आदि।
* अनुस्वार के पश्चात जो व्यंजन आता है, उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण अनुस्वार( ं) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
-
सदाचार का तावीज़ ............... प्रश्न-उत्तर : 1 . राज्य में क्या शोर मचा हुआ था ? उत्तर : राज्य में चारों ओर शोर मचा कि भ्रष्टाचार बहुत...
-
मुहावरे व लोकोक्तियाँ अर्थ सहित 1.अंधे के हाथ बटेर लगना - अयोग्य व्यक्ति को भाग्य से अच्छी वस्तु मिल जाना। वाक्य: मोहन न तो योग्य व्यक्त...
-
वर्ण-विचार बहुविकल्पीय प्रश्न 1. भाषा की सबसे छोटी इकाई-----------कहलाती है। (i) पद (ii) वाक्य (iii) शब्द (iv) वर्ण उत्तर-(iv) वर्ण 2. इन...