Top Best Famous Moral Stories In Hindi
1.सुधार की गुंजाइश
एक गाँव में एक बहुत ही अच्छा मूर्तिकार रहता था। वह स्वयं तो बहुत अच्छी मूर्तियाँ बनता ही था साथ ही उसने अपने बेटे को भी अपनी तरह मूर्तिकला में निपुण किया ।
दोनों बाप-बेटे मूर्तियाँ बनाते और बाजार में बेचने ले जाते।
पिता की मूर्तियाँ को डेढ़-दो रुपए में बिकती लेकिन बेटे की मूर्तियाँ केवल आठ-दस आने में ही बिक पातीं।
जब दोनों घर वापस आते तो पिता अपने पुत्र को उसकी मूर्तियों में रही कमियों को बताता और पुत्र को उन्हें ठीक करने को कहता। लड़का भी समझदार था।
अपने पिता की बात सुनकर वह मन लगाकर उन कमियों को दूर करता ।
धीरे-धीरे पुत्र की मूर्तियाँ भी डेढ़-दो रुपए बिकने लगीं। पर पिता तब भी उसकी मूर्तियों में रही कमी को बताता रहता और पुत्र से उसे ठीक करने को कहता।
वह अपनी पूरी मेहनत लगाकर उन मूर्तियों में सुधार करता। इस तरह पिता की बताई कमियों को दूर करते पुत्र को लगभग छह साल बीत गए । इतने सालों तक बार-बार सुधार करते हुए उस लड़के की मूर्तिकला में बहुत ज़्यादा निखार आ गया था ।
अब उसकी बनाई मूर्तियाँ छह-सात रुपये में बिकने लगीं। लेकिन तब भी पिता ने मूर्तियों में कमियाँ निकालना नहीं छोड़ा ।
वह अपने पुत्र से कहता कि अभी और सुधार की गुंजाइश है ।
एक दिन लड़का झुँझलाकर बोला, "अब बस करिए, पिताजी ।
मैं अब आपसे भी ज़्यादा अच्छी मूर्तियाँ बनाता हूँ। आपको अपनी मूर्तियों केवल दो-ढाई रुपए मिलते हैं । जबकि मेरी बनाई हुई मूर्तियों से मुझे छह-सात रुपये मिल जाते हैं।"
पिता ने पुत्र को समझाते हुए कहा, "बेटा तुम्हारी तरह ही एक समय मुझे भी अपनी कला पर बहुत घमंड हो गया था ।
तब मैं तुम्हारी उम्र का था और मैंने मूर्तियों में सुधार करना बिल्कुल बंद कर दिया था।
इस प्रकार से मैं डेढ़ -दो रुपए से ज़्यादा की मूर्तियाँ नहीं बना सका।
यानी घमंड के कारण इससे ज़्यादा नहीं कमा सका और आज भी उतने ही कमा रहा हूँ। आगे नहीं बढ़ पाया।
पिता ने पुत्र से कहा, "बेटा मैंने जो गलती की,वह गलती तुम न करो।
कार्य या जगह कोई भी हो चाहे पर उसमें हमेशा सुधार की कोई-न-कोई ज़रूरत रहती ही है। पुत्र! तुम्हारी कला में निरंतर निखार आते रहे और तुम ऐसी तरह अपनी कमियों को सुधारते रहो। मैं तो बस यही चाहता और कामना करता हूँ।
जिससे तुम्हारा नाम बहुमूल्य मूर्तियाँ बनने वाले कलाकारों में शामिल हो जाए क्योंकि जो अपने कार्य में निरंतर सुधार करता रहता है वहीं मंजिल पर पहुँचता है और हमेशा सबसे आगे रहता है ।
2.चित्रकार की गलती
एक बहुत बड़े शहर में एक बहुत ही विख्यात चित्रकार रहता था।
उसके बनाए चित्रों को देखने के लिए हजारों लोग देश-विदेश से उसकी चित्र-प्रदर्शनी में आते थे। लोग उसके बनाए चित्रों और उसके काम की प्रशंसा करते नहीं थकते थे।
एक बार उस चित्रकार के मन में एक शंका उत्पन्न हो गई। उसे लगने लगा कि कहीं लोग मेरे सामने झूठे मुँह मेरी तारीफ करते हो और बाद में मेरी पीठ पीछे वे मेरे काम की कमी निकालते हों।
यह बात सोचकर उसने अपनी बनाई हुई एक मशहूर पेंटिंग सुबह-सुबह शहर के एक व्यस्त चौराहे पर लगा दी और नीचे लिख दिया, "कि जिसे भी इस पेंटिंग में कहीं कोई कमी नजर आए वह उस जगह एक निशान लगा दे।"
शाम को जब वह चौराहे पर आ गया तो पेंटिंग पर सैकड़ों निशान लगे हुए थे।
वह बहुत निराश हो गया और चुपचाप पेंटिंग उठाकर अपने घर चला गया।
एक दिन उसके दोस्त ने उसकी निराशा का कारण पूछा, तब उसने उदास मन से उस दिन की पूरी घटना सुना डाली।
मित्र ने उसे कहा, "हम एक काम कर सकते हैं। क्यों न एक बार और हम तुम्हारी पेंटिंग को उस चौराहे पर दोबारा रखकर देखें ।
अगली सुबह उन्होंने चौराहे पर एक पेंटिंग लगाई।
पेंटिंग वहाँ रखने के बाद उस चित्रकार के मित्र ने उससे कहा, " पेंटिंग के नीचे इस बार लिखो कि जिस किसी भी व्यक्ति को कहीं भी इस पेंटिंग में कोई कमी दिखे, वे स्वयं ही उसे ठीक कर दे।"
शाम को जब दोनों दोस्त उस पेंटिंग को देखने गए तो उन्होंने देखा कि पेंटिंग जैसी सुबह थी अभी भी बिलकुल वैसी की वैसी है।
दोस्त चित्रकार को देख कर मुस्कुरा कर बोला, 'कुछ समझे कि कोई भी आसानी से गलतियाँ तो निकाल सकता है लेकिन गलतियाँ सुधारने वाले बहुत कम लोग होते हैं।
3. पिता की प्रार्थना
एक बार एक पिता और पुत्र जल यात्रा कर रहे थे।
जलमार्ग द्वारा सफर करते हुए दोनों रास्ता भटक गए।
मार्ग भटकने के कारण उनकी नौका भी ऐसी जगह पहुँच गई जहाँ पर दो टापू पास-पास थे।
जैसे ही उनकी नाव टापू पर पहुँची उसके टुकड़े गए यानी नाव टूट गई।
सुनसान टापू टूटी नाव को देखकर पिता ने अपने पुत्र से कहा, "बेटा लगता है कि अब हम दोनों यहाँ से निकल नहीं पाएँगे शायद हमारा आखिरी वक्त करीब है।
दूर-दूर तक हमें कोई सहारा भी नहीं दिख रहा है।कोई करने वाला भी नहीं है।"
पिता अभी पुत्र से बात कर ही रहे थे कि उन्हें एक उपाय सूझा और उन्होंने अपने पुत्र से कहा, "कि वैसे भी हमारी इस जगह पर कोई मदद नहीं कर सकता और हमारा आखिरी वक्त करीब है। तो इस अंतिम समय में क्यों न हम ईश्वर से प्रार्थना करें।"
पिता ने पुत्र से कहा कि हम अलग-अलग होकर प्रार्थना करते हैं ।
एक टापू पर तुम चले जाओ और दूसरे टापू पर मैं जाता हूँ। इस तरह पिता-पुत्र ने दोनों टापुओं को आपस में बाँट लिया।
एक पर पिता और दूसरे पर पुत्र, दोनों अलग-अलग ईश्वर से प्रार्थना करने लगे।
पुत्र ने ईश्वर से कहा, "हे ईश्वर! इस सुनसान टापू पर बहुत सारे पेड़-पौधे उग जाएँ।
उन पेड़-पौधे पर लगे फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकेंगे।
ईश्वर द्वारा प्रार्थना सुनी गई, तत्काल ही उस टापू पर पेड़-पौधे उग गए और उसमें फल-फूल भी लग गए।"
पुत्र ने फिर एक प्रार्थना की, कि हे ईश्वर! एक नाव यहाँ आ जाए और जिसमें सवार होकर हम यहाँ से बाहर निकल सकें। उसकी प्रार्थना सुनी गई।
तत्काल नाव भी प्रकट हो गई और उसमें सवार होकर पुत्र टापू से बाहर निकलने लगा।
जब वह नाव में सवार होकर निकलने लगा,तभी ईश्वर द्वारा आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो ? क्या अपने पिता को साथ नहीं लोगे ?
तो पुत्र ने कहा, "आप मेरे पिता को छोड़िए, प्रार्थना तो उन्होंने भी की लेकिन आपने मेरे पिता की एक भी नहीं सुनी। मेरे पिता को इसका फल भोगने दो शायद उनका मन ही पवित्र नहीं है।"
पुत्र की बात सुनकर आकाशवाणी ने उससे पूछा, "क्या तुम जानते हो कि क्या प्रार्थना की थी तुम्हारे पिता ने ?"
आकाशवाणी की बात सुनकर वह पुत्र बोला, "नहीं" मुझे कैसे पता होगा कि कौन -सी प्रार्थना मेरे पिता की होगी ?
" पुत्र की बात सुनकर आकाशवाणी ने कहा, सुनो पुत्र! तुम्हारे पिता द्वारा केवल एक ही प्रार्थना की गई , कि हे ईश्वर! मेरा पुत्र आपसे जो भी माँगे, उसकी प्रार्थना जरूर सुनना और उसे वह जरूर दे देना।"
यह बात सुनकर पुत्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने पिता से जाकर अपनी गलती की क्षमा माँगी।
👍🏻
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