HINDI BLOG : पद- रैदास अति लघु उत्तरीय प्रश्न......CLASS 9...अतिरिक्त प्रश्न

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

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Tuesday, 18 May 2021

पद- रैदास अति लघु उत्तरीय प्रश्न......CLASS 9...अतिरिक्त प्रश्न

प्रश्न-उत्तर

1- कवि को किसकी रट लग गई है ?

उत्तर -कवि संत रैदास को राम नाम जपने की रट लगी है। 

2 - पहले पद के अनुसार किसमें किसकी सुगंध समाई हुई है ?

उत्तर - संत रैदास के अनुसार, जिस प्रकार पानी के कण-कण में चंदन की सुगंध समा जाती है, ठीक उसी प्रकार भक्तों के रोम-रोम में प्रभु भक्ति की सुगंध समाई हुई है । 

3 - मोर क्या देखकर नाच उठते हैं ?

उत्तर- मोर काले बादलों को देखकर नाच उठते हैं । 

4- सोने की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उसमें क्या मिलाया जाता है ?

उत्तर- सोने की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उसके साथ सुहागा नामक क्षार द्रव्य प्रयोग किया जाता है। 

5 - दूसरे पर में कवि ईश्वर के किस विशेष गुण से प्रभावित हुए ?

उत्तर -दूसरे पद में कवि ईश्वर के 'गरीब-निवाजु अर्थात दीन-दुखियों पर दया करने और उनके समदर्शी स्वभाव के विशेष गुण से अत्यंत प्रभावित हुए। 

6- अछूत लोगों पर किसकी विशेष दया-दृष्टि रहती है?

उत्तर- ईश्वर की विशेष दया-दृष्टि अछूत लोगों पर बनी रहती है। 

 7 - रैदास ने अपने प्रभु को किन-किन रूपों में देखा है ?

उत्तर- कवि रैदास ने ईश्वर के लिए चंदन, घन, चंद्रमा, दीपक, मोती जैसे उपमानों का प्रयोग किया है । 

 8 - पहले पद में रैदास ने सुहागे की उपमा क्यों दी?

उत्तर- संत कवि रैदास ने  प्रभु और अपने अटूट संबंध को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने प्रभु और स्वयं के बीच सोने और सुहागे का संबंध बताते हुए स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार सुहागे के संपर्क में आने पर सोने की चमक बढ़ जाती है, उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भी भक्त को निखार देती है। 

 9- पहले पद में रैदास ने चाँद और चकोर का उदाहरण क्यों दिया है ?

उत्तर - रैदास ने प्रभु को अपना सर्वस्व माना है और स्वयं को उनकी कृपा पर आश्रित। चकोर जिस तरह बिना पलके झपकाए एकटक चाँद को देखता रहता है उसी तरह  कवि भी प्रभु भक्ति में निरंतर लगे रहते हैं। 

10- रैदास के स्वामी कौन हैं ? वे क्या-क्या कार्य करते हैं?

उत्तर- रैदास के ईश्वर (स्वामी) निराकार प्रभु हैं। उनकी कृपा से नीच भी उच्च और अछूत भी  महान बन जाते हैं।

11-रैदास किसकी भक्ति करते हैं?

उत्तर - रैदास निराकार ईश्वर की भक्ति करते हैं। ईश्वर की असीम कृपा से नीच तथा तुच्छ कहलाने वाला व्यक्ति भी राजा के समान सम्मान प्राप्त करके श्रेष्ठ बन जाता है। 

12- कवि के ईश्वर ने किन-किन का उद्धार किया है ?

उत्तर- रैदास स्वयं को तुच्छ बताते हुए कहते हैं कि प्रभु ने उनके जैसे अनेक नीच लोगों का कल्याण करके उन्हें सम्मान दिलवाया है। संसार उन्हें 'अछूत' समझता था, मगर प्रभु के संपर्क में आकर कबीर जुलाहा, नामदेव, त्रिलोचन, सधना कसाई और सैनु जैसे नाई संसार रूपी भवसागर से तर चुके हैं। 

13 - सोने में सुहागा मिलाए जाने से उसमें क्या परिवर्तन होता है? 

उत्तर -सोने की चमक बढ़ जाती है। सुहागा भी अपना महत्व दर्शा देता है।  अर्थात प्रभु के संपर्क में आने पर भक्त की भक्ति और निखर उठती है। 

लघु उत्तरीय प्रश्न

 1-रैदास ने स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन क्यों माना है?

उत्तर- रैदास स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। पानी तो रंग, गंध और स्वाद रहित होता है, लेकिन प्रभु रूपी चंदन में मिलकर रंग और सुगंध पा जाता है। ईश्वर ही सभी गुणों को प्रदान कर अपने भक्तों को गुणवान बना देता है। 

2 -रैदास की भक्ति दास्य-भाव की है- सिद्ध कीजिए। 

उत्तर- दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहता है तथा प्रभु को दीनदयाल, भक्तवत्सल कहता है। कवि अपने आप को  पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। 

कवि अपने-आप को तुच्छ मानते हुए मोर समझते हैं और अपने ईश्वर को घने वन जैसा विराट यानी बड़ा मानते हैं। 

रैदास स्वयं को दास मानते हुए अपने मन के भाव प्रकट करते हुए अपने ईश्वर को गरीब निवाजु, निडर व दयालु कहते हैं। 

3- रैदास को क्यों ऐसा लगता है कि उनके ईश्वर उन पर मेहरबान हैं या उनपर द्रवित हैं?

उत्तर- रैदास का जन्म निम्न जाति में हुआ हुआ था। रैदास अछूत जाति के थे। चमार जाति का होने के कारण उन्हें अछूत समझा जाता था और समाज ऐसे लोगों को छूने में भी पाप समझते थे। 

परंतु ऐसा नीच माने जाने पर भी प्रभु की कृपा उन पर हुई। वे प्रभु के संपर्क में आकर प्रसिद्ध संत बन गए। उन्हें समाज के उच्च वर्ग के लोगों ने भी सम्मान दिया। यह सब ईश्वर के द्रवित होने के कारण ही हुआ था।  

5- सोने के लिए सुहागा कैसे महत्वपूर्ण है?

उत्तर- सुहागा का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, परंतु जब उसे सोने के साथ मिलाया जाता है तो वह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वह सोने में चमक पैदा करने के साथ उसे मज़बूत बना देता है।

ऐसे ही तुच्छ मनुष्य जब ईश्वर के संपर्क में आते हैं तो उनका भी उद्धार हो जाता है। प्रभु ने अनेक तुच्छ तथा छोटे लोगों को सँवारकर श्रेष्ठ बनाया है। 

6-कवि ने स्वयं को धागे के समान क्यों माना है ?

उत्तर- ईश्वर का स्वरूप तो अमूल्य है। मन में छिपे भक्ति के भावों से उस स्वरूप का गुणगान किया जा सकता है। भक्त तो उस धागे के समान है जो भक्ति के अमूल्य मूर्तियों को ईश्वर नाम के रूप में पिरोता है। 

ईश्वर अपने गुणों से अपने भक्तों को तरह-तरह से प्रभावित करता है। वे सारे गुण ही मोतियों के समान हैं जिन्हें भक्ति भावना रूपी धागे से भक्त पिरोता है इसलिए रैदास ने स्वयं को धागा माना है।

प्रश्न 7 - कवि ने सोने पर सुहागे की बात किस संबंध में कही है व क्यों ?

उत्तर - सोने व सुहागे का आपस में बहुत गहरा संबंध है। लेकिन सुहागे का अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता है। परंतु जब वह सोने के साथ मिल जाता है तो उसमें चमक उत्पन्न कर देता है। 

जिस कारण उसका महत्व बढ़ जाता है, उसी प्रकार कवि का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं था, किंतु ईश्वर की भक्ति करके उसकी आत्मा का परमात्मा से मेल हो गया है। उसका जीवन सफल हो गया। 

प्रश्न 8 - रैदास ने 'गरीब निवाजु' किसे और क्यों कहा है?

उत्तर- कवि 'गरीब निवाजु' ईश्वर को कहता है क्योंकि वही गरीब व दीनों का रखवाला है।

 प्रभु की कृपा से हमारे सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है।

 नीच लोग भी प्रतिष्ठा प्राप्त करने लगते हैं। ऐसे लोगों पर प्रभु इतनी कृपा बरसाते हैं कि अछूत व नीच होते हुए भी प्रतिष्ठित हो जाते हैं। 

प्रश्न 9- रैदास द्वारा रचित 'अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी' पद का प्रतिपाद्य लिखिए। 

उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में कवि रैदास ने ईश्वर के साथ संबंध स्थापित कर लिया है। 

कवि को प्रभु के नाम की धुन लग गई है। वह केवल प्रभु को ही स्मरण करना चाहते  हैं। 

प्रभु के नाम की लगन (रट) को अब वह छोड़ नहीं सकते क्योंकि प्रभु के साथ कवि उसी प्रकार मिल गए हैं जैसे चंदन के साथ पानी मिल जाता है यानी कवि के मन से अब राम नाम कभी नहीं  हटेगा। 

प्रश्न 10- 'जाकि छोति जगत कउ लागै'-  रैदास की पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में कवि रैदास कहते हैं कि कुछ लोगों को संसार में अछूत माना है, नीच तथा तुच्छ माना है, कवि स्वयं के साथ-साथ कबीर, नामदेव, त्रिलोचन, सधना  कसाई तथा सैनु नाई की भी बात कर रहे हैं। 

ऐसे नीच लोगों का उद्धार करके ईश्वर ने उन्हें राजाओं जैसा सम्मान दिलवाया है।

 जिस प्रकार राजा सिर पर छत्र धारण करके प्रतिष्ठित हो जाता है, उसी प्रकार ये लोग भी ईश्वर की कृपा पाकर संसार रूपी सागर से तर चुके हैं। 

प्रश्न 11- कवि रैदास के प्रभु निडर कैसे हैं ? 

उत्तर- रैदास ने प्रभु को निडर इसलिए कहा है क्योंकि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, दयालु हैं, छोटे-बड़े, नीच-ऊँचे सब पर कृपादृष्टि डालते हैं। 

वे सबका उद्धार करते हैं। निम्न वर्ग के लोगों को उठाकर इस प्रकार प्रतिष्ठित करते हैं कि उनकी तुच्छता उनकी  प्रतिष्ठा के समक्ष टिक नहीं पाती । 

जब ईश्वर सबका उद्धार और कल्याण करते हैं, तो फिर उन्हें डर कैसा?   

प्रश्न 12- 'चंदन की सुगंध अंग-अंग में बसने से' पंक्ति  का भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- कवि ने प्रभु को तथा स्वयं को पानी बताया है। चंदन के साथ पानी मिलने पर, पानी के कण-कण में चंदन की सौगंध बस जाती है। पानी भी सुगंधित हो जाता है।  

उसी प्रकार तुच्छ या नीच लोग जब ईश्वर की कृपा प्राप्त कर लेते हैं, तब वे नीच नहीं रहते। 

उनका उद्धार हो जाता है। 

प्रश्न13- रैदास की भक्ति में से कौन-सा भाव उभरकर सामने आता है ? 'रैदास के पहले पद'  से प्रमाण दीजिए। 

उत्तर- कवि रैदास द्वारा रचित पंक्ति- प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, में कवि द्वारा प्रभु को स्वामी तथा स्वयं को दास या सेवक बताया गया। 

कवि कहते है कि मैं प्रभु का दास हूँ और उनकी कृपा प्राप्त करना चाहता हूँ।

 भगवान के चरणों में कवि अपनी दास्य भक्ति को अर्पित कर रहे हैं। 

प्रश्न 14- 'जैसे चितवत चंद चकोरा' पंक्ति से कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर - इस पंक्ति से कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिस प्रकार चकोर पक्षी बिना पलकें झपकाए, एकनिष्ठ होकर चंद्रमा की ओर ताकता रहता है, 

-उसी प्रकार भक्त भी एकाग्रचित्त होकर अपने प्रभु के मुख-चंद्र की ओर निहारना चाहता है। 

 इसी कारण भक्त का ध्यान प्रभु-भक्ति से एक पल के लिए भी नहीं हटता। 




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