HINDI BLOG : कहानी -गौतम का तप

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Saturday, 24 June 2023

कहानी -गौतम का तप

गौतम का तप 

बहुत समय पहले सूखा पड़ने से भारत के एक भू-भाग में भयंकर अकाल पड़ा। नदी, नाले, कुएँ तालाब और झरने आदि सभी सूख गए। जल के अभाव में मनुष्य, पशु और पक्षी तड़प रहे थे। उसी भू-भाग में गौतम ऋषि का भी निवास स्थान था। उन पर वरुण देवता की विशेष कृपा थी। उनके सरोवर में साफ़ पानी था। जब चारों ओर जल का अभाव हो गया तो वहाँ दूर-दूर से पक्षी जल पीने के लिए आने लगे। लोगों को ईश्वर के इस चमत्कार का पता लगा तो वे गौतम ऋषि के पास आकर विनम्रता से बोले, "हम सब पानी के बिना बहुत व्याकुल हो रहे हैं। आपकी अनुमति हो तो हम इस सरोवर का जल पीकर अपनी प्यास बुझा लें।" महर्षि गौतम ने प्रसन्नतापूर्वक कहा, सरोवर आप सबका है। यदि ईश्वर की कृपा न होती तो आप सबके दर्शनों का सौभाग्य कैसे प्राप्त होता । "

बस फिर क्या था! आश्रम के आस-पास लोग आकर बस गए। कुछ ही दिनों में वह निर्जन स्थान नगर दिखाई देने लगा। उस सरोवर के जल से सबको नया जीवन मिल गया। सब मुक्त कंठ से गौतम ऋषि की प्रशंसा करने लगे। कुछ लोगों के मन में गौतम ऋषि के प्रति ईर्ष्या की भावना जाग उठी। वे किसी-न-किसी प्रकार उन्हें नीचा दिखाना चाहते थे। उन्होंने अपनी योजना के अनुसार एक दुबली-पतली गाय लाकर गौतम ऋषि की वाटिका में छोड़ दी। गौतम ऋषि उस समय वाटिका में पौधों को सींच रहे थे। उन्होंने गाय को वाटिका से बाहर करना चाहा, परंतु उनके हाथ लगाते ही वह गाय गिर गई और थोड़ी ही देर में निष्प्राण हो गई।

गौतम ऋषि यह देखकर स्तब्ध रह गए। वे मन-ही-मन सोचने लगे कि उनसे इतना बड़ा पाप कैसे हो गया? उसी समय गौतम ऋषि के आस-पास आवाजें गूंजने लगी, 'गौतम हत्यारा है'। गौतम ऋषि ने मुड़कर देखा तो लोगों की अपार भीड़ खड़ी थी। अब चारों ओर प्रशंसा के बजाय उनकी निंदा होने लगी। दुखी होकर वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ किसी अन्य वन में चले गए और वहाँ एक कुटिया में रहकर तप करने लगे।

अहिल्या दिन-रात अपने पति की सेवा करने लगी। दुर्भाग्य ने वहाँ भी उनका साथ नहीं छोड़ा। उनके द्वारा हुई गोहत्या के विषय में सुनकर कुछ ऋषि-मुनि वहाँ आए। उन्होंने गौतम ऋषि को समझाते हुए कहा,“ तप से गोहत्या का पाप दूर नहीं होगा। इस पाप से मुक्त होने के लिए गंगा स्नान कीजिए।"

गौतम ऋषि गंगा में स्नान कैसे करें? वहाँ गंगा नहीं थी। वे गंगा को प्रकट करने के लिए भगवान शंकर की पूजा करने लगे। उनके तप, त्याग और आराधना से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो गए। उन्होंने गौतम ऋषि को दर्शन दिए तथा आशीर्वाद देते हुए बोले, "मुनिवर, मैं आपकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ। आप मुझसे मनचाहा वरदान माँग सकते हैं।" 

गौतम ऋषि ने उन्हें सादर प्रणाम करते हुए कहा, "मुझे गोहत्या का पाप लगा है। मैं गंगा में स्नान कर पाप मुक्त होना चाहता हूँ। आप यहाँ तक गंगा की धारा को लाने की कृपा करें।' " भगवान शंकर ने मुसकराते हुए कहा. "महर्षि, आपसे कोई गोहत्या का पाप नहीं हुआ है। ईर्ष्यावश कुछ लोगों ने आपसे छल किया है। आप कोई और वर माँग सकते हैं।' 
गौतम ऋषि ने प्रसन्नतापूर्वक निवेदन किया, "मेरे लिए तो यह छल भी एक वरदान सिद्ध हुआ है। इसी छल के कारण मैंने तप किया और आपके दर्शन हुए। यहाँ तक गंगा के आने से और भी कई लोगों का कल्याण होगा।" गौतम ऋषि का उत्तर सुनकर भगवान शंकर गद्गद कंठ से बोले, "लोक कल्याण के लिए माँगा हुआ वरदान अवश्य मिलेगा। यहाँ गंगा अवश्य प्रकट होगी ।"

भगवान शंकर के इतना कहते ही वहाँ गंगा प्रकट हो गई और हाथ जोड़कर बोली, "कहिए, क्या आज्ञा है भगवन?"

यह सुनकर भगवान शंकर ने गंगा को जलधारा के रूप में प्रवाहित होने का आदेश दिया। गंगा ने सिर झुकाकर अभिवादन किया तथा जलधारा के रूप में फूट पड़ी। उसमें हर-हर का संगीत सुनाई देने लगा। गंगा के प्रकट होने से दूर-दूर तक अकाल समाप्त हो गया। धरती की प्यास बुझ गई। पशु-पक्षी, मनुष्य सब तृप्त हो गए। इस स्थान पर प्रकटित गंगा का नाम गोदावरी रखा गया। गोदावरी नदी आज भी कल-कल स्वर में बहते हुए गौतम ऋषि के तप और त्याग का स्मरण कराती है।

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