बोलना एक कला है
एक राजा बहुत बड़ा भक्त था भगवान का और अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था।
राजा का परिवार बहुत बड़ा था। एक बार राजा को सोते समय एक सपना आया। राजा ने सपने में देखा कि महल के सामने पीपल का वृक्ष जो है, उसके सारे पत्ते नीचे गिर गए। बस एक पत्ता पेड़ पर रह गया था।
दूसरे दिन उठते ही राजा ने एक विद्वान ब्राह्मण को महल में बुला कर रात के इस स्वपन के विषय पूछा कि इस स्वप्न का क्या अर्थ है ?
वह ब्राह्मण विद्वान तो थे पर ज्ञानी नहीं थे।
विद्वान और ज्ञानी होने में बहुत फर्क होता है। उसने राजा के प्रश्न का उत्तर अपने प्रश्न लग्न के अनुसार दिया।
~"महाराज! केवल आप ही जीवित बचेंगे और आपका समस्त परिवार मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।"
राजा को ब्राह्मण की इस बात पर बहुत क्रोध आया और उसने क्रोध में उस ब्राह्मण को जेल में डलवा दिया।
राजा ने दूसरे दिन दूसरे ब्राह्मण को बुलाया और उन्हें अपना सपना सुनाया। सपना सुनाकर उन्होंने उस सपने का अर्थ जानना चाहा। वह ब्राह्मण विद्वान के होने साथ-साथ ज्ञानी भी बहुत थे।
वह अच्छी तरह जानते थे कि किससे किस समय में किस व्यक्ति से किस तरह बात करनी चाहिए ।
उस पंडित जी ने कहा, " जय हो महाराज! आप तो बड़े ही किस्मत वाले और भाग्यशाली हैं, आपके पूरे परिवार में आपकी ही सबसे लंबी उम्र है।
राजा ने अपने मंत्री को कहा, " ज्ञानी विद्वान को इनकी इच्छा अनुसार इनाम दीजिए ताकि ये प्रसन्न हो जाएँ।"
ब्राह्मण ने कहा, "महाराज! आप यदि मुँह माँगा इनाम ही देना चाहते हैं तो कल जिस ब्राह्मण को आप ने जेल में डाला था,उसको मुक्त कर दीजिए क्योंकि वही बात मैंने कही है।
महाराज! आपके पूरे परिवार में सबसे लंबी उम्र आपकी ही होगी। इसका अर्थ यह है महाराज कि आपके परिवार के सभी सदस्य मर जाएँगे केवल आप ही जीवित बचेंगे अर्थात आपकी ही पूरे परिवार में लंबी आयु है।
मित्रों बात वही थी पर कहने का तरीका बिलकुल अलग था - सच में बोलना भी एक कला है।
# ओरछा के राजा छत्रसाल थे और उनके दरबार में राज कवि केशवदास भी शामिल थे । एक बार केशवदास ने एक ग्रंथ की रचना की और उस *रामचंद्रिका* नामक नामक ग्रंथ को उन्होंने अपने राजा को भेंट किया ।
राजा ने राज कवि की रचना से प्रसन्न होकर उन्हें इनाम में एक लाख रुपए दिए। इनाम देने के बाद उन्होंने कविराज से कहा, "कविराज आप प्रसन्न हो गए हो न इनाम पाकर।" शायद राजा को घमंड आ गया कि वे बहुत बड़े दानी हैं -कवि केशव दास जी ने अपने मन में विचार किया।
केशव दास ने कहा, "महाराज! एक लाख देकर आपने कौन- सी बहुत बड़ी बात कर दी है ।
इस पुस्तक में बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बातें हैं और हर एक बात के लिए ₹ एक लाख मिलते हैं।
राजा ने कहा कि इसका प्रमाण दो तभी कवि ने कहा कि मेरे पीछे आप अपने विश्वसनीय दो जासूस लगा दीजिए मैं किस व्यक्ति से क्या बात करूँ? इसकी सूचना आपको देते रहें ।
राजा ने बिलकुल वैसा ही किया ।राज कवि केशवदास जी वहाँ से आगरा पहुँचकर एक जगह रुके फिर उन्होंने वहाँ से अकबर बादशाह के पास अपने दूत को भेजा।
वह दूत बादशाह से कहता है कि "ओरछा के राजकवि केशव दास जी आए हैं और थोड़ी देर के लिए ही ठहरेंगे" बादशाह अकबर ने बीरबल को पता लगाने के लिए वहाँ भेजा कि ये कवि कितने इनाम के वास्तविक हकदार हैं ।
बीरबल कवि की अगवानी करने के लिए पहुँचा। केशव दास जी ने दूर से ही झुक कर बीरबल को देखने अभिनय करते हुए देखा।
ज्यों ही बीरबल पास में आया केशव दास जी ने अपना मुँह फेर लिया।
बीरबल ने जब उन्हें ऐसा करते देखा तो उन्होंने उनसे कहा- मैं इतना गया गुज़रा भी नहीं हूँ कविराज! कि आप मेरी शक्ल ही भी देखना नहीं चाहते हो ।
कविराज ने कहा, "नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है। मैंने तो सुना था कि जो बीरबल का एक बार ही मुँह देख लेता है उसकी दरिद्रता उसी क्षण भाग जाती है।मैं पीछे मुड़ कर अपनी दरिद्रता को देख रहा था कि अब वह कितनी दूर भाग गई है ।"
केवल इस एक ही बात से बीरबल बहुत-ही प्रसन्न हो गए और वे बादशाह से बोले - महाराज! यह कवि बहुत ही महान कवि हैं। इनको तो भेंट में कम-से-कम 2 लाख रुपए और एक हाथी दिया जाना चाहिए ।
निडरता: आजाद की
यह घटना 1925 की है। ब्रिटिश सरकार का तख्ता काकोरी कांड ने बुरी तरह हिला दिया था। उस समय आजाद की उम्र 20 वर्ष की थी और तगड़े शरीर के थे। काकोरी कांड के बाद वे भूमिगत हो गए ताकि उनकी गिरफ्तारी न हो सके। आजाद को जीवित या मृत पकड़ने के लिए उत्तर प्रदेश की कई जगहों स्टेशनों, पुलिस थाने और नगरों में उनकी फोटो लगाकर हज़ारों रुपए इनाम देने की घोषणा की गई थी। लेकिन इतनी आसनी से आजाद किसी के हाथ आने से रहे।
आजाद को एक दिन एक मज़ाक सुझा और वे अपने एक साथी को लेकर थाने पहुँच गए। उनकी इस हिम्मत पर उनका साथी भी बहुत आश्चर्यचकित हुआ। आजाद ने थाने पहुँच कर ज़ोर-ज़ोर से अपनी गिरफ़्तारी के पोस्टर पढ़ना शुरू कर दिया।
उसी समय एक पुलिस अधिकारी ने उनसे आकर पूछा कि "तुम क्या पढ़ रहे हो ?"
बड़ी निडरता से आजाद ने उनसे कहा, "आपको क्या बताऊँ कि 3 हजार का घाटा मुझे मूँगफली के व्यापर में हो गया है। सोच रहा हूँ कि क्यों न इस आजाद को गिरफ़्तार करवाऊँ किसी पुलिस वाले के साथ मिलकर, तब तो मेरा काम बन जाएगा।"
आजाद के साथी ने उनसे कहा, "आजाद का निशाना बड़ा अचूक है। आप इस चक्क्र में न पड़ों , लालजी। अगर आजाद ने आपको गोली मार दी तब तो आपका सारा घाटा ही पूरा हो जाएगा।"
साथी की यह बात सुनते ही वहाँ खड़ा पुलिस अधिकारी बोल पड़ा, "यही तो मुसीबत है , मेरे भाई। अगर ऐसा नहीं होता तो पुलिस कब की उसे पकड़ लेती।"
पुलिस अधिकारी की ये बात सुनते ही आजाद मुस्कुराते हुए थाने से बाहर चले गए। पुलिस अदिखारी को जा बाद में यह पता चला कि मूँगफली का वह व्यापारी जो उनसे बात कर रहा था वो चंद्रशेखर आजाद था, तो वो हैरान रहा गया।
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