अनुनासिक:
जैसे-
*अनुनासिक व्यंजन नहीं है बल्कि स्वर का गुण है।
*शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगने पर उनमें चंद्रबिंदु की जगह बिंदु का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
*हिंदी में अनुनासिकता के तीन रूप :
(i) बहुवचन बनाने के लिए :
ii) अर्थ परिवर्तन के संदर्भ में :
(iii) उच्चारण के संदर्भ में:
* अनुनासिक के कुछ नियम:
(i) शिरोरेखा से बाहर मात्राओं का कोई हिस्सा बाहर न होने पर चंद्रबिंदु का
प्रयोग किया जाना चाहिए।
जैसे-
(ii) शिरोरेखा के ऊपर अनुनासिक का प्रयोग :
(iii) अनुनासिक शब्दों का प्रयोग :
अ, आ, उ, ऊ तथा ऋ स्वर के साथ।
जैसे : आँगन, घूँघट, कुँवारा आदि।
अनुस्वार:
जिन स्वरों को उच्चारित करते समय वायु नाक से निकलती है और उस स्वर का उच्चारण ज़ोर से किया जाता है, उसे अनुस्वार कहते हैं।
*अनुस्वार शब्द का अर्थ है -स्वर के बाद आने वाला। इसलिए यह शब्द के मध्य तथा अंत में ही आ सकता है किंतु शुरू में नहीं आ सकता है। इस ध्वनि का अपना कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता। इसका उच्चारण इसके आगे आने वाले व्यंजन से प्रभावित होता है। यह जिस व्यंजन के पहले आता है, उसी व्यंजन के वर्ग की नासिक्य ध्वनि के रूप में इसका उच्चारण करते हैं।
* अनुस्वार के स्थान पर बिंदु रूप का प्रयोग होता है।
जैसे: व्यंजन, ग्रंथ आदि।
* अनुस्वार के पश्चात जो व्यंजन आता है, उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण अनुस्वार( ं) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
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