HINDI BLOG : शब्दों का प्रभाव/सूझबूझ/तकलीफ़ का अहसास - लघु कथाएँ

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Monday, 17 May 2021

शब्दों का प्रभाव/सूझबूझ/तकलीफ़ का अहसास - लघु कथाएँ

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शब्दों का प्रभाव

राजा भद्र सिंह प्रजा पालक एवं न्याय प्रिय थे किंतु उनका पुत्र निर्दयी था। राजपूत्र होने के कारण उसकी शिकायत करने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता था लेकिन राजा तक यह बात पहुँच ही गई।राजा ने इसे सुधारने के लिए अनेक उपाय किए परंतु उसे सुधार न सके। राजा बहुत चिंतित हो चुके थे और दुखी रहने लगे थे। सौभाग्य से कुछ दिन बाद औषधाचार्य  नामक एक ऋषि उस राजा के पास रहने आए। ऋषि ने राजा से मुलाकात की। राजा ने ऋषि के सामने अपनी समस्या को रखा। राजा की परेशानी को सुनकर ऋषि ने राजपुत्र को रास्ते पर लाने का निश्चय किया। उन्होंने उसी दिन से  राजपुत्र को सुधारने का प्रयास करना शुरू कर दिया परंतु उनके प्रयास का कोई  परिणाम  न निकला। 

एक दिन औषधाचार्य ऋषि उस राजपूत के साथ उद्यान में भ्रमण कर रहे थे, तभी उस बालक ने एक नन्हे पौधे से पत्तियाँ तोड़कर मुँह में डालकर चबानी शुरू कर दी। पत्तियाँ बहुत कड़वी थीं। क्रोध में आकर उसने पौधों को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया। इस हरकत से बहुत नाराज हुए और उसे डाँटने लगे। 

उद्दंड बालक बोला कि इसकी पत्तियों की वजह से मेरा सारा मुँह कड़वा हो गया है इसलिए मैंने इसे जड़ से ही उखाड़ दिया। ऋषि की बातें सुनकर कुछ गंभीर हो गए फिर कुछ सोचकर बोले, "पुत्र!  यह तो केवल औषधि का पौधा है। इसके पत्तों के अर्क से औषधि बनाई जाती है जो अनेक असाध्य रोगों को दूर करने का काम करती है। तुम्हें इसकी कड़वाहट तुम्हें पसंद नहीं आई। पर क्या तुमने कभी अपने स्वभाव के बारे सोचा, कि तुम सबसे  कैसा व्यवहार करते हो  ? तुम्हारे इस व्यवहार के कारण तुम्हारे पिता का प्रजा में कितनी निंदा हो रही है।"

ऋषि के शब्दों ने जादू का काम किया। उनके शब्द उस उद्दंड बालक के हृदय को छू गए। और उसी पल, उसी क्षण से उसके जीवन की दिशा बिलकुल बदल गई। अब वह अपने नीतिवान पिता का वास्तविक उत्तराधिकारी बनने के लायक हो गया और सबके साथ उचित व्यवहार करके सबका दिल जीतने का  प्रयास करने लगा। 


सूझबूझ 

 एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड में आई.पी.एस का इंटरव्यू देने के लिए गए थे। जब उनकी बारी आई तो वे अंग्रेज़ अधिकारियों के सामने पहुँचे।  इंटरव्यू के लिए वे उन अंग्रेज अधिकारियों के सामने बैठते हैं। उन्हें देखकर एक अंग्रेज़ अधिकारी ने व्यंग्य से उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए प्रश्न पूछा, "बताओ कि छत पर लगे के पंखे में कुल कितनी पंखुड़ियाँ हैं।"

 इस प्रकार के प्रश्न को सुनकर नेताजी की नजरें यकायक पंखे पर चली गईं। पंखा उस समय पंखा बहुत तेज गति से चल रहा था। वे उस पंखें की तरफ देखते हैं। वहाँ बैठे एक अधिकारी ने कहा कि यदि आप इसकी सही संख्या हमें नहीं बता पाए तो इस इंटरव्यू में फेल हो जाओगे। 

वहीं बैठे एक और सदस्य ने कहा, "भारतीयों में बुद्धि होती ही कहाँ है।" सुभाष चंद्र ने उनकी बातें सुनकर निर्भीकता उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि अगर मैंने इसका सही उत्तर दे दिया तब आप भी मुझसे कोई दूसरा प्रश्न कर ही नहीं पाएँगे  और साथ ही आपको मेरे सामने यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि भारतीय न सिर्फ बुद्धिमान होते हैं बल्कि वे धैर्य और निर्भीकता से हर प्रश्न का उत्तर ढूँढ ही लेते हैं। उनकी बातें सुनकर अंग्रेज काफी आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा आप उत्तर तो दें यदि आप उत्तर दे सके तो हम आपकी बात मान लेंगे।  

अंग्रेजो के द्वारा उत्तर माँगने पर सुभाष चंद्र बोस अपनी जगह से उठे और उन्होंने चलता पंखा बंद कर दिया। जैसे ही पंखा रुका उन्होंने पंखे की पंखुड़ियों की संख्या  उन अधिकारियों को बता दी। 

 इस प्रकार सुभाष चंद्र द्वारा दिए गए जवाब से वे आश्चर्यचकित रह गए। सुभाष की विलक्षण बुद्धि, सूझबूझ और साहस को देखकर इंटरव्यू में बैठे बोर्ड के सदस्य फिर उनसे कोई प्रश्न करने लायक नहीं रहे और न ही कोई दूसरा प्रश्न पूछ पाए। इसके साथ उन्हें यह बात भी स्वीकार करनी पड़ी कि भारतीयों के पास बुद्धि, साहस और आत्मविश्वास होता है जिससे वे हर मुसीबत का हल खोज ही लेते हैं। 

तकलीफ़ का अहसास 

 एक राजकुमार की जब आश्रम में शिक्षा पूरी हो गई तो उसके पिता महाराज स्वयं उसे लेने के लिए आश्रम में पहुँचे। उस राजकुमार को शिक्षा दे रहे गुरु ने महाराज से कहा, "राजन! इसकी शिक्षा तो पूरी हो गई है, लेकिन एक सबक अभी भी इसको  देना बाकी रह गया है। वह भी अभी पूरा हो जाएगा।"

यह बात राजन से कहकर वे कुटिया के अंदर गए और एक कोड़ा अपने साथ  लेकर बाहर आए।  उन्होंने ज़ोर से राजकुमार की पीठ पर दो बार कूड़े जड़ दिए। उसके बाद उन्होंने राजकुमार को आशीर्वाद दिया और उसे वहाँ से विदा किया। आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा, "जाओ वत्स! तुम्हारा कल्याण हो।  

वहाँ से जाने से पहले राजा ने गुरु से इसका कारण पूछना चाहा। उन्होंने गुरु से कहा,  "अगर मेरा अपराध क्षमा हो, तो मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि आपने किस कारण से राजकुमार कोड़े जड़े ? गुरुवर! आपका यह व्यवहार मेरी समझ में नहीं आया । 

उनकी बात सुनकर गुरुदेव बोले, "महाराज! इसे आगे चलकर शासन करना है, राजा बनना है और जब यह राजा बनेगा तो न्याय भी करेगा, लोगों को दंड भी देगा। राजन, इसे पता होना चाहिए कि मार की तकलीफ क्या होती है। 

 राजा एक बहुत ही बुद्धिमान और नेक व्यक्ति थे। वे गुरु की बात सुनकर उनकी बात से सहमत हो गए और वे समझ गए कि गुरु उस राजकुमार को क्या सीख देना चाहते हैं।

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