बँटवारा -डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल
पिता की मृत्यु के पश्चात बड़ा भाई अपनी पत्नी की इच्छानुसार अपने छोटे भाई और छोटी बहन को घर का बँटवारा करक छत पर छपरिया डाल कर रहने की सलाह देता है।
गाँव के एक घर में एक परिवार रहता है। घर में केवल एक कमरा है और छोटे से आँगन में राम, श्यामू, तुलसा और रजनी बैठे वार्तालाप में व्यस्त है। बीस वर्षीय रामू का छोटा भाई श्यामू अभी केवल 16-17 वर्ष का किशोर है। रजनी राम और श्यामू की 10 वर्षीया बहिन है और तुलसा रामू की पत्नी है।
रामू : (छोटे भाई श्यामू से) भैया! यह तो तुम जानते ही हो कि मरते समय बापू ने केवल एक बाग छोड़ा था उसका बँटवारा उन्होंने अपने सामने ही कर दिया था।
श्यामू : हाँ, रामू भैया! पूरा गाँव जानता है इस बात को! बापू बँटवारा कर गए थे बाग का ।
रामू : और दक्षिण का आधा भाग तुम्हारे हिस्से में आया था. उत्तर का आधा मेरे हिस्से में।
श्यामू : हाँ भैया, ठीक कहते हो तुम!
रामू : और तुम्हें यह भी पता होगा कि दोनों हिस्सों में आम के पचास पचास पेड़ हैं। उनकी फसल बेचकर ही इस घर का खर्चा चलता है।
श्यामू : मुझे पता है, भैया
रामू : इस बार से अपना हिस्सा तुम खुद बेचना और अपना हिस्सा मैं बेचूँगा।
श्यामू : पर भैया, अभी तो मैं छोटा हूँ मुझे बाग आदि बेचने का अनुभव नहीं है।
रामू : लेन-देन के धंधे में नहीं पड़ोगे तो अनुभव कैसे होगा, श्यामू ? ये सब तो तुम्हें
करना ही पड़ेगा एक न एक दिन ।
श्यामू : पर मरने से पहले बापू ने तुमसे कहा था कि जब तक श्यामू बड़ा न हो जाए, तब
तक तुम बाप बनकर उसकी देखभाल करना।
रामू : छह महीने तो हो गए बापू को मरे। अब तुम कोई इतने छोटे बच्चे नहीं रह गए हो
श्यामू । भगवान को कृपा से 16 वर्ष के हो, अपना काम आप संभाल सकते हो।
श्यामू : कौन-सा काम रामू भैया?
रामू : अरे भाई, यही बाग की देखभाल का, पेड़ों का पानी लगाना, बौर आने पर दवाई
छिड़कना आदि ।।
श्यामू : यह काम तो पहले भी होते रहे हैं, रामू भैया!
रामू : लेकिन अब तक बाग सबका साझा था, अब उसका बँटवारा हो गया है।
श्यामू : बँटवारे से क्या होता है भैया?
रामू : यही कि तुम्हारा हिस्सा अलग, मेरा हिस्सा अलग।
श्यामू : तो क्या बापू के मरने पर हो चीज बँट जाती है, रामू भैया?
रामू : हाँ, श्यामू । इसीलिए कहता हूँ, आज इस घर को भी बाँट लेना चाहिए।
श्यामू : क्यों भैया, घर बाँटने की जल्दी क्या है इतनी।
रामू : यह तुम्हारी भाभी है तुलसा, कल इसका बालक भी होगा। तुम जवान हो जाओगे
तो तुम्हारी शादी भी होगी। तब सबका एक साथ रहना मुश्किल हो जाएगा।
रजनी की शादी भी तुम्हें ही करनी है। मुझ पर पहले हो गृहस्थी का बोझ ज़्यादा
है।
श्यामू : पर घर बाँटने की इतनी जल्दी क्या है रामू भैया?
रामू : जो काम कल होना है वह आज ही हो जाए तो अच्छा है जरूरी कामों में देरी नहीं होनी चाहिए, श्यामू।
श्यामू : तो ठीक है भैया, जैसी तुम्हारी मर्जी ।
(रामू कुछ देर बैठा सोचता रहता है। फिर उठकर कमरे के चारों ओर घूमता है। आँगन की फीते से नाप-तौल करता है और लौटकर फिर श्यामू के सामने आ बैठता है।)
रामू : एक ही कमरा है और छोटा-सा आँगन। अगर इसे बीच से बाँट लिया जाता है तो न यह तुम्हारे काम का रहेगा और न मेरे काम का।
श्यामू : फिर बँटवारा कैसे होगा, भैया ?
रामू : वहाँ मैं सोच रहा हूँ। मेरे साथ तुलसा है और तुम्हारे साथ छोटी बहिन रजनी है।घर के दो भाग हो जाएँगे, तो हममें से कोई भी उसमें नहीं रह सकता।
तुलसा : पर मैं साझे घर में नहीं रहूँगी जो कुछ भी हो।
रजनी : क्यों नहीं रहोगी भाभीजी, क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं करती?
तुलसा : तू चुप रह रजनी। बच्चे बड़ों की बातों में नहीं बोला करते।
(रजनी उठकर चली जाती है और आँगन में बैठकर अपनी गुड़िया के लिए मिट्टी का घर बनाने लगती है।)
रामू : वहाँ क्या कर रही है रजनी तू?
रजनी : गुड़िया का घर बना रही हूँ भैया!
रामू : वह तो बारिश में बह जाएगा !
रजनी :पर इसका बँटवारा करने वाला तो कोई नहीं होगा, भैया !
श्यामू : अच्छा, तो घर का जो भी फैसला तुम्हें करना हो भैया, वह कर लो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। फैसला जल्दी सुनाओ। मुझे बाग में जाना है, पेड़ों को पानी देने।
रामू : मैं भी चलूँगा। दो मिनट ठहर जा जरा।
श्यामू : (उठते-उठते फिर बैठ जाता है) बापू अपने सामने ही घर का भी बँटवारा कर गया होता तो अच्छा था।
रामू : मौत ने उसे समय हो कहीं दिया श्यामू, उसने तो एकदम आँखें मूँद लीं।
श्यामू : अच्छा तो बताओ कैसे करना है, बँटवारा घर का?
रामू : देख, ऐसे करते हैं, घर को ऊपर-नीचे से बाँटे लेते हैं। इस तरह मुझे भी काफ़ी जगह मिल जाएगी और तुझे भी।
श्यामू : मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा रामू भैया !
रामू : मतलब तो साफ है श्यामू, कमरा मेरा और छत तेरी।
श्यामू : पर भैया, खुली छत पर में और रजनी कैसे रहेंगे, जाड़े में या गर्मी में ?
रामू : खुली छत पर तो रह भी सकोगे, पर छोटे से आँगन और कमरे को दो फाड़ करके तो रह ही नहीं सकते। न तुम, न मैं। न तो तुम्हारी दो खाट आ सकती हैं और न मेरी।
श्यामू : लेकिन खुली छत पर
रामू : (बीच में बात काटते हुए) खुली छत से मत डरो, श्यामू। ऊपर एक छपरिया डाल लेना छाया के लिए।
श्यामू : ठीक है भैया। जो फैसला तुमने किया, वह मुझे मंजूर है।
(श्यामू और उसकी बहन रजनी एक छोटी-सी उपरिया बनाने में व्यस्त हैं। रामू और उसकी पत्नी आँगन में बैठे उन्हें काम करते हुए देख रहे हैं। )
रामू : छपरिया बन जाए तो हमें बुला लेना श्यामू, हम इसे छत पर बँधवा देंगे?
श्यामू : ठीक है भैया, बता दूँगा।
रामू : ज़रा मज़बूत छपरिया बनाना। इन दिनों साथ से पहले आधियाँ बहुत आया करती है, समझा।
श्यामू : हाँ भैया, समझ गया हूँ।
(रामू, श्यामू, तुलसा और रजनी एक छोटी-सी छपरिया को कमरे को छत पर रस्सी से बाँध देते हैं। रात का समय है। रामू और उसकी पत्नी तुलसा कमरे में आराम कर रहे हैं और श्याम तथा उसकी बहन रजनी छत पर छपरिया के नीचे हैं।
रजनी : भैया मेरा तो इस छपरिया के नीचे मन नहीं लग रहा है। चल नीचे चलें।
श्याम : नहीं रजनी, ऐसा नहीं कहना! अब घर का बँटवारा हो गया है। भैया घुसने नहीं देगा नीचे ।
रजनी : चल कर देखें।
श्यामू : नहीं-नहीं रजनी। सो जा, चुपके से, भाभी बहुत मारेगी।
रजनी : यह साँय-साय की आवाज कैसी आ रही है, भैया?
श्यामू : (ध्यान लगाते हुए) लगता है रजनी आँधी आने को है।
रजनी : फिर क्या करें?
श्यामू : कुछ नहीं, आराम से बैठी रही। मुझे तो डर है कहीं पेड़ों की सारी आमियाँ न झड़ जाएँ।
रजनी : भगवान ही रक्षा करने वाला है, भैया।
(साँय-साँय करके तेज आँधी चलने लगती है। दोनों भाई-बहन अपनी पूरी शक्ति से छपरिया को रस्सियों को पकड़ है, लेकिन तेज हवा उसे बार-बार उछाल देती है। अचानक आँधी का एक और तेज झोंका जाता है। रस्सी टूट जाती है और छपरिया उड़कर दूर जा गिरती है। तेज हवा के साथ ही मूसलाधार वर्षा होने लगती है। श्याम और रजनी छत पर बुरी तरह भीग गए हैं।)
रजनी : चल भैया। नीचे चल, यहाँ इस तरह कब तक भीगेंगे। मुझे तो अब ठंड लगने लगी है, भैया।
श्यामू : ठंड तो मुझे भी लग रही है रजनी पर क्या करें ?
रजनी : चल नीचे उतर, जल्दी।
श्यामू : लेकिन मुझे तो नीचे जाने का साहस नहीं होता, रजनी।
रजनी : क्यों साहस क्यों नहीं होता तुझे?
श्यामू : घर का बँटवारा जो हो चुका है रजनी।
रजनी : बँटवारे से क्या होता है भैया?
श्यामू : यही होता है रजनी, हम छत पर वर्षा से भीग रहे हैं और रामू भैया नीचे आराम से सो रहे हैं।
(दोनों भाई-बहन वर्षा से भीगते हुए छत से नीचे उतरते दिखाई देते हैं। रजनी कमरे के दरवाजे पर खड़ी दस्तक दे रही है। श्याम कोने में अपने कपड़े निचोड़ रहा है।)
रजनी : भैया, भैया, हम बहुत भीग गए हैं, दरवाजा खोलो, जल्दी से छत की छपरिया भी उड़ गई है आँधी में।
(कोई आवाज नहीं आती। वर्षा जारी है)
श्यामू : भैया, मैं सुबह मजबूत छप्पर छत पर डाल लूँगा। अभी तो हमें अंदर आने दे। जल्दी दरवाज़ा खोल ।
(दरवाजा नहीं खुलता है, बारिश और तेज़ हो जाती है। दोनों भाई-बहन एक कोने में सिकुड़कर बैठ जाते हैं।)
रजनी : बँटवारा तो बहुत बुरा होता है भैया।
श्यामू : पर यह मैंने तो नहीं, स्वयं भैया ने किया था।
रजनी : पर हम ऐसे कैसे रहेंगे, खुली छत पर ?
श्यामू : तू चिंता न कर मैं कोई उपाय निकाल लूँगा इसका।
(दोनों देर तक कोने में चुपचाप बैठे रहते हैं। बारिश हल्की होते--होते बूँदा बाँदी में परिवर्तित हो जाती है। सुबह होने को है और चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं।)
श्यामू : (रजनी से) रजनी बहन। एक फावड़ा तू उठा और एक मुझे लाकर दे।
रजनी : (फावड़े उठाकर लाती है।) ले क्या करेगा, इनका ?
श्यामू : चल मेरे साथ छत पर (दोनों छत पर चढ़ जाते हैं और फावड़े से छत खोदने लगते हैं।)
रामू : ( फावड़े की आवाज़ सुनकर छत पर जाता है) यह क्या कर रहे हो तुम लोग?
श्यामू : छत खोद रहे हैं।
रामू : क्यों, छत क्यों खोद रहे हो तुम?
श्यामू : तुम यह पूछने वाले कौन होते हो भला? मेरी छत है यह, मुझे बँटवारे में मिली है। मैं चाहे जो करूँ।
रजनी : भैया, फावड़े की आवाज से तुम्हारी आँख खुल गई। हम रातभर इतना चीखे, दरवाजा खटखटाया तब नहीं टूटी।
रामू : अरे रुको तो, घर न मेरा रहेगा, न तुम्हारा।
श्यामू : अनुचित बँटवारे का यही अंत होता है, भैया (श्यामू फिर फावड़ा चलाता है)
रामू : रुको तो श्यामू, मैं रद्द करता हूँ इस बँटवारे को ।
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