HINDI BLOG : अंतिम शिक्षा - लघुकथा

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Friday, 21 May 2021

अंतिम शिक्षा - लघुकथा

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हकीम लुकमान के जीवन की यह अंतिम घटना है। 
वह एक ख्याति प्राप्त विद्वान और सदाचारी व्यक्ति थे। 
जब वह मृत्यु शैय्या पर अंतिम साँसे ले रहे थे तो उन्होंने इशारे से अपने बेटे को पास बुलाकर कहा, "कि बेटा मैंने यूँ तो समय-समय पर अनेक शिक्षाएँ दी हैं, पर जाते-जाते एक अंतिम शिक्षा देना चाहता हूँ। 

इतना कहकर लुकमान ने बेटे को पूजा कक्ष में धूप दान उठाकर लाने को कहा जब वह धूपदान लेकर हाजिर हुआ तो लुकमान ने उसमें से चुटकी भर चंदन लेकर उसके माथे में लगाकर उसके हाथ में थमा दिया और इशारे से बताया कि अब चूल्हे में से कोयला उठाकर ले आओ। 

जब बेटा कोयला लेकर आया तो उन्होंने दूसरी हथेली में कोयला रखने का आदेश दिया। 
कुछ देर बाद फिर लुकमान ने कहा कि "अब इन्हें अपने अपने स्थान पर वापस रख आओ।" उसने ऐसा ही किया। उसकी जिस हथेली में चंदन था, वह उसकी खुशबू से अभी भी महक रही थी और जिस हथेली में कोयला था वह कोयला छोड़ देने पर भी कालिमा दिखाई पड़ रही थी। 

लुकमान ने पुत्र को दोनों हथेलियां दिखाते हुए समझाया बेटे एक बात याद रखना अच्छे आदमियों का संग चंदन जैसा होता है जब तक संग रहेगा तब तक तो खुशबू मिलेगी ही संग छूटने के बाद भी अच्छे विचारों की सुगंध से जिंदगी तरोताजा हो जाएगी। 

दुर्जनों का संग कोयले जैसा होता है, जब तक हाथ में कोयला है तब तक तो हाथ काला ही है किंतु छोड़ देने के बाद ही उसमें कालिमा बनी रहती है।
 कालिमा बनी रहती है। जीवन में सदैव चंदन जैसे संस्कारी आदमियों का ही संग करना और कोयले जैसे दुर्जन व्यक्तियों से दूर रहना। 

शायद इसलिए ही कहा गया है कि 'चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काट' अर्थात चंदन की चुटकी भी मन को खुशी से भर देती है जबकि गाड़ी भर लकड़ी भी ऐसा नहीं कर सकती। 
लुकमान का पुत्र अपने पिता की अंतिम शिक्षा को जीवन भर नहीं भूला। 

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