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कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Wednesday, 28 June 2023

अपना-अपना काम

अपना-अपना काम 

बहुत समय पहले की बात है, ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसा एक छोटा-सा नगर था - अभयपुरी। एक दिन वहाँ के राजा के मन में नौका विहार करने का विचार आया। राजा अपने साथ अपने एक विश्वासपात्र मंत्री को भी नौका विहार के लिए लेकर चले। एक बड़ी-सी सजी-धजी नौका पर सवार हो वे निकले। नौका पर कुल चार लोग थे - राजा, उनके मंत्री और दो नाविक। दोनों नाविक नाव को खेते जा रहे थे। सभी को बहुत आनंद आ रहा था।

नौका नदी में आगे बढ़ती जा रही थी। शीतल हवा मंद-मंद बह रही थी। राजा तथा मंत्री आँखें मूँदकर शीतल हवा का मज़ा ले रहे थे।

नाविकों ने सोचा कि राजा और मंत्री सो रहे हैं। उन्हें सोया जानकर दोनों नाविक आपस में बातें करने लगे। एक नाविक ने अपने माथे का पसीना पोंछते हुए दूसर नाविक से कहा, "देखो, ईश्वर का कैसा न्याय है! हमारी तरह ये मंत्री जी भी तो राजा के सेवक ही हैं लेकिन हम दोनों धूप में पसीना बहा रहे हैं और ये आराम से लेटे हुए हैं। लेकिन हमारे राजा को हमारी परवाह कहाँ?"

दूसरे ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई। राजा आँखें बंद किए हुए थे लेकिन वे सोए नहीं थे। उन्होंने नाविकों की बातें सुनीं लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप लेटे रहे। कुछ देर बाद राजा ने आँखें खोलीं।

थोड़ी ही दूरी पर एक टापू दिखाई दिया। राजा ने नाव को टापू के किनारे लगाने का आदेश दिया। राजा नाव से उतरकर टापू के किनारे-किनारे टहलने लगे। थके हुए नाविक भी खा-पीकर इधर-उधर लेट गए। कुछ ही दूरी पर एक झोंपड़ी दिखाई दे रही थी। अचानक राजा को वहाँ से कुछ आवाजें आती सुनाई पड़ी। राजा ने तुरंत एक नाविक को बुलाकर कहा, "जरा जाकर पता लगाओ कि ये आवाजें किसकी है?"

राजा की आज्ञा पाकर नाविक तुरंत उस ओर भागा जहाँ से आवाजें आ रही थीं। कुछ देर बाद वह लौटकर आया और राजा से बोला, "महाराज! वहाँ कुतिया के छोटे-छोटे

पिल्ले रो रहे हैं।" "कितने पिल्ले हैं, नाविक?" राजा ने पूछा।

नाविक चुप रहा क्योंकि उसने उनकी गिनती तो की नहीं थी। वह उलटे पाँव भागा। दौड़ते हाँफ़ते वापस आकर बोला, “महाराज! पाँच पिल्ले हैं।"

 राजा ने फिर पूछा, "उनमें से कितने नर हैं और कितने मादा?"

नाविक चकराया क्योंकि उसने तो इस बारे में सोचा ही नहीं था। वह फिर दौड़ता हुआ झोंपड़ी की ओर गया और आकर हाँफ़ते-हाँफते बोला, “महाराज! पिल्लों में दो नर और तीन मादा हैं।"

राजा ने फिर पूछा, “नाविक! पिल्ले किस रंग के हैं? काले, सफ़ेद या भूरे रंग के?"

नाविक मुसीबत में पड़ गया। उसने तो इसका ध्यान ही नहीं रखा था। अब राजा ने पूछा
हैं तब उत्तर तो देना ही होगा, यह सोचकर वह चौथी बार भागता हुआ झोंपड़ी की ओर गया और लौटकर बोला, “महाराज! दो पिल्ले काले रंग के हैं और तीन भूरे रंग के।" 

राजा ने इसके बाद नाविक से और कुछ नहीं पूछा। वे नाविक की हालत देखकर मन-ही-मन मुसकरा रहे थे। अब उन्होंने अपने मंत्री को अपने पास बुलाया और कहा, "वहाँ झोंपड़ी के पास से कुछ आवाज़ें आ रही हैं, ज़रा जाकर इस बारे में पता तो लगाइए।"

राजा की आज्ञा पाकर मंत्री जी झोंपड़ी की तरफ चल दिए। वे थोड़ी ही देर बाद लौट आए और बोले, "महाराज! झोंपड़ी के पीछे कुतिया के पिल्ले आपस में लड़-झगड़ रहे हैं, ये उन्हीं की आवाज़ हैं। "

"कितने पिल्ले हैं?" राजा ने पूछा।

" पाँच?" मंत्री ने झट उत्तर दिया। 

"उनमें से कितने नर हैं और कितने मादा?" राजा ने पूछा।

"दो नर और तीन मादा, महाराज! " मंत्री ने कहा।

राजा ने फिर पूछा, "पिल्ले किस रंग के हैं?"

"महाराज! दो काले रंग के हैं और तीन भूरे रंग के, लेकिन उनकी माँ का रंग काला है । झोंपड़ी में एक मछुआरे का परिवार रहता है, ये उसी की पालतू कुतिया के पिल्ले हैं। " मंत्री ने उत्तर दिया ।

मंत्री से सभी प्रश्नों के सही उत्तर सुनने के बाद राजा ने नाविक की ओर देखकर कहा, “मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तुम चार बार झोंपड़ी तक गए? तुम्हें कितना परिश्रम करना पड़ा ? और देखो, मंत्री जी ने एक ही बार जाकर सारी जानकारी प्राप्त कर ली। अब समझे कि मनुष्य होते हुए भी सब के सब एक समान नहीं होते - कोई शारीरिक परिश्रम कर सकता है और कोई मानसिक । सबकी बुद्धि एक समान नहीं होती इसलिए कोई मंत्री बनता है और कोई नाविक। हर किसी के कार्य का अपना-अपना महत्त्व है। जिस तरह तुम मंत्री का कार्य नहीं कर सकते उसी तरह मंत्री जी भी तुम्हारी तरह परिश्रम नहीं कर सकते। इसमें न्याय-अन्याय की कोई बात नहीं है। "

नाविकों को राजा की सारी बात समझ में आ गई। वे समझ गए कि सभी मनुष्यों के काम महत्त्वपूर्ण हैं।

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