HINDI BLOG : जैसे को तैसा -कहानी

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Wednesday, 21 June 2023

जैसे को तैसा -कहानी

जैसे को तैसा 

एक बुजुर्ग किसान के तीन लड़के थे। वे सब खूब मेहनत करते, लेकिन गरीबी कम नहीं होती। बड़ी मुश्किल से जैसे-तैसे पेट पालते। एक दिन बुजुर्ग किसान ने बेटों को पास बुलाकर कहा-"सुना है, पास के गाँव के ज़मींदार को एक नौकर की ज़रूरत है। तुम में से कोई एक जाकर यह नौकरी कर ले। ऐसा करने से हमें थोड़ा सहारा मिल सकता है।"

बहुत विचार के बाद तय हुआ कि बड़ा लड़का जाए। बड़ा लड़का गया तो लेकिन थोड़े दिन बाद ही वह उदास चेहरा लेकर घर लौट आया। उसने बताया कि ज़मींदार ने मज़दूरी तो दी नहीं, उल्टे मुझ पर काम न जानने का दोष लगाया।

बड़े लड़के की बात सुनकर सबको बहुत दुख हुआ। इसके बाद मझले लड़के ने बड़े आत्मविश्वास के साथ वहाँ जाने के लिए सबसे अनुमति ली । लेकिन कुछ दिनों बाद उसे भी ज़मींदार ने खाली हाथ वापस लौटा दिया।

यह देखकर सबसे छोटे लड़के को बहुत गुस्सा आया। वह अपने पिता से ज़मींदार के यहाँ जाने की ज़िद करने लगा। बुजुर्ग किसान छोटे लड़के को नहीं भेजना चाहता था लेकिन उसकी ज़िद के आगे वह झुक गया। छोटा लड़का ज़मींदार के पास पहुँचा। ज़मींदार ने उस नवयुवक को ऊपर से नीचे तक देखा फिर बोला-

अच्छा, तो अब तुम मेरे घर काम करोगे। तुम्हारे बड़े भाई तो किसी काम के नहीं थे, अब तुम क्या कर लोगे ?"

लड़के ने कहा- "मुझे एक मौका दीजिए। मैं कड़ी मेहनत करके दिखाऊँगा।” ज़मींदार ने कहा- "यदि बताया गया काम नहीं कर पाओगे, तो मैं मज़दूरी कुछ नहीं दूँगा। युवक बोला- "मुझे शर्त मंजूर है !"

कुछ दिनों तक ज़मींदार ने उसे खेत में काम करने भेजा । वह भी मन लगाकर काम करता रहा। फिर एक दिन ज़मींदार ने उससे कहा- "देखो! घर के पीछे पहाड़ पर बाँस की कोपलें निकली हैं, उन्हें खिलाने बैल को ले जाओ। ध्यान रखना कोपलें तुम मत तोड़ना, बल्कि बैल को ही पेड़ पर चढ़ा देना।"

ज़मींदार खुश हो रहा था कि इससे यह काम तो होगा नहीं और अब तक की मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी। उधर युवक ने बाँस की झाड़ियों से बैल को मज़बूती से बाँध दिया। एक चाबुक लेकर बैल को फटकारता जाता और कहता जाता- "अरे बैल, फुनगी पर चढ़ !" 
बेचारा बैल कैसे पेड़ पर चढ़ता ! राहगीर यह देखकर मज़ाक करते निकल जाते। जब ज़मींदार को इसकी खबर लगी, तो वह दौड़ा-दौड़ा आया और बोला- "मूर्ख! क्या मेरे बैल को मार डालेगा ?"

तब उसने चतुराई से कहा, "देखिए मालिक ! यह बैल कितना नासमझ हैं। मैंने समझाया कि आपका हुकुम है पर यह पेड़ पर चढ़ता ही नहीं...!"

ज़मीदार मात खा गया। उसने अपना हुकुम वापस ले लिया। वह मन मसोसकर रह गया। युवक मन-ही-मन बोला- 'कुटिल राक्षस को ऐसा सबक सिखाऊँगा कि हमेशा याद रखेगा।" कुछ दिन बाद ज़मींदार ने दूसरी चाल चली। वह बोला- “देखो! मेरे मकान की छत पर साग-सब्जी उगाओ। यहाँ ताजी हवा और खूब धूप है। तुम वहाँ गोभी के पौधे लगाने की तैयारी करो।"

जमींदार ने सोचा कि वह युवक छत पर गोभी कैसे उगाएगा। दूसरे दिन सुबह-सुबह कुदाली लेकर वह युवक छत पर चढ़ गया। खुदाई करने से खपरेल टूटकर नीचे गिरने लगे। इस शोर से जब ज़मींदार की नींद टूटी तब तक उसके सामने खपरैलों का ढेर लग गया था। उसने चिल्लाकर कहा- "अरे दुष्ट! तुझसे खपरेल तोड़ने के लिए थोड़े ही कहा था!"

युवक ने नम्रता से कहा- "मालिक, गोभी के पौधे लगाने के लिए खुदाई तो करनी ही पड़ेगी ! और खुदाई से खपरैल भी टूटेंगे।

ज़मींदार ने गुस्से में अपने होंठ काट लिए। उसका यह दाँव भी खाली गया। उसके आदेश वापस लेने की बात कहने पर ही वह युवक नीचे आया।

ज़मींदार उसकी मज़दूरी हड़पने की नई तरकीब सोचने लगा। कुछ दिनों के बाद अचानक उसके चेहरे पर खुशी आ गई। उसने युवक से कहा- "देखो, सूखा पड़ गया है। तेज़ धूप से धान के खेत सूखने लगे हैं। इसलिए तुम कल उन्हें मेरे घर ले आओ, ताकि छाँव में वे सूखें नहीं।"

युवक ने हमेशा की तरह निश्चिंत होकर कहा- "अच्छा हुजूर, जो आज्ञा ।

दूसरे दिन बहुत सवेरे उठकर युवक ने सबसे पहले दरवाज़े के पल्ले तोड़े, फिर चौखट उखाड़े और फिर कुदाली से दीवार तोड़ने लगा। इस खटर-पटर से पहले ज़मीदार की पत्नी की नींद खुली। उसने देखा तो दंग रह गई। बहुत कहने पर भी युवक नहीं माना, तो वह ज़मींदार को उठाने गई।

जमींदार घबराकर एकदम उठ बैठा और तेज़ी से उस ओर भागा। उसने देखा कि किवाड़ और चौखट फ़र्श पर पड़े हैं और दीवार में बड़ा-सा छेद हो गया है। युवक कुदाली उठाए लगातार दीवार तोड़ रहा था। ज़मींदार का पारा चढ़ गया। वह ज़ोर से चिल्लाया और बोला- "हाय हाय! तुमने यह क्या कर डाला ? तुम्हें दरवाज़े दीवार तोड़ने को किसने कहा था ?" 
युवक ने अनसुनी की और काम में लगा रहा। यह देखकर ज़मींदार आपे से बाहर हो गया और उछलते-कूदते चिल्लाया- "अरे! अपना हाथ रोको! तुम क्या कर रहे हो ?" 

युवक ने ज़मींदार से कहा- "आप इतना चिल्ला क्यों रहे हैं? आपने ही तो कहा था कि खेत घर के अंदर ले आओ। अब इतना बड़ा खेत छोटे-से दरवाजे से कैसे आ सकता था इसलिए...!" युवक ने फिर कुदाली उठा ली। ज़मींदार ठगा-सा रह गया। उसने हाथ जोड़कर कहा- "अरे! बस करो भाई ! मेरा मकान मत तोड़ो आगे से ऐसे काम तुम्हें नहीं बताऊँगा।" 

युवक से तीन बार हारने के बाद ज़मींदार को अक्ल आ गई। वह युवक उसकी सोच से भी ज्यादा तेज निकला था। उस दिन के बाद फिर ज़मीदार ने कभी किसी को धोखा नहीं दिया और उसी दिन युवक का पूरा वेतन भी दे दिया।


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