HINDI BLOG : खलील जिब्रान की दो लघुकथाएँ/ दौलत : ईमानदारी और विश्वास की

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Sunday, 2 May 2021

खलील जिब्रान की दो लघुकथाएँ/ दौलत : ईमानदारी और विश्वास की

आलोचक

एक घुड़सवार जब समुद्र की ओर यात्रा पर जा रहा था। रास्ते में रात होने पर वह  एक रात गुज़ारने के लिए सड़क के किनारे बनी एक धर्मशाला पर पहुँचा। 

उसने वहाँ धर्मशाला के दरवाज़े के पास ही एक पेड़ से अपने घोड़े को बाँध दिया  और फिर उस धर्मशाला के अंदर चला गया।

आधी रात का समय बीतने के बाद, जब सब गहरी नींद में सो रहे थे, उस समय एक चोर वहाँ आया। उसने वहाँ बँधा यात्री का घोड़ा खोला और उसे चुराकर कर अपने साथ ले गया।

यात्री जब सुबह उठा तो उसे अपने घोड़े के चोरी होने का पता चला। घोड़ा चोरी होने से वह बहुत दुखी हो गया। वह मन-ही-मन उस आदमी को कोसने लगा, जिसने उसके घोड़े को चुराया था।  

चोरी की खबर सुनकर धर्मशाला में रुके दूसरे लोग भी उसके पास इकट्ठा हो गए और चोरी को लेकर बातें करने लगे।

वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि, "घोड़े को अस्तबल में ही बाँधना चाहिए था। उसे अस्तबल के बाहर बाँधना तो बड़ी बेवक़ूफ़ी का काम है।"

वहीं खड़े दूसरे व्यक्ति ने भी कहा, "अगर घोड़े को बाँधना ही था, तो घोड़े के आगे और पीछे वाले पैरों को आपस में भी बाँधा जा सकता था ।"

बीच में कूदते हुए वहीं खड़े तीसरे आदमी ने भी कहा, "इतनी लंबी यात्रा घोड़े पर करना बिलकुल नासमझी का काम है।"

चौथे ने आदमी ने कहा, "सवारी के लिए घोड़ा तो केवल कमज़ोर और आलसी लोग ही रखते हैं।"

यात्री को उनकी बात सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ, उसे उनकी बातें बुरी लगने लगी। वह गुस्से से उन पर चिल्लाते हुए बोला, "आप सब मेरा घोड़ा चोरी हुआ है इसलिए मेरी कमियाँ और गलतियाँ बताने को उत्सुक हो रहे हो।

किसी ने भी घोड़ा चुराने वाले चोर कोई कुछ नहीं कहा ।बस मुझे ही दोष दे रहे हैं। आप सब तो घोड़ा चुराने वाले के इस घृणित कार्य पर कुछ नहीं बोले।"

कविता

एक बड़े ही प्रसिद्ध शहर के सड़क पर दो महान कवियों की भेंट हो गई। दोनों को आपस में मिलकर बहुत खुश हुए।"

पहले कवि ने दूसरे कवि से पूछा, ‘‘तुमने कोई नई कविता लिखी है?’’

दूसरे कवि ने बड़े गर्व पहले कवि से कहा, ‘‘मैंने अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने एक कविता लिखी है, यह कविताओं पहले की कविताओं में भी उत्तम है। 

मैंने यह कविता अपने गुरु की स्तुति में लिखी है। यह ग्रीक भाषा में लिखी मेरी उन  सभी कविताओं से भी सबसे उच्चतम है।"

फिर उस कवि ने अपने कुर्ते से अपनी पांडुलिपि निकली और उस कवि से कहा, ‘‘अरे! यह तो मेरी जेब में ही पड़ी थी, देखो। चलो मित्र, उस पेड़ के नीचे छाया में बैठकर तुम्हें मैं अपनी यह रचना सुनाता हूँ। इसे सुनाकर मुझे भी ख़ुशी होगी।" 

फिर उस कवि ने अपनी रचना पढ़नी शुरू की पढ़ी, जो बहुत लंबी थी।

दूसरे कवि ने बड़ी विनम्रता से रचना सुनकर अपनी प्रतिक्रिया दी, ‘‘आपकी यह रचना आपको बहुत प्रसिद्धि दिलवाएगी। यह बहुत ही महान रचना है।"

पहले कवि ने बड़ी बेरुखी से पूछा, ‘‘और आजकल तुम क्या लिख रहे हो?’’

दूसरे कवि ने उत्तर दिया, ‘‘बस थोड़ा बहुत लिखा है। बस सात-आठ पंक्तियाँ –एक बगीचे में खेल रहे बच्चे की याद में।’’ उसने अपनी लिखी पूरी रचना उस कवि को सुनाई।

पहले कवि ने बड़ी नीरसता से कहा, ‘‘ज्यादा बुरी तो नहीं है, ठीक ही है।’’

 हजारों साल बीत जाने पर भी कुछ पंक्तियाँ आज भी हर भाषा में बड़े प्रेम के साथ पढ़ी जाती हैं।

कई हजार वर्षों से पुस्तकालयों और विद्वानों की अलमारियों में दूसरे कई कवि की रचना सुरक्षित हैं तो अवश्य पर उन्हें कोई पढ़ता भी नहीं है।

दौलत : ईमानदारी और विश्वास की 

बरमाहा नामक का एक विद्वान सऊदी अरब में रहते थे। वे बहुत ईमानदार थे और अपनी ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। एक बार वे लंबी यात्रा के लिए समुद्री जहाज से निकले। उन्होंने एक हज़ार दीनार अपने सफ़र के खर्च के लिए अपनी पोटली में बाँध कर रख लिए। समुद्री यात्रा के दौरान उनकी जान-पहचान दूसरे यात्रियों से भी हुई। 

एक दिन बरमाहा ने एक व्यक्ति को बातों-बातों में अपनी पोटली दिखा दी। उस पोटली को देखकर उस व्यक्ति के मन में लालच आ गया। उसने योजना बनाई कि वह किसी तरह ये पोटली बरमाहा से हथिया लेगा। 

एक दिन वह सुबह-सुबह ज़ोर से चिल्लाने लगा कि मेरे पोटली जिसमें एक हज़ार दीनार थे वे चोरी हो गए हैं। जहाज़ पर सवार कर्मचारियों ने उसे हौंसला दिया कि वे हर मुसाफिर की तलाशी लेंगे और तलाशी के दौरान चोर पकड़ा जाएगा। 

उसी समय एक-एक करके सभी यात्रियों की तलाशी होने लगी।बरमाहा की बारी  आने पर सभी यात्रियों और जहाज़ के कर्मचारियों ने उनकी तलाशी लेना मुनासिब न समझा। उन्होंने कहा कि आपकी तलाशी लेना और आप पर शक करना तो गुनाह है। 

उनकी ये बातें सुनकर बरमाहा बोले, "जब सब की तलाशी हुई है तो मेरी भी होनी चाहिए। कर्मचारियों ने उनकी तलाशी ली पर उनके पास से कुछ न मिला। 

उस यात्री ने दो दिन बाद बरमाहा से बड़े उदास मन पूछा, "आपके पास तो पोटली थी न। एक हज़ार दीनार की, अब वे कहाँ हैं ?"

उन्होंने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा और कहा, "मैंने तो उन्हें समुद्र में फेंक दिया था और तुम जानना चाहते होंगे कि क्यों मैंने ऐसा किया ? क्योंकि ईमानदारी और लोगों का विश्वास ये दो दौलत ही मैंने अपने जीवन में कमाई है। अगर तलाशी में मेरे पास से दीनार मिल जाते और अगर मैं सबसे कहता कि ये मेरे हैं तो वे लोग इस पर विश्वास भी कर लेते लेकिन तब भी कहीं-न-कहीं लोगों को मेरी ईमानदारी और सच्चाई पर शक होता। मैं अपनी दौलत गँवाने को तैयार हूँ पर अपनी ईमानदारी और विश्वास को खोना नहीं चाहता।"


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