1.सदा धैर्य से काम लें
बहुत पुराने समय की एक घटना है कि एक बार एक नाव सवारी लेकर जाते समय नदी के बीच में डूब गई।
इस घटना की शिकायत वहाँ के राजा से की गई ... राजा का दरबार लगा और दरबार में नाविक की पेशी हुई।
नाविक से राजा ने पूछा "नाव किस वज़ह से डूबी होगी ?
राजा ने फिर प्रश्न किया कि "क्या नाव में कोई छेद था?"
नाविक ने राजा के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा – नहीं महाराज, बिल्कुल नहीं,
नाव तो बहुत दुरुस्त थी!
राजा फिर नाविक से प्रश्न किया कि " तुमने नाव में क्या सवारी अधिक बिठाई थी ?"
नाविक ने राजा को उत्तर दिया–महाराज, मैंने सवारी अधिक नहीं बिठाई थी। सवारी नाव की क्षमतानुसार ही थी। इससे पहले न जाने कितनी बार मैंने क्षमता से अधिक सवारी बिठाकर भी नाव पार लगाई थी।
राजा ने आश्चर्य से फिर नाविक से प्रश्न किया– उस समय तो आँधी-तूफान जैसी कोई प्राकृतिक आपदा भी तो नहीं थी ?
नाविक ने राजा को उत्तर दिया कि "महाराज! उस दिन मौसम भी बहुत सुहाना था और नदी भी बिल्कुल शान्त थी।"
राजा ने गंभीर होकर नाविक से फिर प्रश्न किया – कहीं तुमने उस दिन मदिरा पान तो नहीं किया था ?
नाविक ने राजा से कहा – "आप चाहें तो उन सवारियों से पूछ सकते हैं जो मेरे साथ थे कि मैंने मदिरा पान बिलकुल नहीं किया था। यह सभी लोग मेरे साथ उस समय तैरकर जीवित लौटे हैं।"
महाराज थोड़ा क्रोधित होते हुए बोले – "फिर, तुमसे चूक कहाँ हुई? कैसे नाव डूब गई और इतनी बड़ी दुर्घटना कैसे हुई?"
नाविक ने राजा से कहा– "महाराज!, नाव धीरे-धीरे, बिना हिलकोरे लिए नदी में बड़े आराम से आगे बढ़ रही थी। उसी समय नाव में बैठी एक सवारी ने नाव के अंदर ही थूक दिया।"
मैंने पतवार रोककर उस आदमी की इस हरकत का विरोध किया और उस व्यक्ति से पूछा कि भाई "तुमने ये क्या किया ? नाव के अंदर थूका क्यों ?"
उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए मुझसे कहा – "क्या मेरे थूकने से ये नाव डूब जायेगी?"
मैंने उस आदमी से कहा – "नाव डूबने की बात नहीं है पर तुमने जो ये हरकत की है इससे हमें घृणा आ रही है। तुम एक बताओगे कि, तुमको जो नाव अपने ऊपर बिठाकर नदी के उस पार ले जा रही है तुम उसमें कैसे थूक सकते हो ?
राजा ने गंभीरता से नाविक से पूछा– फिर आगे बताओ ?
नाविक ने राजा से– महाराज! मेरी यह बात सुनकर वह क्रोधित हो गया और बोलने लगा कि बदले में पैसा देते हैं हम नदी पार करवाने लिए। तुम और तुम्हारी नाव कोई एहसान नहीं कर रहे हम पर ।
राजा बड़ी हैरानी से पूछा – पैसे देने का क्या अर्थ होता है, यदि पैसे दिए हैं तो क्या नाव में थूकने का हक मिल गया ? अच्छा, आगे कहो। फिर क्या हुआ ज़रा आगे बताओ ?
नाविक बोला – महाराज, वो इस बात पर मुझसे झगड़ा करने लगा।
राजा ने नाविक की बात सुनकर कहा कि "नाव में बैठे बाकि लोग उस समय क्या कर रहे थे? क्या उन लोगों ने उस आदमी की बात का विरोध नहीं किया?
नाविक ने राजा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, " हाँ महाराज! नाव में बैठे बहुत से लोगों ने मेरे साथ उस व्यक्ति का विरोध किया।
राजा ने नाविक से पूछा– फिर तो शायद उस आदमी की हिम्मत टूटी होगी। उसे अब तो अपने द्वारा किए गलत काम का कुछ एहसास हुआ होगा?
नाविक राजा की बात सुनकर बोला– महाराज! ऐसा बिलकुल नहीं हुआ । नाव में बैठे कुछ लोग ऐसे भी थे जो उस आदमी के साथ उसके पक्ष में खड़े हो गए... नाव के अंदर ही दो खेमे बँट गए।
और सभी यात्री आपस में नदी के बीचोंबीच झगड़ पड़े।
राजा बोले – चलती नाव में ही लोगों ने मारपीट शुरू कर दी , क्या तुमने उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया ? उन्हें समझाया नहीं?
नाविक राजा से बोला– बहुत रोका महाराज, मैंने हाथ जोड़कर उनसे विनती भी की।
मैंने उन लोगों से कहा भी कि "नाव इस वक्त नदी के बीच नाजुक हालत में है।"
नाव में इस समय थोड़ी सी भी हलचल हम सबकी जान का खतरा बन जायेगी लेकिन वे सब नहीं माने, उलटा सब एक-दूसरे पर टूट पड़े। नाव जब बीच मझधार में पहुँची तो उसनेअपना संतुलन खो दिया। महाराज!...
कहानी का सार
जीवन में हमेशा धैर्य का बनाये रखें ताकि नाव के संतुलन खोने से बाकी लोग न मारे जाएँ। सयंम से काम लेना ही समझदारी है।
2.कुसंस्कारों का त्याग
एक समय रामदास स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हो गए और उन्होंने ज़ोर से आवाज लगाई , "जय रघुवीर जी।"
महिला घर से बाहर निकली और उसने रामदास स्वामी जी की झोली में भिक्षा डाली।
भिक्षा देने के पश्चात स्त्री बोली, "महात्मा जी कोई उपदेश दीजिए मुझे। "
स्वामी जी उस स्त्री से बोले, "आज नहीं उपदेश कल दूँगा"
स्वामी जी ने अगले दिन फिर उस घर के सामने आकर भिक्षा माँगने के लिए आवाज लगाई- "जय रघुवीर जी।"
उस स्त्री ने उस दिन अपने घर में खीर बनाई थी, उसने उस खीर में बहुत से मेवे भी डाले थे।
जैसे ही उसने स्वामी जी की आवाज़ सुनी तो वह खीर का कटोरा लेकर स्वामी जी को देने के लिए बाहर आ गई ।
स्वामी जी ने अपना कमंडल उस स्त्री के आगे बढ़ा दिया। जैसे ही स्त्री खीर कमंडल में डालने लगी, तो उसकी नज़र कमंडल के अंदर पड़ी।
उसने देखा कि कमंडल के अंदर तो गोबर और कूड़ा भरा हुआ था। अंदर से तो वह बहुत गंदा हो रखा था।
उसने स्वामी जी से कहा, "महाराज! कमंडल तो बहुत गंदा हो रखा है ।
स्वामी जी बोले, "गंदा तो है परंतु तुम खीर इसमें ही डाल दो। स्त्री स्वामी से बोली, "नहीं महाराज, अगर खीर इसमें डाल दी तो वह खराब हो जाएगी। आप कमंडल मुझे दीजिए। मैं इस कमंडल को धोकर इसे शुद्ध करके ले लाती हूँ।"
स्वामी जी उस स्त्री की बात सुनकर बोले, "इसका मतलब यह है कि जब यह कमंडल साफ हो जाएगा, तभी तुम इसमें खीर डालोगी ?"
स्त्री ने स्वामी जी को कहा, "जी महाराज! बिलकुल जैसे ही कमंडल साफ़ हो जाएगा तब मैं इसमें खीर डाल दूँगी।"
स्वामी जी उससे बोले, "मैं भी तुम्हें यही उपदेश देना चाहता हूँ कि जब तक मन में चिंताओं,बुरे विचारों का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्कारों का गोबर भरा है तब तक किसी उपदेश को सुनने का कोई लाभ नहीं ।
अगर सच में उपदेशामृत पान करना चाहते हो तो सबसे पहले अपने मन को शुद्ध करना बहुत जरूरी है, कुसंस्कारों का त्याग करना होगा, तभी मन को सच्चे सुख और आनंद की प्राप्ति होगी।"
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