पद - मीरा ( मुख्य बिंदु )
हरि स्मरण करते हुए हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती करना :
मीरा अपने साथ सामान्य जन की पीड़ा को हरने के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं। इससे कवयित्री की परोपकार की भावना प्रकट होती है। कवयित्री द्वारा द्रौपदी की लाज बचाने का उदाहरण, प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण करने का तथा डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ से बचाने का उदाहरण दिया है। इन्हीं के आधार पर मीरा अपनी पीड़ा को हरने की प्रार्थना करती हैं।
भाव भक्ति को जागीर कहना :
किसी भी सच्चे भक्त के लिए सबसे बड़ी जागीर है-उसका भगवान भगवान को पाने सबसे श्रेष्ठ साधन भक्ति है। मीरा श्रीकृष्ण की भाव पूर्ण भक्ति करती हैं। भाव-भक्ति के माध्यम से वे अपने श्रीकृष्ण को पा सकती थीं। इसलिए उनके लिए भाव भक्ति जागीर के समान थी। भाव-भक्ति हेतु अपने आराध्य के दर्शन करना, उनके गुणों का स्मरण करना तथा मन में धारणा करना अत्यंत आवश्यक है।
भगवान का नरहरि रूप :
हिरण्यकश्यप एक अत्याचारी राजा था। वह स्वयं को ईश्वर मानता था। वह प्रजा से भी स्वयं को ईश्वर मानने के लिए कहता था, परंतु उसका पुत्र प्रहलाद उसे ईश्वर नहीं मानता था। इस कारण हिरण्यकश्यप ने उस पर अत्याचार किए व उसे मार डालने के बहुत प्रयत्न किए, परंतु वह विष्णु भक्त प्रभु कृपा से बच जाता था। हिरण्यकश्यप को वरदान मिला हुआ था कि उसे न कोई पशु मार पाएगा, न मनुष्य। इसलिए भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आया नर और आधे सिंह का रूप धारण किया। वही रूप नरसिंह कहलाया।
अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन पाने के लिए मीरा के उपाय :
1. वे बार-बार श्रीकृष्ण का दर्शन करना चाहती है। वे श्रीकृष्ण की दासी बनने को तैयार हैं।
2. वे बाग लगाना चाहती हैं।
3. वे वृंदावन की कुंज गलियों में गोविंद लीला का गुणगान करना चाहती हैं।
4. कुसुंबी साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना तट पर जाकर एकांत में श्रीकृष्ण से मिलने को तैयार हैं।
5. वे ऊँचे-ऊंचे महलों का निर्माण करवाकर उनमें खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं।
मीरा की भक्ति भावना :
मीरा श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका हैं। ये श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम, पति व संरक्षक मानती हैं और स्वयं को उनकी दासी बताती हैं। आराध्य रूप में ये श्रीकृष्ण की चाकर बनने को भी तैयार हैं। वे प्रभु दर्शन, नाम स्मरण व भाव भक्ति पाने हेतु कुछ भी करने को तैयार हैं। उन्हें कृष्ण का मोहक रूप पसंद है-पीले वस्त्र, वैजयंती माला तथा मोर पंख से युक्त मुकुट वाला रूप। यह भक्ति तो शृंगार रस प्रधान है। मीरा की भक्ति का दूसरा रूप शांत रस प्रधान है। इसमें वे प्रभु से अपनी पीड़ा दूर करने के लिए कहती हैं। कृष्ण का यह रूप रक्षक का रूप है। वे कृष्ण को हो अपना सर्वस्व मानती है।
मीराबाई की भाषा-शैली :
मीराबाई ने अपने पदों में ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाओं का प्रयोग किया गया है। भाषा अत्यंत सहज सुबोध है। शब्द चयन भावानुकूल है। भाषा में कोमलता, मधुरता और सरसता के गुण विद्यमान हैं।" अपनी प्रेम की पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने अत्यंत भावानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया है। भक्तिभा के कारण शांत रस प्रमुख है तथा प्रसाद गुण की भावाभिव्यक्ति हुई है। मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका हैं। वे अप आराध्य देव से अपनी पीड़ा का हरण करने की विनती कर रही हैं। इसमें कृष्ण के प्रति श्रद्धा, भक्ति और विश्वास भाव की अभिव्यंजना हुई है। मीराबाई की भाषा में अनेक अलंकारों ; जैसे- अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, उदाहरण अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
'द्रौपदी की लाज राखी आप बढायो चीर' कथन का भाव :
महाभारत की घटना के अनुसार जब भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण दुशासन के द्वारा किया जा रहा था, तब उसने अपने आराध्य कृष्ण को याद किया। श्रीकृष्ण तुरंत वहाँ अवतरित होकर द्रौपदी के वस्त्रों को बढ़ाते गए। ज्यों-ज्यों दुशासन उसकी साड़ी को खींचता गया, त्यों-त्यों कृष्ण उसके शरीर पर वस्त्र बढ़ाकर उसके मान की रक्षा करते रहे। कृष्ण ने सदैव अपने भक्तों की रक्षा की है और इसी आधार पर मीरा उनसे प्रार्थना कर रही हैं कि वे उनकी भी रक्षा करें। मीरा को कृष्ण के लोकरक्षक रूप पर पूरा विश्वास है। मीरा के अधिकांश पदों में कृष्ण के प्रति प्रेम भाव, माधुर्य भाव झलकता है, किंतु साथ ही मीरा ने समय-समय पर उन्हें उनके कर्तव्य भी याद दिलाएँ हैं। कृष्ण केवल मनमोहक, मुरलीधर के रूप में ही नहीं बल्कि गिरिधर, गोप-वल्लभ, लोकरक्षक रूप में भी लोगों के हृदय में विराजमान रहते हैं।
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