कहानी -छल का फल
बहुत पुरानी बात है। किसी नगर के बाहर कुटिया में एक साधु रहता था। वह दिन में एक बार हो भिक्षा माँगने जाता था। शाम को भी उसी से काम चला लेता था। साधु स्वभाव से अत्यंत सरल और सहनशील था। शहर के बच्चे भी उससे प्रेम करते थे। जब साधु भिक्षा माँगने के लिए आता तब बच्चों की भीड़ भी उसके साथ चलती थी। कुछ दिनों के बाद वह भक्ति गीत गा-गाकर भीख माँगने लगा। उसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह स्वभाव से दुष्ट और कुटिल थी। उस साधु को सदा बुरा-भला कहती और कभी-कभी तो उसे गालियाँ भी देती। फिर भी साधु नियमित रूप से उसके द्वार पर भिक्षा माँगने आता था। कभी वह बुढ़िया साधु को कूड़ा दे देती, तो कभी सब्जी या फलों के छिलके । साधु ने उस पर कभी क्रोध नहीं किया।
बुढ़िया कहती, "यह बड़ा दुष्ट और जिद्दी साधु है।" एक दिन बुढ़िया ने सोचा, 'यह साधु प्रतिदिन आकर मुझे दुखी करता है। हठपूर्वक मुझे रोज़ परेशान करता है। इसे विष खिलाकर मार देना चाहिए।' ऐसा सोचकर उसने देशी घी के दो बड़े-बड़े लड्डू बनाए, उनमें खूब सारा विष मिला दिया। दूसरे दिन जब साधु बुढ़िया के द्वार पर भिक्षा माँगने आया तो बुढ़िया ने उसे वे दोनों लड्डू दे दिए। साधु को बुढ़िया के इस व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ! साधु ने वे लड्डू अपनी झोली में डाल लिए। भोजन करने के बाद साधु का पेट भर गया। 'लड्डू बाद में खा लूँगा'- यह सोचकर साधु ने लड्डू रख दिए। रात के समय नगर के द्वार बंद हो जाया करते थे। होने पर ही नगर में प्रवेश किया जा सकता था। सुबह रात के समय दो युवक उस साधु के पास आकर बोले, "महाराज, हमें नगर में जाना था। रास्ते में देर हो गई। नगर के द्वार बंद हो चुके हैं। यदि आपकी आज्ञा हो तो हम रात भर यहाँ रुक जाएँ। सुबह होने पर अपने घर चले जाएँगे।" साधु ने प्रेमपूर्वक दोनों युवकों को सोने के लिए स्थान दे दिया। एक युवक बोला. "महाराज, हमें बड़ी भूख लगी है। यदि खाने के लिए कुछ मिल जाए तो हम पर बड़ा उपकार होगा।"
साधु बोला, "बच्चो, उपकार मेरा नहीं, बल्कि उस माता का होगा, जिसने मुझे ये दो लड्डू दिए हैं। वह भली स्त्री मुझे सदैव गालियाँ व कूड़ा देती थी। आज बड़ी प्रसन्न थी। अतः मुझे ये दो बड़े-बड़े लड्डू दिए हैं। तुम दोनों एक-एक लड्डू खा लो।" दोनों युवक एक-एक लड्डू खाकर सो गए। सुबह होने पर साधु ने उन्हें जगाया, परंतु वे दोनों तो मर चुके थे। साधु ने नगर के द्वारपाल को सूचित किया। द्वारपाल ने राजा को इसकी सूचना दी। राजा ने आकर साधु से दोनों युवकों की मौत के विषय में पूछताछ की। साधु ने निर्भीकतापूर्वक सारी घटना विस्तार से बता दी।
विष के बने लड्डू देने वाली बुढ़िया को बुलाया गया। राजा ने सारी घटना बुढ़िया को बताई। जब बुढ़िया ने दोनों शव देखे तो वह कटे हुए वृक्ष की भाँति धड़ाम से गिरकर अचेत हो गई। होश आने पर वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। ये दोनों युवक उसी बुढ़िया के बेटे थे। बुढ़िया ने रोते हुए बताया कि वे लड्डू तो उसने साधु को मारने के लिए बनाए थे। बुढ़िया ने राजा से अपने अपराध के लिए मृत्यु दंड की माँग की। राजा बोला, "तुम्हारे लिए उचित दंड का निर्णय स्वयं साधु महाराज करेंगे ।" साधु कहा, “हे माई! तूने जो छल किया था, उसका फल तुझे मिल चुका है। मेरी ओर से तू मुक्त है।" बुढ़िया अपनी भूल के लिए जीवन-भर तड़पती रही।
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt let me know.