HINDI BLOG : पद की गरिमा, मनोबल रूपी शक्ति - लघु कथा

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

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Thursday, 13 May 2021

पद की गरिमा, मनोबल रूपी शक्ति - लघु कथा

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पद की गरिमा
रामपुर रियासत के राजा रणधीर सिंह प्रजा वत्सल और कला प्रेमी थे। 
एक दिन रूप बदलने में माहिर एक बहरूपिया महादेवी का रूप धारण कर राजा से मिलने उनके दरबार में आया। 
 इस रूप में उसे देख कर कोई भी यह नहीं कह ही सकता था कि वह बहरूपिया है महादेवी। राजा भी उसे पहचान न सके। उसे इस तरह अपनी कला में माहिर देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। 
राजा ने उससे कहा कि तुम अपनी कला में बहुत निपुण हो परंतु तुम्हारी कला का सिक्का मैं तब मानूँगा जा तुम वेश धरो और मैं तुम्हें पहचान न पाऊँ। 
राजा ने बहरूपिए से फिर कहा, "यदि तुम साधु वेश धारण करो और किसी द्वारा पहचान में न आओ तो मैं तुम्हारी कला का लोहा मानूँगा। 
राजा की यह बात सुनते ही वह बहरूपिया वहाँ से चला गया। वह बहुत दिनों तक किसी को नजर नहीं आया। 
कुछ दिनों बाद दरबार में एक साधु को लेकर चर्चा चली। दरबारी कहने लगे कि नगर में एक साधु आए हैं और वे एक सेठ के यहाँ उनकी बगिया में रुके हुए हैं। 
वह बड़े प्रतापी हैं और किसी से भेंट में एक धेला भी नहीं लेते हैं। 
साधु की महिमा सुनकर राजा भी साधु के दर्शन के लिए सेठ के बगीचे में पहुँचे। 
राजा ने साधु के दर्शन किए और उन्हें उपहार और कीमती गहने भेंट करने चाहे लेकिन साधु ने उन्हें ठुकरा दिया।
घटना के अगले दिन वही बहरूपिया राजा के दरबार में पहुँचा और राजा को साधु वेश धरने की चुनौती की याद दिलाते हुए बताया कि वह साधु बनकर सेठ की बगिया में ठहरा था। 
बहरूपिए की बात सुनकर राजा अत्यधिक प्रसन्न हुए। उन्होंने उस बहरूपिए बहुरूपिया को इनाम में ढेर सारे राशि दी । 
फिर राजा ने बहुरूपिए से प्रश्न किया। 
राजा ने बहुरूपिए से कहा, "कि तुम्हें अनेक रत्न व आभूषण दिए गए थे, जब तुम साधु वेश धारण करके बैठे थे परंतु तुमने वे सब लेने से क्यों मना कर दिया था ?
 इस पर बहुरूपिया ने कहा, "कि हे महाराज! उस समय मैं साधु वेश में था, इसलिए भेंट लेना उस पद की गरिमा के विरुद्ध था और मैं उस पद की गरिमा को भ्रष्ट नहीं कर सकता था।"


मनोबल रूपी शक्ति 

एक राजा था। उसने एक हाथी पाल रखा था। उसे उस हाथी से बहुत प्रेम था। वह हाथी केवल राजा का ही नहीं बल्कि प्रजा का भी प्रिय था। इसका कारण यह था कि उसमें बहुत सारे गुण थे। वह हाथी बहुत ही बुद्धिमान एवं स्वामी भक्त था। उसने अपने जीवन में कई युद्धों में यश प्राप्त किया था। 

उसने राजा के साथ मिलकर बहुत से युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और राजा को विजयी बनाया था। पर अब समय के साथ उम्र बढ़ने से हाथी बूढ़ा होने लगा था। उसका शरीर अबजर्जर होने के साथ ही शिथिल पड़ता जा रहा था।  जिस कारण अब वह युद्ध करने और युद्ध में ले जाने लायक वह नहीं बचा था। 

एक दिन हाथी टहलता हुआ तालाब पर पानी पीने के लिए पहुँचा। उस तालाब में पानी बहुत कम था इसलिए हाथी पानी पीने के लिए तालाब के बीच में पहुँच गया। पानी कम होने की वजह से उस तालाब में कीचड़ भी बहुत ज्यादा था। 

हाथी उसकी कीचड़ रूपी दलदल में फँस गया। वह अपने जर्जर होते शरीर को कीचड़ से निकालने में समर्थ नहीं था। वह इतना परेशान हो गया कि अब वह घबराने लगा और उसने से ज़ोर से चिंघाड़ना शुरू कर दिया ताकि कोई उसकी मदद करने के लिए वहाँ आ जाए। हाथी के चिंघाड़ने की आवाज़ सुनकर सारे महावत उसकी मदद करने के लिए उसकी ओर दौड़े। 

हाथी की ऐसी स्थिति देखकर सभी महावत सोच में पड़ गए कि हाथी को किस प्रकार कीचड़ से बाहर निकाला जाए ?आखिरकार उन्होंने एक फैसला किया कि   बड़े नुकीले भाल से उसके शरीर में चुभाए जाए, जिसकी चुभन से वह अपनी शक्ति को एकत्रित करें और कीचड़ से बाहर निकल आए परंतु उन भालों के चुभने से उसके शरीर में और ज्यादा पीड़ा होने लगी और उसकी आँखों से आँसू छलकने लगे।

हाथी के दलदल में फँसने का समाचार जब राजमहल में राजा के कानों तक पहुँची   तब राजा भी तालाब पर पहुँच गए। हाथी को ऐसी स्थिति में देखकर राजा की आँखें भर आई। थोड़ी देर तक सोचने के बाद राजा ने कहा कि हमारे पुराने बूढ़े महावत को बुलाया जाए। 

बूढ़ा महावत वहाँ आया और उसने आकर राजा को एक उपाय बताया कि हाथी को केवल एक ही तरीके से बाहर निकाला जा सकता है। यदि आप युद्ध का नगाड़ा बजाओ, बैंड बाजे लाओ और सभी सैनिकों को यहाँ पंक्ति में उसके सामने खड़ा कर दो। राजा ने बूढ़े महावत की बात सुनकर वहाँ खड़े अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि सैनिकों को शस्त्र के साथ यहाँ बुलाया जाए और युद्ध का नगाड़ा बजाया जाए। 

कुछ ही समय में सारी तैयारियाँ हो गईं। सभी सैनिक व राजा तालाब के किनारे इकट्ठे हो गए। जैसे ही सैनिकों ने नगाड़े बजाना शुरू किया वैसे ही हाथी ने उन सैनिकों की ओर देखा। सैनिकों की लंबी कतारें वहाँ खड़ी देखकर उसके शरीर में एकदम से जान आ गई और वह एक छलांग में ही दलदल से बाहर निकल आया। 

सैनिकों और नगाड़े की आवाज़ ने हाथी को उसके बूढ़े और कमज़ोर होने तथा कीचड़ में फँसे होने की याद भुला दी। नगाड़े की ध्वनि ने उसके सोए हुए मनोबल को जगा दिया था। कभी ऐसा न हुआ था कि युद्ध के बाजे बजे हों और वह उन्हें सुनकर वहीं रुका रह गया हो। 

मनुष्य के अंदर मनोबल से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है।

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