किसान की सूझ-बूझ
अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्य में एक बार एक अधिकारी भ्रष्ट हो गया। सम्राट की ओर से जो भी धनराशि प्रजा के कल्याण के लिए दी जाती वह पहले उसमें से अपने लिए एक हिस्सा रख लेता और फिर अपने से निचले अधिकारी को वह राशि योजना पर व्यय करने के लिए दे देता। उसकी देखा-देखी उसके निचले अधिकारी भी ऐसा ही करने लगे। इस प्रकार प्रजा तक पहुँचते-पहुँचते राशि नाममात्र हेतु ही शेष बचती थी।
विक्रमादित्य रात्रि में वेश बदलकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि प्रजा के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इतना धन व्यय करने पर भी प्रजा की दशा में कोई सुधार नहीं हो रहा है। लोग परेशान हैं। न सड़कों की मरम्मत हो रही है, न ही कुएँ बनवाए गए हैं। विक्रमादित्य यह सब देखकर चिंतित हो उठे। पहले जहाँ वे महीने में पंद्रह दिन में प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए निकलते थे, अब उन्हें रात्रि में नींद आनी बंद हो गई। अब वे प्रतिदिन वेश बदलकर प्रजा के बीच पहुँचकर उनका हालचाल जानने का प्रयास करने लगे।
एक दिन वे एक झोंपड़ी के बाहर से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि झोंपड़ी में मध्यम प्रकाश हो रहा है। किसान और उसके बेटे आपस में बातें कर रहे थे। विक्रमदित्य खिड़की के पास रुक कर खिड़की से देखने और सुनने लगे। किसान के एक बेटे ने आक्रोशित होते हुए कहा, “अब महाराज प्रजा पालक नहीं रहे। उन्हें प्रजा से कोई मतलब नहीं। हम सब कितने कष्ट में हैं।" दूसरे लड़कों ने भी अपनी सहमति देने के लिए हाँ में हाँ मिलाई। परंतु बूढ़ा किसान अपने बेटों से सहमत नहीं था। उसने कहाए " महाराज को अभी भी हम सबकी पहले जैसी ही चिंता है। वे हमारी प्रसन्नता के लिए प्रयास करते हैं।" बेटे अपने पिता की बात मानने को तैयार नहीं थे। किसान ने अपने बड़े बेटे से कहा, बर्फ का एक बड़ा ढेला लेकर आओ।" वह ले आया तो किसान बोला, " अब समझो कि तुम महाराज हो। यह ढेला वह धनराशि हैं, जिससे तुम प्रजा का कल्याण करना चाहते हो। अब इसे अपने दूसरे भाई तुम को दो, वह तीसरे को और फिर चौथे को अंत में यह ढेला मुझे देना। मैं प्रजा हूँ।" किसान के बेटों ने वैसा ही किया और पाया कि किसान तक पहुँचते-पहुँचते लगभग पूरी बर्फ पिघल गई थी। अब किसान के बेटों को और खिड़की से झाँक रहे विक्रमादित्य को भी समझ आ गया था कि लाख प्रयत्नों के बाद भी प्रजा की स्थिति में सुधार क्यों हो रहा है।
अगले दिन दरबार में उन्होंने किसान और उसके बेटों को बुलाया। उन्हें वही रात वाला खेल फिर दोहराने को कहा। उनके ऐसा करते ही सभी भ्रष्ट अधिकारियों के चेहरे भय से पीले पड़ने लगे। वे सब पकड़े गए। राजा ने उन सबको दंडित किया और पुनः ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति की। अब राशि का प्रयोग सचमुच प्रजा के कल्याण के लिए होने लगा। प्रजा खुशहाल हो गई।
हमें सदैव बुद्धि और सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
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