HINDI BLOG : भीष्म प्रतिज्ञा (भाग-3 )

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Friday, 16 June 2023

भीष्म प्रतिज्ञा (भाग-3 )









भीष्म प्रतिज्ञा (भाग-3 ) 
तेजस्वी पुत्र को पाकर राजा प्रफुल्लित मन से नगर को लौटे और देवव्रत राजकुमार के पद को सुशोभित करने की तैयारी करने लगे। चार वर्ष और बीत गए।  एक दिन राजा शांतनु यमुना तट की ओर घूमने निकले, वहाँ उन्हें अप्सरा-सी सुंदर एक तरुणी खड़ी दिखाई दी। तरुणी का नाम सत्यवती था। 
गंगा के वियोग के कारण राजा के मन में जो विराग छाया हुआ था, वह इस तरुणी को देखते ही विलीन हो गया। उस सुंदरी को अपनी पत्नी बनाने की इच्छा उनके मन में बलवती हो उठी और उन्होंने सत्यवती से प्रेम-याचना की। सत्यवती बोली - "मेरे पिता मल्लाहों के सरदार हैं। पहले उनकी अनुमति ले लीजिए। फिर मैं आपकी पत्नी बनने को तैयार हूँ। 
राजा शांतनु ने जब अपनी इस इच्छा को केवटराज के सामने प्रकट किया तो केवटराज ने कहा - "आपको मुझे एक वचन देना पड़ेगा।" राजा ने कहा जो माँगोगे दूँगा,  यदि वह मेरे लिए अनुचित नहीं हुआ तो।"  केवटराज बोले - "आप के बाद हस्तिनापुर के सिंहासन पर मेरी पुत्री का पुत्र बैठेगा, इस बात का आप मुझे वचन दे सकते हैं।?"
केवटराज की शर्त राजा शांतनु को नागवार लगी। गंगापुत्र को छोड़कर अन्य किसी को गद्दी पर बैठाने की कल्पना तक उनसे न हो सकी। 
 निराश मन से वह नगर की ओर लौट आए। किसी से कुछ कह भी नहीं सके। पर चिंता उनके मन को कीड़े की तरह कुतर-कुतरकर खाने लगी। 
 देवव्रत ने देखा कि उसके पिता के मन में कोई-न-कोई व्यथा समाई हुई है। एक दिन उसने शांतनु से पूछा- "पिताजी! संसार का कोई भी सुख ऐसा नहीं है, जो आपको प्राप्त न हो, फिर भी इधर कुछ दिनों से आप दुखी दिखाई दे रहे हैं। आपको किस बात की चिंता है ?"
यद्यपि शांतनु ने गोलमोल बातें बताईं, फिर भी कुशाग्र बुद्धि देवव्रत को बात समझते देर न लगी। उन्होंने राजा के सारथी से पूछताछ करके, उस दिन के बाद से यमुना नदी के किनारे जो बातें हुई थी उनका पता लगा लिया।  पिताजी के मन की व्यथा जानकर देवव्रत सीधे केवटराज के पास पहुँच गए और उनसे कहा कि वह अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह महाराज शांतनु से कर दें। 
केवटराज ने वही शर्त देवव्रत के सामने दोहराई जो उन्होंने शांतनु के सामने रखी थी। 
 देवव्रत ने कहा- :यदि तुम्हारी आपत्ति का कारण यही है तो मैं वचन देता हूँ  कि मैं राज्य का लोभ नहीं करूँगा। सत्यवती का पुत्र ही मेरे पिता के बाद राजा बनेगा।" केवटराज इससे संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने बहुत दूर की सोची और बोले- "आर्यपुत्र!  इस बात का मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपने वचन पर अटल रहेंगे किंतु आप की संतान से मैं वैसी  आशा रख सकता हूँ। आप जैसे वीर का पुत्र भी तो वीर होगा। बहुत संभव है कि वह मेरे नाती से राज्य छीनने का प्रयत्न करे,  इसके लिए आपके पास क्या उत्तर है ?"

केवटराज का प्रश्न अप्रत्याशित था। उसे संतुष्ट करने का यही अर्थ हो सकता था कि देवव्रत अपने भविष्य का भी बलिदान कर दें, किंतु पितृभक्त देवव्रत इससे ज़रा भी विचलित नहीं हुए। गंभीर स्वर में उन्होंने यह कहा- "मैं जीवनभर विवाह नहीं करूँगा! आजन्म ब्रह्मचारी रहूँगा ! मेरे संतान ही न होगी! अब तो तुम संतुष्ट हो ?"
किसी को आशा न थी कि तरुण कुमार ऐसी कठोर प्रतिज्ञा करेंगे। देवव्रत ने भयंकर प्रतिज्ञा की थी, इसलिए उस दिन से उनका नाम ही भीष्म पड़ गया। केवटराज ने सानंद अपनी पुत्री को देवव्रत के साथ विदा किया।
सत्यवती से शांतनु के दो पुत्र हुए- चित्रांगद और विचित्रवीर्य । शांतनु के देहावसान पर चित्रांगद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे और उनके युद्ध में मारे जाने पर विचित्रवीर्य । विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थीं-अंबिका और अंबालिका। अंबिका के पुत्र थे धृतराष्ट्र और अंबालिका के पांडु । धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए और पाण्डु के पुत्र पांडव । 
महात्मा भीष्म, शांतनु के बाद से कुरुक्षेत्र-युद्ध का अंत होने तक उस विशाल राजवंश के सामान्य कुलनायक और पूज्य बने रहे। शांतनु के बाद कुरुवंश का क्रम यह रहा-
पुत्र कौरव कहलाए और पाण्डु के पुत्र 

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