HINDI BLOG : बड़े भाई साहब- पाठ का सार

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Wednesday, 21 June 2023

बड़े भाई साहब- पाठ का सार

          पाठ - 1

                                          बड़े भाई साहब- प्रेमचंद                                            


पाठ का सार :


प्रस्तुत पाठ में एक बड़े भाई साहब हैं जो हैं तो छोटे ही, लेकिन घर में उनसे छोटा एक भाई और है। उससे उम्र में केवल कुछ साल बड़ा होने के कारण उससे बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ की जाती है। बड़ा होने नाते वह खुद भी यही चाहते और कोशिश करते हैं कि वह जो कुछ भी करें वह छोटे भाई के लिए मिसाल का काम को । इस आदर्श स्थिति को बनाए रखने के फेर में बड़े भाई साहब का बचपन तिरोहित हो जाता है। 


बड़े भाई साहब का परिचय :


लेखक का बड़ा भाई 14 वर्ष का और लेखक नौ वर्ष का था। लेखक के बड़े भाई साहब अध्ययनशील थे। सारा दिन किताबें खोले बैठा रहते थे। ये पढ़ाई में चाहे कैसे भी हो लेकिन बड़ा होने के नाते लेखक को डाँट-डपटना और उसपर निगरानी करना अपना परम धर्म समझते थे। लेखक का मन पढ़ाई में कम लगता था। इसलिए यह मौका पाते ही होस्टल से निकलकर मैदान में आकर खूब खेलता था। भाई साहब उपदेश देने की कला में कुशल थे। जब भी वह खेलकर आता तो वे उस स्नेह और रोष भरा उपदेश दिया करते- "अंग्रेजी पढ़ना हँसी-खेल नहीं है। मैं रात-दिन आँखें फोड़ता हूँ, तब जाकर यह विद्या जाती है। बड़े-बड़े विद्वान भी शुद्ध अंग्रेजी नहीं लिख पाते...।" 


लेखक का टाइम टेबिल बनाना : 


लेखक बड़े भाई साहब की लताड़ सुनकर रोता रहता। टाइम-टेबिल बनाकर बार-बार इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ेगा किंतु उस पर पूरी तरह अमल नहीं कर पाता। प्रकृति का मोहक वातावरण लेखक को अपनी ओर खींच ले जाता। वह भाई

साहब की फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार नहीं कर पाता ।


भाई साहब का फेल होना : 


वार्षिक परीक्षा हुई। भाई साहब फिर से फेल हो गए। अब केवल दो कक्षा का अंतर रह गया दोनों भाई के बीच लेखक भाई साहब से कहना तो चाहता था पर चुप रहा। पर एक दिन भाई साहब लेखक पर टूट पड़े- "इस साल पास हो गए और दरजे में अव्वल जा गए हो तो तुम्हें घमंड हो गया है। घमंड तो बड़े-बड़े का नहीं रहा, तुम्हारी क्या हस्ती है?" उन्होंने ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा भाई को घमंड न करने की सलाह दी।


पाठ्यक्रम की मुश्किलें गिनाना :


भाई साहब बोले- "मेरे भाई! फेल होने पर न जाओ। मेरी कक्षा में पहुँचोगे, तो दाँतों पसीना आ जाएगा।" साथ ही उन्होंने आगे की कठिन पढ़ाई से डराया भी। इतिहास और ज्योमेट्री की कठिनाइयों का उल्लेख भी किया। परीक्षा में पास होने के लिए बहुत

कुछ करना पड़ता है। भाई साहब ने अगले दर्जे की पढ़ाई का भयंकर चित्र खींचा, जिसे सुनकर लेखक भयभीत हो उठा परंतु उसकी रुचि फिर भी पुस्तकों की ओर न बन सकी। अब वह चोरी-चोरी खेलने जाने लगा।


भाई साहब का फिर फेल होना :


फिर सालाना परीक्षा हुई। संयोग से लेखक तो पास हो गया और भाई साहब फिर फेल हो गए। कक्षा में प्रथम जाने पर लेखक को खुद अचरज हुआ। भाई साहब ने कठोर परिश्रम किया था परंतु बेचारे फेल हो गए। लेखक को उन पर दया आती थी। अब लेखक और भाई के बीच में केवल एक कक्षा का अंतर रह गया था। जब भाई साहब कुछ नरम पड़ गए थे। वे समझने लगे थे कि अब मुझे डाँटने का अधिकार उन्हें नहीं रहा। अब लेखक के मन में यह बात बैठ गई कि वह पढ़े या न पढ़े, पास हो ही जाएगा। 


पतंग लूटते पकड़े जाना व बड़े भाई का तर्क देना :


एक दिन लेखक संध्या के समय होस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए जा रहा था। सहसा लेखक की मुठभेड़ भाई साहब से हो गई। उन्होंने काफी डाँटा-फटकारा। उन्होंने कहा कि एक जमाना था जब आठवीं कक्षा पास करके लोग नायब तहसीलदार बन जाते थे, अन्य कई अच्छे-अच्छे पदों पर नियुक्त हो जाते थे और एक तुम हो जो आठवीं कक्षा में आकर भी लड़कों के साथ कनकौए लूटने के लिए दौड़ रहे हो। हो सकता है तुम अगले साल मेरे बराबर हो आओ, या आगे भी निकल जाओ, पर मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, दुनिया देखने से आती है। घर का काम-काज और खर्च का हिसाब घर के बड़े-बड़े ही ठीक प्रकार से रख पाते हैं। लेखक बड़े भाई साहब की युक्ति के सामने नतमस्तक हो गया। तब लेखक को अपने छोटेपन का अनुभव हुआ और बड़े भाई के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। तब भाई साहब ने लेखक को गले लगा लिया। तभी एक कनकीआ हमारे ऊपर से गुजरा। भाई साहब लंबे थे अतः उन्होंने उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा होस्टल की ओर दौड़े। लेखक भी उनके पीछे-पीछे दौड़ा।



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